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Adultery लुक्का - छीप्पी
#8
(अपडेट -- ६)

-- लुक्का - छीप्पी --


पानी देते हुए मंजू नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है। बबलू भी खाट पर बैठा पानी पीते हुए बोला--


बबलू -- बु...बुआ अम्मा को मत बताना! तेरे हांथ जोड़ता हूँ ।


बबलू की गीड़गीड़ाहट सुनकर मंजू थोड़ा मुस्कुरायी और फीर बोली...


मंजू -- अरे पगले, कब तक छुपायेगा अपनी अम्मा से। आज नही तो कल बताना ही पड़ेगा ना। की तू काज़ल को पसंद करता है।


बबलू पानी पीकर लोटे को नीचे ज़मीन पर रखते हुए बोला...


बबलू -- बात तो ठीक है बुआ। लेकीन जब तक काज़ल भी मुझे पसंद नही करने लगती, तब तक मैं अम्मा से ये बात नही बता सकता...


'और बताना भी मत,'

ये आवाज़ काज़ल की थी, जो अंदर वाले दरवाज़े पर खड़ी होकर बोली थी...


काजल -- क्यूंकी मैं तूझे कभी पसंद नही करने वाली।


काज़ल की बात सुनकर, मंजू ने अपना झट से काजल को डाटते हुए बोली...


मंजू -- चूप कर तू! कुछ भी बड़बड़ाये जा रही है। अरे का कमी है बबलू में? ५ बीघा खेत भी है। और तूझे पसंद भी करता है।


काजल -- पसंद तो मुझे राज़न भी करता है बुआ, और वो तो सरपंच का बेटा है। ५ नही ५0 बीघा जमीन है, और उपर से पढ़ा लीखा भी। मैं भी १२वी तक पढ़ी हूँ। और ये कमीना तो, ८वी फेल है। मैं भला ऐसे लड़के के सांथ ज़ींदगी कैसे बीता सकती हूँ। जो मुझसे भी कम पढ़ा लीखा है।


काजल की बात सुनकर मंजू कुछ बोलने ही वाली थी की, बबलू ने उसे रोकते हुए कहा...


बबलू -- रुक जा बुआ। काज़ल ठीक कह रही है। मैने ही कभी इस बात पर ध्यान नही दीया था। सच ही बोल रही है। मैं ८वी फेल और ये १२वी पास, जोड़ी ठीक नही कुछ।


ये कहते हुए, बबलू खाट पर से उठा और काजल के नज़दीक जाते हुए रुक कर बोला--


बबलू -- तू...तू ठीक कहती है काज़ल, ते...तेरे लीए राजन ही ठीक है। ५0 बीघा जमीन, पढ़ा लीखा। सही है...! म...मैं अब तेरे पीछे नही आउगां। पर तूझसे एक बात बोलूगा की, क्या हम दोस्त बन कर नही रह सकते?


बबलू के आवाज से साफ पता चला रहा था की, ये उसके दील टुटने की आवाज़ है। आवाज़ में हकलापन उसके दील के दर्द को बयां कर रहे थें। जीसे मंजू ने तो भांप लीया था। मगर शायद काज़ल को उसके दील की कुछ पड़ी ही ना थी। काज़ल के चेहरे पर मुस्कान बीखर पड़ी...


काज़ल -- अरे बुद्धू, मैं तेरी कोयी दुश्मन थोड़ी हूँ॥ वो तो तू मेरे आगे-पछे कुत्ते की तरह घूमता था। इसलीए मैं तुझे पसंद नही करती थी। दोस्ती करने में मुझे कोई प्रॉबलम नही है। आज से हम अच्छे दोस्त है।

ये बोलकर काज़ल मुस्कुरा पड़ती है। काजल का मुस्कुराता हुआ प्यारा चेहरा देखकर बबलू भी मुस्कुराते हुए बोला...


बबलू -- पहली बार तूने मुझसे ढंग से सीधे मुह बात की है पगली। मुझे पता होता की दोस्ती करने पर तू उल्टा से सीधा हो जायेगी तो मैं कब की दोस्ती कर ली होती पगली।


बबलू की बात सुनकर, काज़ल मुह बनाते हुए बोली...

काजल -- मैं पगली नही हूँ, हां।

ये वाक्या काज़ल ने इतनी नटखटी अंदाज़ में बोली थी की, बबलू का मन लुभा गया काज़ल की अदा पर...

लेकीन खुद को संभालते हुए वो भी कुछ अंदाज में बोला...


बबलू -- बड़ी आयी...! मुझे पागल बोलती है तो नही। खुद पर पड़ी तो मुहं टेढ़ा हो गया।


बबलू की बात सुनकर, काज़ल कुछ बोलने ही वाली थी की...तब तक मंजू ने बीच में ही बात काटते हुए बोली...


मंजू -- अरे...अरे, तुम दोनो का फीर से झगड़ा शुरु हो गया। बबलू तू बैठ मैं तूझे कुछ खाने को लेकर आती हूँ।


बबलू चौंकते हुए...

बबलू -- अरे नही बुआ, मैं घर जा रहा हूँ, नही तो अम्मा आज़ आसमान सर पर उठा लेगी...बाद में कभी खा लूंगा। अभी तो मुझे घर जाना है।


और ये बोलकर बबलू वहाँ से चला जाता है।

@@@@@

इधर घर पर सुधा खाट पर बैठी, बबलू का इंतज़ार कर रही थी की, तभी बबलू आ गया...

बबलू को देखते ही, सुधा उसे आँखें तरेरने लगी। और ये देखकर बबलू सकते में आ जाता है। तभी...


सुधा -- खुब आवारों की तरह घूम लें। मेरी बात का तुझ पर कुछ असर तो होता नही है ना। इतनी लू चल रही है, फीर भी बाहर घूम रहा है।

बबलू का मन वैसे ही उतरा था। आज उसका प्यार जो दूर हो गया था। इसलीए वो कुछ बोला नही और चुप-चाप खड़ा रहा। बबलू को यूँ चुप खड़ा देख...


बबलू -- खाली मुह झुका कर खड़ा रह बस, पता है ना ,अम्मा है थोड़ी देर चील्लायेगी फीर चुप हो जायेगी।

इस बार बबलू ने अपना मुह खोला और...

बबलू -- अम्मा...! मैं आ रहा था। वो मैं थोड़ा सुमन काकी के घर चला गया था। इसी लीए देरी हो गयी।

सुधा -- अच्छा...! तो तू सुमन के घर गया था। पर सुमन तो मायके गयी है, फीर कीससे मीलने गया था? काज़ल से? वाह! तू तो बहुत बड़ा कमीना नीकला रे, मैं तो तूझे भोला समझती थी। मौका देखकर घुस गया घर में॥


बबलू को इस वक्त बात करने का ज़रा भी मन न था। उसे अपनी माँ की बातों पर चीड़चीड़ापन आने लगा...

बबलू -- अरे अम्मा! ऐसा कुछ नही है! मंजू बुआ भी है घर पर, और मैने तुझे बताया था ना की, मुझे काज़ल पसंद नही।


बबलू की बात सुनकर, सुधा मन ही मन मुस्कुरायी और...

सुधा -- काज़ल पसंद नही, या काज़ल को राज़न पसंद है ।

राजन का नाम सुनकर, बबलू के अंदर गुस्से का लावा भड़कने लगा। पर गुस्से को बड़ी मुस्कील से दबाते हुए...


बबलू -- पता है तो क्यूँ परेशान कर रही है मुझे? और वैसे भी आज मेरी और काजल की बात हो गयी है। अब हम-दोनो एक अच्छे दोस्त है बस, और कुछ नही।

और ये कहते हुए बबलू अपने कमरे में चला जाता है।

सुधा उसे जाते हुए देखती रहती है। सुधा को पता था की, बबलू अंदर से दुखी है। और ये सोंचकर वो भी उदास हो जाती है, और घर से बाहर नीकलते हुए पेंड़ की छांव में खाट बीछा कर बैठ जाती है। और सोंचते हुए...

'ये काज़ल को भी पता नही क्या हो गया है? मेरा बेटा उससे इतना प्यार करता है, पर उसे मेरे बेटे की तड़प का कुछ पड़ी ही नही।'


और ये सोचते हुए अचानक से उसे सरपंच की याद आ जाती है, और वो फीर से सोंचने लगती है...


'जीस तरह मेरा बेटा, काजल से प्यार करता है। उसी तरह सरपंच भी तो मुझसे प्यार करते हैं। अगर मैं सरपंच से प्यार नही करती, तो काज़ल भी गलत नही है। जब काज़ल मेरे बेटे से प्यार ही नही करती तो, वो हाँ कैसे बोल सकती है? पर मेरे बेटे में कमी क्या है? जो वो उससे प्यार नही करती। मेरा सरपंच जी को प्यार न करना उसका कारण ये है की मैं वीधवा हूँ। मान-मर्यादा इज्जत ये सब मेरे हांथ में है। और एक वीधवा के लीए ये सब करना ठीक नही।'


खुद के ही सवालों में उलझी थी सुधा, तभी उसे कीसी के आवाज़ ने झींझोड़ा...


'अरे सुधा...! कहाँ खोयी...खोयी सी है?'

सुधा ने सर घुमाते हुए पाया की, ये माला की आवाज़ थी। जो अब तक खाट पर बैठ गयी थी।

सुधा -- अरे कहीं नही रे...बस ऐसे ही।

माला -- अच्छा! मुझे लगा की, सरपंच जी के खयालो में खोयी है।


सुधा ये सुनकर मुह बनाते हुए...

सुधा -- आ गयी सरपंच जी की चमची। भला मैं क्यूँ सोंचने लगी सरपंच जी का बारे में।


माला मुस्कुराते हुए...अपने ब्लाउज़ में से कुछ नीकालते हुए...

सुधा -- अब मुझे क्या पता?   सरपंच जी ने पायल भेजा है तेरे लीए।

ये कहकर माला ने चमचमाती हुई पायल सुधा के हांथो में रख देती है। पायल इतनी खुबसूरत थी की, सुधा एक पल के लीए उस पायल को देखती रह जाती है। और सुधा का चेहरा देखकर माला बोली...


माला -- का देख रही है सुधा? सुंदर है ना?

सुधा अभी भी हैरत से देखते हुए बोली...

सुधा -- दैया रे...ई तो बहुत महगां लग रहा है।


माला -- सरपंच जी ने दीया है तो, कीमती तो होगा ही।


माला की बात सुनकर, सुधा माला की तरफ़ देखते हुए बोली...

सुधा -- पर माला, ये सब क्यूँ? क्या अब सरपंच जी मेरी कीमत लगायेगें?

सुधा की बात पर माला झट से बोल पड़ी...


माला -- अरे नही सुधा! ये क्या बोल रही है तू? सरपंच जी तो ये पायल वापस सोनार को लौटा रहे थे। पर मैने ही रोक दीया। पूछने पर सरपंच जी ने बताया की...सुधा को ये सब अच्छा नही लगेगा! उसे लगेगा की मैं उसे लालच दे रहा हूँ, तो मैं नही चाहता की, सुधा की नज़रों में मेरी जो भी थोड़ी बहुत इज्जत बची है, वो भी खत्म हो जाये।

और देख ना वही हुआ! तूने वही सोंचा जो सरपंच जी ने कहा था।


सुधा तो सोंच में पड़ गयी...!

सुधा -- सर में सरपंच जी ने ऐसा कहा?

माला -- हां पगली...! तू माने या ना माने। पर सरपंच जी तूझे बेपनाह प्यार करते है। पर तू है की, सरपंच जी को तड़पा रही है।

खैर अब जब तूझे ये पायल नही चाहिए तो, मैं सरपंच जी को वापस कर दूंगी।



और ये कहते हुए माला सुधा के हांथ से पायल लेते हुए उठ कर जाने लगती है की तभी...


सुधा -- माला...रुक!

माला सुधा की आवाज़ सुनकर रुक जाती है, सुधा खड़ी होते हुए माला के पास जाती है और...


सुधा -- लगता है, सरपंच जी ऐसे नही सुधरेगें। अब गाँव के सामने बेइज्जत करना ही पड़ेगा। आज एक आखीरी बार उन्हे समझाउगीं। उनसे कहना रात १२ बजे पुरानी कॉलेज पर मीले। और सच बोल रही हूँ माला, ये आखीरी बार समझाउगी। अब जा...! जाकर बोल देना।


माला अपना सा मुह बनाये वहां से चली जाती है।

@@@@@

शाम के ५ बज रहे थे। भानू अपने खेत में बने झोपड़े में खाट पर बैठा था। तभी झोपड़े का दरवाज़ा खुला, भानू ने सर उठा कर देखा तो सामने रीता खड़ी थी।

अपनी बेटी को देखकर, भानू अपना सर नीचे कर लेता है। ये देख कर रीता अपने बापू के नज़दीक आते हुए खड़ी हो जाती है। और चुलबुली आवाज़ में बोली...


रीता -- बापू तुम कहा घूम रहे हो? खाना खाने क्यूँ नही आये?

अपनी बेटी की बात सुनकर भानू अपना सर नीचे कीये ही दबी आवाज़ में बोला...


भानू -- का मुह लेकर आउँ बेटी? तेरी अम्मा ने मुझे ज़लील कर दीया है। वैसे गलती मेरी ही है बेटी! पर तूझे अपनी अम्मा से ये बात बोलने के बजाय मुझसे बोल देती तो। मैं आगे से ऐसी गलती नही करता, और नाही जलील होता।

रीता -- ओहो...बापू! तुम भी ना। मैने तुमसे इस लीए कुछ नही कहा, क्यूँकी मैं चाहती हूँ की मेरा बापू ये गलती करे।


रीता के ऐसा बोलते ही, भानू का दीमाग झन्ना गया। और कुछ बोलने के लीए जैसे ही अपना सर उठाया ही था की, उसे जोर का झटका लगा।

रीता सफेद रंग की ब्रा में खड़ी थी। उसका कमीज़ उसके एक हाँथ में था। भानू का सर और ज्यादा तब चकरा गया जब उसने देखा की, रीता ने ब्रा के अंदर रोटी भरी हुई थी। दोनो चूंचको के उपर रोटी और ब्रा का पर्दा था। पर फीर भी रीता के चूंचें काफी बड़े लग रहे थे।


अपनी बेटी को इस अवस्था में देखकर, भानू के हैरत में तो था पर अंदर खुन भी उबलने लगा था। भानू अपना मुह फाड़े रीता को देख रहा था की तभी रीता बोली...

रीता -- अब का करती बापू? घर में खाना खत्म हो चूका था। दो रोटी बची थी। अब दो रोटी हांथ में लेकर आती तो अच्छा नही लगता ना। इसलीए यहां छुपा कर लायी हूँ। अम्मा से मत बताना बापू।


भानू ये सुनते हुए, हा में सर हीलाते हुए स्वीकृती देता है। ये देखकर रीता खुश होते हुए...झपट कर अपने बापू के पास खाट पर बैठते हुए बोली--


रीता -- मेरे प्यारे बापू!! चलो अब जल्दी से रोटी नीकालो और खा लो, भूंख लगी होगी तुमको।
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RE: लुक्का - छीप्पी - by dilbarraj1 - 06-05-2022, 11:59 PM



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