03-05-2022, 11:18 PM
अपडेट...३
गन्ताक से आगे...
रात हो गयी थी। गाँव में सबके घरो में आज खाना-पीना जल्दी बन गया था। बबलू भी खाट पर बैठ कर खाना खा रहा था। और उसकी माँ बगल में बैठ कर पंखा डोला रही थी।
बबलू -- अम्मा मैं खा चूका हूँ। तू भी खा ले और माला काकी के सांथ चली आना...
बबलू की बात सुनते हुए, सुधा थाली को उठाते हुए खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली--
सुधा -- ठीक है ल्ल्ला, मैं आ जाउगीं।
और ये कहते हुए, सुधा थाली लेकर चली जाती है। बबलू भी घर से नीकल कर सरपंच के घर पर आ गया था। सरपंच के घर के सामने काफी जगह थी। जहां एक तरफ औरते बैठी थी और दूसरी तरफ मर्द बैठे थे। भीड़ तो इकट्ठा थी। और अब बबलू भी पहुंच गया था...
"अरे बबलू कीतना देर लगा दीया बे आने में"
एक लड़के ने कहा...। उस लड़के की बात सुनकर बबलू ने कहा-
बबलू -- अरे राजू...खाना खा रहा था, इसलीए देरी हो गयी।
राजू -- अरे बबलू...आज तो तेरी माल एकदम पटाखा लग रही है। वो देख...
ये कहते हुए राजू ने बबलू को दूसरी तरफ देखने का इशारा कीया। बबलू ने भी जब उस तरफ देखा तो, वो बस देखता रह गया। उस तरफ ४ से ५ लड़कीयों का गोल खड़ा था। उसमें से एक गोरी-चीट्टी लड़की घाघरा-चोली पहने खड़ी, हसं-हसं कर बाकी खड़ी लड़कीयों से बात कर रही थी।
हसंते हुए उस लड़की के अगंर जैसे गालो में गड्ढे पड़ जाते। जो उसकी खुबसूरत मी और चार चांद लगा देती। हरे रंग की चोली में उस लड़की वक्षस्थल अत्यधीक उभार के सांथ उसके चोली की शोभा बढ़ा रही थी। चीकना गोरा पेट...बीज़ली की रौशनी में चमक रहा था। बबलू की नज़र उस लड़की के चीकन पेट में केंद्रीत गहरी नाभी पर अटक गयी। और जब नाभी पर से नजर फीसली तो, मटके के जैसे कटाव लीये कमर और कुल्हो पर आकर अटक गयी।
बबलू के मन में सीरहन उठने लगा। उसका मन उस लड़की के कामुक और मस्त जीस्म को छुने को मचलने लगा...।
बबलू एकदम दीवानो की तरह उस लड़की में खो गया था। की तभी एक आवाज़ ने उसे झींझोड़ा...
"ओ...हो, दीवाने की आँखें तो हट ही नही रही है।"
ये अनजानी आवाज़ कान में पड़ते ही, बबलू घुमते हुए देखा तो, एक २0 साल का लड़का खड़ा था। उसे देखते ही बबलू के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उमड़ने लगी। बबलू के चेहरे पर गुस्सा देखकर राजू ने बबलू की बाँहे पकड़ते हुए...
राजू -- चल बबलू...हम उधर बैठते है।
राजू की बात सुनकर, बबलू उस लड़के को घूरते हुए वहां से जाने लगता है की तभी वो लड़का...
"अरे...जा जा, तू सीर्फ देखता ही रहेगा नामर्दो की तरह।"
ये कहते हुए वो लड़का और उसके सांथ खड़े दो लड़के भी हसंने लगते है। बबलू का दीमाग घूमा और उसके कदम वापस से उस लड़के की तरफ बढ़े और उसके नज़दीक आकर रुक गये...
बबलू उसे देखते हुए मुस्कुरा कर बोला--
बबलू -- ह्म्म... वो तो बेटा वक्त बतायेगा, की कौन मर्द है और कर नामर्द! तू खेल...काज़ल के आगे पीछे घूम कर अपनी दूम हीला। कुत्ते की तरह समझा।
बबलू की बाते उस लड़के के दील पर लगी और गुस्से में बौखला गया और बोला-
"राजन नाम है मेरा, कोई ऐरा गैरा लड़का नही, इस गाँव के सरपंच का बेटा हूँ, मेरे सामने तेरी कोई औकात नही। अपनी औकात में रह और काज़ल का पीछा छोड़ दे समझा। क्यूँकी मैं उससे प्यार करता हूँ॥
अब बबलू एक बार फीर मुस्कुराया और बोला-
बबलू -- चल ठीक है! अगर मैने तेरी बात मान भी ली तो, मुझे क्या मीलेगा?
बबलू की बात सुनकर राज़न के चेहरे पर खुशी की झलक उमड़ी...और झट से बोला-
राजन -- तू...तूझे जो चाहिए, वो तू मांग,।
बबलू , राजन की नज़रो में घूर कर देखते हुए धीरे से बोला-
बबलू -- तेरी बहन दे...दे!
'कमीने...ए....'
चील्लाते हुए राजन ने बबलू का गीरेबान पकड़ लीया...
राज़न -- अपनी औकात में रह कमीने, नही तो इस गाँव में नही दीखाई देगा।
बबलू -- क्यूँ ? गाँव तेरे बाप का है?
राज़न -- ऐसा ही समझ, ये गाँव मेरे बाप का ही है।
बबलू -- तू और तेरा बाप, हरामी की औलाद हो। पता है तेरे बाप के बारे में, लोगो को मजबूर करके उनकी ज़मीने हड़पना ही तेरे बाप का काम है। औकात मेरी नही अपनी देख हरामी की औलाद।
बबलू की बात सुनकर, राजन गुस्से में पागल हो गया। और हांथ से एक घूंसा बबलू के पेट पर जड़ दीया।
अब तो बबलू का भी पारा गरम हो गया...और उछलते हुए एक लात राजन के सीने पर ज़ड़ दीया। राजन थोड़ी दूर जाते हुए धड़ाम से गीर पड़ा।
राज़न के गीरते ही, वहां खड़े सब लोग चौंक जाते है। तब तक सुधा भी माला के सांथ आ जाती है। जब तक सुधा और खड़े लोग कुछ समझ पाते, तब तक बबलू अपने लातो से राजन को कुंचने लगता है।
ये देखकर सुधा और सरपंच एक सांथ दौड़े कुछ और लोग भी पीछे-पीछे दौड़े और बबलू को पकड़ने लगे।
सुधा -- रुक जा बेटा! क्या कर रहा है? छोड़ उसे।
सुधा बबलू को पकड़कर खींचते हुए बोली थी...
बबलू भी शांत हो कर उसे छोड़ देता है। और वहां से चला जाता है...
बबलू को गुस्से में जाते देख, सुधा भी उसके पीछे जाने लगती है की, तभी माला ने उसका हांथ पकड़ कर रोकते हुए बोली--
माला -- अरे सुधा तू कहां जा रही है?
सुधा -- अरे देखती नही की बबलू कीतने गुस्से में गया है?
सुधा की बात सुनकर सरपंच ने जवाब में कहा-
सरपंच -- अरे सुधा, बच्चे हैं। कीसी बात पर आपस में झगड़ गये होंगे, तुम चींता मत करो बबलू अभी आ जायेगा। मुझे पता है की, गलती इस नालायक की ही होगी।
और कहते हुए सरपंच ने राजन को एक थप्पड़ जड़ दीया। और दुसरा थप्पड़ मारने के लीए हांथ उठाया ही था की, सुधा ने सरपंच का हांथ पकड़ लीया और...
सुधा -- ये आप का कर रहे हैं...सरपंच जी? अभी आप ने खुद ही कहा की बच्चे है ऐसे ही झगड़ गये होंगे, तो फीर काहे मार रहे हो? राजन बेटा तू जा!
और ये कहते हुए सुधा ने सरपंच का हांथ छोड़ दीया। राजन भी वहां से चला गया...
सरपंच सुधा की आँखों में प्यार से देखते हुए बोला-
सरपंच -- मै तुमको बता नही सकता सुधा की मुझे कीतना अच्छा लग रहा है, जो आज तुम आयी हो।
सरपंच की बाते सुनकर, सुधा ने अपनी नज़र आस-पास घुमायी तो, पायी की लोग उन्हे ही देख रहे थे। सुधा झट से बोल पड़ी...
सुधा -- सरपंच जी! मुझे आपसे बात करनी है। २ घंटे बाद पुरानी कॉलेज पर आ जाईयेगा।
और ये कहकर सुधा माला के साथ उस तरफ चल पड़ती है जहाँ गाँव की बाकी औरते बैठी थी।
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बबलू अपने घर की तरफ बुदबुदाते हुए गुस्से में चला जा रहा था...
'मादरचोद...रंडी की औलाद, काज़ल को छोंड़ तू! काज़ल तो क्या अब गाँव की सब लड़कीयों की फुद्दी मारुगां॥'
खुद से बुदबुदाते हुए बबलू चला जा रहा था। वो अपने घर पहुंच कर बाहर ही खाट पर लेट गया।
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अंधेरा हो गया था। आसमान में तारे टीमटीमा रहे थे। सरपंच के घर पर भीड़ बैठी फील्म देख रही थी। एक तरफ औरत थी तो दुसरी तरफ मर्द और बच्चे, लौंडे और बूढ़े भी आँखें फाड़े देख रहे थे।
तभी कुछ देर में सुधा उठते हुए माला से बोली-
सुधा -- माला मैं जा रही हूँ।
माला ने सुधा का हांथ पकड़ते हुए उसे रोकते हुए बोली-
माला -- अरे सुधा, अभी तो फीलम भी खतम नही हुई हैं, कम से कम एक फीलम तो देख ले।
सुधा -- नही रे माला, बबलू घर पर अकेला है। मुझे जाना पड़ेगा।
और ये कहकर सुधा वहां से चली जाती है। सुधा को जाते देख, थोड़ी ही देर में सरपंच भी बहाने से सौंच के डीब्बे में पानी भरकर, उसी तरफ चल पड़ता है। सब को लगा सरपंच जी सौंच के लीए जा रहे है। मगर माला को पता था की, सरपंच कहा गया है।
इधर पुराने कॉलेज पर सुधा खड़ी थी। और सरपंच का इतंज़ार कर रही थी। सुधा को डर भी लग रहा था की, कही गाँव के कीसी ने उसे सरपंच के सांथ देख लीया तो गज़ब हो जायेगा।
सुधा वही कॉलेज के रास्ते के कीनारे खड़ी सरपंच का इतंजार कर रही थी, की तभी उसे कीसी के कदमो की आहट सुनाई पड़ी। उसका दील धड़कने लगा, और उसे पसीने भी आने लगे।
तभी वो कदमो की आहट उसके एकदम नज़दीक आ गयी। अंधेरा घना था, इसलीए वो एक दुसरे को देख नही पाये। मगर सुधा समझ गयी थी की ये सरपंच जी ही है। इसलीए वो अपना पैर दो बार ज़मीन पर पटक देती है। जीससे उसके पैरों में पहने पायल छनक पड़ते है। ये इशारा था सरपंच के लीए की सुधा वही खड़ी है, ताकी अंधेरे में सरपंच को ढुंढने में कोई परेशानी ना हो।
सरपंच अब सुधा के एकदम नज़दीक खड़ा था। सुनसान अधेंरी रात में रास्ते पर खड़ी सुधा की तेज चल रही सांसे सरपंच के कानो में सुनाई पड़ा तो...
सरपंच -- मुझे तो यकीन नही हो रहा है सुधा की, तुमने मुझे अकेले बात करने के लीए बुलाया है।
सरपंच की बात सुनकर, सुधा अपनी तेज चल रही सांसो को काबू करते हुए बोली--
सुधा -- देखीए सरपंच जी, मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ, आप एक भले आदमी है। मगर आप का यूँ मुझे पाने की जीद, मुझे अच्छा नही लगता। मैं एक वीधवा हूँ , और एक जवान लड़के की माँ भी। मेरे लीए ये सब करना थोड़ा भी अच्छा नही लगता। मैं आपको एक बार फीर यही समझाने के लीए बुलायी थी, की आप मेरे बारे इतना मत सोचा करो, क्यूंकी ये सब मुझे अच्छा नही लगता।
इतना बोलकर सुधा चुप हो जाती है। और अब सरपंच ने मुह खोला-
सरपंच -- मुझे पता है सुधा, की तुम्हारे लीए ये सब करना ठीक नही। बल्की मैं तो कहता हूँ की, कीसी भी औरत के लीए कीसी पराये मर्द के बारे में सोंचना गलत है। मैं तुम्हारी इज्जत समजता हूँ, इसीलीए कभी कोई ऐसी-वैसी हरकत कीया क्या तुम्हारे सांथ? मगर अब क्या करुँ? जब मेरा दील नही मानता तो, ये हर समय तुम्हारे बारे में ही सोंचता रहता है। मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ की, तुम्हे चाह कर भी भूल नही पाता। मुझे पता है, की ये गलत है। मगर दील नही मानता सुधा...तुम ही बताओ की मैं क्या करुँ?
सरपंच की प्यार भरी बाते सुनकर, सुधा भी स्तब्ध रह गयी। उसे भी समझ नही आ रहा था की वो क्या बोले...
सरपंच ने भी जब देखा की, सुधा कुछ नही बोल रही है तो, वो हीम्मत करके अंधेरे में ही अपना हांथ आगे बढ़ा देता है, और सुधा की कलाई को पकड़ लेता है।
और इधर सुधा जैसे ही अपने हांथो पर कुछ महसूस करती है, वो डर जाती है और घबराने लगती है। उसने बीना देरी के, अपना हांथ झटकते हुए छुड़ा कर बोली--
सुधा -- सरपंच जी, अब आप हद पार कर रहे है। मैने आपसे कहा ना, मुझे ये सब पसंद नही। मैं उस तरह की औरत नही। जो लूक्का - छीप्पी का खेल खेलती हैं। मैं खुश हूँ मेरी छोटी सी दुनीया में। और मैं नही चाहती की, ऐसे काम करके अपनी खुशी में आग लगा लूँ। मुझे जो कहना था वो मैने कह दीया, अब आगे से मुझसे दूर रहना।
सुधा की बातों से सरपंच का दील टुट गया। वो एक बार फीर बोला-
सरपंच -- क्यूँ तड़पा रही हो सुधा? अब मुझसे ये तड़प बर्दाश्त नही होता। मैं तुम्हारे बीना मर जाउगां।
सुधा, सरपंच की बात सुनकर इस बार थोड़ा गुस्से में बोली-
सुधा -- जो करना है करो! मैं तो आप को समझा-समझा कर थक चूकी। मैं जा रही हूँ...
और ये कहते हुए सुधा रास्ते पर अपने कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ नीकल पड़ती है...
सरपंच अभी भी वहीं खड़ा हांथ मलता रह जाता है।
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'उठ जा बेटा...! कीतना सोयेगा? देख सूरज भी नीकल आया।'
सुधा ,बबलू के खाट के बगल में खड़ी होकर बबलू को उठाते हुए बोली-
बबलू भी अपनी माँ के झींझोड़ने की वज़ह से, कसमसाते हुए उठते हुए बोला-
बबलू -- सोने दे ना अम्मा!
सुधा -- नही, अब बहुत सो लीया। चल उठ जा।
इस बार बबलू कुछ नही बोलता और उठ कर खाट पर बैठ जाता है। बबलू को देखकर सुधा मुस्कुराते हुए उसके बगल में खाट पर बैठते हुए बोली--
सुधा -- कल गुस्से में क्यूँ चला गया? और झगड़ा क्यूँ कर लीया था?
बबलू ने एक नज़र अपनी माँ को आँखें मलते हुए देखा और बोला-
बबलू -- अरे अम्मा, वो ऐसे ही बातो - बातों में झगड़ा हो गया था।
बबलू की बात सुनकर, सुधा एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोली-
सुधा -- अम्मा हूँ तेरी! मुझे सब पता है की, तेरी और राज़न की कीस बात पर झगड़ा हुआ था।
बबलू के तो चेहरे के रंग उड़ गये! और हीचकीचाते हुए बोला...
बबलू -- तू...तूझे पता है?
सुधा, बबलू की बात सुनते हुए, मजाकीया अंदाज में अपना एक हांथ बबलू के कंधे पर रखते हुए बोली-
सुधा -- और नही तो का? मुझे सब पता है।
बबलू -- क...क्या पता है अम्मा?
सुधा -- यही की, तेरे और राजन के बीच काज़ल को लेकर झगड़ा हुआ था। क्यूँ सच कहा ना?
बबलू के चेहरे पर अब असमंजस के भाव थे। उसे समझ में नही आ रहा था की, उसकी माँ को कैसे पता चला की काज़ल की वजह से लड़ाई हुई थी। वो घबरा कर खाट पर से उठते हुए बोला-
बबलू -- क...क्या बोल रही है अम्मा? भ...भला काज़ल के लीये म...मै झगड़ा क्यूँ करने लगा? वो तो बस ऐसे ही कहा सुनी में झगड़ा हो गया।
बबलू की हकलाहट देख कर, सुधा अपने मुह पर हांथ रख कर अपनी हसीं को रोकने की कोशिश करते हुए बोली--
सुधा -- अच्छा...! तो शायद मुझे ही गलतफहमी हो गयी थी। मुझे लगा तू भी शायद काज़ल को पसंद करता होगा। राजन तो काज़ल को पसंद करता ही है पूरा गाँव जानता है। मुझे लगा इसी बात पर झगड़ा हुआ होगा।
बबलू एक ठंढी सांस लेते हुए...
बबलू -- अरे अम्मा, मुझे काज़ल पसंद नही। और वैसे भी...जब देखो तब वो उस कमीने राज़न से ही तो बात करती रहती है। मुझे नही पसंद है वो...क्यूँ पसंद करू? मुझसे बात भी तो नही करती! जलती है वो मुझसे! मैं नही सोचता उसके बारे में॥
बबलू की बात सुनते हुए सुधा समझ गयी की, बबलू, काजल को कीतना चाहता हैं। वो बबलू को अपनी तरफ घुमाते हुए बोली...
सुधा -- सही कह रहा है बेटा! लड़कीयों की कमी थोड़ी है। देखना मैं अपने बेटे के लीए उससे भी खुबसूरत लड़की ले-कर आउगीं।
अपनी माँ की बाते सुनकर, बबलू थोड़ा मुस्कुराया और सुधा के फूल जैसे फूले हुए गाल को अपनी हथेलीयों में लेते हुए बोला-
बबलू -- मुझे लड़की-वड़की कुछ नही चाहिए, मैं तो जींदगी भर अपनी अम्मा के सांथ रहूगां।
अपने बेटे की बात सुनकर, सुधा का दील खुश हो गया। और उसने अपने गुलाबी होंठो से बबलू के गाल को चूमते हुए बोली-
सुधा -- हाय रे मेरा लल्ला! कीतना प्यार करता है अपनी माँ से। मुझे तो पता ही न था।
बबलू अपनी माँ की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला-
बबलू -- अम्मा! एक बात बोलू?
सुधा -- एक क्या दो बोल।
बबलू -- मुझे ना...मुझे ना...मुझे ना...
सुधा -- हे भगवान! आगे भी बोलेगा?
सुधा अपना माथा पीटते हुए बोली थी--
बबलू -- मुझे ना जोर से हगने को लगी है।
और ये कहते हुए बबलू हसंते हुए खाट के चारो तरफ भागने लगता है, और ये सुनकर सुधा का मुह खुला का खुला रह गया और वो भी हसंते हुए बबलू के पीछे भागती हुई...
सुधा -- अरे...बेशरम, रुक तूझे बताती हूँ। बीगड़ा जा रहा है तू!
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माला सुबह-सुबह उठ कर, भैंसो को चारा डाल रही थी। तभी उसका मरद हाथ में लाठी लीए खांसते हुए आया और घर के बाहर बीछे खाट पर बैठ जाता है।
अपने मरद को देखकर, माला गुस्से में झल्ला गयी। और चारा छोड़ते हुए अपने मरद के पास जाकर खड़ी होकर गुस्से में बोली--
माला -- तुम्हारा दीमाग खराब हो गया है का...चीलम फूंक-फूंक कर?
४६ वर्षीय माला का मरद (भानू) अपनी औरत की गुस्से से भरी आवाज़ सुनकर बोला...
भानू -- का हो गया? सुबह-सुबह इतना काहे भड़क रही हो?
माला -- ओ...हो, बड़े भोले बन रहे हो। जैसे कुछ पता ही ना हो!
भानू भी हैरान होते हुए...
भानू -- अरे का कर दीया? बोलोगी भी?
ये सुनकर माला गुस्से में...
माला -- का बोलूं? मुझे तो बोलते हुए भी शरम आ रही है। कैसी नज़र से देखते हो रीता को? अरे तुम्हरी बीटीया है! इतना भी शरम नही का?
ये सुनते ही, भानू का गला सूख गया। और नीचे सर झुका कर बैठा रहा...
अपने मरद को चुप बैठा देख माला फीर से गुस्से में बोली-
माला -- चुप काहे बैठो हो, तुम्हारी वज़ह से दो बात रीता मुझे सुना कर चली गयी...! और तुम बेशरमो की तरह बैठो हो।
माला की बात भानू सुन ना सका, और उठ कर वहां से चला जाता है, माला अभी भी बुदबुदा रही थी।
रीता ओसार में खड़ी ये सब सुन रही थी। और जब माला घर के अंदर घुसी तो...
रीता -- वाह ! का बात है अम्मा? तुमने तो बापू को धो कर रख दीया।
माला अपनी बेटी की बात सुनते हुए खाट पर बैठते हुए बोली...
माला -- बोलूं नही तो और का करु? भला कोई बाप ऐसा करता है का?
रीता अपनी माँ के पास आते हुए बगल में बैठते हुए बोली...
रीता -- अच्छा! और तुम जो कर रही हो उसका का? उसके लीए तुझ पर कौन चील्लायेगा?
ये सुनकर माला गुस्से में झल्लाते हुए...
माला -- का कीया है मैने? कुछ भी उल्टा-सीधा इल्ज़ाम लगाये जा रही है!
रीता हसंते हुए...
रीता -- अच्छा...! वो सरपंच जी का खेतो वाला कमरा याद है या भूल गयी अम्मा? अच्छा वो छोड़...वो तेल की शीशी तो याद होगी, जीसमे से तेल नीकाल कर तूने सरपंच के डंडे पर रगड़ा था। याद है? बोल ना याद है?
"हां...हां याद है, रगड़ा था मैने सरपंच के लंड पर तेल। यही सुनना चाहती थी ना तू, सुन लीया अब खुश है। और का बोली थी तू, की मै तेरे बापू के सांथ समय नही बीताती! अरे ये सब तेरे बापू के वज़ह से ही तो हुआ है। सरपंच से कर्ज़ा लेकर दारु-गांजा पीता है कमीना, कर्ज़ा लौटाने की औकात नही इसलीए सरपंच के नीचे बीछ गयी।
कहते हुए माला रोने लगी...! अपनी माँ को रोता देख रीता को भी अपने आप पर गुस्सा आया। और फीर धीरे से एक हांथ अपनी माँ के कंधे पर रखते हुए बोली--
रीता -- माफ़ कर दे माँ, मुझे पता नही था की, तू ये सब कर्ज़े ना चुका पाने की वज़ह से कर रही है। माफ़ कर दे माँ।
माला झट से रीता के सीने से लग जाती है, और रोने लगती है। रीता अपनी माँ के सर पर हांथ फेरते हुए बोली--
रीता -- अच्छा अब रो मत, नही तो अभी यहीं नंगी करके चोद दूंगी।
रोती हुई माला ये सुनकर हसं पड़ती है और इस गंदी बात पर प्यार से वो रीता को मारने लगती है।