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Adultery कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की
#3
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अभी तक मेरा परिचय ठाकुर साब ने दे दिया होगा। मेरी उम्र 44 वर्ष भले ही हो परंतु मन अभी भी 24 का ही है। यदि आप लोग मेरे बदन(फिगर) या लुक्स की तुलना करना चाहें तो मैं एक नाम लेना चाहूंगी-विद्या बालन। बस, उनसे थोड़ी सी लंबी होऊँगी।

इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं।
27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
कॉलेज से आने के बाद मैं सीधा अन्तर्वासना साइट पर गर्मागर्म कहानियां पढ़ती; फिर चूत की गर्मी शांत करने के लिए जो भी लंबा मोटा मिलता उसे घुसेड़ लेती। इससे भी जब मेरी चूत की कुलबुलाहट न शांत होती तो रात में पतिदेव के लण्ड पर उछल उछल कर पलंग के पाए तक हिला देती.
लेकिन पतिदेव का एक बार वीर्य उगलते ही शिथिल पड़ जाता और पुनः मेरा सहारा बनती मेरी उंगलियां और किचन में रखे लंबे मोटे बैंगन।
इसी बीच मैंने ज्ञान ठाकुर जी की लिखी कहानी ‘दोस्त की भाभी ने की चूत की पेशकश’ को मैंने पढ़ा।
इसके पहले मैंने कभी किसी लेखक को मेल(मैसेज) नहीं किये थे। मन में जिज्ञासा सी उमड़ पड़ी की इतनी ज़बरदस्त चुदाई करने वाला कोई मेरे शहर यानि कि प्रयागराज की पावन धरती पर भी है।
अगले दिन सुबह उधर से प्रतिउत्तर आया हुआ था।
शुरुआती परिचय और एक दो दिन के हाय हेलो के बाद उसने सीधा पूछ लिया- आप चाहती क्या हैं?
मैं तो लिखना चाहती थी कि मुझे एक लंबा मोटा लण्ड चाहिए जो मेरी अतृप्त प्यास को बुझा सके लेकिन ऐसा यदि मैं लिखती तो मुझे सस्ती या सड़क छाप भी समझ जा सकता था। आखिर मैं एक अच्छे सोसाइटी और इज़्ज़तदार घराने की बहू हूँ।
बस अंत में इतना ही बोल पायी- आपकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, क्या इसके सारे पात्र असली हैं?
“बहुत बहुत धन्यवाद! वैसे मैं एक नई कहानी लिखने के लिए नए पात्र की तलाश में हूँ और आप इसमें शामिल हो सकती हैं और आपका उत्तर भी मिल जाएगा.” ज्ञान ठाकुर ने जवाबी मेल भेजा।
“शामिल हो भी सकती हूं लेकिन सब कुछ मेरी मर्ज़ी से होगा.” मैंने भी फ़्लर्ट का जवाब फ़्लर्ट होकर दे दिया।
“आपकी मर्जी सर आँखों पर भनोट मैम!” ज्ञान ने आखिरी उत्तर लिख भेजा।
उस रात तो मैं सो न सकी। पतिदेव जी भी देर से आये और खाना खाकर सो गए। मैं अजीब पशोपेश में थी कि किसी अजनबी आदमी से दोस्ती ठीक रहेगी। और बात केवल दोस्ती की तो है नहीं, उससे कहीं ज्यादा की बात है।
मेरी इज़्ज़त, मेरी आबरू, मेरा परिवार, सब कुछ दांव पर होगा।
अगले ही पल मुझे मेरी चूत की भी याद आ गयी। कितने सालों से मेरी चूत की संतुष्टि से चुदाई नहीं हुई। मैं अपने पति के सूखे लण्ड से असंतुष्ट होकर कितना तड़पी हूँ। अपनी भरपूर जवानी में परिवार के लिए, बच्चों के लिए, पति के लिए कितना त्याग-तपस्या की है। क्या मैं अपनी कुछ वर्षों की शेष जवानी भी ऐसे ही गुज़ार दूंगी? अगले ही पल मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुंचकर रगड़ने और सहलाने की क्रिया करने लगा और मैं अपनी विचारों की दुनिया में गोते लगाने लगी।
अब मेरे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और चूत ने सोचना शुरू कर दिया था।
दो दिन बाद हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी इसलिए तय ये हुआ कि कॉलेज से छुट्टी के बाद मैं ऑटो नहीं लूंगी बल्कि ज्ञान जी मुझे घर छोड़ देंगे। छुट्टी के बाद मैंने ज्ञान जी को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि वह बस स्टॉप पर खड़ा है।
मैं मन ही मन उत्साहित होकर मानो उड़ते हुए बस स्टॉप तक पहुंची। सामने एक सफेद कार खड़ी थी। मैंने कन्फर्म करने के लिए फ़ोन लगाना चाहा कि तभी ज्ञान जी का मैसेज आया कि सफेद कार में आकर बैठ जायें।
मैं इधर उधर देखते हुए कार में बैठ गयी। ड्राइवर सीट बैठे एक मनमोहक, हैंडसम, जवान, 27-28 वर्ष के युवक ने हाथ मिलाने के लिए अपना दाहिना हाथ मेरे तरफ बढ़ा दिया- हेलो मैम, मैं ज्ञान।
“हेलो ज्ञान जी!” कहते हुए मैंने भी अपना हाथ बढ़ा दिया।
ज्ञान के मजबूत हाथों की पकड़ ने मेरा ध्यान उसके बदन पर ले गया जो कि पोलो टी शर्ट और नीली जीन्स में कसा हुआ था। मेरे मन में आया कि बदन गठीला और कसा हुआ है तो लण्ड का क्या हाल होगा. ऐसा सोचते ही मेरी चूत में सरसराहट सी मच गयी।
मैंने खुद को संभालते हुए नॉर्मल बातचीत शुरू की। बात करते करते मैं ध्यान दे रही थी कि ज्ञान कभी कभी सामने देखकर गाड़ी चला रहा था और कभी कभी मुझे मेरे बदन को भी निहार देता।
कॉलेज से मेरा घर 5-6 किमी ही है और जल्दी ही मेरा घर आ गया। ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई थी इसलिए मेरा मन उससे छोड़ने का हो नहीं रहा था, दिल आ गया था मेरा इस बांके नौजवान पर।
मैंने अपने घर के सामने गाड़ी रुकवाई और ज्ञान को चाय पीने के बहाने अंदर चलने को कहा।
वो भी जैसे इसी बात का इंतज़ार ही कर रहा था। उसके बाद जब तक ज्ञान अपनी कार साइड लगाकर आया, तब तक मैंने पर्स से चाभी निकालकर मेन गेट खोला और उसे अंदर आने का इशारा किया।
ज्ञान अंदर आया और घर की तारीफ करते हुए सोफे पर विराजमान हो गया। मैं भी रसोई की तरफ बढ़ी और फ्रिज से पानी और कुछ बिस्किट वगैरह लेकर आयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की - by neerathemall - 23-05-2022, 01:52 PM



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