23-05-2022, 04:46 PM
स्वाति भाभी बस दिखावे के लिये ही नखरा कर रही थी नहीं तो हर एक काम तो वो खुद अपने आप ही कर रही थी साथ ही मुझे भी आगे के लिये राह दिखा रही थी।
खैर मैंने भी अब अपने होंठों को उसकी चुत की फांकों के बीच घुसा दिया और अपनी पूरी जीभ निकालकर उसकी चुत की नर्म नर्म व गर्म फांकों को चाटना और चूसना शुरु कर दिया जिससे स्वाति भाभी अब जोर से सिसक उठी।
उसने मेरे सिर को पकड़ा हुआ था जिससे उसने अब मेरी जीभ के साथ साथ खुद ही अपनी कमर को हिला हिलाकर अपनी चुत को जोर से मेरे मुंह पर रगड़ना शुरु कर दिया।
उसकी चुत पहले ही कामरस से लबालब थी मगर अब तो जैसे उसने कामरस की बारिश सी करनी शुरु कर दी जिसे मैं भी चाट चाटकर और चूस चूसकर पीने लगा।
कुछ देर तो वो ऐसे ही अपनी चुत का रस मुझे पिलाती रही फिर ना जाने उसके दिल में क्या आया, उसने अपने पैर को मेरे कंधे पर से उतारकर नीचे कर लिया और थोड़ा सा पीछे होकर अपनी चुत को भी मेरे होंठों से दूर हटा लिया.
स्वाति भाभी के इस तरह पीछे हो जाने से मेरी हालत अब बिल्कुल वैसी हो गयी जैसे किसी छोटे बच्चे के मुंह से उसकी पसंदीदा चीज खाते खाते अचानक उससे वो चीज छीन ली हो.
मैंने अपनी गर्दन उठाकर अब एक बार तो स्वाति भाभी की तरफ देखा फिर अगले ही पल उसके पीछे पीछे अपने घुटनों के बल सरक कर मैंने उसकी दोनों जाँघों को अपनी बांहों में भर लिया और अपने होंठों को फिर से उसकी चुत की फांकों से जोड़ दिया.
“ओय्य्य्य … क्या कर रहा है… हट … हट छोड़ … छोड़ मुझे!” कहते हुए उसने अब दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़कर मुझे ऊपर खींच लिया।
स्वाति भाभी के इस तरह के व्यवहार से मुझे खीज तो हुई मगर बाल खींचने से मुझे दर्द भी हो रहा था इसलिये मैं उसकी जाँघों के बीच से उठकर सीधा खड़ा हो गया और मायूस सा चेहरा बना के स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो अब भी वैसे ही खड़ी हुई थी।
खैर मैंने भी अब अपने होंठों को उसकी चुत की फांकों के बीच घुसा दिया और अपनी पूरी जीभ निकालकर उसकी चुत की नर्म नर्म व गर्म फांकों को चाटना और चूसना शुरु कर दिया जिससे स्वाति भाभी अब जोर से सिसक उठी।
उसने मेरे सिर को पकड़ा हुआ था जिससे उसने अब मेरी जीभ के साथ साथ खुद ही अपनी कमर को हिला हिलाकर अपनी चुत को जोर से मेरे मुंह पर रगड़ना शुरु कर दिया।
उसकी चुत पहले ही कामरस से लबालब थी मगर अब तो जैसे उसने कामरस की बारिश सी करनी शुरु कर दी जिसे मैं भी चाट चाटकर और चूस चूसकर पीने लगा।
कुछ देर तो वो ऐसे ही अपनी चुत का रस मुझे पिलाती रही फिर ना जाने उसके दिल में क्या आया, उसने अपने पैर को मेरे कंधे पर से उतारकर नीचे कर लिया और थोड़ा सा पीछे होकर अपनी चुत को भी मेरे होंठों से दूर हटा लिया.
स्वाति भाभी के इस तरह पीछे हो जाने से मेरी हालत अब बिल्कुल वैसी हो गयी जैसे किसी छोटे बच्चे के मुंह से उसकी पसंदीदा चीज खाते खाते अचानक उससे वो चीज छीन ली हो.
मैंने अपनी गर्दन उठाकर अब एक बार तो स्वाति भाभी की तरफ देखा फिर अगले ही पल उसके पीछे पीछे अपने घुटनों के बल सरक कर मैंने उसकी दोनों जाँघों को अपनी बांहों में भर लिया और अपने होंठों को फिर से उसकी चुत की फांकों से जोड़ दिया.
“ओय्य्य्य … क्या कर रहा है… हट … हट छोड़ … छोड़ मुझे!” कहते हुए उसने अब दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़कर मुझे ऊपर खींच लिया।
स्वाति भाभी के इस तरह के व्यवहार से मुझे खीज तो हुई मगर बाल खींचने से मुझे दर्द भी हो रहा था इसलिये मैं उसकी जाँघों के बीच से उठकर सीधा खड़ा हो गया और मायूस सा चेहरा बना के स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो अब भी वैसे ही खड़ी हुई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.