23-05-2022, 02:02 PM
अरे राजे, तुम इतने डरे हुए क्यों हो. आराम से जूस पियो और ड्राई फ्रूट लो. जूस बिल्कुल ताज़ा मोसम्बी से खुद निकाल के लायी हूँ. मुझे सॉफ्ट ड्रिंक्स या शरबत पसंद नहीं … सेहत के लिए बुरे होते हैं … और तुमको तो मुक्केबाज़ी भी करनी है इसलिए ताक़त वाली चीज़ें हैं सब … और हाँ अगर आँखें पूरी तरह से हरी न हुई हों तो मैगज़ीन गिर गयी है, उठा लो और मज़े से देखो अपनी फेवरिट हीरोइन को!” मैडम की मीठी आवाज़ सुन के यूँ लगता था जैसे दूर कहीं हल्के हल्के से घंटियां बज रही हों. मैं बड़ा परेशान था कि लौड़ा बग़ावत पर उतारू था. कम्बख्त बैठने में ही नहीं आ रहा था. मुझे डर था कहीं ये ज़ोर से अकड़ा लंड मैडम को पैंट के पीछे दिख न जाए.
मैंने मैगज़ीन तो फर्श से उठाकर वापिस टेबल पर रख दी लेकिन दुबारा से आँखें हरी करने का विचार टाल दिया. मेरी निगाह तो मैडम के हाथों पर जाकर जाम हो गयी थी. दूध से गोरे, बहुत ही खूबसूरत सुडौल हाथ थे मैडम के. उनका चेहरा भी सौंदर्य में किसी भी हीरोइन से कम नहीं था. वैसे उनको गाउन में देखकर लौड़ा जो हड़बड़ाहट में बैठ गया था फिर से अकड़ गया.
एक दो बार डरते डरते मैंने मैडम पर नज़र डाली तो उनको अपनी तरफ ही देखते पाया. घबरा के मैं झट से निगाह नीचे कर लेता और फिर उनके हाथों को देखने लगता. मैडम ने पैरों में किसी मखमली से गहरे नीले कपड़े की स्लिपर पहनी हुई थी. स्लिपर बहुत सुन्दर थी परन्तु उसमें पांव ढक हुए थे, दिख नहीं रहे थे. लेकिन उनके टखने और एड़ी का जो थोड़ा सा भाग मैं देख पाया उससे लगता था कि मैडम के पांव भी उनके हाथों जैसे सुन्दर ही होंगे.
जूस और नाश्ता ख़त्म होने तक मैडम इधर उधर की कुछ बातें करती रही. अपने विषय में बताती रहीं. मैडम के पापा इंडियन आर्मी में ब्रिगेडियर थे और गुजरात में पोस्टेड थे. उनकी मम्मी भी आर्मी में डॉक्टर थीं. मैडम जी की पढ़ाई आर्मी पब्लिक कॉलेज डगशाई, शिमला में हुई थी. कॉलेज की पढ़ाई कई स्थानों पर हुई, जहाँ जहाँ उनके पापा का ट्रांसफर होता रहा. मालूम हुआ कि मैडम जी के सास और ससुर किसी सत्संग में एक हफ्ते के लिए अमृतसर गए हुए हैं और उनका पुराना नौकर मोहन दास अचानक बीमार हो गया तो छुट्टी पर था. इसलिए आजकल मैडम जी घर में अकेली ही थीं.
जब मैं खा पी चुका तो मैडम ने गिलास और ख़ाली प्लेट उठाकर ट्रे में रखी और ट्रे को लेकर भीतर चली गयीं. दो मिनट में वापिस आईं तो मैंने पूछा- मैडम जी अब चलूँ?
मैडम ने एक उंगली उठाकर रुकने का इशारा किया और मेरे बहुत करीब आकर यकायक मुझसे लिपट गयीं. मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर मेरा मुंह झुकाकर अपने मुंह के पास ले आईं. मैडम की गर्म गर्म मादक साँस मेरे मुंह पर लगने लगी.
मैं सटपटा गया और घबराहट के मारे मेरी टाँगें लड़खड़ाने लगीं.
राजे, जिस लड़की की फोटो देख कर तुम्हारी मर्दानगी ज़ोर मार रही थी, ध्यान से मुझे देख कर बोलो, मैं क्या उससे कम हूँ? देखो मेरी ओर ध्यान से.”
मैंने मैगज़ीन तो फर्श से उठाकर वापिस टेबल पर रख दी लेकिन दुबारा से आँखें हरी करने का विचार टाल दिया. मेरी निगाह तो मैडम के हाथों पर जाकर जाम हो गयी थी. दूध से गोरे, बहुत ही खूबसूरत सुडौल हाथ थे मैडम के. उनका चेहरा भी सौंदर्य में किसी भी हीरोइन से कम नहीं था. वैसे उनको गाउन में देखकर लौड़ा जो हड़बड़ाहट में बैठ गया था फिर से अकड़ गया.
एक दो बार डरते डरते मैंने मैडम पर नज़र डाली तो उनको अपनी तरफ ही देखते पाया. घबरा के मैं झट से निगाह नीचे कर लेता और फिर उनके हाथों को देखने लगता. मैडम ने पैरों में किसी मखमली से गहरे नीले कपड़े की स्लिपर पहनी हुई थी. स्लिपर बहुत सुन्दर थी परन्तु उसमें पांव ढक हुए थे, दिख नहीं रहे थे. लेकिन उनके टखने और एड़ी का जो थोड़ा सा भाग मैं देख पाया उससे लगता था कि मैडम के पांव भी उनके हाथों जैसे सुन्दर ही होंगे.
जूस और नाश्ता ख़त्म होने तक मैडम इधर उधर की कुछ बातें करती रही. अपने विषय में बताती रहीं. मैडम के पापा इंडियन आर्मी में ब्रिगेडियर थे और गुजरात में पोस्टेड थे. उनकी मम्मी भी आर्मी में डॉक्टर थीं. मैडम जी की पढ़ाई आर्मी पब्लिक कॉलेज डगशाई, शिमला में हुई थी. कॉलेज की पढ़ाई कई स्थानों पर हुई, जहाँ जहाँ उनके पापा का ट्रांसफर होता रहा. मालूम हुआ कि मैडम जी के सास और ससुर किसी सत्संग में एक हफ्ते के लिए अमृतसर गए हुए हैं और उनका पुराना नौकर मोहन दास अचानक बीमार हो गया तो छुट्टी पर था. इसलिए आजकल मैडम जी घर में अकेली ही थीं.
जब मैं खा पी चुका तो मैडम ने गिलास और ख़ाली प्लेट उठाकर ट्रे में रखी और ट्रे को लेकर भीतर चली गयीं. दो मिनट में वापिस आईं तो मैंने पूछा- मैडम जी अब चलूँ?
मैडम ने एक उंगली उठाकर रुकने का इशारा किया और मेरे बहुत करीब आकर यकायक मुझसे लिपट गयीं. मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर मेरा मुंह झुकाकर अपने मुंह के पास ले आईं. मैडम की गर्म गर्म मादक साँस मेरे मुंह पर लगने लगी.
मैं सटपटा गया और घबराहट के मारे मेरी टाँगें लड़खड़ाने लगीं.
राजे, जिस लड़की की फोटो देख कर तुम्हारी मर्दानगी ज़ोर मार रही थी, ध्यान से मुझे देख कर बोलो, मैं क्या उससे कम हूँ? देखो मेरी ओर ध्यान से.”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.