19-05-2022, 03:55 PM
आशु की एक दोस्त ने कहा. 'चल हट!' अश्विनी ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा. 'सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!' ये कहते हुए उसने आशु के कूल्हों को सहलाया. 'तेरी स्तन भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?' आशु ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा. 'ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!' तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था. जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने आशु का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा. आशु पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पडी. भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हे.
मैं आशु को घर की बजाये दूर प्रकाश के खेतों में ले गया, वहाँ प्रकाश के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था. उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छा गया.मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और आशु के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा. समय कम था. इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और आशु को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा. उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर आशु की योनी पर अपने होंठ रखे. पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से आशु की योनी को चाटा. मिनट भर में ही उसकी योनी पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया. मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. में आशु के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थी. मैंने और देर न करते हुए अपने लिंग को आशु की योनी में ठेल दिया. लिंग सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर आशु ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया. मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लिंग जड़ समेत उसकी योनी में उतार दिया. आशु ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी. मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और ७-८ मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये. आशु और मैं दोनों तृप्त हो चुका थे.उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी. बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से सटा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी. पर समय नहीं था इसलिए मैंने आशु से कहा; 'आज रात!' इतना सुनते ही आशु खुश हो गई. मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर आशु को बाहर आने का इशारा किया. आशु को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुंचा. घर पर सब आ चुके थे. और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी. 'कहाँ रह गया था तू?' माँ ने पूछा. 'वो में प्रकाश के साथ था.' इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर आशु पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी आशु के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही आशु की ख़ुशी काफूर हो गई.
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!मैंने आशु का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और आशु से पुछा, अब बेचारी आशु सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो आशु सुलगने लगी थी. इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: आशु तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं प्रकाश के साथ था. भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
मैं आशु को घर की बजाये दूर प्रकाश के खेतों में ले गया, वहाँ प्रकाश के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था. उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छा गया.मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और आशु के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा. समय कम था. इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और आशु को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा. उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर आशु की योनी पर अपने होंठ रखे. पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से आशु की योनी को चाटा. मिनट भर में ही उसकी योनी पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया. मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. में आशु के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थी. मैंने और देर न करते हुए अपने लिंग को आशु की योनी में ठेल दिया. लिंग सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर आशु ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया. मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लिंग जड़ समेत उसकी योनी में उतार दिया. आशु ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी. मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और ७-८ मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये. आशु और मैं दोनों तृप्त हो चुका थे.उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी. बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी. मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से सटा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और आशु उसे चूसने लगी. तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी. पर समय नहीं था इसलिए मैंने आशु से कहा; 'आज रात!' इतना सुनते ही आशु खुश हो गई. मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर आशु को बाहर आने का इशारा किया. आशु को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुंचा. घर पर सब आ चुके थे. और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी. 'कहाँ रह गया था तू?' माँ ने पूछा. 'वो में प्रकाश के साथ था.' इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर आशु पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी आशु के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही आशु की ख़ुशी काफूर हो गई.
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!मैंने आशु का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और आशु से पुछा, अब बेचारी आशु सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो आशु सुलगने लगी थी. इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: आशु तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं प्रकाश के साथ था. भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.