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Adultery किसी और के धोखे में चुद गई मैं !
#12
सांत्वना की सहलाहटें, स्पर्श, आश्वासन बरसाते चुम्बन धीरे धीरे असर कर रहे थे। उस आग की जलन कुछ कुछ घट रही थी। हालाँकि दर्द अब भी बहुत था। मगर उसके प्यार का बल पाकर सहने की ताकत आ रही थी। बिल्कुल औरत की तरह जो मर्द के प्यार के बल पर बड़े बड़े दर्द सह जाती है। मैं अब औरत बन गई थी। मगर क्या वह मेरा मर्द था?

एक दिया-सा जल रहा था। मैं जल रही थी। जलन मेरे जांघों के बीच हो रही थी जहाँ उसकी विजय पताका पूरे जोश से फहरा रही थी जिसका खंभा मेरे गर्भ तक बेधता हुआ गड़ा हुआ था। मैं उसकी आरती में दिए-सी असहाय जल रही थी। हारी हुई, विवश जलन। जलन मेरे भीतर हो रही थी। हालाँकि योनि की जलन अब घट रही थी। इसमें उसका दोष नहीं था, मैंने खुद इसे चुना था, मोना बनकर।

उसका शिश्न मेरे भीतर हिला। इस बार दर्द नहीं हुआ। वह थोड़ा बाहर निकला और फिर बिना किसी खास बाधा के घुस गया। गर्भ के मुँह पर दस्तक पड़ी। डरकर फिर मैंने साँस रोक ली। मगर कुछ खास दर्द नहीं हुआ। वह कुछ ठहरकर फिर थोड़ा बाहर सरका। पहले से ज्यादा। उसके साथ उसके लिंग पर कसी मेरी योनि की दीवारें बाहर की ओर खिंच गई। मेरी भीतरी कोमल नितम्बों पर दबाव पड़ा और वह मोटा शिश्न मेरे अंदर रगड़ता हुआ फिर भीतर पैठ गया। अब मेरी योनि फैल रही थी। वह धीरे धीरे धक्के देने लगा। इस बार दर्द थोड़ा कम हुआ। मेरा भय घटा। अब सह सकूंगी। धीरे धीरे धक्कों का जोर बढ़ने लगा। उसका शिश्न मेरी पिच्छल सुरंग में जोर जोर रगडता फिसलने लगा। वह बाहर भीतर हो रहा था और योनि के संकुचन की रही सही सलवटें मिटा रहा था। मैं सह रही थी। पहली बार फैली योनि की तड़तड़ाहट बरकरार थी। फिर भी उसके धीरज और कोमलता से पेश आने पर मुझे दया आई। सहानुभूति में ही मैंने उसके धक्के से मिलने के लिए अपने नितम्ब उचकाए। वह उत्साह से भर गया। और जोर जोर धक्के लगाने लगा। मेरी योनि में दर्द के बीच भी आनंद की हल्की तरंगें उठने लगी। वह और जोर जोर से धक्के मारने लगा। उसका शिश्न मेरे छेद के मुँह तक आता और फिर सरसराकर भीतर घुस जाता। जब बाहर निकलता तो राहत मिलती और भीतर जाता तो दर्द होता, हालाँकि पहली बार की तरह असह्य नहीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: किसी और के धोखे में चुद गई मैं ! - by neerathemall - 04-05-2022, 04:52 PM



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