23-05-2022, 04:43 PM
पने मुंह को मेरे होंठों से अलग करके ‘क्या … है …’ कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो फिर से मेरी आँखों में देखा … फिर हंसकर अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया।
मगर तब तक मैंने उसके सिर को पकड़ लिया और फिर से उसके होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। उसके होंठों को चूसते हुए मैंने उसकी ठोड़ी और होंठों पर लगे हुए दूध को चाट चाट कर अब खुद ही साफ कर दिया जिसका उसने अब इतना विरोध नहीं किया।
वो अब भी अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग नहीं किया।
स्वाति भाभी के होंठों को चूसते हुए मैंने अपना एक हाथ अब भाभी की चूत की तरफ भी बढ़ा दिया था. मगर जैसे ही मैंने उसकी मुनिया को छुआ, ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ की आवाज निकालकर उसने तुरन्त अब मेरे हाथ को पकड़ लिया और मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग करके ‘ओय य … क्या कर रहे हो? बस्स्स अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मुझे अपने से दूर करते हुए कहा।
स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को तो पकड़ लिया था मगर उसकी पकड़ बहुत ही हल्की थी। उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था, वो बस ऊपर ऊपर से ही मेरे हाथ को पकड़े हुए थी इसलिये उसके पकड़ने के बावजूद भी मैंने एक दो बार तो भाभी की चुत को सहला ही दिया.
उसने नीचे पेंटी पहनी हुई थी इसलिये मैंने भी बस एक दो बार ही उसकी चुत के फूले हुए उभार को सहलाकर देखा. फिर अपने हाथ को उसकी बगल में ले जाकर सीधा ही उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया.
मगर नाड़ा खुलने के बाद भी स्वाति भाभी का पेटीकोट निकला नहीं क्योंकि एक तो उसने अपने कूल्हों को दीवार के साथ लगा रखा था और दूसरा भीगने के कारण उसका पेटीकोट उसकी जांघों और कूल्हों से बिल्कुल चिपका हुआ था।
मगर तब तक मैंने उसके सिर को पकड़ लिया और फिर से उसके होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। उसके होंठों को चूसते हुए मैंने उसकी ठोड़ी और होंठों पर लगे हुए दूध को चाट चाट कर अब खुद ही साफ कर दिया जिसका उसने अब इतना विरोध नहीं किया।
वो अब भी अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग नहीं किया।
स्वाति भाभी के होंठों को चूसते हुए मैंने अपना एक हाथ अब भाभी की चूत की तरफ भी बढ़ा दिया था. मगर जैसे ही मैंने उसकी मुनिया को छुआ, ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ की आवाज निकालकर उसने तुरन्त अब मेरे हाथ को पकड़ लिया और मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग करके ‘ओय य … क्या कर रहे हो? बस्स्स अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मुझे अपने से दूर करते हुए कहा।
स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को तो पकड़ लिया था मगर उसकी पकड़ बहुत ही हल्की थी। उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था, वो बस ऊपर ऊपर से ही मेरे हाथ को पकड़े हुए थी इसलिये उसके पकड़ने के बावजूद भी मैंने एक दो बार तो भाभी की चुत को सहला ही दिया.
उसने नीचे पेंटी पहनी हुई थी इसलिये मैंने भी बस एक दो बार ही उसकी चुत के फूले हुए उभार को सहलाकर देखा. फिर अपने हाथ को उसकी बगल में ले जाकर सीधा ही उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया.
मगर नाड़ा खुलने के बाद भी स्वाति भाभी का पेटीकोट निकला नहीं क्योंकि एक तो उसने अपने कूल्हों को दीवार के साथ लगा रखा था और दूसरा भीगने के कारण उसका पेटीकोट उसकी जांघों और कूल्हों से बिल्कुल चिपका हुआ था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
