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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#95
भाग 86

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…


सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

अब आगे…

प्रश्न पूछा गया था लाली से परंतु उत्तर सोनी ने दिया जो हॉल में आ चुकी थी…

*हां दीदी अब की दिवाली गांव पर ही मनावल जाई हमरो छुट्टी बा…

मां और मोनी के भी ओहिजे बुला लिहल जाई…"

लाली भी खुश हो गई उसे भी अपने माता-पिता से मिलने का अवसर प्राप्त होता और त्योहारों की खुशियां वैसे भी पूरे परिवार के साथ मनाने में ही आनंद था ..

सुगना ने सोनी से कहा..

"आज बाजार जाकर सोनू के फोन कर दीहे दू चार दिन पहले जाई तब साथे गांव चलेके"

"ठीक बा दीदी…"


सोनी…. खुशी खुशी तैयार होने चली गई..

सोनी यद्यपि रहने वाली सीतापुर गांव की थी परंतु उसे सलेमपुर में ज्यादा मजा आता था वहां वह मेहमान की हैसियत से आती थी और अपनी बहन सुगना की खातिरदारी का आनंद उठाती थी ।

गांव की सारी महिलाएं महिलाएं सोनी की पढ़ाई की कायल थी सोनी ने अपने गांव का नाम रोशन किया था। शायद वह अपने गांव की पहली महिला थी जो आने वाले समय में नौकरी करने के लायक थी।


एक तो सोनी जिस नर्सिंग की पढ़ाई पढ़ रही थी वह गांव वालों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए डॉक्टर ही थी। सोनी ने अपने सामान्य ज्ञान ने कई गांव वालों की मदद की थी और गांव की महिलाएं उसे समय से पूर्व ही डॉक्टर जेड डॉक्टर कहकर बुलाने लगी थीं और सोनी को यह सम्मान बेहद पसंद आता था।

ऐसा ना था की सोनी को सलेमपुर सिर्फ इसलिए ही भाता था, उसे वहां के मनचले लड़के भी पसंद आते थे।

जैसे-जैसे सोनी युवा होती गई सलेमपुर के लड़के उसके मादक और कमसिन शरीर के दीवाने होते गए। गांव के मनचले लड़के उस पर नगर निगाह टिकाए रखते। इसका एहसास सोनी को बखूबी होता। सरयू सिंह के रूतबे की वजह से मनचले सोनी को अपनी निगाहों से तो ताड़ते तो जरूर परंतु उसे छूने और उसके करीब आने की हिम्मत न जुटा पाते।

सोनी को लड़कों की यह बेचैनी और बेकरारी बेहद पसंद आती उसे अपनी चढ़ती हुई जवानी का एहसास था और वह उसका भरपूर आनंद ले रही थी। आज नहाते वक्त वह उन्हीं बातों को याद कर रही थी।


बनारस आने के बाद उसने विकास से संबंध बना लिए थे और अब वह जवानी के मजे लूट चुकी थी। शरीर में आया बदलाव स्पष्ट था। वह एक बार खुद को गांव की पगडंडियों पर चलते हुए देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसे यह एहसास हो रहा था कि उसके गदराये हुए नितंब पगडंडियों पर चलते समय पीछे से कैसे दिखाई पड़ रहे होंगे?.

उसने अपने नितंबों को देखने के लिए गर्दन घुमाई परंतु उनकी खूबसूरती के दर्शन न कर पाईं…उसने अपने दोनों हाथों से अपने नितंबों को सहलाया और उनके आकार का अंदाज लगाने लगी निश्चित ही जिस अनुपात में हथेलियां बड़ी थी नितंब उससे ज्यादा…..

सोनी ने अपने नितंबों को स्वयं अपने ही हाथों से फैलाया और उसे विकास की याद आ गई….


उसकी हथेलियां एक बार फिर उसकी कोमल जगहों पर घूमने लगी एक हथेली ने चुचियों का मोर्चा संभाला और दूसरी उस गहरी गुफा से प्रेम रस खींचने की कोशिश करने लगीं ….सोनी आनंद से सराबोर थी…उंगलियों और का करतब कुछ देर और चला और सोनी पूरी तन्मयता से अपने हस्तमैथुन का आनंद लेने लगी…

"सोनी 9:00 बज गइल तोरा देर नइखे होत? कतना नहा तारे?"

सोनी ने अपनी उंगलियों की रफ्तार बढ़ा दी और कुछ ही देर में स्खलित हो कर अपना स्नान पूर्ण कर लिया…

कुछ देर बाद …सोनी तैयार हुई और खुशी-खुशी बाजार जाकर सोनू को फोन लगा दिया..

"हां भैया हम सोनी बोला तानी.."

"का हाल बा? सब ठीक बानू?"

"हां सुगना दीदी कहली हा कि अबकी दिवाली सलेमपुर में मनावल जाई तू जल्दी आ जाई ह?"

"सुगना की बात सुनकर सोनू खुश हो गया"

"ठीक बा हम दो-चार दिन पहले आ जाएब"

"दीदी और कुछ कहत रहली हा?"

"काहे कुछ बात बा का?"

सोनी का प्रश्न सुनकर सोनू आश्चर्य में पड़ गया वह उसे एहसास हुआ जैसे उसने सोनी से जो प्रश्न पूछा था वह सुगना के प्रति उसकी व्यग्रता जाहिर कर रहा था।

"ना ना असहीं पूछ तानी हां"

"दिन भर तहारा खातिर लइकिन के फोटो देखत रहेले "

"और लाली दीदी"

"ऊहो तहरा के याद करेली?"

सोनी को अब तक यह ज्ञात न था कि लाली और सोनू के बीच अब रिश्ते बदल चुके थे फिर भी सोनू लाली को पूरे सम्मान से दीदी बुलाता और सोनी के मन में कोई गलत ख्याल पैदा ना होने देता।

सोनू सुगना के बारे में और भी बातें करना चाहता था.. परंतु सोनी से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी.. सोनी को क्या पता था कि उसका बड़ा भाई सोनू अपनी ही बड़ी बहन सुगना के प्यार में पागल हुआ जा रहा था……


<>



उधर मनोरमा अपने नए बंगले में शिफ्ट हो चुकी थी। सोनू से मिलने के बाद उसके मन में सरयू सिंह की यादें एक बार फिर ताजा हो गई। जब जब वह पिंकी को देखती उसके मासूम चेहरे में उसे सरयू सिंह दिखाई पड़ते…यद्यपि सरयू सिंह कहीं से मासूम न थे परंतु मनोरमा के प्रति उनका सम्मान सराहनीय था वह सदैव उसका यथोचित सम्मान करते और अन्य साथियों को भी उसके प्रति एक आदर्श व्यवहार की प्रेरणा देते।


बनारस महोत्सव की उस रात को छोड़ सरयू सिंह ने कभी भी उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई और यथोचित सम्मान और आदर देखकर उसके पद की गरिमा बनाए रखी थी मनोरमा सरयू सिंह से बेहद प्रसन्न रहती थी और प्रत्युत्तर में उनका भी सम्मान बनाए रखती थी।

बनारस की उस कामक रात को याद कर रही थी। सेक्रेटरी साहब से विवाह बंधन टूटने के पश्चात जैसे मनोरमा के दिमाग में उसे उस कामुक रात को याद करने की खुली छूट दे दी थी।

मनोरमा के मन में अब भी यह प्रश्न बार-बार खटक रहा था कि आखिर सरयू सिंह उस दिन उस कमरे में किसका इंतजार कर रहे थे…


क्या सरयू सिंह अविवाहित होने के बावजूद इस तरह के संबंध रखते थे? परंतु किससे?

सुगना और सरयू सिंह के संबंध मनोरमा की कल्पना से परे थी? उसके नजरों में यह एक निकृष्ट व्यभिचार था। सरयू सिंह से इसकी उम्मीद कतई नहीं की जा सकती थी ।

तो क्या कजरी? हां यह हो सकता है। आखिर वह उनकी हम उम्र भी थी और एक तरह से परित्यक्ता। भाभी देवर का संबंध वैसे भी हंसी ठिठोली का होता है…. हो सकता है सरयू सिंह कजरी के करीब आ गए हों..या कोई और महिला?


मनोरमा अपने पति को छोड़ने के बाद स्वयं एक परित्यक्ता की भूमिका में आ चुकी थी। उसे खुद और कजरी में समानता दिखाई पड़ने लगी। आखिर दोनों ही युवतियों को उनके पतियों ने छोड़ दिया। जिस तरह सरयू सिंह ने कजरी की प्यास बुझाई थी क्या वह उसकी भी प्यास …..मनोरमा ने खुद से यह प्रश्न किया और खुद ही मुस्कुराने लगी….

मनुष्य की सोच कभी-कभी इतनी असामान्य और असहज होती है कि वह अपनी सोच पर ही मुस्कुराने लगता है…

मनोरमा ने मन ही मन सोच लिया कि जब कभी उसकी मुलाकात सरयू सिंह से होगी वह इस बात का जिक्र जरूर करेगी और यह जानने का प्रयास करेगी कि आखिर सरयू सिंह उस दिन किसका इंतजार कर रहे थे…

मनोरमा सरयू सिंह के बारे में जैसे जैसे सोचती गई वैसे वैसे वह सहज होती गई। उसे सरयू सिंह के साथ बिताए गई उस रात का कोई अफसोस न था अपितु उसने उस मुलाकात को भगवान की देन मान लिया था।


जिस संभोग ने उसकी पथराई कोख में सुंदर पिंकी को सृजित किया था वह गलत कैसे हो सकता है? सुगना मनोरमा उस रात को याद करने लगे तभी उसे सरयू सिंह के उस लाल लंगोट का ध्यान आया जिसे मनोरमा अपने साथ ले आई थी… उसमें अपनी अलमारी से वह लाल लंगोट निकाला और उसे ध्यान पूर्वक देखने लगी..वह लाल लंगोट सरयू सिंह के मजबूत लंड कैसे अपने आगोश में लेता होगा और सरयू सिंह उस लंगोट में कैसे दिखाई पड़ते होंगे … मनोरमा यह सोचकर मुस्कुराने लगी ..

[b]सरयू सिंह
के मर्दाना शरीर के बारे में सोचते सोचते मनोरमा कब उत्तेजित हो चली थी उसे इसका एहसास तब हुआ जब से अपनी जांघों के बीच नमी महसूस हुई.। और अब जब उत्तेजना ने मनोरमा को घेर लिया था मनोरमा खुद को ना रोक पाई।

बिस्तर पर अपनी जांघों के बीच तकिया फसाए मनोरमा अब एक एसडीएम न होकर एक उत्तेजित महिला की तरह तड़प रही थी.. वह अपनी जानू को सिकुड़ कर कभी अपने पेट की तरफ लाती कभी अपने पैर सीधे कर देती …नियति मनोरमा की तरफ देख रही थी और अपने ताने-बाने बुन रही थी।[/b]

कामुक मनोरमा का यह रूप बिल्कुल अलग था कई दिनों की बल्कि यूं कहें कई वर्षों की प्यासी मनोरमा की के अमृत कलश पर सरयू सिंह ने जो श्वेत धवल वीर्य चढ़ाया था और मनोरमा को जो तृप्ति का एहसास दिलाया था वह अद्भुत था…

आज मनोरमा को यह एहसास हो रहा था कि उस मुलाकात ने उसे उस अद्भुत सुख से परिचय कराया था जिस पर हर स्त्री का हक है …खूबसूरत जिस्म और मादक अंगो से सुसज्जित मनोरमा की सोच पर कामुकता हावी हो रही थी और उसे सरयू सिंह एक कामदेव के रूप में दिखाई पड़ रहे थे..

एक बार के लिए मनोरमा के मन में आया कि वह सरयू सिंह से मिलने के लिए सलेमपुर जाए परंतु स्त्री हया और अपने पद के गौरव के अधीन मनोरमा को यह निर्णय व्यग्रता भरा लगा । वह मन मसोसकर रह गई परंतु सलेमपुर जाने का निर्णय न ले पाईं.. परंतु उसकी तड़प ऊपर वाले ने सुन ली और नियति सरयू सिंह को लखनऊ लाने की जुगत लगाने लगी..



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उधर शाम को सोनी ने आकर सोनू से हुई बातचीत का सारा विवरण सुगना और लाली को बता दिया दोनों बहने प्रसन्न हो गई..

सुगना के चेहरे पर चमक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी सोनू और पूरे परिवार के साथ गांव पर दीवाली मनाने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी।


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कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव कराए जाने थे। तात्कालिक सरकार में नई भर्ती वाले सभी प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी। सोनू और उसके साथी भी इस निर्णय से प्रभावित हुए परंतु उन सभी के चेहरे पर हर्ष व्याप्त था। आखिर अपने ओहदे पर काम करना और क्लासरूम में ट्रेनिंग करना दोनों अलग-अलग बातें थी। ट्रेनिंग समाप्ति पर एक विशेष कार्यक्रम रखा गया था जो आने वाली दीपावली से लगभग 1 सप्ताह पूर्व था। मनोरमा ने कक्षा में आकर सोनू और उसके साथियों को इसकी सूचना दी और कहा..

"आप सबको जानकर हर्ष होगा कि आप की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी गई है। ट्रेनिंग की समाप्ति पर आप सब अपने परिवार के अधिकतम 3 सदस्यों को उस विशेष कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए बुला सकते हैं। इसी कार्यक्रम में इस ट्रेनिंग क्लास के प्रतिभाशाली छात्रों को सम्मानित किया जाएगा।"

"मैडम परिवार के सदस्यों के रहने की व्यवस्था कहां की जाएगी एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया…"

"सभी पार्टिसिपेंट और उनके परिवार के लिए शारदा गेस्ट हाउस में दो कमरे दो दिनों के लिए उपलब्ध रहेंगे.. जिसमें उनके रहने खाने का प्रबंध होगा परंतु आने-जाने का खर्च आपको स्वयं वहन करना होगा…."

क्लास के सारे प्रतिभागियों में खुशी की लहर दौड़ गई आखिर अपनी ट्रेनिंग के आखिरी दिन अपने परिवार के साथ होना और उनके समक्ष प्रशासनिक पद के कार्यभार ग्रहण करने की शपथ लेना सभी के लिए एक गर्व की बात थी हर कोई अपने परिवार के हम सदस्यों को उस दिन आमंत्रित करना चाहता था ।

अधिकतर प्रतिभागी अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों को बुलाने की सोच रहे थे परंतु सोनू के लिए दुविधा अलग थी एक तरफ पितातुल्य सरयू सिंह थे जिन्होंने उसकी पढ़ाई लिखाई में बहुत मदद की थी दूसरी तरफ उसकी अपनी मां पदमा जिसने उसे पाल पोस कर बड़ा किया और सबसे ज्यादा सुगना जिसके साथ रहकर उसने इस प्रशासनिक पद की तैयारियां की थी और अपनी बड़ी बहन के सानिध्य और सतत उत्साहवर्धन से आज वह इस मुकाम पर पहुंचा था।

सोनू ने उन तीनों को ही बुलाने की सोची और उसने यह संदेश तीनों तक पहुंचा दिया। उस समय संदेश पहुंचाना भी एक दुरूह कार्य परंतु टेलीफोन पर आया मैसेज लोग एक दूसरे की मदद के लिए उन तक अवश्य पहुंचा देते थे । पदमा आना तो चाहती थी परंतु मोनी को छोड़कर लखनऊ जाना यह संभव न था। एक बार के लिए पदमा के मन में आया कि वह मोनी को सुगना के पास छोड़कर लखनऊ चली जाए परंतु खेती किसानी के कार्य के कारण वह यह निर्णय न ले पाई। गांव मैं मोनी को अकेले छोड़ना उचित न था उसकी गदराई काया के कई दीवाने थे और अक्सर उस पर नजरें गड़ाए रखते थे मोनी को इनसे कोई सरोकार न था परंतु उन्हें जो मोनी से चाहिए था वह सबको पता था। वह उसकी जवानी का अपनी आंखों से ही रसास्वादन गाहे-बगाहे कर लिया करते थे।

उधर सरयू सिंह सहर्ष तैयार हो गए और सुगना भी।

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सोनू का संदेश सब सुनना के घर पहुंचा तो सबसे ज्यादा दुखी लाली थी आखिर उसने भी दो सोनू की ठीक वैसे ही सेवा की थी जैसे सुगना ने की थी अभी तो उससे कहीं ज्यादा सोनू जब बनारस पढ़ने आया था वह तब से लाने के घर आता जाता था सुगना तो बनारस कुछ वर्ष पहले ही आए थे वैसे भी लाली सोनू से ज्यादा करीब आ चुकी थी परंतु अपना-अपना होता है सोनू और सुगना बचपन से साथ रहे थे और उनके बीच की आत्मीयता बेहद गहरी थी लाली सोनू के करीब अवश्य थी पर शायद वह सुगना न थी।

ऐसा नहीं था कि सोनू ने लाली के बारे में सोचा न था। परंतु जब आपके पास विकल्प कम तो निश्चय ही चयन की प्रक्रिया आरंभ होती है और चयन निश्चित ही कुछ प्रतिभागियों के लिए दुखदाई होता है । लाली ने भी अपनी स्थिति का आकलन किया और सोनू के निर्णय को समझने का प्रयास किया । सोनू से दुखी या उसे गलत ठहराने का कोई कारण न था। लाली ने अपने दुख पर नियंत्रण किया और खुशी खुशी सुगना को लखनऊ भेजने के लिए तैयारियां कराने लगी।

सुगना के लिए अपनी ही आंखों के सामने अपने छोटे और काबिल भाई को प्रशासनिक पद की शपथ करते ग्रहण करते देखना उसके लिए खुशी की बात थी।

सुगना लाली को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी आखिर वही उसकी सुख दुख की सहेली थी परंतु यह संभव न था सारे बच्चों को और पूरे कुनबे को ले जाना संभव न था न हीं लखनऊ में रहने की व्यवस्था थी…..


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पहले के दिनों में एक दूसरे से बात कर पाने की इतनी सुविधा न थी पदमा अपने लखनऊ न जाने की बात सोनू को बता भी ना पाई उसने इतना जरूर किया कि अपने न जाने की खबर किसी हर कार्य से सलेमपुर सरयू सिंह तक पहुंचा दी सरयू सिंह कजरी को लेकर बनारस के लिए निकल पड़े..

कजरी ने सरयू सिंह से मुस्कुराते हुए कहा .. "अब त कालू मल 2 दिन अकेले ही रहीहे इनकर सेवा के करी..?"

सरयू सिंह ने लंबी सांस भरी वह कजरी के मूक प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे..

"अच्छा रउआ सुगना के ऊ (लंड) काहे ना छूवे ना देवेनी? पहले तो दिन भर उतरा के गोदी में लेले राहत रहनी अब अइसन का हो गईल बा…?

दरअसल सुगना से कई दिनों दूर रहने के पश्चात सरयू सिंह धीरे-धीरे अपनी आत्मग्लानि को कम करने में सफल रहे थे और धीरे-धीरे उनका लंड स्त्री योनि की तलाश में सर उठा कर घूमने लगा था..

सरयू सिंह के धोती में चाहे जितनी ताकत छुपी हो पर चेहरे पर आए उम्र का असर उनकी मर्दाना ताकत पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता था। भला क्यों कर कोई तरुणी 5२ - 5४ वर्ष के मर्द से संभोग की लालसा रख उनके समीप आएगी?


परंतु कजरी सरयू सिंह के मन और विचार दोनों से भलीभांति वाकिफ थी उनके धोती में आ रहे उबाल को संभालना उसे बखूबी आता था। अब वह संभोग तो नहीं कर सकती थी परंतु अपने कुशल हाथों से सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करना उसे बखूबी आता था। जिस हस्तमैथुन क्रिया को उसने कुछ वर्षों से छोड़ दिया था उसने [b]सरयू सिंह की इच्छा और खुशी का मान रखने के लिए वह अपने हाथों से सरयू सिंह के लंड को सहलाना और उसका वीर्यपात कराने लगी थी। सरयू सिंह को कजरी का साथ इसीलिए बेहद पसंद था वह उसे एक पल भी नहीं छोड़ना चाहते थे।

...[/b]


सोनू की प्रसिद्धि गांव में तेजी से बढ़ रही थी और उसके लिए आने वाले रिश्तो की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी शरीर सिंह बनारस आते समय 46 लड़कियों की फोटो अपने साथ लेकर आ रहे थे..

बनारस स्टेशन पर उतरकर सरयू सिंह ने ऑटो किया और सुगना के घर की तरफ चल पड़े उधर सुगना और लाली अपने घर के बाहर बैठे धूप ताप रहे थे जैसे ही ऑटो उनके घर की तरफ आता दिखाई पड़ा लाली और सुगना सतर्क हो गए।


सर पर से हटे पल्लू ने अपनी जगह पकड़ ली और सुगना के सुंदर मुखड़े को और भी सुंदर बना दिया। सरयू सिंह आ चुके थे ऑटो से उतर कर वह अंदर आ गए। सुगना ने उनके और कजरी के चरण छुए…और सुगना कजरी के गले लग गई। सुगना के आलिंगन का सुख सरयू सिंह ने स्वयं छोड़ा था और अब सुगना भी उनकी मनोदशा समझ चुकी थी ।

सरयू सिंह अभी भी उसके ख्वाबों में आकर उसे गुदगुदाते उसे छूते उसे सहलाते और उसकी उत्तेजना जागृत करते परंतु हकीकत सुगना भी जानती थी कि जो कामसुख उसने सरयू सिंह के साथ उठाए थे अब शायद वह न उचित और न संभव । सुगना एक आदर्श बहू के रूप में व्यवहार कर रही थी और सरयू सिंह भी अपना रिश्ता निभा रहे थे जो सिर्फ वही जानते थे…

सुगना को जब पता चला उसकी मां पदमा लखनऊ नहीं जा रही है उसने तुरंत ही लाली से कहा यह लाली तू भी संग चल

लाली पहले निमंत्रण न मिलने से दुखी थी और अब वह पदमा की जगह जाने को तैयार ना हुई उसने अपने मनोभावों छुपा लिए और सहजता से बोली अरे अपना सारा बच्चा लोग के के देखी कजरी में सुगना का पक्ष लिया परंतु लाली तब भी ना माने और अंततः बारी सोनी कि आई सोनी जाना तो चाहती थी परंतु उसकी नर्सिंग कॉलेज में कुछ प्रोग्राम था अंततः जाने के लिए मना कर दिया।


सरयू सिंह और सुगना लखनऊ जाने के लिए अपनी तैयारियां करने लगे… दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु को भी सुगना के साथ लखनऊ जाना था। रतन की पुत्री मालती ने लाली के बच्चों के साथ रहना खेलना उचित समझा और कजरी के सानिध्य में 2 दिन रहने के लिए स्वत: ही हामी भर दी….

सरयू सिंह ने आज भी सोनी की गदराई जवानी को देखा बल्कि उसके असर को अपने लंड पर भी बखूबी महसूस किया…. उनका कामुक मन सुगना की बहन सोनी को अपनी साली के रूप में देख लेता था..परंतु जब उन्हें सुगना का ध्यान आता वह तुरंत ही वापस सतर्क हो अपनी कुत्सित सोच पर लगाम लगा लेते।


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अगली सुबह सरयू सिंह अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए को अपनी गोद में लिए स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। पास खड़ी सुगना अपना घुंघट ओढ़े मधु को अपनी गोद में लिए हुए थी…

नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…

एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..
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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 10-05-2022, 07:23 PM



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