02-05-2022, 12:06 PM
अपडेट -- २
गन्ताक से आगे...
माला की बात सुनकर, सुधा मन ही मन खुश भी हो रही थी। तभी माला एक बार फीर से बोल पड़ी...
माला -- अरे तूझे पता है, आज सरपंच जी ने गाँव में पीक्चर लगवाने के लीए कहा है। सब लोग तो आ रहे है तू भी आयेगी?
सुधा -- तू ही देख फीलम-वीलम मैं कहां देखती हूं रे?
सुधा की बात सुनकर, माला बोली-
माला -- तो मतलब की तू नही आयेगी?
सुधा -- मैं नही देखती फीलम, तो क्या करुंगी आके?
सुधा की बात पर माला थोड़े नाटकी अदांज में बोली--
माला -- तू आयेगी तो कीसी और को सुकुन जो मीलेगा।
और ये बोलकर माला मुस्कुरा पड़ती है। माला की बातो पर, सुधा थोड़ा हड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखी और फीर बोली-
सुधा -- पगला गई है का? कुछ भी अनाप-शनाप बके जा रही है। अगर कहीं बबलू ने सुन लीया तो, क्या सोचेगा मेरे बारे में?
माला -- ओ...हो, बेटे की बड़ी चींता है। और बेचारे सरपंच जी, जो कब से तेरे इंतज़ार में दीन काट रहे हैं। उनके बारे में कोई चींता नही?
सुधा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे। गोरे मुखड़े पर पसीने के फुवारे छलकने लगे थे, पर वो कश्मकश में थी....
सुधा -- ये का बक रही है? धीरे बोल धीरे, तू मुझे मरवायेगी कभी। तूझे पता है की, मुझे ये सब पसंद नही फीर भी ,तू सरपंच जी की फरीयादे लेकर पहुंची रहती है।
माला -- हाँ तो काहे ना आऊं, सरपंच जी भले आदमी है। उनकी तड़प मुझसे देखी नही जाती...समझी।
सुधा भी एकदम से बोल पड़ी...
सुधा -- इतनी ही फीक्र है तो, तू ही लेट जा सरपंच जी के नीचे।
माला भी बातो में कहाँ पीछे रहने वाली थी...
माला -- लेट जाती! पर सरपंच जी की जान तो तूझमें अटकी पड़ी है। हमारी जैसी औरतो को भला कौन पुछेगा?
सुधा ये सुनकर थोड़ा सा शर्मा जाती है, और शर्माते हुए बोली...
सुधा -- हां...तो, मै क्या करुं? मुझे ये सब पसंद नही है।
सुधा को शर्माते देख, माला खाट पर से उठते हुए बोली-
माला -- ठीक है! जैसी तेरी मर्ज़ी। अच्छा मैं चलती हूँ।
और ये कहकर माला वहाँ से चली जाती है। माला के जाते ही बबलू भी सब्जीयां तोड़ कर आ जाता है। और सब्जीयों को खाट पर रखते हुए बोला...
बबलू -- अम्मा...ये ले सब्जीयाँ।
और ये कहकर, बबलू वहीं खाट पर बैठ जाता है। सुधा बबलू को पास बैठी देख थोड़ी हीचकीचाते हुए बोली...
सुधा -- सु...सुना है की, आज गाँव में फीलम लगेगी! तो तू भी जायेगा देखने?
अपनी माँ की बात सुनकर, बबलू बोला-
बबलू -- हाँ अम्मा! इतने दीनो बाद तो लगता है। तो देखने तो जरुर जाउगां। तू भी चल ना अम्मा! तू तो कभी जाती ही नही है।
बबलू की बात सुनकर, सुधा कुछ सोंच में पड़ गयी। और फीर कुछ सोंचने के बाद बोली...
सुधा -- हां...तो, तूने कभी चलने के लीए बोला ही नही, तो क्या अकेली जाती?
ये सुनकर बबलू मुस्कुराते हुए बोला-
बबलू -- अरे अम्मा, तू भी ना! गांव की सब औरते जाती है। माला काकी भी जाती है, तो उसके सांथ चली जाया कर।
सुधा अपने मन में सोंचते हुए ( अरे बेटा, अब तूझे कैसे समझाउं की मैं क्यूँ नही जाती? ये सरपंच जी भी ना, पता नही इनको का हो गया है? जीद पकड़ कर बैठ गये हैं, एक बार बोल दीया है उन्हे की ये सब मुझे पसंद नही पर फीर भी। चली जाती हूँ आज और एक आखीरी बार समझाती हूँ।)
'क्या सोचने लग गयी अम्मा?'
बबलू की आवाज सुधा के कानो में पड़ते ही, वो सोंच की दुनीया से बाहर आते हुए बोली...
सुधा -- अरे...वो, वो मैं सोंच रही थी की, तू ठीक कहता है। गाँव की सभी औरते तो जाती है, तो मैं भी उनके सांथ ही चली जाउंगी।
बबलू -- और नही तो क्या माँ? अच्छा ठीक है, जल्दी से खाना - पीना बना ले, ८ बजे से फीलम चालू हो जायेगी।
सुधा मुस्कुराते हुए...
सुधा -- ठीक है मेरा लल्ला!
और ये कहकर वो उठ कर रसोंई घर की तरफ चली जाती है...
@@@@@
माला जैसे ही अपने घर पहुंची, तो देखी की उसकी बेटी रीता और बहू सीमा बैठ कर बाते कर रहीं थी।
माला ४२ साल की एक सांवले और भरे बदन की औरत थी। इसका मरद बनवारी के सांथ गांजे और दारु में ही धुत्त रहता है और खेतों पर ही सोता है।
माला का एक बेटा रमेश, जो की २३ साल का था, और पीछले वर्ष ही उसकी शादी सीमा से हुई थी। रमेश बाहर शहर में अपने मामा के सांथ पेपर मील की एक कंपनी में काम करता था।
सीमा भी भरे बदन की लड़की थी। २0 साल की उम्र में ही, सीमा का सेहतमंद मांसल और गोरा बदन देखकर कोई भी अपना होश खो दे, थी तो वो २0 साल की पर गांड की चौंड़ाई और चूंचो की उचाई देखकर पूरी औरत की तरह दीखती थी।
और वहीं रीता भी २0 साल की थी, अपनी माँ माला पर गयी थी। सांवला रंग पर कटीला बदन था, सूट और सलवार में उसके केंद्र बींदू ही प्रकट रहता है। गाँव के लड़के भी इसके पीछे हमेशा कोशिश करते रहते है।
खैर ये बात तो रही माला के परीवार के, माला अपनी बहू और बेटी को बात करते देख बोली--
माला -- अरे महरानीयों, बाते ही करती रहोगी या खाना-पीना भी बनायेगी।
रीता -- ओ...हो, आ गयी महारानी! खुद तो गाँव भर में घुमती रहती है, और बोल हम लोग को रही है।
माला -- कहां गाँव में घूमती हूं रे, वो तो मैं सुधा के घर जाती हूँ बस।
रीता -- हाँ...हां पता है। चल भौज़ी खाना-पीना बना लेते है, आज फीलम देखने भी चलेगें।
रीता की बात सुनकर, सीमा वहां से उठते हुए आँगन की तरफ चल देती है, जहाँ रसोंई घर था। रीता भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी तो माला बोली...
माला -- अच्छा...! तेरे बापू खाना खाने आये थे क्या?
माला की आवाज़ सुनकर, रीता के कदम वहीं रुक जाते है। और अपनी माँ की तरफ घुमते हुए अपने दोनो हांथ अपनी कमर पर रख कर बोली-
रीता -- हाँ...आये थे आपके पतिदेव! लेकीन एक बात बोल देती हूँ अपने मरद को थोड़ा समझा लो, जब भी आते हैं, मेरी नीगोड़ी चूंचीयों को घूरते रहते है। समझा लो...घूरना है तो तेरी चूंचीयों को घूरे मेरी नही। नही तो कभी मुड़ खराब हुआ तो, ठूंस दूंगी अपनी चूंचीयां तेरे मरद के मुह में।
माला का मुह खुला का खुला रह गया। माला को ये तो पता था की, रीता बड़ी बोलबाली वाली लड़की है, पर उसने सोंचा न था की रीता ऐसी बाते भी कर सकती है, वो हैरत से अपना मुह खोले बोली--
माला -- अरे हरजाई, का बोल रही है? लाज-शरम धो कर पी गयी है का? वो तेरे बापू है।
रीता थोड़ी और नज़दीक आते हुए...
रीता -- ओ...हो , बड़ी आयी। बापू है मेरे! तो मैं क्या करुँ? उनको समझाओ ना, वो तो बेशर्मो की तरह मेरी चूंचों को घूरते रहते हैं। और मैने कुछ क्या बोल दीया तो, मैं बुरी हो गयी...?
माला -- ओ...मेरी बीटीया! मैं तूझे भला-बुरा थोड़ी बोल रही हूँ। और तूझे तो अपने बापू का पता ही है, वो तो गांजे और दारू के नशे में धुत्त रहते है, तो उन्हे होश कहां रहता है की, वो क्या कर रहे है क्या नही?
रीता एक बार फीर भाव को बदलते हुए बोली-
रीता -- हाँ तो ये सब तेरी वज़ह से ही तो हो रहा है।
अपनी बेटी की बात सुनकर, माला थोड़ा हैरत भरी आवाज़ में बोली-
माला -- मेरी वज़ह से!!
रीता -- और नही तो क्या? जब देखो तब गाँव में घूमती रहती है। थोड़ा बापू के सांथ भी रहा कर। तू बापू की औरत है, तेरा फर्ज़ है बापू को खुश रखना, पर तू तो ना जाने कीसको खुश कर रही है, घूम-घूम कर!
अपने उपर उठे कीचड़ को देखकर माला गुस्से में बोली...
माला -- चुप कर ! कुछ भी बोले जा रही है। मुझे खराब औरत बोल रही है, बेशरम लड़की! अब एक और शब्द भी मत बोलना।
माला का गुस्सा देखकर, रीता भी थोड़े गुस्से में बोली...
रीता -- खराब औरत बोल नही रही, बल्की तू है। मुझे पता है तेरे और उस भोले सरपंच के बारे में...समझी। अब मुह मत खुलवा मेरा.....बस अपने मरद को समझा दे। और हाँ, अभी सरपंच ने तूझे जीस काम पर लगाया है ना, वो भी मुझे अच्छे से पता है। पर वो सुधा काकी है सुधा काकी, तेरी जैसी नही जो, अपनी टांगे सरपंच के आगे खोल दे...
माला चुप-चाप खड़ी होकर अपनी बेटी की तीखी बाते सुने जा रही थी। पर कुछ बोल नही पायी...
और इधर रीता अपनी माँ को पलटनी देकर रसोंई घर की तरफ नीकल पड़ी थी।
माला के पैरों तले जमीन खीसक चुकी थी। उसे ताज़ुब हो रहा था की, जीस संबध के बारे में गाँव में कीसी को भनक तक ना लगी...उसके बारे में रीता को कैसे पता चल गया? और तो और वो सुधा को सरपंच के लीये मना रही है, इस बारे में भी रीता को कैसे पता चल गया?
सवालों के ढेर में कुदी माला...धीरे से खाट पर बैठ जाती है।
गन्ताक से आगे...
माला की बात सुनकर, सुधा मन ही मन खुश भी हो रही थी। तभी माला एक बार फीर से बोल पड़ी...
माला -- अरे तूझे पता है, आज सरपंच जी ने गाँव में पीक्चर लगवाने के लीए कहा है। सब लोग तो आ रहे है तू भी आयेगी?
सुधा -- तू ही देख फीलम-वीलम मैं कहां देखती हूं रे?
सुधा की बात सुनकर, माला बोली-
माला -- तो मतलब की तू नही आयेगी?
सुधा -- मैं नही देखती फीलम, तो क्या करुंगी आके?
सुधा की बात पर माला थोड़े नाटकी अदांज में बोली--
माला -- तू आयेगी तो कीसी और को सुकुन जो मीलेगा।
और ये बोलकर माला मुस्कुरा पड़ती है। माला की बातो पर, सुधा थोड़ा हड़बड़ाते हुए इधर-उधर देखी और फीर बोली-
सुधा -- पगला गई है का? कुछ भी अनाप-शनाप बके जा रही है। अगर कहीं बबलू ने सुन लीया तो, क्या सोचेगा मेरे बारे में?
माला -- ओ...हो, बेटे की बड़ी चींता है। और बेचारे सरपंच जी, जो कब से तेरे इंतज़ार में दीन काट रहे हैं। उनके बारे में कोई चींता नही?
सुधा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे। गोरे मुखड़े पर पसीने के फुवारे छलकने लगे थे, पर वो कश्मकश में थी....
सुधा -- ये का बक रही है? धीरे बोल धीरे, तू मुझे मरवायेगी कभी। तूझे पता है की, मुझे ये सब पसंद नही फीर भी ,तू सरपंच जी की फरीयादे लेकर पहुंची रहती है।
माला -- हाँ तो काहे ना आऊं, सरपंच जी भले आदमी है। उनकी तड़प मुझसे देखी नही जाती...समझी।
सुधा भी एकदम से बोल पड़ी...
सुधा -- इतनी ही फीक्र है तो, तू ही लेट जा सरपंच जी के नीचे।
माला भी बातो में कहाँ पीछे रहने वाली थी...
माला -- लेट जाती! पर सरपंच जी की जान तो तूझमें अटकी पड़ी है। हमारी जैसी औरतो को भला कौन पुछेगा?
सुधा ये सुनकर थोड़ा सा शर्मा जाती है, और शर्माते हुए बोली...
सुधा -- हां...तो, मै क्या करुं? मुझे ये सब पसंद नही है।
सुधा को शर्माते देख, माला खाट पर से उठते हुए बोली-
माला -- ठीक है! जैसी तेरी मर्ज़ी। अच्छा मैं चलती हूँ।
और ये कहकर माला वहाँ से चली जाती है। माला के जाते ही बबलू भी सब्जीयां तोड़ कर आ जाता है। और सब्जीयों को खाट पर रखते हुए बोला...
बबलू -- अम्मा...ये ले सब्जीयाँ।
और ये कहकर, बबलू वहीं खाट पर बैठ जाता है। सुधा बबलू को पास बैठी देख थोड़ी हीचकीचाते हुए बोली...
सुधा -- सु...सुना है की, आज गाँव में फीलम लगेगी! तो तू भी जायेगा देखने?
अपनी माँ की बात सुनकर, बबलू बोला-
बबलू -- हाँ अम्मा! इतने दीनो बाद तो लगता है। तो देखने तो जरुर जाउगां। तू भी चल ना अम्मा! तू तो कभी जाती ही नही है।
बबलू की बात सुनकर, सुधा कुछ सोंच में पड़ गयी। और फीर कुछ सोंचने के बाद बोली...
सुधा -- हां...तो, तूने कभी चलने के लीए बोला ही नही, तो क्या अकेली जाती?
ये सुनकर बबलू मुस्कुराते हुए बोला-
बबलू -- अरे अम्मा, तू भी ना! गांव की सब औरते जाती है। माला काकी भी जाती है, तो उसके सांथ चली जाया कर।
सुधा अपने मन में सोंचते हुए ( अरे बेटा, अब तूझे कैसे समझाउं की मैं क्यूँ नही जाती? ये सरपंच जी भी ना, पता नही इनको का हो गया है? जीद पकड़ कर बैठ गये हैं, एक बार बोल दीया है उन्हे की ये सब मुझे पसंद नही पर फीर भी। चली जाती हूँ आज और एक आखीरी बार समझाती हूँ।)
'क्या सोचने लग गयी अम्मा?'
बबलू की आवाज सुधा के कानो में पड़ते ही, वो सोंच की दुनीया से बाहर आते हुए बोली...
सुधा -- अरे...वो, वो मैं सोंच रही थी की, तू ठीक कहता है। गाँव की सभी औरते तो जाती है, तो मैं भी उनके सांथ ही चली जाउंगी।
बबलू -- और नही तो क्या माँ? अच्छा ठीक है, जल्दी से खाना - पीना बना ले, ८ बजे से फीलम चालू हो जायेगी।
सुधा मुस्कुराते हुए...
सुधा -- ठीक है मेरा लल्ला!
और ये कहकर वो उठ कर रसोंई घर की तरफ चली जाती है...
@@@@@
माला जैसे ही अपने घर पहुंची, तो देखी की उसकी बेटी रीता और बहू सीमा बैठ कर बाते कर रहीं थी।
माला ४२ साल की एक सांवले और भरे बदन की औरत थी। इसका मरद बनवारी के सांथ गांजे और दारु में ही धुत्त रहता है और खेतों पर ही सोता है।
माला का एक बेटा रमेश, जो की २३ साल का था, और पीछले वर्ष ही उसकी शादी सीमा से हुई थी। रमेश बाहर शहर में अपने मामा के सांथ पेपर मील की एक कंपनी में काम करता था।
सीमा भी भरे बदन की लड़की थी। २0 साल की उम्र में ही, सीमा का सेहतमंद मांसल और गोरा बदन देखकर कोई भी अपना होश खो दे, थी तो वो २0 साल की पर गांड की चौंड़ाई और चूंचो की उचाई देखकर पूरी औरत की तरह दीखती थी।
और वहीं रीता भी २0 साल की थी, अपनी माँ माला पर गयी थी। सांवला रंग पर कटीला बदन था, सूट और सलवार में उसके केंद्र बींदू ही प्रकट रहता है। गाँव के लड़के भी इसके पीछे हमेशा कोशिश करते रहते है।
खैर ये बात तो रही माला के परीवार के, माला अपनी बहू और बेटी को बात करते देख बोली--
माला -- अरे महरानीयों, बाते ही करती रहोगी या खाना-पीना भी बनायेगी।
रीता -- ओ...हो, आ गयी महारानी! खुद तो गाँव भर में घुमती रहती है, और बोल हम लोग को रही है।
माला -- कहां गाँव में घूमती हूं रे, वो तो मैं सुधा के घर जाती हूँ बस।
रीता -- हाँ...हां पता है। चल भौज़ी खाना-पीना बना लेते है, आज फीलम देखने भी चलेगें।
रीता की बात सुनकर, सीमा वहां से उठते हुए आँगन की तरफ चल देती है, जहाँ रसोंई घर था। रीता भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी तो माला बोली...
माला -- अच्छा...! तेरे बापू खाना खाने आये थे क्या?
माला की आवाज़ सुनकर, रीता के कदम वहीं रुक जाते है। और अपनी माँ की तरफ घुमते हुए अपने दोनो हांथ अपनी कमर पर रख कर बोली-
रीता -- हाँ...आये थे आपके पतिदेव! लेकीन एक बात बोल देती हूँ अपने मरद को थोड़ा समझा लो, जब भी आते हैं, मेरी नीगोड़ी चूंचीयों को घूरते रहते है। समझा लो...घूरना है तो तेरी चूंचीयों को घूरे मेरी नही। नही तो कभी मुड़ खराब हुआ तो, ठूंस दूंगी अपनी चूंचीयां तेरे मरद के मुह में।
माला का मुह खुला का खुला रह गया। माला को ये तो पता था की, रीता बड़ी बोलबाली वाली लड़की है, पर उसने सोंचा न था की रीता ऐसी बाते भी कर सकती है, वो हैरत से अपना मुह खोले बोली--
माला -- अरे हरजाई, का बोल रही है? लाज-शरम धो कर पी गयी है का? वो तेरे बापू है।
रीता थोड़ी और नज़दीक आते हुए...
रीता -- ओ...हो , बड़ी आयी। बापू है मेरे! तो मैं क्या करुँ? उनको समझाओ ना, वो तो बेशर्मो की तरह मेरी चूंचों को घूरते रहते हैं। और मैने कुछ क्या बोल दीया तो, मैं बुरी हो गयी...?
माला -- ओ...मेरी बीटीया! मैं तूझे भला-बुरा थोड़ी बोल रही हूँ। और तूझे तो अपने बापू का पता ही है, वो तो गांजे और दारू के नशे में धुत्त रहते है, तो उन्हे होश कहां रहता है की, वो क्या कर रहे है क्या नही?
रीता एक बार फीर भाव को बदलते हुए बोली-
रीता -- हाँ तो ये सब तेरी वज़ह से ही तो हो रहा है।
अपनी बेटी की बात सुनकर, माला थोड़ा हैरत भरी आवाज़ में बोली-
माला -- मेरी वज़ह से!!
रीता -- और नही तो क्या? जब देखो तब गाँव में घूमती रहती है। थोड़ा बापू के सांथ भी रहा कर। तू बापू की औरत है, तेरा फर्ज़ है बापू को खुश रखना, पर तू तो ना जाने कीसको खुश कर रही है, घूम-घूम कर!
अपने उपर उठे कीचड़ को देखकर माला गुस्से में बोली...
माला -- चुप कर ! कुछ भी बोले जा रही है। मुझे खराब औरत बोल रही है, बेशरम लड़की! अब एक और शब्द भी मत बोलना।
माला का गुस्सा देखकर, रीता भी थोड़े गुस्से में बोली...
रीता -- खराब औरत बोल नही रही, बल्की तू है। मुझे पता है तेरे और उस भोले सरपंच के बारे में...समझी। अब मुह मत खुलवा मेरा.....बस अपने मरद को समझा दे। और हाँ, अभी सरपंच ने तूझे जीस काम पर लगाया है ना, वो भी मुझे अच्छे से पता है। पर वो सुधा काकी है सुधा काकी, तेरी जैसी नही जो, अपनी टांगे सरपंच के आगे खोल दे...
माला चुप-चाप खड़ी होकर अपनी बेटी की तीखी बाते सुने जा रही थी। पर कुछ बोल नही पायी...
और इधर रीता अपनी माँ को पलटनी देकर रसोंई घर की तरफ नीकल पड़ी थी।
माला के पैरों तले जमीन खीसक चुकी थी। उसे ताज़ुब हो रहा था की, जीस संबध के बारे में गाँव में कीसी को भनक तक ना लगी...उसके बारे में रीता को कैसे पता चल गया? और तो और वो सुधा को सरपंच के लीये मना रही है, इस बारे में भी रीता को कैसे पता चल गया?
सवालों के ढेर में कुदी माला...धीरे से खाट पर बैठ जाती है।