23-05-2022, 04:36 PM
पिंकी की भाभी का नाम स्वाति है जो 27-28 साल की होगी। रंग रूप में वो जितनी खूबसूरत है उतना ही आकर्षक उसका बदन भी है। वो पहले ही काफी सुन्दर थी, ऊपर से अभी पांच छः महीने ही उसको बच्चा हुआ है जिससे उसके रंग रूप में अब तो और भी निखार आ गया था। उसकी चूचियाँ पहले ही सुडौल व बड़ी बड़ी थी ऊपर से उनमें अब दूध भर आने से उसके जोबन और भी बड़े और इतने आकर्षक हो गये थे कि देखते ही मुंह में पानी आ जाये।
स्वाति भाभी का पति दिल्ली में एक लिमिटेड कम्पनी में काम करता है और काम के सिलसिले में वो एक-एक दो-दो महीने बाहर ही रहता है। घर पर तो वो बस महीने दो महीने में दो चार दिन ही आता है नहीं तो बाहर ही रहता है। पिंकी के पापा का तो पहले ही निधन हो गया था घर में बस अब उसकी मम्मी ही है जिसकी वजह से स्वाति भाभी को घर पर ही रहना पड़ता है। स्वाति भाभी की बातें व देखने के अन्दाज से लग रहा था कि उसको भी मुझमें काफी रुचि है, और फिर इन सब कामों में मैं तो हूँ ही पक्का ठरकी … इसलिये मेरा तो ध्यान ही इन बातों में रहता है।
खैर स्वाति भाभी के चले जाने के बाद अब मैं भी नीचे आ गया. मगर मेरा अब ये रोज का काम हो गया कि जब भी शाम के समय स्वाति भाभी छत पर आती, मैं भी टहलने के बहाने छत पर रोज पहुंच जाता जिससे अब मेरी और स्वाति भाभी की बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया।
स्वाति भाभी भी मेरी बातों में खूब रूचि दिखाती थी इसलिये मैं भी उनसे इधर उधर की बातें करने रोज छत पर आ जाता। अब बातचीत होने लगी तो धीरे धीरे हंसी मजाक और फिर एक दूसरे से छेड़छाड़ भी होने लग गयी मगर असल में तो मेरी नजरे उनके दोनो पपितो पर रहती थी जिसको वो भी शायद अच्छे से समझती थी, पर कुछ कहती नहीं थी।
वो भी अनजान बनकर मुझे अपने पपीतों के जी भरकर दर्शन करवाती थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। उससे बातें करते करते मैं अब कभी उसका हाथ पकड़ लेता तो कभी उसके बदन को सहला देता जिसका वो इतना विरोध नहीं करती थी, बस बातों बातों में हंसकर टाल देती थी।
अब ऐसे ही एक दिन शाम के समय स्वाति भाभी कपड़े लेने जब छत पर आई तो मैं भी छत पर पहुंच गया। उस दिन काफी जोर से हवा चल रही थी जिसके कारण तार पर से लगभग उसके सारे कपड़े ही उड़कर नीचे गीरे हुए थे जिनको वो एक एक कर बीन रही थी। तभी मेरी नजर हमारी छत पर पड़ी उसकी एक ब्रा पर चली गयी। शायद तेज हवा कर कारण उसके एक दो कपड़े उड़कर हमारी छत पर भी आ गये थे जिनमें तौलिया और उनकी एक ब्रा भी थी।
शायद ब्रा और पेंटी को उन्होंने तौलिये के नीचे छुपाकर सुखाया था जिनमें से उसकी पेंटी तो वही उनकी छत पर ही गिर गयी थी मगर तौलिये के साथ साथ उनकी ब्रा इधर हमारी छत पर आ गिरी थी.
ब्रा को मैंने अब तुरन्त ही उठा लिया और ‘ये आपकी है क्या?’ मैंने उस ब्रा को उठाकर स्वाति भाभी को दिखाते हुए कहा।
तब तक स्वाति भाभी ने भी छत पर गिरे हुए सारे कपड़े उठा लिये थे अब जैसे ही उसने मुझे अपनी ब्रा को उठाये देखा तो ‘ओय … लाओ इधर दो इसे!’ उसने जल्दी से हमारी छत की ओर लगभग दौड़कर आते हुए कहा।
“ये इतनी छोटी सी आपको आ जाती है?” मैंने उसे फैलाकर देखते हुए कहा जिससे वो शर्म से लाल हो गयी और उसके छेहरे पर शर्म के कारण हल्की सी मुस्कान सी आ गयी।
“क्या कर रहे हो? दो इधर इसे!” उसने हंसते हुए कहा और तुरंत ही मेरे हाथ से उस ब्रा को छीन लिया।
“इसमें आपके आ जाते हैं?” मैंने अब फिर से दोहरा दिया।
स्वाति भाभी शर्मा तो रही ही थी अब जैसे ही मैंने फिर से पूछा शायद अनायास ही अनजाने में उसके मुंह से भी ‘क्या?’ निकल गया।
अब स्वाति भाभी का क्या कहना हुआ कि ना जाने मुझमें इतनी हिम्मत कहा से आ गयी ‘ये …’ कहते हुए मैंने तुरन्त ही अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी एक चुची पर रख दिया.
स्वाति भाभी पहले ही शर्म से लाल हो रही थी. अब जैसे ही मैंने उसकी चुची को हाथ लगाया तो …
“अ.ओ.ओय … हट हट … क्या कर रहे हो?” कहते हुए वो तुरन्त ही पीछे हट गयी।
मेरी इस हरकत से स्वाति भाभी ने मुझ पर गुस्सा नहीं किया था, बस हंसकर थोड़ा सा पीछे हट गयी थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी।
“क्क्.. कुछ नहीं, मैं तो बस देख रहा हूँ…” मैंने हंसते हुए कहा।
“अच्छा … जाकर अपनी भाभी के देखो!” उसने भी नजरें मटकाते हुए कहा।
“अरे … वो कहां … और और आप कहां! आपको तो ऊपर वाले ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया है!” मैंने हसरत से उसे देखते हुए कहा।
मेरी नियत का तो उसे पहले से ही पता था, अब तो वो मेरे इरादे भी समझ गयी थी. मगर फिर भी वो वहां से हटी नहीं और वैसे ही दीवार के पास खड़ी रही।
“अच्छा अब ज्यादा मक्खन मत लगा, बता तो दिया आ रही है पिंकी अगले महीने … तब देख लेना और… और!” कहते-कहते वो अब अटक सी गयी।
स्वाति भाभी का पति दिल्ली में एक लिमिटेड कम्पनी में काम करता है और काम के सिलसिले में वो एक-एक दो-दो महीने बाहर ही रहता है। घर पर तो वो बस महीने दो महीने में दो चार दिन ही आता है नहीं तो बाहर ही रहता है। पिंकी के पापा का तो पहले ही निधन हो गया था घर में बस अब उसकी मम्मी ही है जिसकी वजह से स्वाति भाभी को घर पर ही रहना पड़ता है। स्वाति भाभी की बातें व देखने के अन्दाज से लग रहा था कि उसको भी मुझमें काफी रुचि है, और फिर इन सब कामों में मैं तो हूँ ही पक्का ठरकी … इसलिये मेरा तो ध्यान ही इन बातों में रहता है।
खैर स्वाति भाभी के चले जाने के बाद अब मैं भी नीचे आ गया. मगर मेरा अब ये रोज का काम हो गया कि जब भी शाम के समय स्वाति भाभी छत पर आती, मैं भी टहलने के बहाने छत पर रोज पहुंच जाता जिससे अब मेरी और स्वाति भाभी की बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया।
स्वाति भाभी भी मेरी बातों में खूब रूचि दिखाती थी इसलिये मैं भी उनसे इधर उधर की बातें करने रोज छत पर आ जाता। अब बातचीत होने लगी तो धीरे धीरे हंसी मजाक और फिर एक दूसरे से छेड़छाड़ भी होने लग गयी मगर असल में तो मेरी नजरे उनके दोनो पपितो पर रहती थी जिसको वो भी शायद अच्छे से समझती थी, पर कुछ कहती नहीं थी।
वो भी अनजान बनकर मुझे अपने पपीतों के जी भरकर दर्शन करवाती थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। उससे बातें करते करते मैं अब कभी उसका हाथ पकड़ लेता तो कभी उसके बदन को सहला देता जिसका वो इतना विरोध नहीं करती थी, बस बातों बातों में हंसकर टाल देती थी।
अब ऐसे ही एक दिन शाम के समय स्वाति भाभी कपड़े लेने जब छत पर आई तो मैं भी छत पर पहुंच गया। उस दिन काफी जोर से हवा चल रही थी जिसके कारण तार पर से लगभग उसके सारे कपड़े ही उड़कर नीचे गीरे हुए थे जिनको वो एक एक कर बीन रही थी। तभी मेरी नजर हमारी छत पर पड़ी उसकी एक ब्रा पर चली गयी। शायद तेज हवा कर कारण उसके एक दो कपड़े उड़कर हमारी छत पर भी आ गये थे जिनमें तौलिया और उनकी एक ब्रा भी थी।
शायद ब्रा और पेंटी को उन्होंने तौलिये के नीचे छुपाकर सुखाया था जिनमें से उसकी पेंटी तो वही उनकी छत पर ही गिर गयी थी मगर तौलिये के साथ साथ उनकी ब्रा इधर हमारी छत पर आ गिरी थी.
ब्रा को मैंने अब तुरन्त ही उठा लिया और ‘ये आपकी है क्या?’ मैंने उस ब्रा को उठाकर स्वाति भाभी को दिखाते हुए कहा।
तब तक स्वाति भाभी ने भी छत पर गिरे हुए सारे कपड़े उठा लिये थे अब जैसे ही उसने मुझे अपनी ब्रा को उठाये देखा तो ‘ओय … लाओ इधर दो इसे!’ उसने जल्दी से हमारी छत की ओर लगभग दौड़कर आते हुए कहा।
“ये इतनी छोटी सी आपको आ जाती है?” मैंने उसे फैलाकर देखते हुए कहा जिससे वो शर्म से लाल हो गयी और उसके छेहरे पर शर्म के कारण हल्की सी मुस्कान सी आ गयी।
“क्या कर रहे हो? दो इधर इसे!” उसने हंसते हुए कहा और तुरंत ही मेरे हाथ से उस ब्रा को छीन लिया।
“इसमें आपके आ जाते हैं?” मैंने अब फिर से दोहरा दिया।
स्वाति भाभी शर्मा तो रही ही थी अब जैसे ही मैंने फिर से पूछा शायद अनायास ही अनजाने में उसके मुंह से भी ‘क्या?’ निकल गया।
अब स्वाति भाभी का क्या कहना हुआ कि ना जाने मुझमें इतनी हिम्मत कहा से आ गयी ‘ये …’ कहते हुए मैंने तुरन्त ही अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी एक चुची पर रख दिया.
स्वाति भाभी पहले ही शर्म से लाल हो रही थी. अब जैसे ही मैंने उसकी चुची को हाथ लगाया तो …
“अ.ओ.ओय … हट हट … क्या कर रहे हो?” कहते हुए वो तुरन्त ही पीछे हट गयी।
मेरी इस हरकत से स्वाति भाभी ने मुझ पर गुस्सा नहीं किया था, बस हंसकर थोड़ा सा पीछे हट गयी थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी।
“क्क्.. कुछ नहीं, मैं तो बस देख रहा हूँ…” मैंने हंसते हुए कहा।
“अच्छा … जाकर अपनी भाभी के देखो!” उसने भी नजरें मटकाते हुए कहा।
“अरे … वो कहां … और और आप कहां! आपको तो ऊपर वाले ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया है!” मैंने हसरत से उसे देखते हुए कहा।
मेरी नियत का तो उसे पहले से ही पता था, अब तो वो मेरे इरादे भी समझ गयी थी. मगर फिर भी वो वहां से हटी नहीं और वैसे ही दीवार के पास खड़ी रही।
“अच्छा अब ज्यादा मक्खन मत लगा, बता तो दिया आ रही है पिंकी अगले महीने … तब देख लेना और… और!” कहते-कहते वो अब अटक सी गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
