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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#81
भाग 75


सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….

सोनू के जाने से सिर्फ लाली और सुगना ही दुखी न थी घर के सारे बच्चे भी दुखी थे। सोनी शायद सुगना के परिवार की एकमात्र सदस्य थी जो सबसे कम दुखी थी और अपने व्यावहारिक होने का परिचय दे रही। उसके दुख कमी का एक और कारण भी था वह थी आने वाले समय में उसकी आजादी और विकास से मिलने की खुली छूट वह भी बिना किसी डर और संशय के।

दरअसल सोनी अपने भाई सोनू से बहुत डरती थी उसे बार-बार यही डर सताता कि यदि सोनू भैया को यह बात मालूम चल गई कि वह विकास से प्यार की पींगे बढ़ा रही है और उसके साथ कामुक क्रियाकलाप कर रही है तो सोनू भैया उसे बहुत मारेंगे तथा उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देंगे। शायद यह सच भी होता जो सोनू स्वयं अपनी ही मुंह बोली बहन लाली को बेझिझक चोद रहा वह अपनी कुंवारी बहन को लेकर निश्चित ही संजीदा था। सोनी सोनू के जाने से इसीलिए सहज थी।

सोनू और सुगना जिस तरह एक दूसरे के आलिंगन में बिना किसी झिझक के आ जाते थे वैसा सोनी के साथ न था। सोनी सोनू के आलिंगन में कभी ना आती वह उसके चरण छूती परंतु उसे से सुरक्षित दूरी बना कर रहती। ऐसा न था कि सोनी के मन में कोई पाप था परंतु यह स्वाभाविक रूप से हो रहा था। जो पवित्रता और अपनापन सुगना और सोनू के बीच थी शायद सोनी अपने प्रति कम महसूस करती थी।

उधर रेलवे स्टेशन पर खड़ा सोनू का दोस्त विकास उसका इंतजार कर रहा था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए…ट्रेन आने में देर थी इधर उधर की बातें होने लगी तभी सोनू ने उससे पूछा…

"अरे तेरे एडमिशन का क्या हुआ?.

"दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगा" विकास में चहकते हुए जवाब दिया

"वाह बेटा तब तो तेरी बल्ले बल्ले हो जाएंगे यहां तेरी बनारस की बबुनी तो सती सावित्री बन रही थी वहां अंग्रेज लड़कियां ज्यादा नानुकुर नहीं करती खुल कर मजे लेना "

"नहीं यार मुझे तो बनारस की बबुनी ही चाहिए.. क्या गच्च माल है मैं उसको ही अपनी बीवी बनाऊंगा और फिर गचागच …."

विकास को अब तक नहीं पता था कि अपनी प्रेमिका के संग बिताए गए अंतरंग पलों को वह जिस तरह सोनू से साझा किया करता था उसकी प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की अपनी सगी बहन थी। सोनू भी नियति के इस खेल से अनजान अपनी ही बहन के बारे में बातें कर उत्तेजित होता और विकास को उसे अति शीघ्र चोदने के लिए प्रेरित करता। गजब विडंबना थी सोनू अपनी ही बहन को चोदने के लिए विकास को उकसा रहा था।

विकास भली-भांति यह बात जानता था की सोनू लाली के साथ संभोग सुख ले चुका है… वह उसे अपना गुरु मानता था। सोनू विकास की अधीरता समझ रहा था उसने कहा..

"यार कोई तरीका नहीं है उसे मनाने का कोई उपाय तो होगा" सोनू ने विकास को टटोलना चाहा..

"भाई वह शादी की शर्त लगाए बैठी है"

" तो शादी कर क्यों नहीं लेते? तू तो प्यार भी करता है उससे?"

"पागल है क्या मेरे घरवाले कभी नहीं मानेंगे"

"प्राचीन मंदिर में ले जाकर पंडित को 1000 दे वह तेरी शादी करा देगा और फिर बुला लेना अपने पास और कर लेना अपनी तमन्ना पूरी ।"

"क्या यह धोखा नहीं होगा?

नहीं यार जब दोनों ही इस पर राजी हो तो क्या दिक्कत है। जब विदेश से आना तो कर लेना शादी धूमधाम से "

विकास को यह बात समझ आ गई नियति ने सोनी की चूत की आग बुझाने का प्रबंध कर दिया था वह भी उसके अपने ही भाई के मार्गदर्शन में।

पटरियों पर आ रही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म पर कंपन पैदा कर दिए और खड़े सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया। सोनू भी अपने सामान के साथ अलर्ट हो गया विकास भी उसकी मदद करते हुए सोनू के डब्बे के साथ-साथ आगे बढ़ने लगा।

सोनू द्वारा बताई गई सलाह विकास के दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ट्रेन में बैठ चुका था और बनारस शहर को पीछे छूटता हुआ देख रहा था… इस बनारस शहर ने उसके जीवन में कई मोड़ लाए थे।

कॉलेज में आने के पश्चात अपने जीवन को संवारने को संवारने के लिए अकूत मेहनत की थी और उसका फल भी उसे बखूबी मिला था। बनारस शहर ने उसे और भी कुछ दिया था वह थी.. लाली एक अद्भुत प्यार करने वाली महिला जो संबंधों में तो सोनू की मुंहबोली बहन थी पर इस शब्द के मतलब नियति ने समय के साथ बदल दिए थे। प्यार का रूप परिवर्तित हो चुका था। सोनू भी तृप्त था और उसकी दीदी लाली भी।

परिपक्व महिला के कामुक प्रेम का आनंद अद्भुत होता है खासकर युवा मर्द के लिए..

पर आज शाम हुई अप्रत्याशित घटना ने सोनू को हिला दिया था। उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी सुगना दीदी उसे और लाली को संभोग करते देख रही थी। इस घटना ने उसे सुगना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया..था। क्या सुगना दीदी के जीवन में वीरानगी थी? क्या रतन जीजा के जाने के बाद सुगना दीदी अकेले हो गईं थीं? सुगना का मासूम चेहरा सोनू की निगाहों में घूम रहा था।

कैसे सुगना उसका बचपन में ख्याल रखती थी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा उसके सारे कष्टों और गलतियों को अपने सर पर ले लेती। उसे आज भी वह दिन याद है जब वह सुगना के साथ-साथ उसके गवना के दिन उसके ससुराल आया था। उस समय उसे शादी विवाह और गवना का अर्थ नहीं पता था।

सुगना की सुहागरात की अगली सुबह जब वह सुहागरात और उसके अहमियत से अनजान मासूम सोनू सुगना से मिलने गया तो सुगना बेहद दुखी और उदास थी। वह बार-बार सुगना से पूछता रहा

"दीदी का भईल तू काहे उदास बाड़ू ? "

परंतु सुगना क्या जवाब देती… विवाह के उपरांत जिस समागम और अंतरंग पलों की तमन्ना हर विवाहिता में होती है वही आस लिए सुगना सुहाग की सेज पर रतन का इंतजार कर रही थी जिसे रतन ने चूर चूर कर दिया था और इस विवाह पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।

सोनू अपनी बहन के दर्द के करण को तो नहीं समझ पाया परंतु अपनी बड़ी बहन के चेहरे पर आए दुख ने उसे भी दुखी कर दिया था उसने अपनी मां पदमा को भी बताया परंतु उसे न कारण का पता था न निदान का।

जब सोनू को स्त्री पुरुष संबंधों का ज्ञान हुआ तब से उसे हमेशा इस बात का मलाल रहता था की उसके जीजा रतन उसकी बहन सुगना के साथ न थे।

उसे रतन का मुंबई में नौकरी करना कतई पसंद नहीं था। परंतु सोनू घर की परिस्थिति में दखल देने की स्थिति में नहीं था।

कुछ ही महीनों बाद सरयू सिंह और सुगना के बीच एक अनोखा संबंध बन गया और सुगना प्रसन्न रहने लगी। और सोनू अपनी बड़ी बहन की खुशियों में शरीक हो रतन को भूलने लगा। सोनू को वैसे भी रतन से कोई सरोकार न था रतन उसकी बड़ी बहन सुगना का पति था सुगना खुश थी तो सोनू भी खुश था।

टिकट टिकट करता हुआ काले कोट में एक व्यक्ति सोनू को उसकी यादों से बाहर खींच लाया…सोनू को बरबस ही राजेश जीजू की याद आ गई जो लाली का पति था और अपनी लाली को सोनू के हवाले कर न जाने किस दुनिया की सैर करने अकस्मात ही चला गया था।

सोनू को कभी-कभी लगता कि राजेश जीजू कैसे आदमी थे। वह उनकी मनोदशा से पूरी तरह अनजान था।अब न तो राजेश के बारे में लाली बात करना चाहती और ना सोनू। राजेश की बात कर जहां लाली एक तरफ दुखी होती वहीं सोनू असहज। राजेश ने लाली और सोनू को करीब लाने में जो भूमिका अदा की थी वह सोनू के आश्चर्य का कारण था और राजेश के व्यक्तित्व को और उलझा गया था।

सोनू ने अपनी टिकट दिखाई और अपनी बहन सुगना द्वारा दिए गए खाने को खाने लगा सुगना एक बार फिर उसके दिमाग में घूम रही थी।

इधर सोनू सुगना को याद कर रहा था उधर सुगना तकिया में अपना चेहरा छुपाए पेट के बल लेटी हुई सोच कर रही थी। क्यों आज उसने सोनू के कमरे में झांका? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे तो यह बात पता थी की लाली और सोनू अंतरंग होते हैं फिर क्यों नहीं वह वहां से हट गई? परंतु अब पछतावे का कोई मतलब न था। सुगना ने अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन होकर एक युवा प्रेमी युगल के संभोग को लालसा वश देखा था वह यह भूल चुकी थी कि उस रति क्रिया में लीन जोड़े में उसका अपना छोटा भाई था जिसे इस तरह नग्न और संभोगरत अवस्था में देखना सर्वथा अनुचित था।

सुगना कुछ देर यूं ही जागती रही और फिर ऊपर वाले से क्षमा मांग कर सोने का प्रयास करने लगी।

अगली सुबह लाली और सुगना दोनों के घर में अजब सा सन्नाटा था घर का एक मुख्य सदस्य सोनू जा चुका था। सोनू को लखनऊ भेजने की तैयारियों में लाली और सुगना दोनों का घर अस्त-व्यस्त हो गया कई सारे सामान निकाले गए थे इसी क्रम में कुछ अवांछित वस्तुएं भी बाहर आ गई थी जो अब तक किसी कोने में पड़ी धूल चाट रही थीं।

सबसे प्रमुख लाली के पति राजेश द्वारा एकत्रित की गई कामुक किताबें। दरअसल कल सोनू ने अलमारी के ऊपर से सामान निकालते समय उन किताबों को भी निकाल दिया था और रखना भूल गया था।

सुगना लाली के कमरे में आई और नीचे पड़ी पतली जिल्द लगी किताबों को देखकर अपना कौतूहल न रोक पाई उसने उसमें से एक किताब उठा ली और लाली से कहा…

"अरे बच्चा लोग के किताब नीचे काहे फेकले बाड़े?"

लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और बोली "ई लइकन के नाह…लइकन के माई बाबू के हा"

" के पढ़ेला ई कुल?"

"तोर जीजाजी पढ़त रहन…"

अब तक सुगना पन्ने पलट चुकी थी अंदर किताब में रतिक्रिया का सचित्र वर्णन था। सुगना की सांसे थम गई रतिक्रिया में लीन विदेशी युवक और युवतियों की रंगीन परंतु धुंधली तस्वीर ने सुगना की उत्सुकता और बढ़ा दी वह पन्ने पलटने लगी…

लाली ने सुगना की निगाहों में उत्सुकता और चेहरे पर कोतुहल भाप लिया उसने सुगना को एकांत देने की सोची और उससे बिना नजरे मिलाए हुए बोली

"ते बैठ हम चाय लेके आवा तानी"

सुगना ने उसे रोकने की कोशिश न कि वह सच एकांत चाहती थी सुगना बिस्तर पर बैठ गई और कुछ चित्र देखने के बाद किताब को पढ़ने की कोशिश करने लगी…

कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार थी…

रहीम अपनी आपा फातिमा की पुद्दी में अपना लंड डाले उसे गचागच चोद रहा था रहीम ने फातिमा के मुंह को अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था फातिमा की आंखों में आंसू थे और उसके दोनों पैर हवा में थे…..

फातिमा को इस अवस्था में लाने के लिए रहीम को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे….

जैसे-जैसे सुगना कहानी बढ़ती गई उसे कहानी में और भी मजा आने लगा स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण एक स्वाभाविक और कुदरती प्रक्रिया है… सुगना रहीम और फातिमा की प्रेम कहानी को दिलचस्पी लेकर पढ़ रही थी…जैसे-जैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी सुगना की जांघों के बीच बालों के झुरमुट में हलचल हो रही थी अंदर बंद मक्खन पसीज रहा था.. सुगना गर्म हो रही थी…

तभी लाली कमरे में चाय लेकर आ गई। उसे देखकर सुगना ने झटपट किताब बंद कर दी और स्वयं को व्यवस्थित करते हुए उसने उत्सुकता बस लाली से पूछा….

"आपा केकरा के कहल जाला"

"बड़ बहिन के"

"हट पागल ऐसा ना हो ला"

"सच कहतानी आपा मियां लोग में बड़ बहन के कहल जाला" ई किताब रहीम और फातिमा वाली त ना ह"

"हे भगवान… फातिमा रहीम के बड़ बहिन रहे…"

सुगना को अपने कानों पर विश्वास ना हुआ….

"इतना गंदा किताब के ले आई रहे?"

"तू अपना जीजा जी के ना जानत रहो उनकर ई कुल में ढेर मन लागत रहे और ई सब गंदा पढ़ा पढ़ा के हमारो मन फेर देले आगे ते जानते बाड़े …"

सुगना को यकीन नहीं हो रहा अब तक उसने जितनी कहानी पढ़ी थी वह घटनाएं भाई और बहन के बीच होती जरूर थी पर उनकी परिणीति को जिस रूप में इस कहानी में दिखाया गया था भाई-बहन के बीच होना असम्भव था…

किताब की भाषा बेहद अश्लील और गंदी थी जिस सुगना में आज तक अपने मुंह से चोदने चुदवाने की बात न की थी वह अपनी आंखों से वह शब्द पढ़कर एक अजीब किस्म की बेचैनी महसूस कर रही थी। चाय खत्म होते ही वह उठकर जाने लगी अनमने मन से किताबों को बंद कर उसी जगह पर रखने लगी।

तभी लाली ने कहा

"ले लेजो अपना भीरी आधा दूर के बाद कहानी पढ़ना में ढेर मजा आई …ओसाहों कहानी बीच में ना छोड़े के आदमी रास्ता भुला जाला… "

"ना ना हमरा नईखे पढ़ने के ई कुल"

"ठीक बा ले ले जो मन करे तब पढ़िहे ना ता फेंक दिहे… हमरा खातिर अब एकर कौनो मतलब नइखे.".

"सुगना ने किताब को वापस अपने हाथों में ले लिया.. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी ..उसने लाली से नजर ना मिलाई और गर्दन झुकाए हुए कमरे से बाहर निकल गई…. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था और चूचियां सख्त हो रही थी. ऐसा नहीं कि वह सोनू के बारे में सोच रही थी परंतु उसके लिए यह कहानी अविश्वसनीय और अद्भुत थी।

उधर विकास सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। वह सोनी के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़प रहा था। उस दिन ट्यूबवेल पर उसका यह सपना पूरा होते-होते रह गया था। क्या विवाह संभोग की अनिवार्य शर्त है? क्या प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण का कोई स्थान नहीं?

विकास मन ही मन यह फैसला कर चुका था कि वह सोनी से विवाह करेगा परंतु वह यह कार्य अपने पैरों पर खड़ा होने के बात करना चाहता था। परंतु शरीर की भूख उसे अधीर कर रही थी वह सोनी के कामुक बदन को भोगने के लिए तड़प रहा था।

उसे सोनू की बात पसंद आ गई आखिर हर विवाह के साक्षी भगवान ही होते हैं…. तो क्यों ना वह सोनू की बात मानकर सोनी से मंदिर में शादी कर ले.

ऐसा ना था की प्यार में सिर्फ विकास ही पागल था सोनी भी अपनी छोटी सी चूत में धधकती आग लिए पिचकारी की तलाश कर रही थी जो अपने श्वेत धवल वीर्य से उसकी बुर की आग शांत कर पाता। सोनी अपनी सहेलियों से कामवासना के साहित्य में पीएचडी कर चुकी थी बस प्रैक्टिकल करना बाकी था। विकास का लंड उसे बेहद पसंद आता था जिसका आकार उसे अपने छोटी सी बुर के अनुरूप लगता…।

कुछ ही दिनों में विकास के विदेश जाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। अमेरिका जाने की खबर विकास के लिए ढेरों खुशियां लाई थी परंतु सोनी से बिछड़ने का दर्द उसे सताने लगा।

सोनी तक जब यह खबर पहुंची वह फफक फफक कर रोने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अपने को खोने जा रही है। दोनों प्रेमी एक दूसरे के आलिंगन में अपनी आंखों में आंसू लिए आने वाले समय के बारे में सोच रहे थे।

सोनी और विकास ने पिछले 2 वर्षों में ढेरों आनंद उठाए थे विकास सोनी को चोद तो नहीं पाया था परंतु सोनी के अंग प्रत्यंग से वह भलीभांति परिचित हो चुका था। ऐसा लग रहा था जिस इमारत का निर्माण उसने स्वयं अपने हाथों से किया था उसका वह कोना-कोना देख चुका था सिर्फ ग्रह प्रवेश बाकी रह गया था। सोनी भी तड़प रही थी और अपनी अधीरता को जाहिर करते हुए बोली..

"अब तो हम लोगों की शादी 1 वर्ष बाद ही होगी तुम आ तो जाओगे ना"

"मेरी जान यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं वहां जाता ही नहीं.. रही बात शादी की तो वह हम अब भी कर सकते हैं . घरवाले अभी तो नहीं मानेंगे पर हम दोनों के इष्ट देव इस बात के गवाह रहेंगे"

विकास के मन में सोनू द्वारा की गई बातें घूम रही थी। उसने सोनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे कहा .

"क्यों ना हम प्राचीन मंदिर में जाकर विवाह करलें कई जोड़े वहां विवाह करते हैं। मैं जाने से पहले तुम्हें सुहागन देखना चाहता हूं और वहां से आने के पश्चात हम दोनों धूमधाम से शादी कर लेंगे।"

सोनी विकास की बात सुनकर अवाक रह गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। विकास ने उसे एक बार फिर आलिंगन में भर लिया और बोला

"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी विवाह हमें करना ही है चाहे अभी या आने के बाद.. यह तुम्हारी इच्छा पर है."

सोनी कुछ कह पाने की स्थिति में न थी. विकास के जाने का दर्द उसे सता रहा था और उससे भी ज्यादा उसे खोने का डर सोनी के मन में आया निश्चित ही विवाह के उपरांत विकास विवाह की पवित्रता की लाज रखेगा और अमेरिका में जाकर व्यभिचार से दूर रहेगा.

सोनी ने अपनी मासूम बुद्धि से विचार मंथन किया और बोली

" पंडित जी वहां शादी करावे ले…बिना घर वालन के?"

सोनी के प्रश्न में विकास के प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ था सोनी ने अपनी रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से दे दी थी।

तुम सुबह-सुबह तैयार रहना मैं लेने आऊंगा बाकी मुझ पर छोड़ दो …

दोनों युवा प्रेमी चेहरे पर समर्पण का भाव लिए अलग हुए परंतु दोनों के मन में उथल-पुथल जारी थी जो कदम उठाने जा रहे थे वह बेहद नया और गंभीर था।

कुछ ही देर में सोनी विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने घर की तरफ निकल पड़ी और हमेशा की तरह घर से कुछ दूर पहले ही उतर कर विकास को विदा कर दिया। सोनी कभी भी यह नहीं चाहती थी कि विकास उसके परिवार वालों से मिले । वह वक्त आने पर उसे अपने परिवार से मिलाना चाहती थी.। उस बेचारी को क्या पता था कि जिस पुरुष को उसने पसंद किया है वह उसके बड़े भाई सोनू का लंगोटिया यार है और उससे हर बात साझा करता यहां तक की उसके अंग अंग प्रत्यंगो के विस्तृत विवरण से लेकर उसकी अब तक की कामयात्रा भी।

अगली सुबह विकास पूरे उत्साह और तैयारी के साथ आया तथा प्राचीन मंदिर में जाकर उसने सोनी से विवाह कर लिया। दिन का वक्त था .. जब विवाह दिन में हुआ था तो आगे की रस्में भी दिन में ही होनी थी…सोनी अपने इस अप्रत्याशित कदम से कभी दुखी होती पर विकास को अपने करीब पाकर खुश हो जाती। उसे इस आनन-फानन में हो रहे विवाह को लेकर एक अजब किस्म का डर था जो अब समय के साथ कम हो रहा था। फेरे खत्म होते होते सोनी सहज हो गई.

उस दौर में विवाह प्रेम की पराकाष्ठा थी और संभोग पूर्णाहुति…विकास और सोनी किराए की कार में बनारस के एक खूबसूरत होटल की तरह बढ़ चले.. विकास के कुछ दोस्तों ने सोनी के सुहागरात की जोरदार व्यवस्था कर दी थी……

नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…

शेष अगले भाग में..
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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 18-04-2022, 06:21 PM



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