23-05-2022, 04:49 PM
स्वाति भाभी अब कुछ देर तो ऐसे ही अपनी चूत से मेरे लण्ड पर प्रेमरस की बारिश सी करती रही फिर धीरे धीरे उसके हाथ पैरो की पकड़ ढीली हो गयी। अपने सारे काम ज्वार को मेरे लण्ड पर उगलने के बाद वो निढाल सी हो गयी थी इसलिये धीरे धीरे मेरे लण्ड पर से नीचे उतरकर वो पास में ही रखे उस पटरे पर बैठ गयी और आराम से अपनी पीठ को दीवार से लगाकर अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगी।
मैं अभी भी वैसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी की तरफ देखता रहा। मगर उसका तो मुझ पर ध्यान ही नहीं था वो वैसे ही दीवार से टेक लगाकर लम्बी लम्बी व गहरी सांसें लेती रही।
मैं अब कुछ देर तो ऐसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी को देखता रहा। जब मुझे लगा कि वो अब सामान्य हो गयी है तो मैं भी नीचे उसके पास ही बैठ गया और उसके सिर को पकड़ कर फिर से उसके गालो को चूमना शुरु कर दिया।
“ऊह्ह … ओय्य … क्या कर रहा है … बस्स्स बस्स अब बहुत हो गया … त तुम … तुम जाओ अब यहां से!” स्वाति भाभी ने कसमसाते हुए कहा और दोनों हाथों से मुझे धकेलकर अपने से दूर हटा दिया।
मगर मैं कहां मानने वाला था ‘नहीई … तुम्हारा तो हो गया ना … मगर मेरा?’ कहते हुए मैंने अब फिर से उसे पकड़ लिया।
मेरा तन्नाया लण्ड अब भी पूरे जोश में था जो अब स्वाति भाभी के एक घुटने को छू रहा था।
“बस्स तो अब क्या है? मम्मीजी आने वाली हैं …” उसने मेरे लण्ड की तरफ देखते हुए कहा।
मेरे लण्ड को देखकर वो मेरी हालत समझ गयी इसलिये उसके चेहरे पर अब हल्की सी हंसी आ गयी।
“नहीं … मैं नहीं जाऊँगा।” मैंने उसे वैसे ही पकड़े पकड़े कहा और फिर से उसके एक गाल पर चूमने लगा।
“अच्छा … बस्स्स् तो रुको … अब…” कहते हुए स्वाति भाभी ने मुझे अपने से दूर हटाकर अपने एक हाथ से अब मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ‘उठो … खड़े हो जल्दी से …’ स्वाति भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे उठाने की कोशिश करते हुए कहा।
मैंने हैरानी से अब एक बार तो उसकी तरफ देखा फिर चुपचाप उठकर खड़ा हो गया। मेरा लण्ड अभी भी स्वाति भाभी के हाथ में ही था जिसे उसने अपनी मुट्ठी में भींचकर एक बार तो ऊपर नीचे हिलाकर देखा फिर अपने हाथ को आगे मेरे लण्ड के छोर पर लाकर धीरे से मेरे सुपारे की चमड़ी को पीछे की तरफ खिसका दिया।
अधूरे में ही रह जाने से मेरा लण्ड पहले ही गुस्से में था। अब जैसे ही उसने उसे जबरदस्ती ऊपर नीचे हिलाकर सुपारे की चमड़ी को पीछे किया गुस्से से तमतमाये मेरे लण्ड का टमाटर के जितना बड़ा और बिल्कुल लाल लाल सुपारा फुंकारकर ऐसे बाहर निकल आया जैसे अपने बिल में से किसे सांप ने अपना मुंह बाहर निकाला हो।
गुस्से से मेरे लण्ड का सुपारा पहले ही लाल था ऊपर से उस पर लगे स्वाति भाभी के चूत का रस की चिकनाई से वो और भी सुर्ख लाल होकर चमक सा रहा था।
एक हाथ में मेरे लण्ड को पकड़ कर स्वाति भाभी अब कुछ देर तो वैसे ही मेरे लण्ड को देखती रही फिर उसने अपने दूसरे हाथ से पास में रही रखी बाल्टी से अपनी हथेली में पानी लेकर मेरे लण्ड पर डालना शुरु कर दिया।
भाभी अपने एक हाथ से मेरे लण्ड पर पानी डालती फिर उसे अपने दूसरे हाथ से रगड़कर साफ करने लगी।
ऐसा उसने अब तीन चार बार किया जिससे मेरे लण्ड पर लगा उसका चूतरस तो साफ हो गया मगर गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी सुलग सा उठा।
स्वाति भाभी के मेरे लण्ड पर पानी डालने से मुझे राहत नहीं मिली थी बल्कि ठण्डे ठण्डे पानी के अहसास से गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी दहक सा उठा। उत्तेजना से गर्माये मेरे लण्ड पर पानी का ठण्डा ठण्डा अहसास बिल्कुल ऐसा ही था जैसे गर्म लाल हो रखे लोहे की पर किसी ने पानी डाल दिया हो।
मैं अभी भी वैसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी की तरफ देखता रहा। मगर उसका तो मुझ पर ध्यान ही नहीं था वो वैसे ही दीवार से टेक लगाकर लम्बी लम्बी व गहरी सांसें लेती रही।
मैं अब कुछ देर तो ऐसे ही खड़े खड़े स्वाति भाभी को देखता रहा। जब मुझे लगा कि वो अब सामान्य हो गयी है तो मैं भी नीचे उसके पास ही बैठ गया और उसके सिर को पकड़ कर फिर से उसके गालो को चूमना शुरु कर दिया।
“ऊह्ह … ओय्य … क्या कर रहा है … बस्स्स बस्स अब बहुत हो गया … त तुम … तुम जाओ अब यहां से!” स्वाति भाभी ने कसमसाते हुए कहा और दोनों हाथों से मुझे धकेलकर अपने से दूर हटा दिया।
मगर मैं कहां मानने वाला था ‘नहीई … तुम्हारा तो हो गया ना … मगर मेरा?’ कहते हुए मैंने अब फिर से उसे पकड़ लिया।
मेरा तन्नाया लण्ड अब भी पूरे जोश में था जो अब स्वाति भाभी के एक घुटने को छू रहा था।
“बस्स तो अब क्या है? मम्मीजी आने वाली हैं …” उसने मेरे लण्ड की तरफ देखते हुए कहा।
मेरे लण्ड को देखकर वो मेरी हालत समझ गयी इसलिये उसके चेहरे पर अब हल्की सी हंसी आ गयी।
“नहीं … मैं नहीं जाऊँगा।” मैंने उसे वैसे ही पकड़े पकड़े कहा और फिर से उसके एक गाल पर चूमने लगा।
“अच्छा … बस्स्स् तो रुको … अब…” कहते हुए स्वाति भाभी ने मुझे अपने से दूर हटाकर अपने एक हाथ से अब मेरे लण्ड को पकड़ लिया और ‘उठो … खड़े हो जल्दी से …’ स्वाति भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे उठाने की कोशिश करते हुए कहा।
मैंने हैरानी से अब एक बार तो उसकी तरफ देखा फिर चुपचाप उठकर खड़ा हो गया। मेरा लण्ड अभी भी स्वाति भाभी के हाथ में ही था जिसे उसने अपनी मुट्ठी में भींचकर एक बार तो ऊपर नीचे हिलाकर देखा फिर अपने हाथ को आगे मेरे लण्ड के छोर पर लाकर धीरे से मेरे सुपारे की चमड़ी को पीछे की तरफ खिसका दिया।
अधूरे में ही रह जाने से मेरा लण्ड पहले ही गुस्से में था। अब जैसे ही उसने उसे जबरदस्ती ऊपर नीचे हिलाकर सुपारे की चमड़ी को पीछे किया गुस्से से तमतमाये मेरे लण्ड का टमाटर के जितना बड़ा और बिल्कुल लाल लाल सुपारा फुंकारकर ऐसे बाहर निकल आया जैसे अपने बिल में से किसे सांप ने अपना मुंह बाहर निकाला हो।
गुस्से से मेरे लण्ड का सुपारा पहले ही लाल था ऊपर से उस पर लगे स्वाति भाभी के चूत का रस की चिकनाई से वो और भी सुर्ख लाल होकर चमक सा रहा था।
एक हाथ में मेरे लण्ड को पकड़ कर स्वाति भाभी अब कुछ देर तो वैसे ही मेरे लण्ड को देखती रही फिर उसने अपने दूसरे हाथ से पास में रही रखी बाल्टी से अपनी हथेली में पानी लेकर मेरे लण्ड पर डालना शुरु कर दिया।
भाभी अपने एक हाथ से मेरे लण्ड पर पानी डालती फिर उसे अपने दूसरे हाथ से रगड़कर साफ करने लगी।
ऐसा उसने अब तीन चार बार किया जिससे मेरे लण्ड पर लगा उसका चूतरस तो साफ हो गया मगर गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी सुलग सा उठा।
स्वाति भाभी के मेरे लण्ड पर पानी डालने से मुझे राहत नहीं मिली थी बल्कि ठण्डे ठण्डे पानी के अहसास से गुस्से व उत्तेजना से गर्माया मेरा लण्ड अब तो और भी दहक सा उठा। उत्तेजना से गर्माये मेरे लण्ड पर पानी का ठण्डा ठण्डा अहसास बिल्कुल ऐसा ही था जैसे गर्म लाल हो रखे लोहे की पर किसी ने पानी डाल दिया हो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.