04-05-2022, 04:45 PM
वह थोड़ा ऊपर उठा और मुझपर से नीचे उतरा। उसने मेरे पाँव घुटनों से मोड़ दिये और घुटनों को किताब के पन्नों की तरह फैला दिया। गंतव्य को टटोला। लिंग को हाथ से पकड़कर छेद के मुँह पर लाया। वहाँ उसने ऊपर नीचे रगड़कर रस में अच्छी तरह भिंगोया। मैं दम साधे प्रतीक्षारत थी। क्या करता है। मेरे पैरों के पंजे मेरे नितम्बों के पास नमस्कार की मुद्रा में जुड़े थे। वह लिंग के मुंह को मेरे छेद पर लाकर टिकाया और हल्के से ठेला। तब मुझे उसके थूथन के मोटेपन का पता चला और मैं डर गई। इतना मोटा मेरे छोटे छेद के अंदर कैसे जाएगा? मेरे छेद का मुँह फैला और उसपर आकर उसका शिश्न टिक गया। अब उसके इधर उधर फिसल जाने का डर नहीं था। शिश्न को वहीं टिकाए उसने हाथ हटाया और मेरे उपर झुक गया। मेरे बगलों के नीचे हाथ घुसाकर उसने मेरे कंघों को उपर से जकड़ लिया। उसके वजन से ही शिश्न अंदर धँसने लगा।
अब मैं जा रही थी। लुट रही थी। चोर मेरा सबसे अनमोल मेरे हाथों से ही धीरे धीरे छीन रहा था। मेरे राजीनामे के साथ। और मैं कुछ नहीं कर रही थी। विरोध नहीं करके उसे छीनने में मदद कर रही थी। अंधेरा मुझे लुट जाने के लिए प्रेरित कर रहा था। किसे पता चलेगा? फिर प्राब्लम क्या है? रुकना किस लिए? अंधेरा मेरी इच्छा के विरुध्द मेरी मदद कर मुझे छल रहा था। अंधेरा उसे भी छल रहा था क्योंकि मैं उसकी मोना नहीं थी, मगर उसकी मदद भी कर रहा था क्योंकि उसने मुझे निश्चिंत करके मुझको उसे उपलब्ध करा दिया था। कुंवारी लड़की की सबसे अनमोल चीज। कितनी बड़ी भेंट वह अनजाने में पा रहा था ! जानते हुए में क्या मैं उसे हाथ भी लगाने देती! हाथ लगाना तो दूर अपने से बात करने के लिए भी तरसाती। मगर अनजाना होनेपर मैं क्या कर रही थी। वह मेरा कौमार्य भंग कर रहा था और मैं सहयोग कर रही थी।
उसका लिंग मेरी योनि के मुँह पर दस्तक दे रहा था।
अब मैं जा रही थी। लुट रही थी। चोर मेरा सबसे अनमोल मेरे हाथों से ही धीरे धीरे छीन रहा था। मेरे राजीनामे के साथ। और मैं कुछ नहीं कर रही थी। विरोध नहीं करके उसे छीनने में मदद कर रही थी। अंधेरा मुझे लुट जाने के लिए प्रेरित कर रहा था। किसे पता चलेगा? फिर प्राब्लम क्या है? रुकना किस लिए? अंधेरा मेरी इच्छा के विरुध्द मेरी मदद कर मुझे छल रहा था। अंधेरा उसे भी छल रहा था क्योंकि मैं उसकी मोना नहीं थी, मगर उसकी मदद भी कर रहा था क्योंकि उसने मुझे निश्चिंत करके मुझको उसे उपलब्ध करा दिया था। कुंवारी लड़की की सबसे अनमोल चीज। कितनी बड़ी भेंट वह अनजाने में पा रहा था ! जानते हुए में क्या मैं उसे हाथ भी लगाने देती! हाथ लगाना तो दूर अपने से बात करने के लिए भी तरसाती। मगर अनजाना होनेपर मैं क्या कर रही थी। वह मेरा कौमार्य भंग कर रहा था और मैं सहयोग कर रही थी।
उसका लिंग मेरी योनि के मुँह पर दस्तक दे रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.