19-05-2022, 03:40 PM
माता जी के गांव जाने के बाद दीदी घर पर ही रहती।वह कॉलेज भी नहीं जाती थी।दिन भर किताबों में डूबी रहती थी।
पहले तो मुझे लगा कि यह भी कोई नया ढोंग है। लेकिन चुकीं दीदी पढ़ने की शौकीन थी, इसलिए यह लगने लगा कि शायद अपनी पूर्व के कृत्यों के कारण वह शर्मिंदा अनुभव कर रही हैं और अपने आप को सुधारने का प्रयास कर रही हैं ।
मैंने चुपचाप उनको कई बार कमरे में रोते हुए भी देखा था ।
जब मैं उसे यह कहती कि वो क्यों रो रही है? तो, मुझे चुप करा देती।फिर भी मेरी और उनकी बातचीत कम हो पाती थी। मैं उन्हें डिस्टर्ब करने का प्रयास नहीं करती थी क्योंकि मुझे लगता था कि वह अपनी आदतों को सुधारने का प्रयास कर रही हैं।
जो लड़के दीदी को बार-बार स्टोक किया करते थे,उनका भी आना जाना बहुत ही कम हो गया था। इसलिए एक तरफ से शांति का अनुभव हो रहा था।
बगल वाली अंकल आंटी के ट्रांसफर होके चले जाने के बाद दीदी को मानसिक शांति का आभास हो रहा था, क्योंकि माताजी को बताने वाला कोई नहीं था।
इसलिए उन्होंने भी चैन की सांस ली। माताजी इस बार लंबे समय के लिए गांव गए थीं। खेती का सीजन था और खेती कराने का पूरा कार्यभार उन्हीं के कंधों पर था।
पहले तो मुझे लगा कि यह भी कोई नया ढोंग है। लेकिन चुकीं दीदी पढ़ने की शौकीन थी, इसलिए यह लगने लगा कि शायद अपनी पूर्व के कृत्यों के कारण वह शर्मिंदा अनुभव कर रही हैं और अपने आप को सुधारने का प्रयास कर रही हैं ।
मैंने चुपचाप उनको कई बार कमरे में रोते हुए भी देखा था ।
जब मैं उसे यह कहती कि वो क्यों रो रही है? तो, मुझे चुप करा देती।फिर भी मेरी और उनकी बातचीत कम हो पाती थी। मैं उन्हें डिस्टर्ब करने का प्रयास नहीं करती थी क्योंकि मुझे लगता था कि वह अपनी आदतों को सुधारने का प्रयास कर रही हैं।
जो लड़के दीदी को बार-बार स्टोक किया करते थे,उनका भी आना जाना बहुत ही कम हो गया था। इसलिए एक तरफ से शांति का अनुभव हो रहा था।
बगल वाली अंकल आंटी के ट्रांसफर होके चले जाने के बाद दीदी को मानसिक शांति का आभास हो रहा था, क्योंकि माताजी को बताने वाला कोई नहीं था।
इसलिए उन्होंने भी चैन की सांस ली। माताजी इस बार लंबे समय के लिए गांव गए थीं। खेती का सीजन था और खेती कराने का पूरा कार्यभार उन्हीं के कंधों पर था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.