23-05-2022, 04:37 PM
“और और और क्या?” मैंने हंसते हुए कहा जिससे वो शर्मा गयी।
“और … और क्या पूछ लेना उसी से, और वो जो कहेगी वो कर लेना!” उसने शर्माते हुए कहा।
“और आप … आप क्या कहती हो?” कहते हुए मैंने अपना एक हाथ फिर से उसकी चूचियों की तरफ बढ़ा दिया.
“अ.ओय्.य … क्या है?” मेरे हाथ को झटकते हुए वो थोड़ा सा और पीछे हो गयी। वैसे उसकी चुचियां तो मेरे हाथ की पहुंच से दूर थी मगर मेरे हाथ को झटकने से उसका एक हाथ अब मेरी पकड़ में आ गया जिसे पकड़कर मैंने उसे अब फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
जिससे वो घबरा सी गयी और चारों तरफ देखते हुए
“ओय्.य क्या कर रहा है … छोड़ … छोड़ मुझे…” स्वाति भाभी जल्दी से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
“अरे कुछ नहीं, बस देख ही तो रहा हूँ!” कहते हुए मैंने अपने दूसरे हाथ से अब सीधा ही उसकी एक चुची को पकड़कर उसे जोर से मसल दिया. जिससे वो जोर से कसमसा उठी और पहले की तरह ही चारों तरफ देखते हुए अब तो और भी जोर से कसमसाकर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।
स्वाति भाभी इस बात से इतना नहीं डर रही थी कि मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ है और मैं उनकी चुची को मसल रहा हूँ, बल्कि शायद इस बात से ज्यादा डर रही थी कि कोई हमें देख ना ले क्योंकि शाम समय आस पास के घरों में अधिकतर लोग छतों पर होते हैं।
वैसे मेरा दिल तो उसे छोड़ने को नहीं कर रहा था मगर मैंने एक बार उसकी चुची को जोर से भींचकर उसे छोड़ दिया क्योंकि छत पर किसी के देख लेने का जितना डर स्वाति भाभी को था उतना ही डर मुझे भी था।
मेरे छोड़ते ही स्वाति भाभी अब मुझसे बिल्कुल दूर जाकर खड़ी हो गयी और बनावटी सा गुस्सा करते हुए!
“अच्छा … पिंकी के साथ साथ अब मुझ पर नजर लगाये बैठे हो.” उसने अपनी आंखें इधर उधर मटकाते हुए कहा।
“नजरें कहां … मैं तो हाथ लगा रहा था.” कहते हुए मैंने अपना हाथ अब झूठमूठ में ऐसे एक बार फिर से उसकी ओर बढ़ा दिया.
“औय्य … क्या है चल हट …” कहते हुए वो अब सीधा नीचे भाग गयी।
“और … और क्या पूछ लेना उसी से, और वो जो कहेगी वो कर लेना!” उसने शर्माते हुए कहा।
“और आप … आप क्या कहती हो?” कहते हुए मैंने अपना एक हाथ फिर से उसकी चूचियों की तरफ बढ़ा दिया.
“अ.ओय्.य … क्या है?” मेरे हाथ को झटकते हुए वो थोड़ा सा और पीछे हो गयी। वैसे उसकी चुचियां तो मेरे हाथ की पहुंच से दूर थी मगर मेरे हाथ को झटकने से उसका एक हाथ अब मेरी पकड़ में आ गया जिसे पकड़कर मैंने उसे अब फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
जिससे वो घबरा सी गयी और चारों तरफ देखते हुए
“ओय्.य क्या कर रहा है … छोड़ … छोड़ मुझे…” स्वाति भाभी जल्दी से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
“अरे कुछ नहीं, बस देख ही तो रहा हूँ!” कहते हुए मैंने अपने दूसरे हाथ से अब सीधा ही उसकी एक चुची को पकड़कर उसे जोर से मसल दिया. जिससे वो जोर से कसमसा उठी और पहले की तरह ही चारों तरफ देखते हुए अब तो और भी जोर से कसमसाकर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।
स्वाति भाभी इस बात से इतना नहीं डर रही थी कि मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ है और मैं उनकी चुची को मसल रहा हूँ, बल्कि शायद इस बात से ज्यादा डर रही थी कि कोई हमें देख ना ले क्योंकि शाम समय आस पास के घरों में अधिकतर लोग छतों पर होते हैं।
वैसे मेरा दिल तो उसे छोड़ने को नहीं कर रहा था मगर मैंने एक बार उसकी चुची को जोर से भींचकर उसे छोड़ दिया क्योंकि छत पर किसी के देख लेने का जितना डर स्वाति भाभी को था उतना ही डर मुझे भी था।
मेरे छोड़ते ही स्वाति भाभी अब मुझसे बिल्कुल दूर जाकर खड़ी हो गयी और बनावटी सा गुस्सा करते हुए!
“अच्छा … पिंकी के साथ साथ अब मुझ पर नजर लगाये बैठे हो.” उसने अपनी आंखें इधर उधर मटकाते हुए कहा।
“नजरें कहां … मैं तो हाथ लगा रहा था.” कहते हुए मैंने अपना हाथ अब झूठमूठ में ऐसे एक बार फिर से उसकी ओर बढ़ा दिया.
“औय्य … क्या है चल हट …” कहते हुए वो अब सीधा नीचे भाग गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
