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Adultery अनैतिक
#2
मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा. चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती हे. हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हे. रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था. मैं जब छोटा था तब आशु को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग खडी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर खडी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती. इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा आशु को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था.
शाम ४ बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब १० मिनट ही दूर था. मैंने प्रकाश को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और गोपाल भैया को आगे की लाइन में बिठा दिया. मुझे, आशु, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ. इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था. रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए आशु का हाथ पकड़ लिया. पहले तो आशु हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी. मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था. हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे. जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिये. पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर आशु को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे. मैं आशु के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, 'अश्विनी तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!' आशु की एक दोस्त ने कहा. 'चल हट!' अश्विनी ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा. 'सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!' ये कहते हुए उसने आशु के कूल्हों को सहलाया. 'तेरी स्तन भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?' आशु ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा. 'ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!' तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था. जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने आशु का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा. आशु पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पडी. भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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अनैतिक - by neerathemall - 06-05-2022, 02:46 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 06-05-2022, 02:47 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 07-05-2022, 07:49 AM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 19-05-2022, 03:55 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 19-05-2022, 03:56 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 01-02-2024, 04:48 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 19-05-2022, 03:57 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 01-02-2024, 10:39 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 02-02-2024, 08:54 AM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 06-02-2024, 11:01 AM
RE: अनैतिक - by sri7869 - 01-05-2024, 05:34 PM
RE: अनैतिक - by neerathemall - 02-05-2024, 12:26 AM



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