04-05-2022, 04:43 PM
”मोना!”
मैं एकदम चौंक पड़ी। अभी कुछ बोलती ही कि एक हाथ आकर मेरे मुँह पर बैठ गया। कान में कोई फुसफुसाया – ”’जानेमन, मैं हूँ, तरुण। कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।”
मैं सोचने लगी। तरुण, वही स्मार्ट-सा लड़का जो लडकियों के बहुत आगे पीछे फिर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे मोना समझ रहा है। मैंने सोचा पता तो चले कि आखिर मोना क्या गुल खिला रही है।
”मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तडपाया।”
मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। मोना गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है?। मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और मासूम बनती थी। दरअसल इस कमरे में आज उसे ही सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद बहुत आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी, इसलिए मैं उसी के कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढँके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा भी नहीं। सोचा होगी कोई। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना हो गई।
“मोना जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।” उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था। “आइ लव यू।” उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धडक रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।
वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौडे की तरह बजने लगी। “बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।” उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया। “जानेमन आई लव यू, आई लव यू। घबराओ मत।”
मेरा मन कह रहा था रिया, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि छुप चुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने! मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ मन यह भी कह रहा था कि देखूँ तो सही यह आगे क्या करता है। डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही थी।
उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सी लगी। हालाँकि उसमें एैसा कुछ अच्छा भी नहीं था, पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वहीं वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही! मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए थी। मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी … कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए से आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूमने लगा। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसके हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।
उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे तो पता ही नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते से टकरा रहा था। पहली बार किसी पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श..... मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य फिर भी नहीं था। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर...
मैं एकदम चौंक पड़ी। अभी कुछ बोलती ही कि एक हाथ आकर मेरे मुँह पर बैठ गया। कान में कोई फुसफुसाया – ”’जानेमन, मैं हूँ, तरुण। कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।”
मैं सोचने लगी। तरुण, वही स्मार्ट-सा लड़का जो लडकियों के बहुत आगे पीछे फिर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे मोना समझ रहा है। मैंने सोचा पता तो चले कि आखिर मोना क्या गुल खिला रही है।
”मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तडपाया।”
मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे। मोना गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है?। मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी! मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और मासूम बनती थी। दरअसल इस कमरे में आज उसे ही सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद बहुत आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी, इसलिए मैं उसी के कमरे में आकर सो गई थी। चादर ढँके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा भी नहीं। सोचा होगी कोई। शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना हो गई।
“मोना जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।” उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था। “आइ लव यू।” उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया। चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धडक रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा। मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।
वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया। उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौडे की तरह बजने लगी। “बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।” उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया। “जानेमन आई लव यू, आई लव यू। घबराओ मत।”
मेरा मन कह रहा था रिया, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि छुप चुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने! मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ मन यह भी कह रहा था कि देखूँ तो सही यह आगे क्या करता है। डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही थी।
उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सी लगी। हालाँकि उसमें एैसा कुछ अच्छा भी नहीं था, पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वहीं वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही! मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए थी। मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी … कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए से आकर मेरे मुँह पर जम गए। मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूमने लगा। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा। मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसके हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।
उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे तो पता ही नहीं चला। उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते से टकरा रहा था। पहली बार किसी पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श..... मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य फिर भी नहीं था। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर...
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.