23-05-2022, 04:43 PM
स्वाति भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खोलकर अब मैंने ही अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उसे धीरे से उसके कूल्हों से नीचे कर दिया। स्वाति भाभी अब भी मेरे हाथ को पकड़े हुए थी मगर मुझे रोकने का या अपने पेटीकोट को पकड़ने का वो बिल्कुल भी प्रयास नहीं कर रही थी।
मैंने बस पेटीकोट को उसके कूल्हों से ही निकाला, बाकी तो वो अब भीगने के के कारण खुद के ही भार से नीचे उसके पैरों में गिर गया और स्वाति भाभी बस नीले रंग की एक पेंटी में रह गयी।
मैंने बस पेटीकोट को उसके कूल्हों से ही निकाला, बाकी तो वो अब भीगने के के कारण खुद के ही भार से नीचे उसके पैरों में गिर गया और स्वाति भाभी बस नीले रंग की एक पेंटी में रह गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.