23-05-2022, 01:55 PM
दो दिन तक मैंने ज्ञान जी को फोन ही नहीं किया. रात में पति के लंड से चुदने के बाद ध्यान तो ज्ञान के लंड से चुदाई करके प्यास को शांत करवाने पर ही जाता था लेकिन गुस्सा निकालने के लिए मैंने उनको संपर्क ही नहीं किया. ज्ञान जी भी तीन दिन तक खामोश रहे.
चौथे दिन मैं दोपहरी में कॉलेज आने के बाद नहाकर आई और मैक्सी पहन कर बेड पर आराम करने लगी. थकान के मारे जल्दी ही आंख लग गयी. मेरी नींद घर के दरवाजे की बेल ने खोली.
आलस में उठ कर दरवाजे तक गयी और दरवाजा खोला तो सामने ज्ञान जी एक कागज का लिफाफा लिये खड़े हुए थे. एक बार तो मन किया कि दरवाजे को वापस बंद कर लूं लेकिन ज्ञान की जीन्स में कसी उसकी सुडौल मांसल जांघों पर नजर गयी तो मन बहक गया. सोचा कि आज तो चुद कर ही रहूंगी.
मैंने कहा- अंदर आ जाइये, बाहर क्यों खड़े हुए हैं?
मेरे कहने पर ज्ञान अंदर आये और आकर सोफे पर बैठ गये. मैं किचन से पानी लेकर आई और उनको पीने के लिए दिया.
पानी पीते हुए उन्होंने रिपोर्ट वाला लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया. मैंने लिफाफा खोल कर देखा.
एच.आई.वी. रिपोर्ट में निगेटिव आया हुआ था. मैंने ज्ञानी की ओर देखा.
वो मेरी ओर ललचाई नजरों से देख रहे थे. उनकी नजर मेरी नाइटी को भेद कर मेरे चूचों का नाप ले रही थी.
मैंने भी सोच लिया था कि उस दिन का बदला आज ठीक से निकालूंगी.
मैंने पूछा- चाय लेंगे या कॉफी?
वो बोले- दूध!
मैंने पूछा- किसका?
उन्होंने मेरे वक्षों को घूरते हुए कहा- जो भी आपके पास हो.
मुंह बना कर मैं अंदर चली गयी. उनको भी थोड़ा अजीब सा लगा. पांच मिनट के बाद मैं चाय बना कर वापस आई तो वो मैगजीन पढ़ रहे थे.
मैंने चाय की ट्रे टेबल रखते हुए कहा- आप तो भूल ही गये थे शायद मुझे?
वो बोले- नहीं मैडम, रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहा था. रिपोर्ट के बिना तो आप पर हक नहीं बनता था. सेफ्टी दोनों के लिए ही जरूरी है.
मुझे ज्ञान जी का ये बर्ताव अच्छा लगा. उन्होंने सिर्फ सेक्स की पूर्ति को तरजीह नहीं दी बल्कि वो सामने वाले का ख्याल रखना भी खूब जानते थे.
चाय का कप अपने होंठों से लगाते हुए मैंने ज्ञान की जांघ पर हाथ रख लिया.
चाय को कप से खींचते हुए उनके होंठ भी मुस्करा दिये. मगर नीचे जीन्स की पैंट में उनके लिंग ने भी अंगड़ाई लेकर ये जता दिया कि औरत के कोमल हाथों में क्या जादू होता है.
इससे पहले की मेरा हाथ उनके लिंग पर जाता उन्होंने पूछ लिया- आपके पति घर पर तो नहीं हैं?
मैंने कहा- अगर होते, तब भी मैं बेशर्मों की तरह गैर मर्द की बांहों में जाने से हिचकती नहीं.
वो बोले- अच्छा जी, इतना पसंद करने लगी हैं क्या आप हमें?
ज्ञान जी की पैंट में आकार ले चुके लंड पर मैंने हाथ से सहलाते हुए कहा- आप ही बेरुखे से हो रहे थे, मैं तो पहले दिन ही चुदने के लिए तैयार थी.
इतने में उन्होंने अपने कप की चाय को खत्म किया और मुझे अपनी ओर खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया. वो मेरी आंखों में देखने लगे और उनकी नजर मुझे अंदर तक घायल करने लगी.
दोनों के होंठों को मिलने में देर न लगी. उनके गर्म गर्म होंठों से निकल रही रसीली लार का स्वाद मैं भी अपने मुंह में लेने लगी. इतने सालों में मेरे पति ने कभी मुझे इतने जोश में किस नहीं किया था.
अपनी पीठ पर मैं ज्ञान का लंड चुभता हुआ महसूस करने लगी. मेरे होंठों को चूसने के बाद उन्होंने मेरी मैक्सी में दिख रही मेरी वक्षरेखा पर अपने होंठों को रख दिया. अपने होंठों को मेरी चूचियों की वक्षरेखा पर रगड़ते हुए वो उनको नाक घुसा कर सूंघ रहे थे.
चौथे दिन मैं दोपहरी में कॉलेज आने के बाद नहाकर आई और मैक्सी पहन कर बेड पर आराम करने लगी. थकान के मारे जल्दी ही आंख लग गयी. मेरी नींद घर के दरवाजे की बेल ने खोली.
आलस में उठ कर दरवाजे तक गयी और दरवाजा खोला तो सामने ज्ञान जी एक कागज का लिफाफा लिये खड़े हुए थे. एक बार तो मन किया कि दरवाजे को वापस बंद कर लूं लेकिन ज्ञान की जीन्स में कसी उसकी सुडौल मांसल जांघों पर नजर गयी तो मन बहक गया. सोचा कि आज तो चुद कर ही रहूंगी.
मैंने कहा- अंदर आ जाइये, बाहर क्यों खड़े हुए हैं?
मेरे कहने पर ज्ञान अंदर आये और आकर सोफे पर बैठ गये. मैं किचन से पानी लेकर आई और उनको पीने के लिए दिया.
पानी पीते हुए उन्होंने रिपोर्ट वाला लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया. मैंने लिफाफा खोल कर देखा.
एच.आई.वी. रिपोर्ट में निगेटिव आया हुआ था. मैंने ज्ञानी की ओर देखा.
वो मेरी ओर ललचाई नजरों से देख रहे थे. उनकी नजर मेरी नाइटी को भेद कर मेरे चूचों का नाप ले रही थी.
मैंने भी सोच लिया था कि उस दिन का बदला आज ठीक से निकालूंगी.
मैंने पूछा- चाय लेंगे या कॉफी?
वो बोले- दूध!
मैंने पूछा- किसका?
उन्होंने मेरे वक्षों को घूरते हुए कहा- जो भी आपके पास हो.
मुंह बना कर मैं अंदर चली गयी. उनको भी थोड़ा अजीब सा लगा. पांच मिनट के बाद मैं चाय बना कर वापस आई तो वो मैगजीन पढ़ रहे थे.
मैंने चाय की ट्रे टेबल रखते हुए कहा- आप तो भूल ही गये थे शायद मुझे?
वो बोले- नहीं मैडम, रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहा था. रिपोर्ट के बिना तो आप पर हक नहीं बनता था. सेफ्टी दोनों के लिए ही जरूरी है.
मुझे ज्ञान जी का ये बर्ताव अच्छा लगा. उन्होंने सिर्फ सेक्स की पूर्ति को तरजीह नहीं दी बल्कि वो सामने वाले का ख्याल रखना भी खूब जानते थे.
चाय का कप अपने होंठों से लगाते हुए मैंने ज्ञान की जांघ पर हाथ रख लिया.
चाय को कप से खींचते हुए उनके होंठ भी मुस्करा दिये. मगर नीचे जीन्स की पैंट में उनके लिंग ने भी अंगड़ाई लेकर ये जता दिया कि औरत के कोमल हाथों में क्या जादू होता है.
इससे पहले की मेरा हाथ उनके लिंग पर जाता उन्होंने पूछ लिया- आपके पति घर पर तो नहीं हैं?
मैंने कहा- अगर होते, तब भी मैं बेशर्मों की तरह गैर मर्द की बांहों में जाने से हिचकती नहीं.
वो बोले- अच्छा जी, इतना पसंद करने लगी हैं क्या आप हमें?
ज्ञान जी की पैंट में आकार ले चुके लंड पर मैंने हाथ से सहलाते हुए कहा- आप ही बेरुखे से हो रहे थे, मैं तो पहले दिन ही चुदने के लिए तैयार थी.
इतने में उन्होंने अपने कप की चाय को खत्म किया और मुझे अपनी ओर खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया. वो मेरी आंखों में देखने लगे और उनकी नजर मुझे अंदर तक घायल करने लगी.
दोनों के होंठों को मिलने में देर न लगी. उनके गर्म गर्म होंठों से निकल रही रसीली लार का स्वाद मैं भी अपने मुंह में लेने लगी. इतने सालों में मेरे पति ने कभी मुझे इतने जोश में किस नहीं किया था.
अपनी पीठ पर मैं ज्ञान का लंड चुभता हुआ महसूस करने लगी. मेरे होंठों को चूसने के बाद उन्होंने मेरी मैक्सी में दिख रही मेरी वक्षरेखा पर अपने होंठों को रख दिया. अपने होंठों को मेरी चूचियों की वक्षरेखा पर रगड़ते हुए वो उनको नाक घुसा कर सूंघ रहे थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.