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Adultery कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की
#25
मेरा लंड झड़ के मुरझा चुका था और रानी की लार व मेरे लेस की बूँदों से लिबड़ा एक तरफ को पड़ा हुआ था. बाली रानी ने सारा वीर्य पी लिया था और फिर उसने लौड़े को नीचे से ऊपर तक चाट चाट कर अच्छे से साफ किया. रानी ने लंड के निचले भाग में मोटी नस दबा दबा के निचोड़ा. मलाई जैसे लेस की एक बड़ी बूंद टोपे के छेद से निकली जिसे उसने जीभ से उठाया और पी लिया. अब वह मेरे बगल में आकर लेट गई और प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ फिराने लगी.

यह जो तूफान से मैं गुज़रा था उससे बदन एकदम ढीला सा पड़ गया था. रानी के सहलाने से उपजी मस्ती से आँख लग गयी.
थोड़ी देर के बाद मुझे अपने निप्पल्स पर कुछ महसूस हुआ तो नींद टूटी. बाली रानी का मुंह एक निप्पल के दबाये हुए था और दूसरी निप्पल पर रानी उंगली और अंगूठे से दबा रही थी.
“जाग गया मेरा बब्बर शेर!” रानी की मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.
“ले दूध पी ले मेरे राज्ज्जे … ताक़त आएगी.” रानी ने मुझे कन्धों से पकड़ के उठा दिया और पास की मेज पर रखे गिलास को उठा कर मुझे दिया. उसमें केसर मिला हुआ गर्म दूध था. बहुत सारे बादाम, किशमिश, काजू और दो छुआरे भी थे. ढेर सारी मलाई पड़ी हुई थी.
तीन बार झड़ के और कुछ सुस्ता के भूख भी लग आयी थी तो फटाफट से मैंने दूध का गिलास खाली कर दिया. बहुत स्वाद दूध था. शायद जब मैं सो गया था तो रानी जाकर ये दूध तैयार कर लायी थी. रानी एक गिलास में कुछ लाल रंग का पेय पी रही थी.
मैंने पूछा- क्या है?
तो बोली- यह वाइन है. रेड वाइन!
“तूने कभी कोई सी दारू चखी है राजे?” रानी ने एक सिप लेकर पूछा.
मैंने शरमाते हुए कहा- हाँ रानी. दो चार बार मौका पाकर पापा की व्हिस्की चोरी से ली थी. बहुत थोड़ी सी ही ली ताकि उनको शक न हो कि व्हिस्की कम कैसे हो गयी.
“गुड कुत्ते … तुझे शरीर सुरा का स्वाद चखाऊँगी राजे … धीरे धीरे देखता जा तू.”
“रानी जी यह शरीर सुरा क्या होती है?” मैंने अचम्भे से पूछा.
“बुद्धू चंद … जब लड़की के शरीर के ऊपर से दारू पिलाई जाती है तो वो शरीर सुरा बन जाती है कुत्ते … जैसे अभी मैं तुझे एक सिप लेकर अपने मुंह से तेरे मुंह में डाल दूंगी तो वह मुख सुरा कहलाएगी … चुच्चों पर से टपकते हुए तुझे जो दारू पीने को मिलेगी वह चूचुक सुरा हो गयी … इसी प्रकार शरीर के जिस भाग से टपकाई जाने वाली दारू उसी भाग के नाम वाली सुरा हो जायगी … जैसे झांट सुरा, हाथ सुरा, चूतड़ सुरा, चरण सुरा इत्यादि … स्वर्ण अमृत के साथ मिला कर ली हुई दारू को स्वर्ण सुरा कहते हैं राज्ज्जे राजा … तसल्ली रख कुत्ते सब किस्म की सुरा मिलेगी.”
मैं आश्चर्य चकित सा यह सुन रहा था. ऐसी बातें हम लड़कों को बिल्कुल भी मालूम नहीं थीं. न किसी ने बताई, न किसी चुदाई वाली कहानी में पढ़ी और न ही किसी ब्लू फिल्म में देखी. सच में हम एकदम अज्ञानी मूर्ख ही थे.
तभी बाली रानी ने वाइन का एक सिप लिया और मेरा सर भींच के मेरे मुंह से मुंह लगा दिया. स्वतः ही मेरा मुंह खुल गया और रानी ने अपने मुंह में ली हुई वाइन मेरे मुंह में छोड़ दी.
तो यह थी बाली रानी की मुख सुरा. एक सिप वाइन से तो खैर नशा क्या होता मगर रानी के मुखरस जो वाइन में मिल गया था उसने ज़रूर मुझे सरूर चढ़ा दिया. लंड झनझना के उठ खड़ा हुआ. रानी ने जब दो चार इसी प्रकार बड़े बड़े सिप लेकर जो मुझे वाइन पिलाई तो मुख सुरा का सरूर पूरा परवान चढ़ गया.
रानी ने लंड को मुस्कुराते हुए सहलाना शुरू कर दिया- यार राजे, यह तेरा सण्ड मुसण्ड तो बड़ा ही शैतान है. तीन बार झड़ने पर भी इसकी तबियत नहीं भरी.
रानी की कुलकुलाती हुई आवाज़ भी नशा चढ़ाने वाली थी.
पुच्च … पुच्च … पुच्च करते हुए रानी ने फूले हुए टोपे के कई चुम्बन ले डाले, फिर बोली- अच्छा राजे आज के लिए काफी हो गया … तेरे घर वाले भी फ़िक्र कर रहे होंगे … अब तू जा … वैसे दिल तो नहीं होता कि तुझे भेजूं मगर भेजना तो पड़ेगा ही … कल से तू रोज़ 4 बजे आ जाया कर … तेरे पापा के लिए मैंने एक पत्र लिख दिया है … उसमें मैंने कहा है कि तू अंग्रेजी में बहुत कमज़ोर है जिसके लिए तुझे हर रोज़ दो तीन घंटे पढ़ना पड़ेगा … यह भी लिख दिया कि तू बहुत इंटेलीजेंट लड़का है इसलिए थोड़ी सी कोचिंग मिल जायगी तो एकदम परफेक्ट हो जायगा.
रानी ने मेरा मुंह थाम के बहुत लम्बा चुम्बन लिया और लौड़े पर एक बार नीचे से ऊपर तक जीभ फिराई. ” कल के लिए भी कई मस्ती देने वाले आईडिया हैं तेरी रानी के पास … बस तू देखता जा कैसे कैसे तेरी ऐश करवाती तेरी मालकिन.”
बड़ी मुश्किल से चुदाई के नशे में धुत्त मैंने कपड़े पहने, रानी से पापा के लिए लिखा पत्र लिया और रानी को गुड़ नाईट कह कर साइकिल उठाकर घर चला गया.
मेरी सुध बुध गुम थी. मन रानी के मदमाते कामुकतापूर्ण शरीर में उलझा हुआ था. बार बार रानी ने जो जो किया या कहा था वो सब एक फिल्म की तरह मेरे मन में चल रहा था. कुछ नहीं पता घर पहुंचकर क्या कहा, क्या सुना, क्या खाया, क्या पिया. बस यह याद है कि पापा को रानी वाला पत्र थमा दिया था. और कुछ भी याद नहीं. रात को सोया भी बड़ी मुश्किल से. दो बार मुट्ठ भी मारी क्यूंकि लंड था कि बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की - by neerathemall - 23-05-2022, 02:10 PM



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