23-05-2022, 02:01 PM
डरता हुआ मैं स्टाफ रूम में जा पहुंचा. वास्तव में मैडम उखड़े उखड़े मूड में लगती थी. लेकिन उनकी खूबसूरती हर मूड में उनको बेहद दिलकश बनाये रखती थी.
“जी मैडम … अपने बुलाया था?”
“हाँ राजे … कुछ काम था तुम्हारे लिए … आज मेरा ड्राइवर नहीं है तो मुझे रिक्शा से घर जाऊंगी … लेकिन समस्या यह है कि इतनी सारी कापियां चेक करने के लिए ले जानी थीं … मुझे अकेले रिक्शा में इनको उठा कर ले जाने में बहुत दिक्कत होगी … मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ रिक्शा में चलो. ये कापियां ले चलने में मेरी मदद करो. तुम्हारा घर तो पास में ही है इसलिए सोचा कि यह काम तुम्हें ही दे दूँ.” मैडम के सामने टेबल पर एक मोटा सा करीब चालीस पचास कापियों का बंडल पड़ा था.
मैंने कहा- मैडम आप घर जाइये … मैं यह बंडल अपनी साइकिल पर आपके घर पर छोड़ दूंगा … आप समय बता दीजिये कि आप कब घर पर मिलेंगी?
“ठीक है राजे … तुम तीन बजे यहाँ से यह कापियां ले जाना … मैं साढ़े तीन तक घर पहुँच जाऊंगी. तुम चार बजे तक घर पर इनको पहुंचा देना.”
“यस मैडम!’ कह कर मैं स्टाफ रूम से निकल कर क्लास में चला गया. खाली पीरियड ख़त्म होने वाला था.
तीन बजे कॉलेज की छुट्टी हुई तो मैं सीधे स्टाफ रूम में मैडम से कापियों वाला बंडल ले आया और उसको अपने साथ घर ले गया. घर कॉलेज से नज़दीक ही था. साइकिल से दस बारह मिनट का रास्ता था. मैडम का घर भी उसी कॉलोनी में था जहाँ मैं रहता था. यही कोई एक डेढ़ किलोमीटर दूर.
जैसा मैडम ने कहा था मैं ठीक चार बजे उनके मकान पर कापियों का गट्ठर लेकर पहुँच गया. बहुत बड़ा आलीशान बंगला था. हज़ार गज़ के प्लाट में बना हुआ. आगे बहुत बड़ा लॉन था जिसके बगल में गेराज को जाने वाला रास्ता था और घर में प्रवेश के लिए बरामदा भी था.
मैडम घर पहुँच चुकी थी और बरामदे में एक बेंत की आराम कुर्सी पर बैठी थी. मुझे देखकर उठ कर खड़ी हो गयी और घर में जाने का मेन गेट खोल के मुझे भीतर आने का इशारा किया. अंदर गए तो एक गलियारा था जिसके दोनों तरफ अलग अलग कमरों में प्रवेश करने के द्वार थे. मैडम के पीछे पीछे मैं ड्राइंग रूम में चला गया और कापियों वाला गट्ठर एक टेबल पर रख दिया.
जैसे ही मैं जाने को हुआ तो मैडम ने कहा- थैंक यू राजे … रुको थोड़ा … मैं तुम्हारे लिए कुछ नाश्ता लेकर आती हूँ.
“नहीं मैडम … मैं चलता हूँ. आधे घंटे में मुझे बॉक्सिंग प्रैक्टिस के लिए वापिस कॉलेज जाना है … प्रैक्टिस के बाद ही कुछ खाता हूँ … कुछ चाय नाश्ता कर लिया तो बॉक्सिंग नहीं की जायगी.”
“अरे नहीं राजे … ऐसे तो मैं न जाने दूंगी … मैं हूँ न स्पोर्ट्स इंचार्ज … मेरी इजाज़त है … आज मत करो बॉक्सिंग प्रैक्टिस … . तुम आराम से बैठो. मैं पांच मिनट में फ्रेश होकर आती हूँ.”
मैं एक सोफे पर बैठ गया और चारों तरफ नज़रें घुमाकर ड्राइंग रूम का मुआयना करने लगा. काफी बड़ा ड्राइंग रूम था. बढ़िया किस्म के फर्नीचर और कालीनों से लैस. कई इम्पोर्टेड शो पीस जगह जगह पर रखे हुए थे. एक रईस खानदान का जैसा ड्राइंग रूम होना चाहिए वैसा ही था. सेन्टर टेबल पर एक फिल्मी मैगज़ीन पड़ी थी. मैं उसको उठाकर पन्ने पलटने लगा. एक हीरोइन की पूरे पन्ने की फोटो पर जाकर मेरी नज़रें अटक गयीं. फोटो में वो हरामज़ादी कामुकता से भरपूर हुस्न की जीती जागती तस्वीर लग रही थी. साली बहुत सेक्सी थी जिसको देखते ही लौड़ा अकड़ गया. मैं बड़ी ध्यान से उसकी तस्वीर को निहार रहा था.
तभी कानों में मैडम की सुरीली आवाज़ आयी- ओह हो … तो आँखें हरी की जा रही हैं … तुम्हारी फेवरिट है क्या वो?
मैं हड़बड़ा के उठा, मैगज़ीन भी नीचे गिर गई. अकड़ा हुआ लौड़ा किसी नोकीली चीज़ की तरह पैंट में उभरा हुआ था. उसे इधर उधर करके सेट करने का भी मौका नहीं था.
मैंने मुंह ऊपर उठाकर मैडम की तरफ देखा. मैडम ने एक निम्बू जैसा हरापन लिए हुए पीले रंग का गाउन पहन रखा था. उन्होंने ट्रे को टेबल पर रख दिया. एक गिलास मोसम्बी का रस और कुछ काजू, बादाम, पिस्ते और अखरोट एक तश्तरी में रखे थे.
मैडम मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गयीं और एक टांग दूसरी टांग पर टिका कर आराम से हो गयीं. टेबल पर रखे सामान की तरफ इशारा करते हुए मुझे नाश्ता करने के लिए कहा. मैंने एक दो काजू लिए और घबराया हुआ सा जूस के दो तीन सिप लिए.
“जी मैडम … अपने बुलाया था?”
“हाँ राजे … कुछ काम था तुम्हारे लिए … आज मेरा ड्राइवर नहीं है तो मुझे रिक्शा से घर जाऊंगी … लेकिन समस्या यह है कि इतनी सारी कापियां चेक करने के लिए ले जानी थीं … मुझे अकेले रिक्शा में इनको उठा कर ले जाने में बहुत दिक्कत होगी … मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ रिक्शा में चलो. ये कापियां ले चलने में मेरी मदद करो. तुम्हारा घर तो पास में ही है इसलिए सोचा कि यह काम तुम्हें ही दे दूँ.” मैडम के सामने टेबल पर एक मोटा सा करीब चालीस पचास कापियों का बंडल पड़ा था.
मैंने कहा- मैडम आप घर जाइये … मैं यह बंडल अपनी साइकिल पर आपके घर पर छोड़ दूंगा … आप समय बता दीजिये कि आप कब घर पर मिलेंगी?
“ठीक है राजे … तुम तीन बजे यहाँ से यह कापियां ले जाना … मैं साढ़े तीन तक घर पहुँच जाऊंगी. तुम चार बजे तक घर पर इनको पहुंचा देना.”
“यस मैडम!’ कह कर मैं स्टाफ रूम से निकल कर क्लास में चला गया. खाली पीरियड ख़त्म होने वाला था.
तीन बजे कॉलेज की छुट्टी हुई तो मैं सीधे स्टाफ रूम में मैडम से कापियों वाला बंडल ले आया और उसको अपने साथ घर ले गया. घर कॉलेज से नज़दीक ही था. साइकिल से दस बारह मिनट का रास्ता था. मैडम का घर भी उसी कॉलोनी में था जहाँ मैं रहता था. यही कोई एक डेढ़ किलोमीटर दूर.
जैसा मैडम ने कहा था मैं ठीक चार बजे उनके मकान पर कापियों का गट्ठर लेकर पहुँच गया. बहुत बड़ा आलीशान बंगला था. हज़ार गज़ के प्लाट में बना हुआ. आगे बहुत बड़ा लॉन था जिसके बगल में गेराज को जाने वाला रास्ता था और घर में प्रवेश के लिए बरामदा भी था.
मैडम घर पहुँच चुकी थी और बरामदे में एक बेंत की आराम कुर्सी पर बैठी थी. मुझे देखकर उठ कर खड़ी हो गयी और घर में जाने का मेन गेट खोल के मुझे भीतर आने का इशारा किया. अंदर गए तो एक गलियारा था जिसके दोनों तरफ अलग अलग कमरों में प्रवेश करने के द्वार थे. मैडम के पीछे पीछे मैं ड्राइंग रूम में चला गया और कापियों वाला गट्ठर एक टेबल पर रख दिया.
जैसे ही मैं जाने को हुआ तो मैडम ने कहा- थैंक यू राजे … रुको थोड़ा … मैं तुम्हारे लिए कुछ नाश्ता लेकर आती हूँ.
“नहीं मैडम … मैं चलता हूँ. आधे घंटे में मुझे बॉक्सिंग प्रैक्टिस के लिए वापिस कॉलेज जाना है … प्रैक्टिस के बाद ही कुछ खाता हूँ … कुछ चाय नाश्ता कर लिया तो बॉक्सिंग नहीं की जायगी.”
“अरे नहीं राजे … ऐसे तो मैं न जाने दूंगी … मैं हूँ न स्पोर्ट्स इंचार्ज … मेरी इजाज़त है … आज मत करो बॉक्सिंग प्रैक्टिस … . तुम आराम से बैठो. मैं पांच मिनट में फ्रेश होकर आती हूँ.”
मैं एक सोफे पर बैठ गया और चारों तरफ नज़रें घुमाकर ड्राइंग रूम का मुआयना करने लगा. काफी बड़ा ड्राइंग रूम था. बढ़िया किस्म के फर्नीचर और कालीनों से लैस. कई इम्पोर्टेड शो पीस जगह जगह पर रखे हुए थे. एक रईस खानदान का जैसा ड्राइंग रूम होना चाहिए वैसा ही था. सेन्टर टेबल पर एक फिल्मी मैगज़ीन पड़ी थी. मैं उसको उठाकर पन्ने पलटने लगा. एक हीरोइन की पूरे पन्ने की फोटो पर जाकर मेरी नज़रें अटक गयीं. फोटो में वो हरामज़ादी कामुकता से भरपूर हुस्न की जीती जागती तस्वीर लग रही थी. साली बहुत सेक्सी थी जिसको देखते ही लौड़ा अकड़ गया. मैं बड़ी ध्यान से उसकी तस्वीर को निहार रहा था.
तभी कानों में मैडम की सुरीली आवाज़ आयी- ओह हो … तो आँखें हरी की जा रही हैं … तुम्हारी फेवरिट है क्या वो?
मैं हड़बड़ा के उठा, मैगज़ीन भी नीचे गिर गई. अकड़ा हुआ लौड़ा किसी नोकीली चीज़ की तरह पैंट में उभरा हुआ था. उसे इधर उधर करके सेट करने का भी मौका नहीं था.
मैंने मुंह ऊपर उठाकर मैडम की तरफ देखा. मैडम ने एक निम्बू जैसा हरापन लिए हुए पीले रंग का गाउन पहन रखा था. उन्होंने ट्रे को टेबल पर रख दिया. एक गिलास मोसम्बी का रस और कुछ काजू, बादाम, पिस्ते और अखरोट एक तश्तरी में रखे थे.
मैडम मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गयीं और एक टांग दूसरी टांग पर टिका कर आराम से हो गयीं. टेबल पर रखे सामान की तरफ इशारा करते हुए मुझे नाश्ता करने के लिए कहा. मैंने एक दो काजू लिए और घबराया हुआ सा जूस के दो तीन सिप लिए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.