23-05-2022, 04:47 PM
आनन्द से स्वाति भाभी ने भी अब अपनी आँखें बन्द कर ली थी और अपनी गर्दन को पीछे की तरफ मोड़कर वो मुंह से हल्की हल्की सिसकारियां सी निकाल रही थी। सिसकारियां भरने के लिये उसका मुंह थोड़ा सा खुला हुआ था और उसके टमाटर से लाल लाल होंठ अपने आप ही खुल और बन्द हो रहे थे जो मुझे इतने कामुक और उत्तेजक लग रहा थे कि बस पूछो मत!
मेरा दिल तो कर रहा था कि अभी ही उसके रसीले होंठों को अपने मुंह में भर लूं … मगर उसने अपनी गर्दन नीचे की तरफ की हुई थी इसलिये उसके होंठ मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्बों को पकड़ा हुआ था जिससे मेरे दोनों हाथ भी व्यस्त थे मगर फिर भी मैंने अपने प्यासे होंठों को अब उसकी दूधिया सफेद गोरी चिकनी गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन पर से धीरे धीरे चूमते चाटते हुए उसकी ठोड़ी तक आ गया।
स्वाति भाभी के होंठ तो मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे इसलिये मैंने अब उसकी ठोड़ी को ही पीना शुरु कर दिया.
मगर जैसे ही मैंने उसकी ठोड़ी को चूसना शुरु किया … स्वाति भाभी ने शायद मेरे दिल की बात जान ली और तुरन्त ही अपनी गर्दन को सीधा करके उसने खुद ही मेरे होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया।
मैंने भी अब उसके होंठों को तुरन्त ही अपने मुंह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसना शुरु कर दिया।
अबकी बार स्वाति भाभी ने भी मेरा साथ दिया। उसने खुद ही मेरे ऊपर के एक होंठ को अपने मुंह में भर लिया और मेरे साथ साथ उसे जोरों से चूसने लगी। अब कुछ देर तो ऐसे हमारे होंठों की चुसाई चलती रही फिर धीरे धीरे हमारी जीभ ने भी एक दूसरे के मुंह में जाकर कुश्ती सी लड़ना शुरु कर दिया जिसमें भी स्वाति भाभी अब मेरा पूरा साथ देने लगी।
मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी क्योंकि नीचे से मेरे लण्ड को स्वाति भाभी की चुत चूस रही थी, ऊपर से भी मुझे उसके नर्म रसीले होंठों और जीभ का स्वाद मिलने लगा था जिससे आनन्द के वश अब अपने आप ही मेरे हाथों की हरकत तेज हो गयी।
मैंने स्वाति भाभी को अब थोड़ा जोरों से हिलाना शुरु कर दिया था जिससे उसकी सिसकारियां भी अब और तेज हो गयी. मेरे साथ साथ वो भी अब धीरे धीरे उचक उचककर अपनी चुत की मखमली दीवारों को मेरे लण्ड पर घिसने लगी।
स्वाति भाभी ने मेरी गर्दन में बांहें डाली ही हुई थी, उनके सहारे अब वो भी धीरे धीरे अपने कूल्हों को उचकाने लगी थी जिससे उसकी चुत की फांकें … फांकें क्या … उसकी पूरी की पूरी चुत ही मेरे लण्ड के पास की चमड़ी और मेरे झांटों पर रगड़ खाने लगी … जिसने मेरा आनन्द अब और भी दोगुना कर दिया।
भाभी की चुत की मखमली दीवारें तो मेरे लण्ड की मालिश कर ही रही थी, उसके उचक उचककर धक्के लगाने से अब उसकी चुत की मखमली फांकें भी मेरे लण्ड के आस पास की जगह की तसल्ली से मालिश करने लगी।
मैं तो स्वाति भाभी को धीरे धीरे ही हिला रहा था मगर स्वाति भाभी शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी क्योंकि उसकी गति अब अपने आप ही बढ़ती जा रही थी। मैं तो अपने चरम के आधे भी नहीं पहुंचा था मगर स्वाति भाभी को देखकर लग रहा था कि उसका चरम शायद अब करीब ही आ गया था।
स्वाति भाभी की इस जल्दी को देखकर मुझे अब ये डर लगने लगा था कि कहीं स्वाति भाभी ने जिस तरह मुझे अपनी चुत को चाटते चाटते बीच में ही हटा दिया था वैसे ही कहीं उसका काम हो जाने के बाद वो मुझे प्यासा ही ना छोड़ दे … इसलिये मैंने अब स्वाति भाभी को हिलाने की गति को थोड़ा कम कर दिया।
मेरा दिल तो कर रहा था कि अभी ही उसके रसीले होंठों को अपने मुंह में भर लूं … मगर उसने अपनी गर्दन नीचे की तरफ की हुई थी इसलिये उसके होंठ मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्बों को पकड़ा हुआ था जिससे मेरे दोनों हाथ भी व्यस्त थे मगर फिर भी मैंने अपने प्यासे होंठों को अब उसकी दूधिया सफेद गोरी चिकनी गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन पर से धीरे धीरे चूमते चाटते हुए उसकी ठोड़ी तक आ गया।
स्वाति भाभी के होंठ तो मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे इसलिये मैंने अब उसकी ठोड़ी को ही पीना शुरु कर दिया.
मगर जैसे ही मैंने उसकी ठोड़ी को चूसना शुरु किया … स्वाति भाभी ने शायद मेरे दिल की बात जान ली और तुरन्त ही अपनी गर्दन को सीधा करके उसने खुद ही मेरे होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया।
मैंने भी अब उसके होंठों को तुरन्त ही अपने मुंह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसना शुरु कर दिया।
अबकी बार स्वाति भाभी ने भी मेरा साथ दिया। उसने खुद ही मेरे ऊपर के एक होंठ को अपने मुंह में भर लिया और मेरे साथ साथ उसे जोरों से चूसने लगी। अब कुछ देर तो ऐसे हमारे होंठों की चुसाई चलती रही फिर धीरे धीरे हमारी जीभ ने भी एक दूसरे के मुंह में जाकर कुश्ती सी लड़ना शुरु कर दिया जिसमें भी स्वाति भाभी अब मेरा पूरा साथ देने लगी।
मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी क्योंकि नीचे से मेरे लण्ड को स्वाति भाभी की चुत चूस रही थी, ऊपर से भी मुझे उसके नर्म रसीले होंठों और जीभ का स्वाद मिलने लगा था जिससे आनन्द के वश अब अपने आप ही मेरे हाथों की हरकत तेज हो गयी।
मैंने स्वाति भाभी को अब थोड़ा जोरों से हिलाना शुरु कर दिया था जिससे उसकी सिसकारियां भी अब और तेज हो गयी. मेरे साथ साथ वो भी अब धीरे धीरे उचक उचककर अपनी चुत की मखमली दीवारों को मेरे लण्ड पर घिसने लगी।
स्वाति भाभी ने मेरी गर्दन में बांहें डाली ही हुई थी, उनके सहारे अब वो भी धीरे धीरे अपने कूल्हों को उचकाने लगी थी जिससे उसकी चुत की फांकें … फांकें क्या … उसकी पूरी की पूरी चुत ही मेरे लण्ड के पास की चमड़ी और मेरे झांटों पर रगड़ खाने लगी … जिसने मेरा आनन्द अब और भी दोगुना कर दिया।
भाभी की चुत की मखमली दीवारें तो मेरे लण्ड की मालिश कर ही रही थी, उसके उचक उचककर धक्के लगाने से अब उसकी चुत की मखमली फांकें भी मेरे लण्ड के आस पास की जगह की तसल्ली से मालिश करने लगी।
मैं तो स्वाति भाभी को धीरे धीरे ही हिला रहा था मगर स्वाति भाभी शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी क्योंकि उसकी गति अब अपने आप ही बढ़ती जा रही थी। मैं तो अपने चरम के आधे भी नहीं पहुंचा था मगर स्वाति भाभी को देखकर लग रहा था कि उसका चरम शायद अब करीब ही आ गया था।
स्वाति भाभी की इस जल्दी को देखकर मुझे अब ये डर लगने लगा था कि कहीं स्वाति भाभी ने जिस तरह मुझे अपनी चुत को चाटते चाटते बीच में ही हटा दिया था वैसे ही कहीं उसका काम हो जाने के बाद वो मुझे प्यासा ही ना छोड़ दे … इसलिये मैंने अब स्वाति भाभी को हिलाने की गति को थोड़ा कम कर दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.