19-05-2022, 03:25 PM
मेरा college 8 से 2 बजे का था जबकि दीदी का कॉलेज सुबह में 11:00 से 3:00 बजे तक का होता था,लेकिन दीदी अपनी पढ़ाई के लिए सुबह में 9:00 से लेकर 11:00 या 12:00 बजे तक क्लास करती थी। बाकी समय वह घर पर ही अध्ययन करती थी।
तो! जब सब कुछ ठीक चल रहा था,तो फिर यह समस्या उत्पन्न कहां से हुई?
मैं विद्यालय से जब घर आती तो मैंने आसपास के माहौल माहौल में कुछ परिवर्तन को महसूस किया ।कुछ लड़कों को घर के बाहर घूमते हुए पाया और कई बार मैंने पाया कि दीदी समय से कॉलेज नहीं आ पाती है।
इस बात को आसानी से महसूस किया जा सकता था कि दीदी का मन पढ़ाई में कम लग रहा था और अन्य क्रियाओं में ज्यादा! वह ज्यादा बात भी नहीं करती थी और कमरे से कम ही निकलती थी।
उससे पहले हम परिवार के रूप में बैठकर,रात्रि का भोजन,एक साथ करते थे और अपनी दिनचर्या की बातों को एक दूसरे से शेयर किया करते थे। माताजी अभी भी अपने काम में व्यस्त रहती थी। उनके काम का ड्यूटी चार्ट क्लियर नहीं था।
एक चिड़िया जिसे पिंजड़े में में रहने की आदत हो, वह अनायास ही आसमान में उड़ने लगे हो तो उसके चरित्र पर सवाल उठने स्वाभाविक हो जाते हैं।
एक पढ़ाकू लड़की के रूप में दीदी के क्रियाकलापों से वर्तमान क्रियाकलाप बिल्कुल भिन्न थे और यह बहुत आसानी से समझी जा सकती थी ।माताजी की अनुपस्थिति में मुझे इस बात को महसूस करना और समझना थोड़ा कठिन था ।
लेकिन एक दिन......
तो! जब सब कुछ ठीक चल रहा था,तो फिर यह समस्या उत्पन्न कहां से हुई?
मैं विद्यालय से जब घर आती तो मैंने आसपास के माहौल माहौल में कुछ परिवर्तन को महसूस किया ।कुछ लड़कों को घर के बाहर घूमते हुए पाया और कई बार मैंने पाया कि दीदी समय से कॉलेज नहीं आ पाती है।
इस बात को आसानी से महसूस किया जा सकता था कि दीदी का मन पढ़ाई में कम लग रहा था और अन्य क्रियाओं में ज्यादा! वह ज्यादा बात भी नहीं करती थी और कमरे से कम ही निकलती थी।
उससे पहले हम परिवार के रूप में बैठकर,रात्रि का भोजन,एक साथ करते थे और अपनी दिनचर्या की बातों को एक दूसरे से शेयर किया करते थे। माताजी अभी भी अपने काम में व्यस्त रहती थी। उनके काम का ड्यूटी चार्ट क्लियर नहीं था।
एक चिड़िया जिसे पिंजड़े में में रहने की आदत हो, वह अनायास ही आसमान में उड़ने लगे हो तो उसके चरित्र पर सवाल उठने स्वाभाविक हो जाते हैं।
एक पढ़ाकू लड़की के रूप में दीदी के क्रियाकलापों से वर्तमान क्रियाकलाप बिल्कुल भिन्न थे और यह बहुत आसानी से समझी जा सकती थी ।माताजी की अनुपस्थिति में मुझे इस बात को महसूस करना और समझना थोड़ा कठिन था ।
लेकिन एक दिन......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.