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सामूहिक सम्भोग()
#3
सुनीता की जुबानी

पिछले एक साल से राज अपनी बैंक में पदोन्नति (प्रमोशन) के लिए पूरी कोशिश कर रहा था मगर किसी न किसी कारण से बात बन नहीं रही थी. अब गुस्से में आकर, राज ने दुसरे बैंकोंमें नौकरी ढूंढना शुरू कर दिया. पता चला की एक बड़ी बहु राष्ट्रीय (मल्टी नेशनल) बैंक अपनी नयी शाखा (ब्रांच) के लिए मैनेजर की तलाश में हैं.
राजने तुरंत वहाँ के लिए अर्जी दे दी और तीन दिन में साक्क्षातकार (इंटरव्यू) के लिए बुलावा भी आ गया.
जैसे ही राज कमरे में दाखिल हुआ, उसे "हे राज, तुम और यहाँ?" एक परिचित आवाज़ ने स्वागत किया.
कमरे में तीन आदमी बैठे थे, जिसमे से बीचमें बैठा हुआ राज के कॉलेज का सीनियर रोहित था.
रोहित के पिताजी सरकारी नौकरी में उच्च पद पर थे और उन्हींके कारण रोहित को उस बहु राष्ट्रीय बैंक का मुख्य अधिकारी (जनरल मैनेजर) बनाया गया था.
इंटरव्यू के बाद दोनों दोस्तोंने आपस में चाय पी और बाते हुई.
राजने सारा किस्सा बताया और कहा, "यार रोहित, यह नौकरी लग जाए तो मेरी किस्मत खुल जायेगी. तनख्वा भी अच्छी रहेगी और इतने बड़े बैंक में काम करने के बाकी लाभ भी."
रोहितने कहा, "देखते हैं मैं क्या कर सकता हूँ! वैसे भी अबतक आये सारे उम्मीदवारोंमें तुम्हारा ही पलड़ा सबसे भारी है."
फिर जब घर की बातें निकली तब रोहितने बताया की उसकी पत्नी माधुरी डिलीवरी के लिए अपने मइके गयी है.
"कल शाम को मेरे घर पर आ जाओ डिनर के लिए," राजने तुरंत कह दिया.
"अच्छा, ठीक है."
घर आते ही राजने मुझे सब बताया. अगले दिन मैं और सारिका ने मिलकर बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया, साथमें महंगी वाली वाइन, बाहर से मिठाई सारा इंतज़ाम बढ़िया था. फिर घर को सजाके खुशबू वाला सेंट छिड़क दिया.
सारिका ने कहा, "दीदी, आप दोनों रोहित की अच्छी खातिरदारी करो. मैं दूकान पर रूपेश का हाथ बटाने चली जाती हूँ."
मैंने भी पीले रंग का डीप नैक स्लीवलेस ब्लाउज और नीले रंग की पारदर्शी साड़ी पहनी. साढ़े पांच बजे ही राज रोहित को लेकर घर में दाखिल हुआ.
"वॉव राज, तुम्हारा घर और पत्नी दोनों भी सुन्दर हैं यार," रोहित ने मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा.
"थैंक यू रोहित जी," मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
"अरे रोहित जी नहीं, सिर्फ रोहित!"
"अच्छा बाबा, थैंक यू सिर्फ रोहित!"
"सुनीता, आज कितने दिनों के बाद मैं खुल कर हंस रहा हूँ."
सभी हंसी मजाक करते रहे और फिर हम तीनो साथ में बैठकर वाइन और नमकीन का स्वाद लेने लगे.
"लीजिये रोहित, मैं थोड़ी और वाइन आपके ग्लास में भर देती हूँ," कहते हुए मैंने झुककर अपने वक्षोंका दर्शन रोहित को कराया.
फिर पल्लू ठीक करते हुए उसे एक मुस्कान देते हुए बैठ गयी.
खाने पीने का दौर नौ बजे तक चला. अब रोहित भी बेशर्मी से मेरे कैसे हुए वक्षोंको और मेरी साड़ी में झलकते हुए नितम्बोँको ताड़ रहा था.
निकलते हुए हाथ मिलाने के बाद, मैंने उसे गले लगाते हुए कानोंमें कहा, "आशा हैं की राज को यह पोस्ट मिल जाए और हम ऐसे ही मिलते रहेंगे!"
"हाँ हाँ, क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे, और राज तो मेरा जिगरी यार हैं. उसके लिए जो कुछ हो सकता हैं, मैं ज़रूर करूंगा."
बाद में राज से पता चला की इस नयी नौकरी में अभी के मुक़ाबले दुगनी से भी ज्यादा वेतन (सैलरी) था और जोइनिंग बोनस मिलने के भी अपेक्षा थी.
"अगर ये नौकरी तुम्हे मिल गयी तो हम और भी अच्छे ढंग से रह सकेंगे, और फिर वो सोने का कमरपट्टा भी तुम मुझे दिला सकोगे," राज के निप्पल्स को चूमते हुए मैंने रात को कहा.
"हाँ सुनीता रानी, मगर यह रोहित साला मानने को तैयार नहीं लग रहा हैं. मेरा कॉलेज में सिर्फ सीनियर ही नहीं था, हम अच्छे दोस्त भी थे. अब जनरल मैनेजर बन गया हैं तो दोस्त के जैसा बर्ताव नहीं कर रहा हैं साला," राज गुस्से में था.
"ठीक है, कुछ दिन इंतज़ार करके देखो. शायद कुछ अच्छी खबर आ जाए," मैंने धीरज बंधाते हुए कहा.
उस रात चुदाई भी नहीं हुई क्योंकि राज काफी अपसेट था. मैंने भी रूपेश और सारिका को एक दिन बाहर सोने के लिए कह दिया था.
दो दिन बाद जब राज बैंक से लौटा तब से उखड़ा हुआ था. मेरा और सारिका की हंसी मज़ाक और आलिंगन चुम्बन भी उसे आज अच्छे नहीं लग रहे थे.
"सारिका, आज तुम जरा रूपेश के साथ दुकान पर रहो. मुझे राज का मूड ठीक करना पडेगा."
"ठीक हैं दीदी।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: सामूहिक सम्भोग() - by neerathemall - 19-05-2022, 03:49 PM



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