23-05-2022, 04:41 PM
स्वाति भाभी भी अब मेरे हाथ को अपनी चूचियों पर से हटाने की कोशिश नहीं कर रही थी, वो वैसे ही मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर चुपचाप मुझसे अपनी चूचियाँ मसलवाने लगी।
उधर उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने अब धीरे से अपनी जीभ को भी अब उसके मुंह में घुसा दिया जिससे वो एक बार तो थोड़ा सा कुनकनाई मगर फिर अपने आप ही मुंह को खोलकर मेरी जीभ को अपने मुंह में अन्दर जाने का रास्ता दे दिया।
मैंने भी उसका मुंह खुलते ही अपनी जीभ को पूरा ही उसके गले तक उतार दिया और उसकी नर्म नर्म जीभ के साथ खेलते हुए उसके होंठों को चुभलाने लगा।
उसने शायद अभी अभी ब्रुश किया था क्योंकि उसके मुंह से अभी भी टुथपेस्ट(दन्तमंजन) की ठण्डी ठण्डी और मीठी मीठी महक आ रही थी। ब्रश करने से उसका मुंह अन्दर से ठण्डा तो था मगर थोड़ा शुष्क हो रहा था, जिसको गीला करने के लिये मैंने अब अपनी जीभ को एक बार वापस अपने मुंह में खींच लिया और उसे अपने थूक से सानकर फिर उसके मुंह में घुसा दिया जिससे एक बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं किया।
मैंने अपनी थूक लगी जीभ से पहले तो स्वाति भाभी का मुंह गीला किया फिर उसे खुद ही चाट भी लिया. ऐसा मैंने अब लगातार तीन चार बार किया जिससे पहले दो तीन बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर चौथी बार उसने खुद ही अपने होंठों से मेरी जीभ को दबा लिया और मेरी गीली जीभ अपने होंठों के बीच दबाकर धीरे धीरे चूसना शुरु कर दिया।
स्वाति भाभी भी अब मेरी जीभ को चूसने लगी थी मगर मेरी नजरे तो लाल रंग के ब्लाउज में कसी हुई उसकी कच्चे दूध सी सफेद और खरबूजे के जैसे बड़ी बड़ी चुचियों पर थी। उसके ब्लाउज का गला इतना गहरा भी नहीं था मगर फिर उसकी चूचियाँ उसमें से निकल कर ऐसे बाहर आ रही थी जैसे की उन्हें ब्लाउज में ठुंस ठुंसकर जबरदस्ती भर रखा हो।
उसकी दोनों चूचियाँ उस ब्लाउज में इतनी जोर से कसी हुई थी कि दोनों चूचियों के बीच बस एक पतली सी लाईन ही दिखाई दे रही थी। बाकियों की तो V आकार में गहरी घाटी सी होती है मगर स्वाति भाभी की चूचियाँ इतनी बड़ी थी कि दोनों चूचियों के बीच बिल्कुल भी जगह नहीं थी बस एक लाईन सी ही दिखाई दे रही थी।
कुछ देर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने के बाद मैं अब धीरे से अपने हाथ की उंगलियों को उसकी चूचियों की जो लाईन सी बनी हुई थी उसमें घुसाने की कोशिश करने लगा. मगर जैसे ही मैंने अपनी एक दो उंगलियां उसके ब्लाउज में घुसाई, उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से झटक दिया जिससे ‘टक् टक् …’ की आवाज के साथ उसके ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खुल गये और उसकी चूचियाँ ब्लाउज में से उभरकर ऐसे बाहर आ गयी जैसे की गर्म होने पर बर्तन में से दूध उफन कर बाहर आता है।
दरअसल स्वाति भाभी ने जो ब्लाउज पहना हुआ था उसमें टिच-बटन लगे हुए थे जो दबाने पर बन्द होते है और खींचने पर आसानी से खुल जाते हैं। मेरी दो उंगलियां उसके ब्लाउज में ऊपर से घुस गयी थी इसलिये अब जैसे ही स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को खींचा, झटके से उसके ब्लाउज के बटन खुल गये।
स्वाति भाभी ने अब तुरन्त ही मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग कर लिया और ‘ओय्य्य … ओह्ह …” कहते मेरी तरफ घूर घूर कर देखने लगी।
उधर उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने अब धीरे से अपनी जीभ को भी अब उसके मुंह में घुसा दिया जिससे वो एक बार तो थोड़ा सा कुनकनाई मगर फिर अपने आप ही मुंह को खोलकर मेरी जीभ को अपने मुंह में अन्दर जाने का रास्ता दे दिया।
मैंने भी उसका मुंह खुलते ही अपनी जीभ को पूरा ही उसके गले तक उतार दिया और उसकी नर्म नर्म जीभ के साथ खेलते हुए उसके होंठों को चुभलाने लगा।
उसने शायद अभी अभी ब्रुश किया था क्योंकि उसके मुंह से अभी भी टुथपेस्ट(दन्तमंजन) की ठण्डी ठण्डी और मीठी मीठी महक आ रही थी। ब्रश करने से उसका मुंह अन्दर से ठण्डा तो था मगर थोड़ा शुष्क हो रहा था, जिसको गीला करने के लिये मैंने अब अपनी जीभ को एक बार वापस अपने मुंह में खींच लिया और उसे अपने थूक से सानकर फिर उसके मुंह में घुसा दिया जिससे एक बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं किया।
मैंने अपनी थूक लगी जीभ से पहले तो स्वाति भाभी का मुंह गीला किया फिर उसे खुद ही चाट भी लिया. ऐसा मैंने अब लगातार तीन चार बार किया जिससे पहले दो तीन बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर चौथी बार उसने खुद ही अपने होंठों से मेरी जीभ को दबा लिया और मेरी गीली जीभ अपने होंठों के बीच दबाकर धीरे धीरे चूसना शुरु कर दिया।
स्वाति भाभी भी अब मेरी जीभ को चूसने लगी थी मगर मेरी नजरे तो लाल रंग के ब्लाउज में कसी हुई उसकी कच्चे दूध सी सफेद और खरबूजे के जैसे बड़ी बड़ी चुचियों पर थी। उसके ब्लाउज का गला इतना गहरा भी नहीं था मगर फिर उसकी चूचियाँ उसमें से निकल कर ऐसे बाहर आ रही थी जैसे की उन्हें ब्लाउज में ठुंस ठुंसकर जबरदस्ती भर रखा हो।
उसकी दोनों चूचियाँ उस ब्लाउज में इतनी जोर से कसी हुई थी कि दोनों चूचियों के बीच बस एक पतली सी लाईन ही दिखाई दे रही थी। बाकियों की तो V आकार में गहरी घाटी सी होती है मगर स्वाति भाभी की चूचियाँ इतनी बड़ी थी कि दोनों चूचियों के बीच बिल्कुल भी जगह नहीं थी बस एक लाईन सी ही दिखाई दे रही थी।
कुछ देर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने के बाद मैं अब धीरे से अपने हाथ की उंगलियों को उसकी चूचियों की जो लाईन सी बनी हुई थी उसमें घुसाने की कोशिश करने लगा. मगर जैसे ही मैंने अपनी एक दो उंगलियां उसके ब्लाउज में घुसाई, उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से झटक दिया जिससे ‘टक् टक् …’ की आवाज के साथ उसके ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खुल गये और उसकी चूचियाँ ब्लाउज में से उभरकर ऐसे बाहर आ गयी जैसे की गर्म होने पर बर्तन में से दूध उफन कर बाहर आता है।
दरअसल स्वाति भाभी ने जो ब्लाउज पहना हुआ था उसमें टिच-बटन लगे हुए थे जो दबाने पर बन्द होते है और खींचने पर आसानी से खुल जाते हैं। मेरी दो उंगलियां उसके ब्लाउज में ऊपर से घुस गयी थी इसलिये अब जैसे ही स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को खींचा, झटके से उसके ब्लाउज के बटन खुल गये।
स्वाति भाभी ने अब तुरन्त ही मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग कर लिया और ‘ओय्य्य … ओह्ह …” कहते मेरी तरफ घूर घूर कर देखने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.