23-05-2022, 02:10 PM
बड़ी मुश्किल से अगले दिन का कॉलेज में समय गुज़रा. हर क्षण बाली रानी की बेपनाह खूबसूरती आँखों के सामने छा जाती थी और लंड अकड़ जाता था, अंडे भारी हो जाते थे. जैसे तैसे कॉलेज की छुट्टी की घंटी बजी, मैं तेज़ तेज़ साइकिल दौड़ाता हुआ घर गया और कपड़े बदल के तुरंत रानी के बंगले की तरफ चल पड़ा. मम्मी कहती ही रह गयी कि बेटा अभी अभी कॉलेज से थका मांदा लौटा है, कुछ खा पी तो ले फिर जाना पढ़ने. मगर मैंने एक न सुनी. सुनता भी कैसे, मुझे तो बाली रानी का मस्ताना बदन बुला रहा था.
रानी ने घंटी बजाते ही दरवाज़ा खोल दिया जैसे वह भी मेरी बाट लगाए तैयार बैठी थी. रानी ने सिर्फ एक झक सफ़ेद तौलिया चूचुक के ऊपर से लपेटा हुआ था. जैसे ही मैंने भीतर घुस के दरवाज़ा बंद किया कि रानी ने तौलिया गिरा दिया. अब वो एकदम मादरजात नंगी मेरे सामने खड़ी थी. मंत्रमुग्ध सा मैं रानी की सेक्सी काया को ताकने लगा. संभवतः रानी ने तौलिये पर कोई इत्र का छिड़काव किया हुआ था. तौलिया खुलते ही सब तरफ एक मादक इत्र की सुगंध फैल गयी.
मुझे अपनी पैंट की बेल्ट खुलती हुई महसूस हुई. रानी तब तक बेल्ट खोल चुकी थी और पैंट को ढीला करके ज़िप भी खोल दी थी. पैंट तुरंत ही मेरे पैरों पर गिर पड़ी. रानी ने मेरी टी शर्ट उतार कर वहीं नीचे डाल दी. इससे पहले कि रानी के नंगे, इत्र की सुगंध बिखेरते हुए शरीर से लगे बिजली के करंट से मैं होशोहवास में वापिस आता, रानी ने मेरा अंडरवियर और बनियान भी निकाल के फेंक दिए थे.
उसके बाद रानी ने नीच झुक कर मेरे जूते और मोज़े भी उतार दिया. मैं सन्न सा यह सब देख रहा था. झुकी हुई रानी जब मेरे जूते-मोज़े उतार रही थी, तब उसकी चूचियां जिस तरह हिल रही थीं वह देखकर मेरी काम वासना उड़ के आकाश तक जा पहुंची थी.
रानी ने लपक मुझे आलिंगन में बांध लिया और मेरा मुंह अपने मुंह से लगा कर चूमने लगी. मेरे हाथ स्वतः ही रानी की कुचों पर जा पहुंचे और उनको सहलाने लगे. लौड़ा तो अकड़ कर लोहे की पाइप सरीखा सख्त हो गया था.
काफी देर तक रानी ने मुझे चूमते हुए मुखामृत का पान करवाया. उसकी उंगलियां मेरे लंड को जकड़े हुए थीं. दूसरा हाथ मेरी गर्दन से लिपटा हुआ मेरे मुंह को उसके मुंह से दबाए हुए था.
“राजे डॉगी … अब अपनी बेग़म को बेडरूम तक ले चल … बेग़म के सामने घुटनों पर बैठ जा … बेग़म के पैरों के नीचे तौलिया लगा दे … फिर धीरे धीरे बेग़म की तारीफ करते हुए बैडरूम को चल.” रानी ने मेरे बालों में उंगलियां फेरते हुए मेरे कानों में शहद घोला.
मैंने खुद को घुटनों के बल कर लिया और देखा कि नंगी रानी तौलिये पर खड़ी है. रानी ने पैरों पर आज पहली बार नज़र पड़ी. क्या हसीन पांव थे. गुलाबी मुलायम बेहद सुन्दर पांव. तराशी हुई सी उंगलियां. अंगूठा थोड़ा सा लम्बा. सुडौल भरी भरी सी उँगलियाँ. पैरों का यह शवाब तो या लगता था कि किसी कुशल मूर्तिकार ने बड़े प्यार से गढ़ा हो. देखा जाए तो रानी का पूरा शरीर ही किसी पहुंचे हुए मूर्तिकार की उत्त्कृष्ट कला का नमूना लगता था.
रानी के हुक्म के अनुसार मैंने तौलिया आगे को फैलाया और रानी का एक पैर उठाकर आगे को रखा. जितना मेरी भाषा में संभव था उतनी मैंने प्रशंसा भी की. एक पैर जब आगे आ गया तो तौलिए का पीछे वाला सिरा खींच के आगे को कर दिया और रानी का दूसरा पैर तारीफ करते हुए उस सिरे पर रखा. इसी प्रकार से सरक सरक के हम शयन कक्ष की ओर बढ़ने लगे. बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा था. मैं सचमुच दिल से रानी के मस्त बदन के एक एक अंग की तारीफ भी कर रहा था और उस अंग को चूम भी रहा था.
मेरा दिल तो हो रहा था कि रानी के सुन्दर पांवों को चूसूं, चाटूँ. असल में केवल चुम्मियों से मेरा मन संतोष नहीं पा रहा था. मेरी जीभ रानी के शरीर को लपलपा कर चाटने को उत्सुक थी. थोड़ी दूर सरकते हुए गए लेकिन फिर मेरा सब्र जवाब दे गया. मैंने लपक के रानी को उठाया और गोदी में उठाए हुए भागता हुआ बैडरूम जा पहुंचा. बैडरूम बहुत बढ़िया था. बहुत लम्बा चौड़ा आठ फुट आठ फुट का बेड जिसपर साटिन का खूबसूरत सा मैरून रंग का बेडकवर बिछा हुआ था. बिस्तर के सामने एक पांच सीट वाला सुन्दर सा सोफा सेट और बहुत कीमती बेलबूटेदार कालीन. खिड़कियों पर खूबसूरत गहरे नीले परदे और एक पूरी दीवार पर कपड़ों वाली अलमारियां. बाकी की दीवारों पर कुछ फोटो और पेंटिंग्स. एक दरवाज़ा दिख रह था जो शायद बाथरूम के लिए था.
मैंने आहिस्ता से रानी को बिस्तर पर टिकाया और नीचे ग़लीचे पर बैठ कर रानी के पैरों को पालतू कुत्ते की तरह चाटने लगा. रानी भी खुश होकर छटपटाने लगी. मुंह से आहें निकलने लगी. बहुत बहुत सुन्दर पांव थे रानी के. हाड़ मांस के नहीं बल्कि मलाई से बने हुए लगते थे. बिस्तर पर बिछी साटन की चादर से चिकने, और नर्म नर्म. रानी का अंगूठा बाकी की उँगलियों से ज़रा सा लम्बा था. नाख़ून आयताकार लम्बे, ज़रा से बढ़े हुए. त्वचा गुलाबी गुलाबी.
मैंने रानी के दोनों अंगूठे मुंह में लेकर एक साथ चूसे. फिर एक एक करके आठों उंगलियां चूसीं, तलवों के उभार चूसे, एड़ियां और टखने चाटे. चाट चाट के पांव बिल्कुल गीले कर दिए. वैसे भी मेरे मुंह में बेतहाशा लार टपक रही थी. एक अप्सरा सी लौंडिया अपना इतना ज़ायकेदार बदन चटवा चुसवा रही हो तो मुंह में पानी आना तो स्वाभाविक ही है.
रानी ने घंटी बजाते ही दरवाज़ा खोल दिया जैसे वह भी मेरी बाट लगाए तैयार बैठी थी. रानी ने सिर्फ एक झक सफ़ेद तौलिया चूचुक के ऊपर से लपेटा हुआ था. जैसे ही मैंने भीतर घुस के दरवाज़ा बंद किया कि रानी ने तौलिया गिरा दिया. अब वो एकदम मादरजात नंगी मेरे सामने खड़ी थी. मंत्रमुग्ध सा मैं रानी की सेक्सी काया को ताकने लगा. संभवतः रानी ने तौलिये पर कोई इत्र का छिड़काव किया हुआ था. तौलिया खुलते ही सब तरफ एक मादक इत्र की सुगंध फैल गयी.
मुझे अपनी पैंट की बेल्ट खुलती हुई महसूस हुई. रानी तब तक बेल्ट खोल चुकी थी और पैंट को ढीला करके ज़िप भी खोल दी थी. पैंट तुरंत ही मेरे पैरों पर गिर पड़ी. रानी ने मेरी टी शर्ट उतार कर वहीं नीचे डाल दी. इससे पहले कि रानी के नंगे, इत्र की सुगंध बिखेरते हुए शरीर से लगे बिजली के करंट से मैं होशोहवास में वापिस आता, रानी ने मेरा अंडरवियर और बनियान भी निकाल के फेंक दिए थे.
उसके बाद रानी ने नीच झुक कर मेरे जूते और मोज़े भी उतार दिया. मैं सन्न सा यह सब देख रहा था. झुकी हुई रानी जब मेरे जूते-मोज़े उतार रही थी, तब उसकी चूचियां जिस तरह हिल रही थीं वह देखकर मेरी काम वासना उड़ के आकाश तक जा पहुंची थी.
रानी ने लपक मुझे आलिंगन में बांध लिया और मेरा मुंह अपने मुंह से लगा कर चूमने लगी. मेरे हाथ स्वतः ही रानी की कुचों पर जा पहुंचे और उनको सहलाने लगे. लौड़ा तो अकड़ कर लोहे की पाइप सरीखा सख्त हो गया था.
काफी देर तक रानी ने मुझे चूमते हुए मुखामृत का पान करवाया. उसकी उंगलियां मेरे लंड को जकड़े हुए थीं. दूसरा हाथ मेरी गर्दन से लिपटा हुआ मेरे मुंह को उसके मुंह से दबाए हुए था.
“राजे डॉगी … अब अपनी बेग़म को बेडरूम तक ले चल … बेग़म के सामने घुटनों पर बैठ जा … बेग़म के पैरों के नीचे तौलिया लगा दे … फिर धीरे धीरे बेग़म की तारीफ करते हुए बैडरूम को चल.” रानी ने मेरे बालों में उंगलियां फेरते हुए मेरे कानों में शहद घोला.
मैंने खुद को घुटनों के बल कर लिया और देखा कि नंगी रानी तौलिये पर खड़ी है. रानी ने पैरों पर आज पहली बार नज़र पड़ी. क्या हसीन पांव थे. गुलाबी मुलायम बेहद सुन्दर पांव. तराशी हुई सी उंगलियां. अंगूठा थोड़ा सा लम्बा. सुडौल भरी भरी सी उँगलियाँ. पैरों का यह शवाब तो या लगता था कि किसी कुशल मूर्तिकार ने बड़े प्यार से गढ़ा हो. देखा जाए तो रानी का पूरा शरीर ही किसी पहुंचे हुए मूर्तिकार की उत्त्कृष्ट कला का नमूना लगता था.
रानी के हुक्म के अनुसार मैंने तौलिया आगे को फैलाया और रानी का एक पैर उठाकर आगे को रखा. जितना मेरी भाषा में संभव था उतनी मैंने प्रशंसा भी की. एक पैर जब आगे आ गया तो तौलिए का पीछे वाला सिरा खींच के आगे को कर दिया और रानी का दूसरा पैर तारीफ करते हुए उस सिरे पर रखा. इसी प्रकार से सरक सरक के हम शयन कक्ष की ओर बढ़ने लगे. बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा था. मैं सचमुच दिल से रानी के मस्त बदन के एक एक अंग की तारीफ भी कर रहा था और उस अंग को चूम भी रहा था.
मेरा दिल तो हो रहा था कि रानी के सुन्दर पांवों को चूसूं, चाटूँ. असल में केवल चुम्मियों से मेरा मन संतोष नहीं पा रहा था. मेरी जीभ रानी के शरीर को लपलपा कर चाटने को उत्सुक थी. थोड़ी दूर सरकते हुए गए लेकिन फिर मेरा सब्र जवाब दे गया. मैंने लपक के रानी को उठाया और गोदी में उठाए हुए भागता हुआ बैडरूम जा पहुंचा. बैडरूम बहुत बढ़िया था. बहुत लम्बा चौड़ा आठ फुट आठ फुट का बेड जिसपर साटिन का खूबसूरत सा मैरून रंग का बेडकवर बिछा हुआ था. बिस्तर के सामने एक पांच सीट वाला सुन्दर सा सोफा सेट और बहुत कीमती बेलबूटेदार कालीन. खिड़कियों पर खूबसूरत गहरे नीले परदे और एक पूरी दीवार पर कपड़ों वाली अलमारियां. बाकी की दीवारों पर कुछ फोटो और पेंटिंग्स. एक दरवाज़ा दिख रह था जो शायद बाथरूम के लिए था.
मैंने आहिस्ता से रानी को बिस्तर पर टिकाया और नीचे ग़लीचे पर बैठ कर रानी के पैरों को पालतू कुत्ते की तरह चाटने लगा. रानी भी खुश होकर छटपटाने लगी. मुंह से आहें निकलने लगी. बहुत बहुत सुन्दर पांव थे रानी के. हाड़ मांस के नहीं बल्कि मलाई से बने हुए लगते थे. बिस्तर पर बिछी साटन की चादर से चिकने, और नर्म नर्म. रानी का अंगूठा बाकी की उँगलियों से ज़रा सा लम्बा था. नाख़ून आयताकार लम्बे, ज़रा से बढ़े हुए. त्वचा गुलाबी गुलाबी.
मैंने रानी के दोनों अंगूठे मुंह में लेकर एक साथ चूसे. फिर एक एक करके आठों उंगलियां चूसीं, तलवों के उभार चूसे, एड़ियां और टखने चाटे. चाट चाट के पांव बिल्कुल गीले कर दिए. वैसे भी मेरे मुंह में बेतहाशा लार टपक रही थी. एक अप्सरा सी लौंडिया अपना इतना ज़ायकेदार बदन चटवा चुसवा रही हो तो मुंह में पानी आना तो स्वाभाविक ही है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
