23-05-2022, 04:41 PM
वो आवाज शायद बाथरूम से आई थी।
“मैं हूँ महेश … वो मैं आपकी सिलाई मशीन लेने आया था.” कहते हुए मैं अब उनके ड्राईंगरूम से निकलकर उनके घर के अन्दर आ गया।
“कुछ देर रुक जाओ या फिर तुम बाद में आ जाना मैं अभी बाथरूम में हूँ!” स्वाति भाभी ने अन्दर से ही कहा।
स्वाति भाभी बाथरूम में थी इसलिये अब मैं भी बाथरूम के दरवाजे के पास आ गया जो स्वाति भाभी ने मुझसे बात करने के लिये अब हल्का सा खोल लिया था।
“कहां रखी है आप बता दो, मैं आंटी को बोलकर ले लेता हूँ!” मैंने फिर से कहा।
“अरे… वो मम्मी यहां नहीं हैं ना … घर पर मैं अकेली ही हूँ.”
“क्यों … आंटी कहां गयी?” मैंने चारों तरफ देखते हुए कहा.
स्वाति भाभी अब कुछ देर तो शांत रही फिर बोली- वो मम्मी तो गुड़िया (सपना भाभी की बेटी) को लेकर मन्दिर गयी हैं … और घर में मैं अकेली ही हूँ!
भाभी ने अब हल्का सा अपना चेहरा बाथरूम से बाहर निकालकर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
उसने इस बार ‘घर में मैं अकेली ही हूँ’ इस बात पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा था. साथ ही उनके चेहरे पर मुझे हल्की सी शरारती मुस्कान सी भी दिखाई दे रही थी जिससे मुझे अब झटका सा लगा क्योंकि यह तो शायद स्वाति भाभी की तरफ से मेरे लिये खुला ही इशारा था।
मैंने अब भी देर ना करते हुए सीधा ही बाथरूम के दरवाजे को पकड़ लिया और उसे खोलने के लिये अन्दर की तरफ धकेल दिया.
“ओय्…य … ये. ये. क्या कर रहे हो? हटो … हटो यहां से … बताया ना बाद में आना!” स्वाति भाभी ने तुरन्त दरवाजे को पकड़ते हुए कहा।
मगर मुझे पता था वो बस ये झूठमूठ का ही दिखावा कर रही है, इसलिये मेरे थोड़ा जोर से बाथरूम के दरवाजे को धकेलते ही उसने दरवाजे को छोड़ दिया जिसे मैं अब पूरा खोलकर बाथरूम में घुस गया।
अन्दर स्वाति भाभी बस लाल रंग के पेटीकोट और ब्लाउज में थी। वो पूरी भीगी हुई थी जिससे उसका ब्लाउज चूचियों पर बिल्कुल चिपका हुआ था और अन्दर पहनी हुई उनकी ब्रा साफ नजर आ रही थी।
वो शायद अभी नहाने नहीं लगी थी, बस कपड़े ही धुलाई कर रही थी जिससे लगभग वो सारी भीगी हुई थी।
बाथरूम में घुस कर मैंने उसे अब सीधा ही पकड़कर अपनी बांहों में भींच लिया.
“नहीं … छोड़ो … छोड़ो मुझे! ये क्या कर रहे हो … हटो … छोड़ो … छोड़ो मुझे.” करते हुए वो अब कसमसाने लगी. मगर मुझे हटाने का या खुद मुझसे दूर होने का प्रयास वो बिल्कुल भी कर रही थी। वो तो शायद चाहती ही यही थी इसलिये स्वाति भाभी को अपनी बांहों में भींचकर मैंने उसके ठण्डे ठण्डे होंठों से सीधा ही अब अपने गर्म और प्यासे होंठों को जोड़कर उसका मुंह भी बन्द कर दिया।
“उम्म्म्म … ह्ह्हु …” कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो अपनी गर्दन घुमाकर अपने होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर तब तक मैंने अपने दोनों हाथों से उसके सिर को पकड़ लिया जिससे वो बस कसमसाकर रह गयी।
वैसे तो भाभी के होंठ मुलायम थे मगर गीले होने के कारण ठण्डे और थोड़े सख्त हो रखे थे जिनको अपने मुंह में भरकर मैंने अब जोर से चूसना शुरु कर दिया.
स्वाति भाभी ने भी अब एक दो बार तो अपनी गर्दन व होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर फिर वो भी शांत हो गयी.
वो अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी इसलिये उसके होंठों के रस को चूसते चूसते मैं अपना एक हाथ अब धीरे से उसके पपीतों पर भी ले आया. मगर जैसे ही मैंने उन्हें पकड़ा स्वाति भाभी ने तुरन्त अपना एक हाथ मेरे हाथ पर रख दिया.
मगर अब मैं कहाँ रुकने वाला था, उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने उसकी एक चुची को भी अब अपनी पूरी हथेली में भर भरकर उसे जोर से मसलना शुरु कर दिया. नारीयल के जितनी बड़ी चुची थी भाभी की जो मेरी हथेली में पूरी समा भी नहीं रही थी. मगर एकदम गुदाज और स्पंज जैसी नर्म नर्म थी।
“मैं हूँ महेश … वो मैं आपकी सिलाई मशीन लेने आया था.” कहते हुए मैं अब उनके ड्राईंगरूम से निकलकर उनके घर के अन्दर आ गया।
“कुछ देर रुक जाओ या फिर तुम बाद में आ जाना मैं अभी बाथरूम में हूँ!” स्वाति भाभी ने अन्दर से ही कहा।
स्वाति भाभी बाथरूम में थी इसलिये अब मैं भी बाथरूम के दरवाजे के पास आ गया जो स्वाति भाभी ने मुझसे बात करने के लिये अब हल्का सा खोल लिया था।
“कहां रखी है आप बता दो, मैं आंटी को बोलकर ले लेता हूँ!” मैंने फिर से कहा।
“अरे… वो मम्मी यहां नहीं हैं ना … घर पर मैं अकेली ही हूँ.”
“क्यों … आंटी कहां गयी?” मैंने चारों तरफ देखते हुए कहा.
स्वाति भाभी अब कुछ देर तो शांत रही फिर बोली- वो मम्मी तो गुड़िया (सपना भाभी की बेटी) को लेकर मन्दिर गयी हैं … और घर में मैं अकेली ही हूँ!
भाभी ने अब हल्का सा अपना चेहरा बाथरूम से बाहर निकालकर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
उसने इस बार ‘घर में मैं अकेली ही हूँ’ इस बात पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा था. साथ ही उनके चेहरे पर मुझे हल्की सी शरारती मुस्कान सी भी दिखाई दे रही थी जिससे मुझे अब झटका सा लगा क्योंकि यह तो शायद स्वाति भाभी की तरफ से मेरे लिये खुला ही इशारा था।
मैंने अब भी देर ना करते हुए सीधा ही बाथरूम के दरवाजे को पकड़ लिया और उसे खोलने के लिये अन्दर की तरफ धकेल दिया.
“ओय्…य … ये. ये. क्या कर रहे हो? हटो … हटो यहां से … बताया ना बाद में आना!” स्वाति भाभी ने तुरन्त दरवाजे को पकड़ते हुए कहा।
मगर मुझे पता था वो बस ये झूठमूठ का ही दिखावा कर रही है, इसलिये मेरे थोड़ा जोर से बाथरूम के दरवाजे को धकेलते ही उसने दरवाजे को छोड़ दिया जिसे मैं अब पूरा खोलकर बाथरूम में घुस गया।
अन्दर स्वाति भाभी बस लाल रंग के पेटीकोट और ब्लाउज में थी। वो पूरी भीगी हुई थी जिससे उसका ब्लाउज चूचियों पर बिल्कुल चिपका हुआ था और अन्दर पहनी हुई उनकी ब्रा साफ नजर आ रही थी।
वो शायद अभी नहाने नहीं लगी थी, बस कपड़े ही धुलाई कर रही थी जिससे लगभग वो सारी भीगी हुई थी।
बाथरूम में घुस कर मैंने उसे अब सीधा ही पकड़कर अपनी बांहों में भींच लिया.
“नहीं … छोड़ो … छोड़ो मुझे! ये क्या कर रहे हो … हटो … छोड़ो … छोड़ो मुझे.” करते हुए वो अब कसमसाने लगी. मगर मुझे हटाने का या खुद मुझसे दूर होने का प्रयास वो बिल्कुल भी कर रही थी। वो तो शायद चाहती ही यही थी इसलिये स्वाति भाभी को अपनी बांहों में भींचकर मैंने उसके ठण्डे ठण्डे होंठों से सीधा ही अब अपने गर्म और प्यासे होंठों को जोड़कर उसका मुंह भी बन्द कर दिया।
“उम्म्म्म … ह्ह्हु …” कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो अपनी गर्दन घुमाकर अपने होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर तब तक मैंने अपने दोनों हाथों से उसके सिर को पकड़ लिया जिससे वो बस कसमसाकर रह गयी।
वैसे तो भाभी के होंठ मुलायम थे मगर गीले होने के कारण ठण्डे और थोड़े सख्त हो रखे थे जिनको अपने मुंह में भरकर मैंने अब जोर से चूसना शुरु कर दिया.
स्वाति भाभी ने भी अब एक दो बार तो अपनी गर्दन व होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर फिर वो भी शांत हो गयी.
वो अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी इसलिये उसके होंठों के रस को चूसते चूसते मैं अपना एक हाथ अब धीरे से उसके पपीतों पर भी ले आया. मगर जैसे ही मैंने उन्हें पकड़ा स्वाति भाभी ने तुरन्त अपना एक हाथ मेरे हाथ पर रख दिया.
मगर अब मैं कहाँ रुकने वाला था, उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने उसकी एक चुची को भी अब अपनी पूरी हथेली में भर भरकर उसे जोर से मसलना शुरु कर दिया. नारीयल के जितनी बड़ी चुची थी भाभी की जो मेरी हथेली में पूरी समा भी नहीं रही थी. मगर एकदम गुदाज और स्पंज जैसी नर्म नर्म थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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