18-04-2022, 06:33 PM
भाग 78
लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।
सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..
चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…
अब आगे..
सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…
इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।
यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।
लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।
दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।
लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..
*का बात बा मन नइखे लागत का?"
"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"
"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"
"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"
सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..
"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"
"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..
लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की
" चल छोड़ जाए दे "
"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…
"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"
आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा
"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"
"ना ना अब तो बतावही के परी"
सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी
"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"
"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."
"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"
नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.
"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "
"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."
सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।
"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"
"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा
"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"
सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए
"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"
लाली के दिमाग में शरारत सूझी
" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी
सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …
"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।
सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।
" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था
" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."
" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"
"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"
लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….
सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…
इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।
लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।
जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..
सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।
कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…
अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला
"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."
अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?
यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।
इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।
सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।
उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….
लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।
दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..
एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।
सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।
सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…
चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।
दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।
वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली
"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"
वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…
" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।
जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।
सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….
उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा
"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"
कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा
"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"
सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..
नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…
तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…
सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……
"सोनू कब आई?"
सरयू सिंह ने सुगना से पूछा
"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।
सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…
सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…
शेष अगले भाग में..
लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।
सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..
चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…
अब आगे..
सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…
इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।
यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।
लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।
दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।
लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..
*का बात बा मन नइखे लागत का?"
"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"
"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"
"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"
सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..
"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"
"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..
लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की
" चल छोड़ जाए दे "
"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…
"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"
आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा
"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"
"ना ना अब तो बतावही के परी"
सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी
"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"
"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."
"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"
नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.
"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "
"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."
सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।
"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"
"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा
"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"
सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए
"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"
लाली के दिमाग में शरारत सूझी
" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी
सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …
"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।
सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।
" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था
" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."
" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"
"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"
लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….
सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…
इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।
लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।
जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..
सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।
कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…
अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला
"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."
अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?
यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।
इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।
सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।
उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….
लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।
दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..
एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।
सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।
सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…
चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।
दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।
वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली
"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"
वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…
" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।
जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।
सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….
उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा
"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"
कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा
"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"
सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..
नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…
तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…
सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……
"सोनू कब आई?"
सरयू सिंह ने सुगना से पूछा
"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।
सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…
सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…
शेष अगले भाग में..