23-05-2022, 05:00 PM
मौसी मुझसे 3 साल बड़ी थी, बचपन में हम साथ ही खेला करते थे। उसका तो पता नहीं … पर सिम्मी का साथ मुझे बहुत पसंद था. मैं शायद चाहता था उसे।
गाँव गया तो प्लान बना मामाजी के घर घूमने का … तो मैं पापा की बाइक लेकर जा पहुंचा मेरे ननिहाल।
जहाँ इंतज़ार कर रही थी एक कहानी अन्तर्वासना के एक पाठक को अन्तर्वासना लेखक बनाने का।
जैसा कि होता है यहाँ मेरा जोरदार स्वागत हुआ… मामा-मामी और सब बड़ी खुशी से मिले. पर मेरी नजरें तो मेरी हिरोइन को ढूंढ रही थीं। लेकिन पता चला मोहतरमा अभी कॉलेज से ही नहीं लौटी। गलत समझे आप … मौसी पढ़ती नहीं, एक निजी कॉलेज में छोटे बच्चों को पढ़ाती थी।
गांव की लड़कियों की ये बहुत बड़ी परेशानी है, 12वीं के बाद वो तो पढ़ना चाहती थी लेकिन पास में कोई कॉलेज नहीं था। पढ़ाई के लिये बाहर जाना पड़ता, जिसकी इजाजत लड़कियों को और वो भी पंजाबी परिवार में, सम्भव ही नहीं जी!
खैर दोपहर तक सिम्मी घर आई और आते ही उफ्फ! सारे जिस्म के रक्त को महज 7 इंच के एक अंग में भर देने वाली वो जफ्फी (झप्पी)।
कसम से मुझे और मेरे उस्ताद दोनों को ताउम्र याद रहेगा वो लम्हा।
“शोना कहाँ था साले इतने दिन?”
बचपन से ही सब मुझे प्यार से शोना बुलाते हैं।
और फिर ये-वो, ऐसा-वैसा तमाम बेमतलब बातें और इन सब से परे मेरा दिल और दिमाग फिर उसी साजिश में को बनाने में जुटे थे जिसे पहले भी कई बार बनाया गया पर अंजाम देने की बारी आते ही हिम्मत जवाब देने लगती थी।
कैसे? कैसे सामने बैठी इस कन्या के गुलाबी अधरों का रसपान कर पाऊंगा मैं? 34″ साइज़ के वो मम्मे कब मसल पाऊंगा जो आतुर हैं पीले पंजाबी सूट के नीचे पहनी हुई सफेद ब्रा से बाहर आने को? उसके 36 के प्योर पंजाबी स्टाइल चूतड़ों पर चपत लगाने का ख्याल ही …
“शोना!!! कहाँ खोये हो? गर्लफ्रैंड की याद आ रही है?”
“गर्लफ्रैंड? मौसी वो क्या होता है”
मैंने आँख मारते हुए कहा।
“वैसे कितनी हैं तेरी?”
सवाल से भी अजीब जवाब, वो भी सवाल के रूप में।
मैं इनसे बातों में न तो जीत पाया था न ही जीत पाऊंगा।
“एक थी मौसी … छोड़ के चली गयी.”
“अब?”
“नहीं है।”
“झूठ?”
“झूठ मतलब?”
“मतलब तू शहर में रहता है फिर भी और
सिंगल?”
“यार बताया ना … अभी ब्रेकअप हुआ है और शहर में क्या लड़कियां पेड़ों पे लगती हैं। गए तोड़ी और कहा कि आजा मेरी सेटिंग बन जा!!”
सेटिंग शब्द अधिक दबाव के साथ और सिम्मी की तरफ इशारा।
दूसरी ओर उनकी मुस्कान जैसे मेरा ये वाक्य कोई पारदर्शी माध्यम हो और उस पार मेरे इरादे।
सिम्मी के साथ मैं पहले भी फ़्लर्ट करता रहता था. वो सिर्फ स्माइल करती और इससे आगे बढ़ने की मेरी हिम्मत नहीं थी। आंखें तो शायद उसकी भी कुछ कहना चाहती थीं आज।
“सिम्मी, शोना चाय पी लो.”
यह आवाज रसोई से थी.
हम बरामदे में पहुंचे, देखा मामी रसोई से चाय-नाश्ता लिये चली आ रही थी।
दिखने में मामी भी कुछ कम नहीं थी; 26 की थी और 2 साल पहले ही शादी हुई उनकी । भरा हुआ शरीर 36″ 30″ 36″। शादी के बाद और भी क़यामत लगने लगी थी। हिरनी जैसी चाल … ऊपर से बिल्लौरी आंखें …
ओ एम जी …
खैर इनकी कहानी बाद में।
चाय पीते पीते मेरे दिमाग मे एक आईडिया आया- “मौसी खेत घूमने चलें?
“चल, मैं भी बहुत दिनों से गयी नहीं हूं।”
प्रति उत्तर जिसकी मुझे आशा थी।
शाम 4 बजे मैं और मौसी दोनों ट्यूबवेल पे थे।
गाँव गया तो प्लान बना मामाजी के घर घूमने का … तो मैं पापा की बाइक लेकर जा पहुंचा मेरे ननिहाल।
जहाँ इंतज़ार कर रही थी एक कहानी अन्तर्वासना के एक पाठक को अन्तर्वासना लेखक बनाने का।
जैसा कि होता है यहाँ मेरा जोरदार स्वागत हुआ… मामा-मामी और सब बड़ी खुशी से मिले. पर मेरी नजरें तो मेरी हिरोइन को ढूंढ रही थीं। लेकिन पता चला मोहतरमा अभी कॉलेज से ही नहीं लौटी। गलत समझे आप … मौसी पढ़ती नहीं, एक निजी कॉलेज में छोटे बच्चों को पढ़ाती थी।
गांव की लड़कियों की ये बहुत बड़ी परेशानी है, 12वीं के बाद वो तो पढ़ना चाहती थी लेकिन पास में कोई कॉलेज नहीं था। पढ़ाई के लिये बाहर जाना पड़ता, जिसकी इजाजत लड़कियों को और वो भी पंजाबी परिवार में, सम्भव ही नहीं जी!
खैर दोपहर तक सिम्मी घर आई और आते ही उफ्फ! सारे जिस्म के रक्त को महज 7 इंच के एक अंग में भर देने वाली वो जफ्फी (झप्पी)।
कसम से मुझे और मेरे उस्ताद दोनों को ताउम्र याद रहेगा वो लम्हा।
“शोना कहाँ था साले इतने दिन?”
बचपन से ही सब मुझे प्यार से शोना बुलाते हैं।
और फिर ये-वो, ऐसा-वैसा तमाम बेमतलब बातें और इन सब से परे मेरा दिल और दिमाग फिर उसी साजिश में को बनाने में जुटे थे जिसे पहले भी कई बार बनाया गया पर अंजाम देने की बारी आते ही हिम्मत जवाब देने लगती थी।
कैसे? कैसे सामने बैठी इस कन्या के गुलाबी अधरों का रसपान कर पाऊंगा मैं? 34″ साइज़ के वो मम्मे कब मसल पाऊंगा जो आतुर हैं पीले पंजाबी सूट के नीचे पहनी हुई सफेद ब्रा से बाहर आने को? उसके 36 के प्योर पंजाबी स्टाइल चूतड़ों पर चपत लगाने का ख्याल ही …
“शोना!!! कहाँ खोये हो? गर्लफ्रैंड की याद आ रही है?”
“गर्लफ्रैंड? मौसी वो क्या होता है”
मैंने आँख मारते हुए कहा।
“वैसे कितनी हैं तेरी?”
सवाल से भी अजीब जवाब, वो भी सवाल के रूप में।
मैं इनसे बातों में न तो जीत पाया था न ही जीत पाऊंगा।
“एक थी मौसी … छोड़ के चली गयी.”
“अब?”
“नहीं है।”
“झूठ?”
“झूठ मतलब?”
“मतलब तू शहर में रहता है फिर भी और
सिंगल?”
“यार बताया ना … अभी ब्रेकअप हुआ है और शहर में क्या लड़कियां पेड़ों पे लगती हैं। गए तोड़ी और कहा कि आजा मेरी सेटिंग बन जा!!”
सेटिंग शब्द अधिक दबाव के साथ और सिम्मी की तरफ इशारा।
दूसरी ओर उनकी मुस्कान जैसे मेरा ये वाक्य कोई पारदर्शी माध्यम हो और उस पार मेरे इरादे।
सिम्मी के साथ मैं पहले भी फ़्लर्ट करता रहता था. वो सिर्फ स्माइल करती और इससे आगे बढ़ने की मेरी हिम्मत नहीं थी। आंखें तो शायद उसकी भी कुछ कहना चाहती थीं आज।
“सिम्मी, शोना चाय पी लो.”
यह आवाज रसोई से थी.
हम बरामदे में पहुंचे, देखा मामी रसोई से चाय-नाश्ता लिये चली आ रही थी।
दिखने में मामी भी कुछ कम नहीं थी; 26 की थी और 2 साल पहले ही शादी हुई उनकी । भरा हुआ शरीर 36″ 30″ 36″। शादी के बाद और भी क़यामत लगने लगी थी। हिरनी जैसी चाल … ऊपर से बिल्लौरी आंखें …
ओ एम जी …
खैर इनकी कहानी बाद में।
चाय पीते पीते मेरे दिमाग मे एक आईडिया आया- “मौसी खेत घूमने चलें?
“चल, मैं भी बहुत दिनों से गयी नहीं हूं।”
प्रति उत्तर जिसकी मुझे आशा थी।
शाम 4 बजे मैं और मौसी दोनों ट्यूबवेल पे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
