23-05-2022, 11:48 AM
घोष- फिर तो दीपिका को आप भाभी बुला सकते हैं. वैसे ये आपसे भी पांच साल छोटी हैं.
मैंने दीपिका की ओर हसरत भरी निगाह से देखा और बोल दिया- यदि दीपिका जी को कोई एतराज़ न हो तो मैं इन्हें भाभी जी बुलाऊंगा.
दीपिका ने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी दोनों आंखें बंद करके सहमति दे दी.
जब हम चाय पी रहे थे तो मैंने देखा घोष बाबू की टांगें और कमर बिल्कुल पतली सी लकड़ी जैसी लग रही थीं.
मैंने लोअर और बहुत ही सुंदर टी शर्ट पहन रखी थी. जैसा कि मैं हर बार बताता हूँ कि घर पर मैं कपड़ों के नीचे बनियान और अंडरवियर नहीं पहनता हूँ जिससे हर वक्त मेरा लण्ड कुछ उभरा हुआ दिखाई देता रहता है.
दीपिका कभी मेरे शरीर और सुडौल पटों को निहारती तो कभी घोष की टाँगों को देखती. मैं भाभी की कामुक निगाहों को पहचान गया था. दीपिका के हाथों और पैरों की उंगलियां बहुत ही नाजुक, गोरी और गुदाज थी.
नाखूनों पर दीपिका ने बहुत सुंदर नेल पॉलिश लगा रखी थी. बैठे हुए दीपिका की साड़ी में से उसके सुडौल पट और भरी हुई जाँघें और उसका सुन्दर चिकना, सेक्सी पेट दिखाई दे रहा था.
कुछ देर बाद बैठे हुए दीपिका ने अपनी एक टांग को दूसरी पर चढ़ा लिया जिससे उसकी ऊपर और नीचे वाली टांगों से साड़ी पीछे खिसक गई और उसकी मोटी, सुंदर, गुदाज़, गोरी पिंडली देखकर मेरे लण्ड में कसाव आना शुरू हो गया था.
मैं सोच रहा था कि जिसकी पिंडलियाँ इतनी सुंदर हैं तो पट और जाँघें कितनी सेक्सी होंगी? मेरा ध्यान दीपिका के सेक्सी शरीर की जांच करने में लगा हुआ था जिसे दीपिका अच्छी प्रकार से समझ रही थी.
तभी घोष बाबू कहने लगे- मुझे बाथरूम जाना है.
मैंने उन्हें उनके पोर्शन की चाबी दे दी और कहा- आज से घर आपका है, जो मर्जी करो.
घोष उठकर चला गया.
मैं जब चाय के कपों की ट्रे उठाने लगा तो दीपिका ने मेरे हाथ से ट्रे छीन ली. ट्रे लेते समय मेरे हाथ दीपिका के नर्म हाथों से अच्छी तरह से टच हो गए और हम दोनों के शरीर झनझना उठे.
दीपिका को किचन दिखाने के बहाने मैं उठकर अपनी किचन में जाने लगा तो दीपिका मेरे पीछे आ गई और जब उसने पीछे की बालकॉनी देखी तो बोली- सर, ये तो बहुत ही शानदार बालकॉनी है. मन मोह लिया इस नजारे ने मेरा।
मगर जल्दी ही उसका चेहरा मायूस सा हो गया और वो बोली- लेकिन हम लोग तो यहां पर ये नजारा देखने के लिए आ भी नहीं सकते हैं. आपने सख्त मना किया है हमारे लिये।
मैंने धीरे से कहा- दीपिका जी, आपके लिए कोई भी मनाही नहीं है, आप जहां चाहें वहाँ बैठ सकती हैं, घूम सकती हैं, बालकॉनी तो क्या आप मेरे कमरे को भी अपना ही समझें, लेकिन घोष बाबू?
इतने में ही वो हंसने लगी और बोली- थैंक्स, मुझे आप बहुत अच्छे लगे.
मैंने कहा- लेकिन ये बात आप घोष बाबू को मत बताना.
दीपिका ने मेरी ओर शोखी से देखा और धीरे से बोली- ठीक है, हम दोनों की बात हम तक ही रहेगी.
दीपिका मेरी बालकॉनी के एक कॉर्नर में बने छोटे से किचन में चली गई और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा हो गया.
जैसे ही मैं कुछ बोलने लगा तभी दीपिका धीरे से बोली- वो आ रहे हैं.
फिर मैं बोलते बोलते मैं चुप हो गया.
दीपिका की इतनी सी बात ने मुझे अन्दर तक रोमांचित कर दिया क्योंकि इसी इशारे से हमारे आगे के संबंधों की नींव रखी जा चुकी थी.
उसके बाद हम तीनों मेरे कमरे में आ गए.
दीपिका मुझसे पूछने लगी- हम कब शिफ्ट कर सकते हैं?
मैंने कहा- आज से मकान आपका है, चाहें तो आज ही आ जाएं, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।
घोष बाबू बोले- लेकिन आज तो 22 तारीख है, किराया तो पहली तारीख से चालू होगा न?
मैंने कहा- घोष बाबू, किराया पहली से ही चालू होगा, मगर आप जब मर्जी चाहो शिफ्ट कर लो.
मैंने देखा कि मेरी इस बात से दीपिका खुश हो गई. उसने धीरे से कहा- थैंक्स, सर.
मैंने कहा- भाभी जी, आप मुझे सर की बजाए ‘राज’ कह सकती हैं.
दीपिका मुस्करा दी और बोली- ठीक है, आज से राज जी बोलूंगी.
घोष बाबू ने एक बार फिर बात छेड़ दी और बोले- अरे भई, शिफ्ट करना भी तो पूरी मुसीबत है, कौन सा आसान काम है? पूरा एक महीना लग जाता है सैटिंग करने में। कभी प्लम्बर, कभी इलेक्ट्रिशियन और न जाने क्या क्या चाहिये होगा.
दीपिका- वो तो सब कुछ मुझे ही करना है, आप तो चले जाएंगे ऑफिस में.
मैंने कहा- एक बार आप लोग अपना सामान यहाँ ले आइये, फिर मैं हेल्प कर दूँगा.
घोष बाबू ने मुझसे मेरा फोन नम्बर लिया और अपने फोन में सेव कर लिया.
जाते हुए बोले- ठीक है राज जी, हमने जब शिफ्ट करना होगा तब बता देंगे.
मैंने कहा- ठीक है.
वे जाने के लिए मुड़ गए. दीपिका ने दो तीन बार मुझे मुड़ कर देखा. मैंने हल्की सी स्माइल दी तो उसने भी हसरत भरी स्माइल देकर अपनी हथेली और उंगलियों को धीरे से नीचे करके बॉय कर दिया और वे लोग चले गए.
उसके चुपके से ये सब करने से या यूं कहें कि चोरी से बॉय करने के तरीके से मैं रोमांचित हो उठा और मेरे दिल में दीपिका को चोदने की इच्छा एकदम चार गुणा हो गई.
जब वो नीचे गए तो मैंने खिड़की से थोड़ा पर्दा हटा कर देखा तो दीपिका नजरें चुरा कर ऊपर की ओर ही देख रही थी. शायद मेरी आखिरी झलक पाने की इच्छा उसके मन में थी.
दीपिका की चूची और उसकी मोटी गुदाज जांघों के बारे में सोच सोच कर ही मेरे लंड से कुछ कामरस निकल आया था जिसने मेरी लोअर को अंदर से हल्का सा गीला कर दिया था. मेरा मन उसकी चूत मारने को कर गया लेकिन अभी तो हाथ का ही सहारा था.
मैंने दीपिका की ओर हसरत भरी निगाह से देखा और बोल दिया- यदि दीपिका जी को कोई एतराज़ न हो तो मैं इन्हें भाभी जी बुलाऊंगा.
दीपिका ने मेरी आँखों में देखते हुए अपनी दोनों आंखें बंद करके सहमति दे दी.
जब हम चाय पी रहे थे तो मैंने देखा घोष बाबू की टांगें और कमर बिल्कुल पतली सी लकड़ी जैसी लग रही थीं.
मैंने लोअर और बहुत ही सुंदर टी शर्ट पहन रखी थी. जैसा कि मैं हर बार बताता हूँ कि घर पर मैं कपड़ों के नीचे बनियान और अंडरवियर नहीं पहनता हूँ जिससे हर वक्त मेरा लण्ड कुछ उभरा हुआ दिखाई देता रहता है.
दीपिका कभी मेरे शरीर और सुडौल पटों को निहारती तो कभी घोष की टाँगों को देखती. मैं भाभी की कामुक निगाहों को पहचान गया था. दीपिका के हाथों और पैरों की उंगलियां बहुत ही नाजुक, गोरी और गुदाज थी.
नाखूनों पर दीपिका ने बहुत सुंदर नेल पॉलिश लगा रखी थी. बैठे हुए दीपिका की साड़ी में से उसके सुडौल पट और भरी हुई जाँघें और उसका सुन्दर चिकना, सेक्सी पेट दिखाई दे रहा था.
कुछ देर बाद बैठे हुए दीपिका ने अपनी एक टांग को दूसरी पर चढ़ा लिया जिससे उसकी ऊपर और नीचे वाली टांगों से साड़ी पीछे खिसक गई और उसकी मोटी, सुंदर, गुदाज़, गोरी पिंडली देखकर मेरे लण्ड में कसाव आना शुरू हो गया था.
मैं सोच रहा था कि जिसकी पिंडलियाँ इतनी सुंदर हैं तो पट और जाँघें कितनी सेक्सी होंगी? मेरा ध्यान दीपिका के सेक्सी शरीर की जांच करने में लगा हुआ था जिसे दीपिका अच्छी प्रकार से समझ रही थी.
तभी घोष बाबू कहने लगे- मुझे बाथरूम जाना है.
मैंने उन्हें उनके पोर्शन की चाबी दे दी और कहा- आज से घर आपका है, जो मर्जी करो.
घोष उठकर चला गया.
मैं जब चाय के कपों की ट्रे उठाने लगा तो दीपिका ने मेरे हाथ से ट्रे छीन ली. ट्रे लेते समय मेरे हाथ दीपिका के नर्म हाथों से अच्छी तरह से टच हो गए और हम दोनों के शरीर झनझना उठे.
दीपिका को किचन दिखाने के बहाने मैं उठकर अपनी किचन में जाने लगा तो दीपिका मेरे पीछे आ गई और जब उसने पीछे की बालकॉनी देखी तो बोली- सर, ये तो बहुत ही शानदार बालकॉनी है. मन मोह लिया इस नजारे ने मेरा।
मगर जल्दी ही उसका चेहरा मायूस सा हो गया और वो बोली- लेकिन हम लोग तो यहां पर ये नजारा देखने के लिए आ भी नहीं सकते हैं. आपने सख्त मना किया है हमारे लिये।
मैंने धीरे से कहा- दीपिका जी, आपके लिए कोई भी मनाही नहीं है, आप जहां चाहें वहाँ बैठ सकती हैं, घूम सकती हैं, बालकॉनी तो क्या आप मेरे कमरे को भी अपना ही समझें, लेकिन घोष बाबू?
इतने में ही वो हंसने लगी और बोली- थैंक्स, मुझे आप बहुत अच्छे लगे.
मैंने कहा- लेकिन ये बात आप घोष बाबू को मत बताना.
दीपिका ने मेरी ओर शोखी से देखा और धीरे से बोली- ठीक है, हम दोनों की बात हम तक ही रहेगी.
दीपिका मेरी बालकॉनी के एक कॉर्नर में बने छोटे से किचन में चली गई और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा हो गया.
जैसे ही मैं कुछ बोलने लगा तभी दीपिका धीरे से बोली- वो आ रहे हैं.
फिर मैं बोलते बोलते मैं चुप हो गया.
दीपिका की इतनी सी बात ने मुझे अन्दर तक रोमांचित कर दिया क्योंकि इसी इशारे से हमारे आगे के संबंधों की नींव रखी जा चुकी थी.
उसके बाद हम तीनों मेरे कमरे में आ गए.
दीपिका मुझसे पूछने लगी- हम कब शिफ्ट कर सकते हैं?
मैंने कहा- आज से मकान आपका है, चाहें तो आज ही आ जाएं, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।
घोष बाबू बोले- लेकिन आज तो 22 तारीख है, किराया तो पहली तारीख से चालू होगा न?
मैंने कहा- घोष बाबू, किराया पहली से ही चालू होगा, मगर आप जब मर्जी चाहो शिफ्ट कर लो.
मैंने देखा कि मेरी इस बात से दीपिका खुश हो गई. उसने धीरे से कहा- थैंक्स, सर.
मैंने कहा- भाभी जी, आप मुझे सर की बजाए ‘राज’ कह सकती हैं.
दीपिका मुस्करा दी और बोली- ठीक है, आज से राज जी बोलूंगी.
घोष बाबू ने एक बार फिर बात छेड़ दी और बोले- अरे भई, शिफ्ट करना भी तो पूरी मुसीबत है, कौन सा आसान काम है? पूरा एक महीना लग जाता है सैटिंग करने में। कभी प्लम्बर, कभी इलेक्ट्रिशियन और न जाने क्या क्या चाहिये होगा.
दीपिका- वो तो सब कुछ मुझे ही करना है, आप तो चले जाएंगे ऑफिस में.
मैंने कहा- एक बार आप लोग अपना सामान यहाँ ले आइये, फिर मैं हेल्प कर दूँगा.
घोष बाबू ने मुझसे मेरा फोन नम्बर लिया और अपने फोन में सेव कर लिया.
जाते हुए बोले- ठीक है राज जी, हमने जब शिफ्ट करना होगा तब बता देंगे.
मैंने कहा- ठीक है.
वे जाने के लिए मुड़ गए. दीपिका ने दो तीन बार मुझे मुड़ कर देखा. मैंने हल्की सी स्माइल दी तो उसने भी हसरत भरी स्माइल देकर अपनी हथेली और उंगलियों को धीरे से नीचे करके बॉय कर दिया और वे लोग चले गए.
उसके चुपके से ये सब करने से या यूं कहें कि चोरी से बॉय करने के तरीके से मैं रोमांचित हो उठा और मेरे दिल में दीपिका को चोदने की इच्छा एकदम चार गुणा हो गई.
जब वो नीचे गए तो मैंने खिड़की से थोड़ा पर्दा हटा कर देखा तो दीपिका नजरें चुरा कर ऊपर की ओर ही देख रही थी. शायद मेरी आखिरी झलक पाने की इच्छा उसके मन में थी.
दीपिका की चूची और उसकी मोटी गुदाज जांघों के बारे में सोच सोच कर ही मेरे लंड से कुछ कामरस निकल आया था जिसने मेरी लोअर को अंदर से हल्का सा गीला कर दिया था. मेरा मन उसकी चूत मारने को कर गया लेकिन अभी तो हाथ का ही सहारा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
