23-05-2022, 02:00 PM
(23-05-2022, 02:00 PM)neerathemall Wrote:मैं ग्यारहवीं क्लास पास करके बारहवीं में आया था. बाली मैडम हमारी क्लास टीचर थी. क्लास टीचर होने के साथ साथ वह सीनियर क्लासों को इंग्लिश पढ़ाती थी. बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी. कॉलेज में कुल छह महिला टीचर थीं परन्तु बाली मैडम के बेपनाह हुस्न के क्या कहने! मैडम अपार सौंदर्य की मालकिन तो थी हीं, उनका व्यक्तित्व भी अत्यंत भव्य और प्रभावशाली था. कपड़ों जूतों का चुनाव, चलने फिरने उठने बैठने का अंदाज़, बातचीत की शालीनता इत्यादि से लगता था कि किसी रियासत की महारानी आ गयी हैं. उनकी हर एक अदा अनूठी थी, मन को मोह लेने वाली थी. उनके संपर्क में आकर यह तो संभव था ही नहीं कि आप उनका दिल से अपने आप ही सम्मान करना शुरू न कर दें.चुदक्कड़ टीचर ने पढ़ाए चुदाई के पाठ
मैडम शादीशुदा थी और एक बहुत ही रईस घर में ब्याही थी. उसके ससुर काफी ज़मीन जायदाद के मालिक थे जिसके मैनजमेंट में ही समय लगाया करते थे. मैडम के पति एक मैरीन इंजीनियर थे और साल में एक बार तीन या चार महीने के लिए आया करते थे. मैडम को नौकरी की कोई ज़रूरत नहीं थी किन्तु वह सिर्फ टाइम पास करने के लिए कॉलेज में नौकरी करती थी. इसके सिवा उनको पढ़ाने का शौक भी था. उनके घर में एक एम्बेसडर कार और ड्राइवर थे. कार रोज़ मैडम को कॉलेज छोड़ने आती थी और छुट्टी के टाइम वापिस घर ले जाने आया करती थी.
सब लड़के मैडम का नाम लेकर खूब मुट्ठ मारा करते थे. मैडम कॉलेज के स्पोर्ट्स क्लब की इंचार्ज भी थीं. हमारा कॉलेज बॉक्सिंग में काफी नामी था. पूरे प्रदेश में मशहूर था. मैं भी एक बहुत अच्छा मुक्केबाज़ था. चैंपियन तो नहीं बना लेकिन नंबर दो तो आ ही जाता था. अच्छा हट्टा कट्टा, ऊंचा लम्बा, मज़बूत कद काठी का लड़का था और शायद हैंडसम भी था.
वैसे मैं, जब से लंड से वीर्य निकलना शुरू हुआ, तभी से बहुत ठरकी था. आस पास की सभी लड़कियां तो लड़कियां, औरतों पर भी नज़र लगाए रखता था लेकिन किसी से इश्क़ विश्क़ की पहल करने से डरता था. हाँ दो लौंडे थे, बड़े चिकने चुपड़े से, लड़कियों की तरह मुलायम से. दाढ़ी मूंछ भी नहीं आयी थी. अक्सर उनकी गांड मारा करता था. कभी गांड मारने का मूड न हो तो उनसे मुट्ठ मरवा लिया करता था. हालांकि लंड चूसने को कमीने राज़ी नहीं हुए थे.
एक दिन मैं एक खाली पीरियड में लाइब्रेरी में पढ़ाई करने का नाटक करते हुए ऊँघता हुआ टाइम पास कर रहा था, तो कॉलेज का सबसे सीनियर चपरासी रामजी लाल मुझे ढूंढता हुआ आया- राजे … तुम्हें बाली मैडम ने बुलाया है … स्टाफ रूम में … चलो फटाफट!
रामजी लाल को सब लोग ताऊ कहा करते थे. न जाने कब किसने यह नाम उनको दिया था और तब से ही यह नाम उनके साथ चिपक गया था. वैसे शकल सूरत और हाव भाव से लगते भी ताऊ ही थे.
“ताऊ … क्या हुआ … क्यों बुला रही हैं मैडम?” मैंने पूछा.
“मेरे को क्या मालूम … मैडम बड़े बिगड़े हुए मूड में हैं … तुमने कोई न कोई शैतानी की होगी … तुम हो ही एक नंबर के शैतान लड़के.”
“अरे नहीं ताऊ … क्यों मुझे बदनाम करते हो … कोई शैतानी नहीं की मैंने!”
मैं स्टाफ रूम में चला गया जहाँ मैडम बैठी हुई थी. स्टाफ रूम एक काफी बड़ा कमरा था जिसमें बीस बाईस कुर्सियां एक बड़ी सी अंडाकार टेबल के सब तरफ लगी हुई थी. यह कमरा स्टाफ रूम होने के साथ साथ प्रिंसिपल द्वारा टीचरों की मीटिंग लेने के काम भी आया करता था. एक दीवार पर एक बड़ी सी अलमारी थी जिसमें हर टीचर के लिए एक खाना था, जिसमें टीचर अपना लंच बॉक्स या और कुछ सामान रखते थे. दूसरी दीवार के साथ आठ दस आराम कुर्सियां लगी हुई थीं. तीसरी दीवार में दो दरवाज़े थे जिसमें एक मरदाना बाथरूम के लिए और दूसरा ज़नाना बाथरूम में जाने के लिए था. चौथी दीवार में कमरे में घुसने के लिए दरवाज़ा था.
इस कमरे में टीचर लोग खाली पीरियड में सुस्ताने, इम्तेहान की कापियां चेक करने, विद्यार्थियों का होम वर्क जांचने और लंच इत्यादि के लिए इस्तेमाल करते थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
