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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#80
Heart 
भाग 74


जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ स्वता ही ऊपर की तरफ आ रहे थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

अब आगे..

लाली को नंगी देखकर सोनू सुध बुध खो बैठा। वैसे भी आज उसे अपनी बहनों को छोड़कर न जाने कितने दिनों के लिए लखनऊ जाना था। समय कम था..काम ज्यादा। सोनू ने अधीर होकर लाली को बिस्तर पर बिछा दिया।

लाली चाहती तो यही थी कि वह अपनी निगाहें खिड़की पर रखें ताकि वह इस बात की तस्दीक कर सके कि क्या सुगना ने अकस्मात ही अंदर झांक लिया था या वह जानबूझकर उन्हें देख रही थी।

परंतु संयोग कहे या नियति का खेल लाली चाह कर भी यह न कर पाई सोनू के मजबूत हाथ बिस्तर पर उसकी दिशा तय कर गए थे । लाली अपने दोनों पैर ऊपर किए हुए बिस्तर पर लेटी गई और सोनू ने उसकी चिकनी चूत में मुंह गड़ा दिया।

सुगना की आंखों के सामने जो हो रहा था वो वह भलीभांति समझती थी। क्या सच में सोनू उम्र से पहले परिपक्व हो गया था? निश्चित ही लाली ने उसे उकसाया होगा। अन्यथा उसका सीधा साधा भाई इतनी छोटी उम्र में इस तरह …. हे भगवान सोनू की हथेलियां लाली की नंगी चूचियों पर घूम रही थी। वह अपनी मजबूत हथेलियों से लाली की कोमल चुचियों को कभी सहलाता कभी उन्हें जोर से मसल देता और लाली अपने पैर उसकी पीठ पर पटकने लगती।

सुगना एक टक वह दृश्य देख रही थी। लाली के हिलते हुए पैर उसकी जांघों के बीच हो रही हलचल एवम् उस छेड़छाड़ से उत्पन्न उत्तेजना का प्रदर्शन कर रहे थे। लाली बार-बार सर उठाकर सुगना को देखना चाहती थी परंतु कभी सोनू का सर कभी उसके हवा में लहराते पैर उसकी निगाहों के सामने अवरोध पैदा कर देते और उसकी नजरें सुगना से ना मिल पातीं।

लाली की सुगना को देखने की उत्सुकता ने उसकी गोरी और पनियायी चूत को चुसवाने के आनंद में कमी ला दी थी। उसका ध्यान बार बार खिड़की पर जा रहा था। वह सुगना को देखना चाहती थी।

कौतूहल और जिज्ञासा मनुष्य का सारा ध्यान खींच लेती है उसका किसी काम में मन नहीं लगता यही हाल लाली का था..

अंततः उसने सोनू को स्वयं से अलग कर दिया और सोनू के बिना कहे ही बिस्तर पर घोड़ी बन गई उसने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि इस बार वह खिड़की की तरफ देख पाए। उसने खिड़की के समानांतर अपनी अवस्था बना ली। खिड़की की तरफ देखते ही उसकी आशंका ने मूर्त रूप ले लिया…. उसका कलेजा मुंह को आ गया … सुगना अभी भी अंदर की तरफ देख रही थी…हे भगवान…कुछ अनिष्ट हो रहा था।

पर्दे की पीछे से उसकी कजरारी आंखें लाली को दिखाई पड़ गईं जिनका निशाना शायद सोनी का चेहरा ना होकर लाली के मादक नितंब थे जिसे सोनू सहला रहा था। लाली और सुगना की नजरें न मिलीं पर लाली की कामुकता में अचानक उबाल आ गया… अपनी प्रिय सहेली के भाई से उसी के सामने चुदवाने की बात सोचकर वह अत्यधिक कामुक हो उठी। उसने सोनू से कहा

"अरे वाह… हमार कूल कपड़ा उतार के हमारा के नंगा कर देला और अपने सजधज कर खड़ा बाड़….. कलेक्टर साहब ई ना चली… " सोनू मुस्कुराने लगा..और खिड़की पर खड़ी उसकी बहन सुगना भी।

इस कलेक्टर संबोधन से सुगना के स्वाभिमान को बल मिला था। सोनू ने झटपट अपने कपड़े उतार दिए उसे क्या पता था आज वह पहली बार अपनी बहन सुगना के सामने नंगा हो रहा था।

सुगना की नजरों और उपस्थिति से अनजान सोनू पूरी तरह नग्न होकर अपने लंड को हवा में लहराने लगा तथा अपनी हथेली से उसे पकड़ कर आगे पीछे करने लगा..

सुगना अपनी सांसें रोके यंत्र वत अंदर देख रही थी वह यह दृश्य देखना चाहती थी या नहीं… यह तो वह और उसकी अंतरात्मा जाने परंतु सोनू के लंड पर से नजरें हटा पाना किसी युवा स्त्री के लिए संभव न था। सुगना एक पुतले को भांति खड़ी सोनू को देखे जा रही थी।

सोनू का लंड समय से पहले ही मर्दाना लंड से मुकाबला करने या यूं कहे मात देने को तैयार था। सरयू सिंह की जिस दिव्य काया के दर्शन सुगना अब तक कर चुकी थी उसकी तुलना में सोनू का का भरा पूरा मांसल शरीर और तना हुआ लंड किसी भी प्रकार कम न था। अनजाने में ही सुगना सरयू सिंह के लंड की तुलना सोनू के लंड से करने लगी….. और उसकी तुलना ने उसे सोनू के लंड को ध्यान से देखने का अधिकार दे दिया। …

आज एक बार फिर सोनू के लंड की तुलना करते करते सुगना ने अपनी कलाई को देखा जैसे वह सोनू के लंड को अपनी कलाई के व्यास से मिलाने की कोशिश कर रही थी।

अपना आखिर अपना होता है सोनू सुगना की निगाहों में भारी पड़ा… सच कहे तो युवा सोनू अद्भुत था। सोनू का लंड अपने भीतर आ रहे रक्त के धक्कों से रह रह कर ऊपर उठ रहा था सुगना को इस तरह लंड का उछलना बेहद पसंद आता था।

इधर सुगना अपनी तुलना में व्यस्त थी उधर सोनू बिस्तर पर आ चुका और वह लाली के नितंबों और कटीली कमर पर हाथ फिराते हुए उस पर झुकता गया.. उसके होंठ जब तक लाली के कानों तक पहुंचते तब तक उसके लंड के सुपाड़े ने लाली के बुर् के होठों में छेद करने की कोशिश की। लाली की चुंबकीय चूत जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी उसने एक झलक सुगना की तरफ देखा और अपनी कमर पीछे कर दी। सोनू का लंड एक गर्म रॉड की तरह की कसी पर चिपचिपी बुर में उतर गया।

सुगना यह दृश्य देखकर मदहोश हो गईं। न चाहते हुए भी उसकी जांघों के बीच गीलापन आ गया चूचियां सख्त हो गई और आंखें लाल…। एकाग्रता और उत्तेजना ने सुगना का दिमाग कुंद कर दिया उसे यह अहसास भी ना था की जिस प्रेमी युगल को वह रति क्रिया करके देख रही थी उसमें से एक उसका अपना छोटा भाई था।

सुगना आज पहली बार रति क्रिया के दृश्य नहीं देख रही थी वह इससे पहले भी सरयू सिंह और कजरी की चूदाई देख चुकी थी। उसके जीवन में यह संयोग पहले भी हो चुका था पर आज सुगना अपने सगे भाई को अपनी हमउम्र प्यारी सहेली को चोदते हुए देख रही थी। सोनू जो उसका छोटा और प्यारा भाई था आज एक पूर्ण मर्द की तरह लाली को गचागच चोद रहा था और लाली सुगना की तरफ बार-बार देख कर मुस्कुरा देती।

सोनू और लाली की चूदाई की रफ्तार बढ़ रही थी । सुगना की उपस्थिति से लाली अति उत्तेजित हो गई और कुछ ही देर में उसकी बुर ने कंपन प्रारंभ कर दिए…. सोनू में उसकी चूचियों को मसलते कहा..

" काहे दीदी आज जल्दी ए……कांपे लगलू"

लाली ने कुछ ना कहा वह अपने इस स्खलन का आनंद उठाने में व्यस्त थी। उसकी निगाहें खिड़की की तरफ थीं.. और वह अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर स्खलित हो रही थी। सुगना की नजरों की तरफ देखते हुए इस तरह स्खलित होने का यह अप्रतिम आनंद लाली को अभिभूत कर गया इस स्खलन का आनंद लाली के दिलों दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया।

अचानक सोनू का ध्यान लाली की निगाहों की तरफ गया सोनू की निगाहों ने लाली की निगाहों का अनुसरण किया एक झटके में सोनू ने सुगना को अंदर का दृश्य देखते देख लिया।

एक पल के लिए सोनू सहम गया उसी यकीन ना हुआ कि सुगना वहां खड़ी थी।

जब दो नजरें जब एक दूसरे से मिल जाती है तो दोनों को ही एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास हो जाता है। आप चाह कर भी उस पल को झुठला नहीं सकते।

सोनू और सुगना की भी निगाहे एक दूसरे से मिल चुकी थीं। सोनू से नजरें मिलते ही सुगना एक पल के लिए खिड़की से हट गई। परंतु उस एक पल ने सोनू को व्यग्र कर दिया….

सोनू ने दोबारा खिड़की की तरफ देखा सुगना वहां न थी। सोनू ने अपनी व्यग्रता को दरकिनार कर एक बार फिर लाली को उसकी कमर से पकड़कर अपने लंड पर खींच लिया। और तना हुआ लंड लाली की चिपचिपी और प्रतिरोध को चुकी हो बुर में अंदर तक प्रवेश कर गया।

सोनू अपनी आंखें बंद किए अपना चेहरा छत की तरफ किया हुआ था चेहरे पर अजब से भाव थे। न जाने सोनू को क्या हो गया था…. उसने लाली की कमर को और तेजी से पकड़ा तथा उसे पूरी ताकत से अपनी कमर से सटा दिया…उसका तना हुआ लंड लाली के गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो गया … लाली कराह उठी..

"सोनू बाबू …तनी धीरे से….. दुखाता"

लाली की इस कामुक कराह ने सुगना का ध्यान बरबस खींच लिया जिससे वह भली भांति परिचित थी। सुगना अभी भी खिड़की के पास दीवार से पीठ टिकाए अपनी सांसो को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसके सीने में शांत धड़कने वाला दिल आज पिंजरा तोड़ बाहर आना चाह रहा था। उसने एक बार फिर खिड़की के अंदर देखना चाहा.. अंदर सोनू अपनी आंखे बंद किए और चेहरे पर वासनजन्य उत्तेजना लिए लाली को पूरी रफ्तार से चोद रहा था। उसकी हथेलियों की मजबूत पकड़ से लाली की कमर और कंधों पर निशान पड़ गए थे…लंड चूत से पूरा बाहर आता और गचाक से अंदर चला जाता। लाली की बुर के रस से लंड की चमक और बढ़ गई थी। हल्के गेहुएं लंड पर नसों की नीली धारियां उभर आयी थी। कभी-कभी लाल ही चुका सुपाड़ा बाहर आता परंतु वह लाली की प्यारी पुर से अपना संपर्क न छोड़ता और तुरंत उन कोमल गहराइयों में विलुप्त हो जाता।

सोनू का लावा फूटने वाला था। लाली को इस तरह चोदते समय उसने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी थीं.. उसके दिमाग में क्या चल रहा था यह तो वही जाने या हमारे ज्ञानी पाठक ..। परंतु लाली इस चूदाई से अभीभूत थी …सोनू की उत्तेजना का यह रंग नया था।

वीर्य की पहली धार ने जब अंडकोष से सुपाडे तक का रास्ता तय किया.. सोनू ने अपनी आंखें खोली और एक बार फिर खिड़की की तरफ देखा… सुगना से आंखें मिलते ही वह तड़प उठा….उसने अपनी आंखें पुनः बंद कर लीं और लाली की बुर में अपने वीर्य की पहली बूंद डालकर लंड को ना चाहते हुए भी बाहर निकाल लिया.. और लाली के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगा…उसकी मजबूत हथेलियां जैसे उसके लंड का मानमर्दन कर उससे वीर्य की हर बूंद खींच लेना चाहती हो…

लाली तुरंत पलट कर पीठ के बल आ गई और सोनू के लंड से से निकल रहा वीर्य उसकी चुचियों चेहरे और गदरायी जांघों पर गिराने लगा…. सोनू खिड़की की तरफ दोबारा देखने की हिम्मत न जुटा पाया.. परंतु उसे यह अहसास हो चुका था उसकी बड़ी बहन सुगना ने आज जो कुछ देख लिया था शायद वह उचित न था।

सोनू यहीं ना रुका..वह लाली की चुचियों पर गिरे वीर्य को अपने हाथों से उसकी चुचियों पर मलने लगा….

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह भागते हुए अपने कमरे में गई और बिस्तर पर बैठ कर अपनी आंखें बंद किए खुद को संयमित और नियंत्रित करने का प्रयास करने लगी। पर यह इतना आसान न था।

अप्रत्याशित दृश्य दिमाग पर गहरा असर छोड़ते हैं।

आज उसने अपने ही भाई को पूर्ण नग्न अवस्था में अपनी सहेली के साथ संभोग करते हुए अपनी इच्छा और होशो हवास में देखा था। उसने ऐसा क्यों किया इसका उत्तर स्वयं उसके पास न था। पर जो होना था वो हो चुका था।

सोनू और लाली के कमरे से बाहर आने की हलचल से सुगना सतर्क हो गई और वह अपनी बुर के बीच एक अजीब सा चिपचिपा पन लिए बाथरूम में चली गई। उसने अपनी पेंटी उतार कर उसे बदलना चाहा जो चिपचिपी हो कर उसे असहज कर रही थी। अपनी ही प्रेमरस से गीली पेंटी से अपने बुर के होंठों को पोछते समय अनजाने में ही उसकी तर्जनी ने उसके भगनाशे को छू लिया। उंगली और उसके भगनासे का यह मिलन कुछ देर तक यूं ही चलता रहा… सुगना के दिमाग में एक बार फिर न चाहते हुए भी लंड का दिव्य आकार घूम गया …वह बार-बार अपने बाबूजी के लंड को याद करती जिससे न जाने वह कितनी बार चुदी थी परंतु रह रह कर उसके दिमाग में..सोनू के थिरकता लंड का ध्यान आ जाता।

अचानक सुगना ने महसूस किया जैसे वो स्खलित हो चुकी है। पैरों में ऐठन इस बात का प्रतीक थी। ऐसा लग रहा था जैसे सुगना रह-रहकर टुकड़ों में स्खलित हुईं थी। कुछ शायद सोनू और लाली के प्रेमलाप के समय और रही सही कसर अभी तर्जनी और भगनासे की रगड़ ने पूरी कर दी थी।

"मां बाहर आओ मामा के जाने का टाइम हो गया है" मालती की आवाज सुनकर सुगना ने अपनी दूसरी पेंटी पहनी और अपने कपड़ों को ठीक कर बाहर आ गई। चेहरे के भाव अब भी सुगना के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते थे। वह बदहवास सी सोनू के सामान को सजाने में लग गई।

सोनू के जाने की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं। सुगना और लाली ने सोनू के लिए तरह-तरह के सूखे पकवान बनाए थे जिनका उपयोग वो आने वाले कई दिनों तक कर सकता था । हाल में सभी एकत्रित होकर गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। जहां लाली के चेहरे पर सुकून दिखाई दे रहा था वही सोनू और सुगना तनाव में थे। लाली को यह बात पता न थी की उस अद्भुत चूदाई के दौरान सोनू और सुगना की निगाहें मिल चुकी थीं। परंतु लाली यह बात भली-भांति जानती थी कि सुगना ने आज उन दोनों का मिलन अपनी नंगी आंखों से देख लिया है और वह इसीलिए असहज महसूस कर रही है।

वह बार-बार सुगना से सामान्य बातचीत कर उसे सहज करने का प्रयास करती पर सुगना चुप थी। नियति ने भाई बहन को और परेशान न किया और बाहर दरवाजे पर गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी।

"लगता गाड़ी आ गइल" सोनू ने बाहर झांकते हुए बोला..

सोनू अपने नए कार्यभार की ट्रेनिंग लेने के लिए घर से बाहर निकल रहा था। आज का दिन उसके दिलो-दिमाग में एक अजब सी कशमकश छोड़ गया था। घर की दहलीज से बाहर निकलने से पहले उसे यह भी याद ना रहा कि उसे सुगना के चरण भी छूने है। अपनी सर और लज्जा बस वह ऐसे ही बाहर निकल रहा था। लाली ने उसे याद दिलाया…

"अरे बाबू ऐसे ही चला जाएगा? अपना दीदी के पैर नहीं छुएगा ?"

सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ परंतु उसकी हिम्मत अभी भी न हो रही थी। फिर भी वह सुगना के चरण छूने के लिए झुक गया।

सुगना ने उसके सर को सहला कर आशीर्वाद दिया और अपने प्यारे भाई को कई दिनों के लिए बिछड़ते देख उसका पवित्र प्रेम फिर जाग उठा और उसने सोनू को गले से लगा लिया। इस दौरान सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी उसके आलिंगन में वही अपनापन वही प्यार था जो आज इस घटना से पहले हमेशा रहा करता था। परंतु सोनू असहज था।

सुगना ने अपनी आंखों में विदा होने का दर्द लिए रुंधे हुए गले से सोनू के गाल को सहलाते हुए कहा ..

"जा अपना ख्याल रखिह और बड़का कलेक्टर बन के आईह…" सुगना की आंखों से आंसू छलक आए . कुछ समय पहले जो सुगना सोनू को लेकर असहज हुई थी वह अचानक ही पूरी तरह सामान्य हो गई थी सोनू के प्रति उसका प्रेम प्रेम छोटे-मोटे झंझावातों को भूल कर एक बार फिर अपना प्रभुत्व जमा चुका था। सोनू भी अपनी बहन के प्यार में बह गया और उसने भी एक बार फिर उसे अपने से सटा लिया सोनू का यह अपनत्व पूर्ववत था..विचारों में आई धुंध एक पल में ही साफ होती प्रतीत हो रही थी।

सोनी ने भी सोनू के चरण छुए। सोनू ने उसे अच्छे से पढ़ाई करने की नसीहत दी तथा बाहर निकलने लगा।

सोनी ने याद दिलाया "अरे लाली दीदी के पैर ना लगबे का?"

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….
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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 18-04-2022, 06:19 PM



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