05-05-2022, 11:12 PM
अपडेट...४
दोपहर हो गयी थी, गर्मी का मौसम था तो, बाहर लू चल रही थी। सुधा घर पर अकेली थी। बबलू गाँव के पुरानी कॉलेज की तरफ राजू के सांथ गया था।
सुधा ओसार में लेटी थी, गर्मी की वज़ह से उसे पसीने आ रहे थे। वो एक हांथ में लीए खाट पर लेटी पंखा डोलाते हुए खुद से बोली...
सुधा -- इतनी भींषण गर्मी पड़ रही है, और ये लड़का घूमने नीकला है। आने दो उसे आज खबर लेती हूँ उसकी।
खुद से कहते हुए, सुधा ने अपनी साड़ी का पल्लु हटा कर बगल में कर दीया। उसका गोरा पेट पसीने में चमक रहा था। उसके ब्लाउज़ भी कुछ हद तक भीग कर उसकी मस्तानी और पहाड़ी जैसी चूंचीयों से चीपक गये थे। ब्लाउज के अंदर ब्रा के उभार साफ प्रदर्शीत हो रहे थे। और चूंचीयों का मांसल उभार ब्लाउज़ से बाहर नीकल कर झांक रहे थे।
सुधा जीस अवस्था में लेटी थी। उस अवस्था में वो कामुकता की देवी लग रही थी। अगर कोई भी उसे इस हालत में देख लेता तो होश खो देता।
सुधा लेटे-लेटे पंखा डोला रही थी, मगर गर्मी इतनी थी की, पंखे की हवा से उसे चैन नही मीला। उसने पंखे को एक तरफ रख दीया, और अपनी सारी खोलने लगी,,
कुछ ही पल में सुधा के बदन पर से सारी भी अलग हो गयी थी। और वो अब सीर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में लेटी थी।
कमर पर बधां पेटीकोट उसके चौंड़े कुल्हे को अत्याधीक आकर्षक बना रहा था। पेटीकोट के नाड़ा बांधने वाले जगह पर कुछ ५ से ६ इंच तक का गैप था। जहां से नाड़ा नीकलता है। और उसी गैप में से सुधा की सफेद रंग की कच्छी दृश्यमान हो रही थी। हल्की सी ही सही मगर उस कच्छी को कोइ अगर इस समय देख लेता तो, लंड अकड़ जाता।
सुधा को अब कुछ गर्मी से राहत मीली थी। उसने अपनी आँखे बंद कर ली, और पंखे डोलाने लगी। मगर वो शायद भूल गयी थी, की उसने दरवाज़ा बंद नही कीया था।
सुधा तो पंखा डोलाते हुए लेटी थी, मगर तभी अचानक से दरवाज़ा खुला, सुधा को लगा की बबलू है। और वो वैसे ही लेटी अपनी आँखें बंद कीये बोली-
सुधा -- आ गया! इतनी गर्मी है बाहर लू चल रही है। और तू है की घूम रहा है?
ये बोलकर सुधा चुप हो जाती है। और पंखा डोलाने लगती है। जब उसे कुछ देर से कोई जवाब नही मीला तो...
सुधा -- कुछ बोलेगा भी, या चुप ही रहेगा? चल अच्छा ठीक है। अब बाहर मत जाना,।
और ये बोलकर सुधा ने अपनी आँखें जैसे ही खोली, उसके सर से आसमान उड़ गया हो मानो, वो सोच रही थी की, बबलू होगा मगर सामने तो सरपंच खड़ा था। और अपनी आँखे फाड़े सुधा के कामुक जीस्म को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था।
सुधा भी एक पल के लीए स्तब्ध रह गयी, उसे अभी भी अपनी अवस्था के बारे में चेतना ना थी। वो भी सरपंच को देखकर चौंक गयी थी। तभी अचानक सुधा की नज़र सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से पर पड़ी। तो उसका मुह खुला का खुला रह गया।
सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से में जोर-जोर की हलचल हो रही थी। सुधा को समझते देर ना लगी की, ये सरपंच का लंड है। सुधा ने झट से अपनी नज़र वहां से हटा लीया, और जैसे ही उसे अपनी अवस्था का ज्ञात हुआ, वो हड़बड़ाते हुए खाट पर पड़ी अपनी सारी उठाते हुए खुद को ढकते हुए खड़ी हो गयी...और वो गुस्से में आँखे लाल करते हुए बोली--
सुधा -- आप सच में पागल हो गये हैं का सरपंच जी? बेशर्मो की तरह मेरे घर में घुस आये और मुझे ऐसी नज़रों से देख रहे...छी: ! मैं तो आपको भला आदमी समझती थी, पर तुम तो हैवान हो।
कहते हुए सुधा अपने आप को अच्छे से ढकने लगी। वहां खड़ा सरपंच सुधा का गुस्सा देखकर बोला--
सरपंच -- माफ़ करना सुधा, मैं अचानक से घर में घुस आया। पर मुझे जरा भी अंदाजा न था की, तुम इस अवस्था में होगी। मुझे लगा बबलू भी घर पर होगा। इसलीए मैं...मेरी गलती को माफ़ कर दो सुधा।
सुधा -- माफ़ कर दूँ, कीतनी बार माफ़ कर दूँ? कल रात को ही बोली थी की.....मेरा पीछा छोड़ दो, पर आप आज़ फीर से आ गये।
सुधा की बात सुनते हुए, सरपंच ने अपने कुर्ते के जेब में हांथ डालते हुए कुछ नीकलते हुए बोला--
सरपंच -- मैं तो ये तुम्हारी चैन लौटाने आया था सुधा। शायद तुम कल फीलम देखने आयी थी तो गीर गयी थी।
सरपंच की बात सुनते ही, सुधा ने एक हांथ से अपनी गर्दन को टटोला तो पायी, की उसकी गर्दन में चेन नही था। सुधा कुछ बोलती, उससे पहले ही सरपंच ने चेन को पास में रखे मेज़ पर रख दीया। और दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए रुक कर बोला-
सरपंच -- एक बार फीर से माफी मांगता हूं सुधा।
और कहते हुए...सरपंच घर के बाहर चला गया। सुधा वही खड़ी दरवाजे की तरफ मुर्ती बने देखती रहती है.....
@@@@@
इधर बबलू, राजू के सांथ पुरानी कॉलेज के एक पेंड़ के नीचे बैठा था। कॉलेज के चारो तरफ उंची-उंची चहरदीवाल खड़ी थी। इस लीए लू का हवा भी उतना नही लग रहा था।
ठंढी हवाएं लेते हुए, बबलू ने राजू की तरफ देखते हुए कहा-
बबलू -- यार राजू, ये मादरचोद राजन की माँ चोदने का मन कर रहा है मेरा।
अचानक! से राजू हसंने लगा, शायद वो बबलू की बात पर ही हसं रहा था। बबलू उसको हसंते देख...
बबलू -- हसं क्यूँ रहा है? मजाक लग रहा है क्या तुझे?
ये सुनकर राजू बोला...
राजू -- अबे वो सरपंच की औरत है। और तू उसे चोदेगा? वैसे माल तो बहुत करारी है, चोदने में तो मजा ही आ जायेगा! पर वो हांथ नही आने वाली...! कुछ उल्टा-सीधा हुआ तो बदनामी होगी वो अलग सरपंच के लट्ठेर गांड मार देंगे...समझा! अपनी नही तो सुधा काकी के इज्जत के बारे में सोंच और भूल जा।
राजू की बात पर बबलू सोंच में पड़ गया। और थोड़ी देर बात बोला...
बबलू -- सही कह रहा है यार! मेरी अम्माँ तो बदनामी से मर ही जायेगी। पर साला क्या करें? ये नीचे वाला मीया अकड़ते रहता है, फुद्दी के लीए।
राजू -- सही कह रहा है यार! हांथ से फेंट-फेंट कर भी थक गया हूँ। पर क्या करें? जब फुद्दी नसीब में ही नही है तो?
राजू ने थोड़ा उदासी भरे लहजे में बोला था। दोनो कुछ देर के लीए शांत बैठे थे। तभी बबलू...
बबलू -- अच्छा राजू! मुझे ना तुझसे इक बात पुछनी थी।
राजू -- तो पूंछ ना?
बबलू -- नही यार! छोड़ अच्छा नही लगेगा।
बबलू की बात सुनकर, राजू बबलू की तरफ देखते हुए बोला--
राजू -- मुझे पता है, 'तू क्या पूछना चाहता है? मेरी अम्मा औ सरपंच के बारे में ना?
बबलू तो चौंक गया! वो सोंचने लगा की इसे कैसे पता चल गया की, मैं यही बात पूँछना चाहता हूँ? बबलू थोड़ा हीचकीचाते हुए जवाब मे कहा-
बबलू -- ह...हाँ।
राजू -- अब क्या कर सकते है यार! अफवाह तो फैली है। पता नही सच है या झूंठ? अम्मा कहती है झूंठ है।
बबलू -- अबे झूंठ ही होगा! लोगो का क्या है, उन्हे तो ऐसी बाते उड़ाने में मज़ा आता है।
ये सुनकर राजू थोड़ा उदास होते हुए बोला..
राजू -- पता नही यार! ये औरतों का कुछ पता नही चलता!! इनके दील में कुछ और रहता है; जुबान पर कुछ और।
राजू को यूँ उदास देख कर बबलू ने बात पलटते हुए कहा...
बबलू -- अरे मैं भी ना कीतना पागल हूँ, कुछ भी बात करने लगता हूँ। छोड़ ये सब।
राजू -- नही यार! जो बात है वही कीया तूने। मैं कहता हूँ की, अगर मेरी माँ को ये सब करना ही था तो, उस सरपंच के सांथ ही क्यूँ? कल को वो राज़न मज़े लेने पहुंच जायेगा। सच बोलूं तो, तू बहुत कीस्मतवाला है, जो तूझे इतनी अच्छी अम्मा मीली। कभी कोई गलत काम नही कीया।
बबलू को अपनी अम्मा के चरीत्र और पवीत्रता को सुनकर खुशी तो हुई पर राजू के उदास चेहरे को देखकर जाहीर न कर सका।
बबलू -- अबे साले, ये सब अफवाह है और कुछ नही। छोड़ वो सब और चल घर चल। नही तो तेरा पता तो नही, पर मेरी खैर नही।
और ये कहते हुए दोनो अपने-अपने घर की तरफ चल पड़ते है।
पैदल चलते हुए रास्ते में, काज़ल का घर पड़ता है। बबलू जैसे ही काज़ल के घर के नज़दीक पहुचां॥ उसके कदम खुद ब खुद रुक जाते है। वो कुछ देर तक काजल के घर के रास्ते पर खड़ा रहा, और फीर कुछ सोंचते हुए अपने कदम काज़ल के घर की तरफ बढ़ा दीया।
घर के दरवाज़े पर पहुंच कर, बबलू ने दरवाजा खटखटाया।
कुछ ही देर में दरवाजा खुला और सांमने काज़ल खड़ी थी।
काज़ल तो चौंक गयी! और मुह खोलते हुए...
काज़ल -- बबलू....!
बबलू तो काजल की कज़रारी आँखों में खो गया था। कीतनी प्यारी आँखें थी काजल की। एक दम चंचल। बबलू को काज़ल की चौंकने वाली बात मानो सुनायी ही नही पड़ी। वो तो इस समय काज़ल की झील जैसी आँखों में तैर रहा था।
मगर काज़ल को जब बबलू की तरफ से कोई भी उत्तर ना मीला तो, वो एक बार फीर बोल पड़ी...
काज़ल -- सुनाई नही दीया क्या?
इस बार बबलू को झील सी आँखों में तैरते हुए काजल की मीठी मगर तीखी आवाज़ भी सुनाई पड़ी तो,
बबलू -- ह...हां।
काज़ल -- यहां क्या कर रहे हो तूम?
बबलू -- क्या कर रहा हूँ मतलब? आ नही सकता क्या? कॉलेज पर बैठा था, घर जा रहा था प्यास लगी थी तो चला आया।
काज़ल -- ओह...प्यास लगी थी? तो तुम्हे पूरे गाँव में सीर्फ मेरा ही घर दीखा पानी पीने के लीए?
इस बार बबलू थोड़ा अँदाज में खड़े होते हुए, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखो में प्यार भर कर बोला...
बबलू -- घर तो मेरा भी पास में है। मगर इस घर में मेरी जान है ना। तो अपनी जान के हांथो से पानी पीकर सीर्फ गले की ही प्यास नही दील और आँखों की भी प्यास बुझ जायेगी।
बबलू की प्यार भरी बाते सुनकर, काज़ल आँखे तरेरते हुए बोली...
काज़ल -- पानी नही, मैं तो जहर पीला दूँ।
बबलू मुस्कुराते हुए...घर के अंदर घुसते हुए। काज़ल को कस कर अपनी बाहों में भरते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला--
बबलू -- मेरे हुज़ुर, आपके हांथों से वो भी खुशी-खुशी पी लूंगा।
काज़ल तो कीसी मुर्ती की तरह बबलू की बाहों में खड़ी, हैरत से बबलू की तरफ देखती रही। कुछ देर तक दोनो यूं ही एक दुसरे की बाहों में खड़े आँखो में आँखे डाले देखते रहते है की, तभी एक अनज़ानी आवाज़ ने उन्हे ज़मीन पर पटक दीया...
'आय...हाय, देखो तो ज़रा इन प्यार के पंछी को। मैं यहां खड़ी हूँ पर फीर बेशर्मो की तरह एक दुसरे की बाहों में पड़े है। वाह!
काज़ल तो झट से बबलू से अलग हो जाती है। और बबलू भी हैरानी से उस आवाज़ का पीछा करता है तो पाया की, सामने एक ३८ या ३९ साल की औरत खड़ी थी।
उस औरत ने काले रंग की साड़ी पहनी थी। मांसल बदन की गोरी-चीट्टी औरत थी। वो खड़ी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
उस औरत को देखकर, काज़ल घबरा गयी...
काज़ल -- ब...बुवा, वो...वो इस कमीने ने जबरदस्ती कीया।
बबलू भी घबरा गया, और बहुत डर भी गया था। उसे लगा की कहीं ये औरत माँ को ना बता दे...
बबलू कुछ बोल ना सका, और सर नीचे कर के खड़ा हो गया।
बबलू को यूँ सर नीचे कर खड़ा देख, वो औरत बोली--
'लगता है, हुज़ुर की प्यास बुझ गयी?'
बबलू और काज़ल ने उस औरत की आवाज़ तो सुनी मगर दोनो चोरो की तरह चुप-चाप खड़े रहे।
'अरे तुम दोनो इतना डर क्यूँ रहे हो? मैं कुछ नही करुंगी। काज़ल जा एक लोटा पानी ला और बबलू को पीला। बेचारे को बहुत प्यास लगी है।
काजल -- जी...बुआ!
और कहते हुए काज़ल ने एक बार बबलू को घूरा और पानी लाने चली गयी।
काजल के जाते ही। वो औरत मुस्कुराते हुए...
'अब बैठ भी जा! क्या खड़े हो कर पीयेगा?'
बबलू कुछ बोला नही और धीरे-धीरे कदमो के सांथ चलते हुए खाट पर बैठ जाता है।
तभी काजल पानी लेकर आ जाती है, और अपनी बुआ की तरफ बढ़ाते हुए
काज़ल -- मंजू बुआ...ये लो पानी, इसे पीला दो और जाने के लीए कह दो।
और फीर पानी का लोटा अपनी बुआ को पकड़ाते हुए वो वहां से चली जाती है...
काज़ल को जाते हुए देख मंजू मुस्कुरायी और पानी का लोटा देते हुए, वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है।
दोपहर हो गयी थी, गर्मी का मौसम था तो, बाहर लू चल रही थी। सुधा घर पर अकेली थी। बबलू गाँव के पुरानी कॉलेज की तरफ राजू के सांथ गया था।
सुधा ओसार में लेटी थी, गर्मी की वज़ह से उसे पसीने आ रहे थे। वो एक हांथ में लीए खाट पर लेटी पंखा डोलाते हुए खुद से बोली...
सुधा -- इतनी भींषण गर्मी पड़ रही है, और ये लड़का घूमने नीकला है। आने दो उसे आज खबर लेती हूँ उसकी।
खुद से कहते हुए, सुधा ने अपनी साड़ी का पल्लु हटा कर बगल में कर दीया। उसका गोरा पेट पसीने में चमक रहा था। उसके ब्लाउज़ भी कुछ हद तक भीग कर उसकी मस्तानी और पहाड़ी जैसी चूंचीयों से चीपक गये थे। ब्लाउज के अंदर ब्रा के उभार साफ प्रदर्शीत हो रहे थे। और चूंचीयों का मांसल उभार ब्लाउज़ से बाहर नीकल कर झांक रहे थे।
सुधा जीस अवस्था में लेटी थी। उस अवस्था में वो कामुकता की देवी लग रही थी। अगर कोई भी उसे इस हालत में देख लेता तो होश खो देता।
सुधा लेटे-लेटे पंखा डोला रही थी, मगर गर्मी इतनी थी की, पंखे की हवा से उसे चैन नही मीला। उसने पंखे को एक तरफ रख दीया, और अपनी सारी खोलने लगी,,
कुछ ही पल में सुधा के बदन पर से सारी भी अलग हो गयी थी। और वो अब सीर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में लेटी थी।
कमर पर बधां पेटीकोट उसके चौंड़े कुल्हे को अत्याधीक आकर्षक बना रहा था। पेटीकोट के नाड़ा बांधने वाले जगह पर कुछ ५ से ६ इंच तक का गैप था। जहां से नाड़ा नीकलता है। और उसी गैप में से सुधा की सफेद रंग की कच्छी दृश्यमान हो रही थी। हल्की सी ही सही मगर उस कच्छी को कोइ अगर इस समय देख लेता तो, लंड अकड़ जाता।
सुधा को अब कुछ गर्मी से राहत मीली थी। उसने अपनी आँखे बंद कर ली, और पंखे डोलाने लगी। मगर वो शायद भूल गयी थी, की उसने दरवाज़ा बंद नही कीया था।
सुधा तो पंखा डोलाते हुए लेटी थी, मगर तभी अचानक से दरवाज़ा खुला, सुधा को लगा की बबलू है। और वो वैसे ही लेटी अपनी आँखें बंद कीये बोली-
सुधा -- आ गया! इतनी गर्मी है बाहर लू चल रही है। और तू है की घूम रहा है?
ये बोलकर सुधा चुप हो जाती है। और पंखा डोलाने लगती है। जब उसे कुछ देर से कोई जवाब नही मीला तो...
सुधा -- कुछ बोलेगा भी, या चुप ही रहेगा? चल अच्छा ठीक है। अब बाहर मत जाना,।
और ये बोलकर सुधा ने अपनी आँखें जैसे ही खोली, उसके सर से आसमान उड़ गया हो मानो, वो सोच रही थी की, बबलू होगा मगर सामने तो सरपंच खड़ा था। और अपनी आँखे फाड़े सुधा के कामुक जीस्म को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था।
सुधा भी एक पल के लीए स्तब्ध रह गयी, उसे अभी भी अपनी अवस्था के बारे में चेतना ना थी। वो भी सरपंच को देखकर चौंक गयी थी। तभी अचानक सुधा की नज़र सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से पर पड़ी। तो उसका मुह खुला का खुला रह गया।
सरपंच के पजामें के आगे वाले हीस्से में जोर-जोर की हलचल हो रही थी। सुधा को समझते देर ना लगी की, ये सरपंच का लंड है। सुधा ने झट से अपनी नज़र वहां से हटा लीया, और जैसे ही उसे अपनी अवस्था का ज्ञात हुआ, वो हड़बड़ाते हुए खाट पर पड़ी अपनी सारी उठाते हुए खुद को ढकते हुए खड़ी हो गयी...और वो गुस्से में आँखे लाल करते हुए बोली--
सुधा -- आप सच में पागल हो गये हैं का सरपंच जी? बेशर्मो की तरह मेरे घर में घुस आये और मुझे ऐसी नज़रों से देख रहे...छी: ! मैं तो आपको भला आदमी समझती थी, पर तुम तो हैवान हो।
कहते हुए सुधा अपने आप को अच्छे से ढकने लगी। वहां खड़ा सरपंच सुधा का गुस्सा देखकर बोला--
सरपंच -- माफ़ करना सुधा, मैं अचानक से घर में घुस आया। पर मुझे जरा भी अंदाजा न था की, तुम इस अवस्था में होगी। मुझे लगा बबलू भी घर पर होगा। इसलीए मैं...मेरी गलती को माफ़ कर दो सुधा।
सुधा -- माफ़ कर दूँ, कीतनी बार माफ़ कर दूँ? कल रात को ही बोली थी की.....मेरा पीछा छोड़ दो, पर आप आज़ फीर से आ गये।
सुधा की बात सुनते हुए, सरपंच ने अपने कुर्ते के जेब में हांथ डालते हुए कुछ नीकलते हुए बोला--
सरपंच -- मैं तो ये तुम्हारी चैन लौटाने आया था सुधा। शायद तुम कल फीलम देखने आयी थी तो गीर गयी थी।
सरपंच की बात सुनते ही, सुधा ने एक हांथ से अपनी गर्दन को टटोला तो पायी, की उसकी गर्दन में चेन नही था। सुधा कुछ बोलती, उससे पहले ही सरपंच ने चेन को पास में रखे मेज़ पर रख दीया। और दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए रुक कर बोला-
सरपंच -- एक बार फीर से माफी मांगता हूं सुधा।
और कहते हुए...सरपंच घर के बाहर चला गया। सुधा वही खड़ी दरवाजे की तरफ मुर्ती बने देखती रहती है.....
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इधर बबलू, राजू के सांथ पुरानी कॉलेज के एक पेंड़ के नीचे बैठा था। कॉलेज के चारो तरफ उंची-उंची चहरदीवाल खड़ी थी। इस लीए लू का हवा भी उतना नही लग रहा था।
ठंढी हवाएं लेते हुए, बबलू ने राजू की तरफ देखते हुए कहा-
बबलू -- यार राजू, ये मादरचोद राजन की माँ चोदने का मन कर रहा है मेरा।
अचानक! से राजू हसंने लगा, शायद वो बबलू की बात पर ही हसं रहा था। बबलू उसको हसंते देख...
बबलू -- हसं क्यूँ रहा है? मजाक लग रहा है क्या तुझे?
ये सुनकर राजू बोला...
राजू -- अबे वो सरपंच की औरत है। और तू उसे चोदेगा? वैसे माल तो बहुत करारी है, चोदने में तो मजा ही आ जायेगा! पर वो हांथ नही आने वाली...! कुछ उल्टा-सीधा हुआ तो बदनामी होगी वो अलग सरपंच के लट्ठेर गांड मार देंगे...समझा! अपनी नही तो सुधा काकी के इज्जत के बारे में सोंच और भूल जा।
राजू की बात पर बबलू सोंच में पड़ गया। और थोड़ी देर बात बोला...
बबलू -- सही कह रहा है यार! मेरी अम्माँ तो बदनामी से मर ही जायेगी। पर साला क्या करें? ये नीचे वाला मीया अकड़ते रहता है, फुद्दी के लीए।
राजू -- सही कह रहा है यार! हांथ से फेंट-फेंट कर भी थक गया हूँ। पर क्या करें? जब फुद्दी नसीब में ही नही है तो?
राजू ने थोड़ा उदासी भरे लहजे में बोला था। दोनो कुछ देर के लीए शांत बैठे थे। तभी बबलू...
बबलू -- अच्छा राजू! मुझे ना तुझसे इक बात पुछनी थी।
राजू -- तो पूंछ ना?
बबलू -- नही यार! छोड़ अच्छा नही लगेगा।
बबलू की बात सुनकर, राजू बबलू की तरफ देखते हुए बोला--
राजू -- मुझे पता है, 'तू क्या पूछना चाहता है? मेरी अम्मा औ सरपंच के बारे में ना?
बबलू तो चौंक गया! वो सोंचने लगा की इसे कैसे पता चल गया की, मैं यही बात पूँछना चाहता हूँ? बबलू थोड़ा हीचकीचाते हुए जवाब मे कहा-
बबलू -- ह...हाँ।
राजू -- अब क्या कर सकते है यार! अफवाह तो फैली है। पता नही सच है या झूंठ? अम्मा कहती है झूंठ है।
बबलू -- अबे झूंठ ही होगा! लोगो का क्या है, उन्हे तो ऐसी बाते उड़ाने में मज़ा आता है।
ये सुनकर राजू थोड़ा उदास होते हुए बोला..
राजू -- पता नही यार! ये औरतों का कुछ पता नही चलता!! इनके दील में कुछ और रहता है; जुबान पर कुछ और।
राजू को यूँ उदास देख कर बबलू ने बात पलटते हुए कहा...
बबलू -- अरे मैं भी ना कीतना पागल हूँ, कुछ भी बात करने लगता हूँ। छोड़ ये सब।
राजू -- नही यार! जो बात है वही कीया तूने। मैं कहता हूँ की, अगर मेरी माँ को ये सब करना ही था तो, उस सरपंच के सांथ ही क्यूँ? कल को वो राज़न मज़े लेने पहुंच जायेगा। सच बोलूं तो, तू बहुत कीस्मतवाला है, जो तूझे इतनी अच्छी अम्मा मीली। कभी कोई गलत काम नही कीया।
बबलू को अपनी अम्मा के चरीत्र और पवीत्रता को सुनकर खुशी तो हुई पर राजू के उदास चेहरे को देखकर जाहीर न कर सका।
बबलू -- अबे साले, ये सब अफवाह है और कुछ नही। छोड़ वो सब और चल घर चल। नही तो तेरा पता तो नही, पर मेरी खैर नही।
और ये कहते हुए दोनो अपने-अपने घर की तरफ चल पड़ते है।
पैदल चलते हुए रास्ते में, काज़ल का घर पड़ता है। बबलू जैसे ही काज़ल के घर के नज़दीक पहुचां॥ उसके कदम खुद ब खुद रुक जाते है। वो कुछ देर तक काजल के घर के रास्ते पर खड़ा रहा, और फीर कुछ सोंचते हुए अपने कदम काज़ल के घर की तरफ बढ़ा दीया।
घर के दरवाज़े पर पहुंच कर, बबलू ने दरवाजा खटखटाया।
कुछ ही देर में दरवाजा खुला और सांमने काज़ल खड़ी थी।
काज़ल तो चौंक गयी! और मुह खोलते हुए...
काज़ल -- बबलू....!
बबलू तो काजल की कज़रारी आँखों में खो गया था। कीतनी प्यारी आँखें थी काजल की। एक दम चंचल। बबलू को काज़ल की चौंकने वाली बात मानो सुनायी ही नही पड़ी। वो तो इस समय काज़ल की झील जैसी आँखों में तैर रहा था।
मगर काज़ल को जब बबलू की तरफ से कोई भी उत्तर ना मीला तो, वो एक बार फीर बोल पड़ी...
काज़ल -- सुनाई नही दीया क्या?
इस बार बबलू को झील सी आँखों में तैरते हुए काजल की मीठी मगर तीखी आवाज़ भी सुनाई पड़ी तो,
बबलू -- ह...हां।
काज़ल -- यहां क्या कर रहे हो तूम?
बबलू -- क्या कर रहा हूँ मतलब? आ नही सकता क्या? कॉलेज पर बैठा था, घर जा रहा था प्यास लगी थी तो चला आया।
काज़ल -- ओह...प्यास लगी थी? तो तुम्हे पूरे गाँव में सीर्फ मेरा ही घर दीखा पानी पीने के लीए?
इस बार बबलू थोड़ा अँदाज में खड़े होते हुए, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखो में प्यार भर कर बोला...
बबलू -- घर तो मेरा भी पास में है। मगर इस घर में मेरी जान है ना। तो अपनी जान के हांथो से पानी पीकर सीर्फ गले की ही प्यास नही दील और आँखों की भी प्यास बुझ जायेगी।
बबलू की प्यार भरी बाते सुनकर, काज़ल आँखे तरेरते हुए बोली...
काज़ल -- पानी नही, मैं तो जहर पीला दूँ।
बबलू मुस्कुराते हुए...घर के अंदर घुसते हुए। काज़ल को कस कर अपनी बाहों में भरते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला--
बबलू -- मेरे हुज़ुर, आपके हांथों से वो भी खुशी-खुशी पी लूंगा।
काज़ल तो कीसी मुर्ती की तरह बबलू की बाहों में खड़ी, हैरत से बबलू की तरफ देखती रही। कुछ देर तक दोनो यूं ही एक दुसरे की बाहों में खड़े आँखो में आँखे डाले देखते रहते है की, तभी एक अनज़ानी आवाज़ ने उन्हे ज़मीन पर पटक दीया...
'आय...हाय, देखो तो ज़रा इन प्यार के पंछी को। मैं यहां खड़ी हूँ पर फीर बेशर्मो की तरह एक दुसरे की बाहों में पड़े है। वाह!
काज़ल तो झट से बबलू से अलग हो जाती है। और बबलू भी हैरानी से उस आवाज़ का पीछा करता है तो पाया की, सामने एक ३८ या ३९ साल की औरत खड़ी थी।
उस औरत ने काले रंग की साड़ी पहनी थी। मांसल बदन की गोरी-चीट्टी औरत थी। वो खड़ी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
उस औरत को देखकर, काज़ल घबरा गयी...
काज़ल -- ब...बुवा, वो...वो इस कमीने ने जबरदस्ती कीया।
बबलू भी घबरा गया, और बहुत डर भी गया था। उसे लगा की कहीं ये औरत माँ को ना बता दे...
बबलू कुछ बोल ना सका, और सर नीचे कर के खड़ा हो गया।
बबलू को यूँ सर नीचे कर खड़ा देख, वो औरत बोली--
'लगता है, हुज़ुर की प्यास बुझ गयी?'
बबलू और काज़ल ने उस औरत की आवाज़ तो सुनी मगर दोनो चोरो की तरह चुप-चाप खड़े रहे।
'अरे तुम दोनो इतना डर क्यूँ रहे हो? मैं कुछ नही करुंगी। काज़ल जा एक लोटा पानी ला और बबलू को पीला। बेचारे को बहुत प्यास लगी है।
काजल -- जी...बुआ!
और कहते हुए काज़ल ने एक बार बबलू को घूरा और पानी लाने चली गयी।
काजल के जाते ही। वो औरत मुस्कुराते हुए...
'अब बैठ भी जा! क्या खड़े हो कर पीयेगा?'
बबलू कुछ बोला नही और धीरे-धीरे कदमो के सांथ चलते हुए खाट पर बैठ जाता है।
तभी काजल पानी लेकर आ जाती है, और अपनी बुआ की तरफ बढ़ाते हुए
काज़ल -- मंजू बुआ...ये लो पानी, इसे पीला दो और जाने के लीए कह दो।
और फीर पानी का लोटा अपनी बुआ को पकड़ाते हुए वो वहां से चली जाती है...
काज़ल को जाते हुए देख मंजू मुस्कुरायी और पानी का लोटा देते हुए, वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है।