23-05-2022, 03:55 PM
जेठजी से चिपके चिपके ही उन्हें रसोई के स्लैब तक खींच कर ले गयी और स्लैब का सहारा लेकर खड़ी होकर जेठजी का साथ देने लगी. अभी भी हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों से उलझे हुए थे और हाथ एक दूसरे के पिछवाड़े पर जमे थे.
कुछ देर बाद जेठजी एकाएक रुक गए और अपना चेहरा ठीक मेरे चेहरे के सामने करके मेरी आंखों में देखने लगे जैसे मेरी आंखों से मेरी मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों. कुछ सेकेंड्स तक मैंने भी उनकी आंखों से आंखें मिलाने की कोशिश की, पर जल्दी ही शर्म के मारे मैंने अपनी आंखें झुका लीं.
उसके बाद जेठजी ने मुझे कमर से पकड़ कर रसोई के स्लैब पर बैठा दिया और फिर से मेरे चेहरे को ठुड्डी के सहारे उठा कर मेरे होंठों को चूमने लगे. साथ ही अपने दोनों हाथों से मेरे मैक्सी के अन्दर से डाल कर मेरी कमर को सहलाने लगे. बीच बीच में वो अपनी उंगलियां मेरी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर मेरी कमर के चारों ओर घुमा देते.
मैं समझ रही थी कि अब जेठजी क्या चाहते हैं.. पर मैं अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहती थी. इसलिए मैं अनजान बनकर किस करने में ही लगी रही. उधर जेठजी के शॉर्ट्स में बना तंबू मेरे घुटनों से रगड़ रहा था.
एक दो बार वैसे ही उंगलियां घुमाने के बाद जेठजी ने अपना पूरा पंजा मेरी पैंटी के अन्दर घुसा दिया और मेरे चूतड़ सहलाने लगे. कुछ देर तक मेरे चूतड़ों को सहलाने के बाद जेठजी की उंगलियां फिर से मेरे पैंटी की इलास्टिक पर आकर कुछ देर के लिए रुक गईं. फिर धीरे धीरे जेठजी मेरी पैंटी को नीचे की ओर सरकाने लगे.
थोड़ा नीचे आने के बाद जेठजी को पैंटी को निकालने के लिए मेरे सहयोग की जरूरत थी. मैंने भी अपने हाथों का सहारा लेकर अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठा दिया. मेरा सहयोग मिलते ही जेठजी ने जल्दी से मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया. और वहीं बगल में फेंक दी. अब मैं ऊपर से तो ढकी हुई थी पर नीचे से पूरी तरह नंगी थी. शर्म की मारे मैंने अपनी दोनों जांघों को आपस में चिपका लिया और खुद फिर से जेठजी से चिपक गयी.
कुछ देर बाद जेठजी ने मुझे खुद से अलग किया और मेरी गोरी गोरी जांघों को सहलाने लगे. उनके छूने से मुझे गुदगुदी होने लगी, इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ कर हटा दिया. अभी तक जेठजी दूसरे ऐसे इंसान थे, जिसने मुझे ऐसी हालत में देखा और मेरे खास अंगों को छुआ था.
कुछ देर बाद जेठजी एकाएक रुक गए और अपना चेहरा ठीक मेरे चेहरे के सामने करके मेरी आंखों में देखने लगे जैसे मेरी आंखों से मेरी मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों. कुछ सेकेंड्स तक मैंने भी उनकी आंखों से आंखें मिलाने की कोशिश की, पर जल्दी ही शर्म के मारे मैंने अपनी आंखें झुका लीं.
उसके बाद जेठजी ने मुझे कमर से पकड़ कर रसोई के स्लैब पर बैठा दिया और फिर से मेरे चेहरे को ठुड्डी के सहारे उठा कर मेरे होंठों को चूमने लगे. साथ ही अपने दोनों हाथों से मेरे मैक्सी के अन्दर से डाल कर मेरी कमर को सहलाने लगे. बीच बीच में वो अपनी उंगलियां मेरी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर मेरी कमर के चारों ओर घुमा देते.
मैं समझ रही थी कि अब जेठजी क्या चाहते हैं.. पर मैं अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहती थी. इसलिए मैं अनजान बनकर किस करने में ही लगी रही. उधर जेठजी के शॉर्ट्स में बना तंबू मेरे घुटनों से रगड़ रहा था.
एक दो बार वैसे ही उंगलियां घुमाने के बाद जेठजी ने अपना पूरा पंजा मेरी पैंटी के अन्दर घुसा दिया और मेरे चूतड़ सहलाने लगे. कुछ देर तक मेरे चूतड़ों को सहलाने के बाद जेठजी की उंगलियां फिर से मेरे पैंटी की इलास्टिक पर आकर कुछ देर के लिए रुक गईं. फिर धीरे धीरे जेठजी मेरी पैंटी को नीचे की ओर सरकाने लगे.
थोड़ा नीचे आने के बाद जेठजी को पैंटी को निकालने के लिए मेरे सहयोग की जरूरत थी. मैंने भी अपने हाथों का सहारा लेकर अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठा दिया. मेरा सहयोग मिलते ही जेठजी ने जल्दी से मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया. और वहीं बगल में फेंक दी. अब मैं ऊपर से तो ढकी हुई थी पर नीचे से पूरी तरह नंगी थी. शर्म की मारे मैंने अपनी दोनों जांघों को आपस में चिपका लिया और खुद फिर से जेठजी से चिपक गयी.
कुछ देर बाद जेठजी ने मुझे खुद से अलग किया और मेरी गोरी गोरी जांघों को सहलाने लगे. उनके छूने से मुझे गुदगुदी होने लगी, इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ कर हटा दिया. अभी तक जेठजी दूसरे ऐसे इंसान थे, जिसने मुझे ऐसी हालत में देखा और मेरे खास अंगों को छुआ था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
