23-05-2022, 04:51 PM
मेरे और स्वाति भाभी के मुंह से कराहें और सिसकारियाँ तो निकल ही रही थी, हमारी इस घमासान धक्कमपेल से अब ‘पट्ट … पट्ट …’ और ‘फच्च … फच्च…’ की आवाजें भी निकलना शुरु हो गयी जिससे वो छोटा सा बाथरूम अब पट्ट।। पट्ट, फच्च… फच्च… की आवाज के साथ मेरी व स्वाति भाभी की सिसकारियों से गूंजने सा लगा था।
मगर हमें होश ही कहां था … जितना मैं अपनी मंजिल पर पहुचने की जल्दी में था, उससे भी कहीं ज्यादा अब स्वाति भाभी अपनी मंजिल को पाने के लिये उतावली हो रही थी।
हम दोनों में अपनी अपनी मंजिल को जल्दी से पाने की जैसे कोई अब प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी थी।
वैसे तो हल्की सर्दी का सा मौसम था मगर फिर भी हमारी इस धक्कमपेल से हम दोनों के खूब पसीने निकल आये और हमारी सांसें तो जैसे धौंकनी की तरह चल रही थी।
मगर फिर भी मैं और भाभी अपनी वासना की इस धक्कमपेल में लगे रहे।
और फिर कुछ ही देर बाद मेरा ज्वार अपने चरम पर जाकर स्वाति भाभी की चूत में किसी लावे की तरह फूट पड़ा। मैंने उसे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और रह रह कर उसकी चूत को अपने वीर्य से भरना शुरु कर दिया।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब अपनी मंजिल पर पहुंच गयी थी। वो तो जैसे मेरे ही चरम पर पहुंचने का इन्तजार कर रही थी। जैसे ही मेरे लण्ड से उसकी चूत में वीर्य की पिचकारियाँ निकलना शुरु हुई, उसने भी अपने हाथ पैरों को समेटकर मुझे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और अपनी चूत में ही मेरे लण्ड को दबोचकर उसे रह रह कर अपने प्रेमरस से नहलाना शुरु कर दिया।
अब कुछ देर तो मैं और स्वाति भाभी ऐसे ही एक दूसरे की बांहों में समाये पड़े रहे। फिर धीरे से स्वाति भाभी ने अपने दोनों हाथों से मुझे पीछे की तरफ धकेलकर अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया।
मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी से उतर कर अब खड़ा हो गया और अपने कपड़ों को सही से करके स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब उठकर खड़ी हो गयी जिससे मेर ध्यान अब सीधा ही उसकी जाँघों पर चला गया। भाभी की दूधिया सफेद गोरी चिकनी जांघें मेरे धक्कों की थाप खा खाकर चूत के पास से बिल्कुल लाल हो गयी थी।
खड़े होने से उसकी चूत में भरा हुआ मेरा वीर्य भी अब उसकी चूत से रिसकर उसकी जाँघों पर बह आया था।
मगर स्वाति भाभी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और खड़े होकर सीधा बाथरूम के दरवाजे के पास आ गयी।
“तेरे कपड़े तो भीग गये … अब घर कैसे जायेगा? तू अपने साथ साथ तुम मुझे भी मरवायेगा!” उसने मेरे कपड़ों की तरफ देखते हुए कहा।
जाहिर है जब बाथरूम में ये सब होगा तो कपड़े तो भीगने थे ही … मगर मुझे उसकी कोई परवाह नहीं थी।
“कुछ नहीं होगा, मैं सब देख लूंगा।” मैंने अब फिर से उसको पकड़कर उसके होंठों को चूमते हुए कहा।
“ऊऊह्ह … क्या है? जा अब तू … मम्मी आने वाली हैं!” उसने मुझे अपने से दूर करते हुए कहा और बाथरूम के दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर बाहर देखने लगी।
स्वाति भाभी ने पहले तो अपनी गर्दन निकालकर बाहर इधर उधर देखा कि कोई है तो नहीं, फिर ‘जाओ अब यहां से … और हां, वो सिलाई मशीन मेरे कमरे में मेज पर रखी हुई है!” उसने मुझे बाहर निकालते हुए कहा।
अब मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी के कमरे से सिलाई मशीन लेकर अपने घर आ गया।
अब एक बार मेरे और स्वाति भाभी के सम्बन्ध क्या बने, वो बनते ही चले गये। उसे जब भी मौका मिलता वो मुझे अपने घर बुला लेती या रात को छत पर ही हमारी मुलाकात हो जाती।
मगर हमें होश ही कहां था … जितना मैं अपनी मंजिल पर पहुचने की जल्दी में था, उससे भी कहीं ज्यादा अब स्वाति भाभी अपनी मंजिल को पाने के लिये उतावली हो रही थी।
हम दोनों में अपनी अपनी मंजिल को जल्दी से पाने की जैसे कोई अब प्रतियोगिता सी शुरु हो गयी थी।
वैसे तो हल्की सर्दी का सा मौसम था मगर फिर भी हमारी इस धक्कमपेल से हम दोनों के खूब पसीने निकल आये और हमारी सांसें तो जैसे धौंकनी की तरह चल रही थी।
मगर फिर भी मैं और भाभी अपनी वासना की इस धक्कमपेल में लगे रहे।
और फिर कुछ ही देर बाद मेरा ज्वार अपने चरम पर जाकर स्वाति भाभी की चूत में किसी लावे की तरह फूट पड़ा। मैंने उसे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और रह रह कर उसकी चूत को अपने वीर्य से भरना शुरु कर दिया।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब अपनी मंजिल पर पहुंच गयी थी। वो तो जैसे मेरे ही चरम पर पहुंचने का इन्तजार कर रही थी। जैसे ही मेरे लण्ड से उसकी चूत में वीर्य की पिचकारियाँ निकलना शुरु हुई, उसने भी अपने हाथ पैरों को समेटकर मुझे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और अपनी चूत में ही मेरे लण्ड को दबोचकर उसे रह रह कर अपने प्रेमरस से नहलाना शुरु कर दिया।
अब कुछ देर तो मैं और स्वाति भाभी ऐसे ही एक दूसरे की बांहों में समाये पड़े रहे। फिर धीरे से स्वाति भाभी ने अपने दोनों हाथों से मुझे पीछे की तरफ धकेलकर अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया।
मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी से उतर कर अब खड़ा हो गया और अपने कपड़ों को सही से करके स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा।
मेरे साथ साथ स्वाति भाभी भी अब उठकर खड़ी हो गयी जिससे मेर ध्यान अब सीधा ही उसकी जाँघों पर चला गया। भाभी की दूधिया सफेद गोरी चिकनी जांघें मेरे धक्कों की थाप खा खाकर चूत के पास से बिल्कुल लाल हो गयी थी।
खड़े होने से उसकी चूत में भरा हुआ मेरा वीर्य भी अब उसकी चूत से रिसकर उसकी जाँघों पर बह आया था।
मगर स्वाति भाभी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और खड़े होकर सीधा बाथरूम के दरवाजे के पास आ गयी।
“तेरे कपड़े तो भीग गये … अब घर कैसे जायेगा? तू अपने साथ साथ तुम मुझे भी मरवायेगा!” उसने मेरे कपड़ों की तरफ देखते हुए कहा।
जाहिर है जब बाथरूम में ये सब होगा तो कपड़े तो भीगने थे ही … मगर मुझे उसकी कोई परवाह नहीं थी।
“कुछ नहीं होगा, मैं सब देख लूंगा।” मैंने अब फिर से उसको पकड़कर उसके होंठों को चूमते हुए कहा।
“ऊऊह्ह … क्या है? जा अब तू … मम्मी आने वाली हैं!” उसने मुझे अपने से दूर करते हुए कहा और बाथरूम के दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर बाहर देखने लगी।
स्वाति भाभी ने पहले तो अपनी गर्दन निकालकर बाहर इधर उधर देखा कि कोई है तो नहीं, फिर ‘जाओ अब यहां से … और हां, वो सिलाई मशीन मेरे कमरे में मेज पर रखी हुई है!” उसने मुझे बाहर निकालते हुए कहा।
अब मैं भी चुपचाप स्वाति भाभी के कमरे से सिलाई मशीन लेकर अपने घर आ गया।
अब एक बार मेरे और स्वाति भाभी के सम्बन्ध क्या बने, वो बनते ही चले गये। उसे जब भी मौका मिलता वो मुझे अपने घर बुला लेती या रात को छत पर ही हमारी मुलाकात हो जाती।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.