18-04-2022, 06:01 PM
भाग - 68
नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।
एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।
कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।
नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे…
अब आगे...
रतन का इंतजार खत्म होने वाला था । विशेष पूजा के लिए रतन, सुगना और सोनी के संग चार दिन पहले ही सलेमपुर आ गया उसे इस उत्सव की तैयारियों में अपने चाचा सरयू सिंह का हाथ भी बटाना था।
सुगना की मां पदमा भी अपनी पुत्री मोनी के साथ सलेमपुर आ चुकी थी सरयू सिंह का भरा पूरा परिवार आंगन में बैठकर बातचीत कर रहा था तरह-तरह की बातें... तरह तरह के गीत गाए.. जा रहे थे। कजरी सोनी और मोनी को छेड़ रही थी और बार-बार उनके विवाह का जिक्र कर रही थी। मोनी को तो विवाह शब्द से कोई सरोकार न था परंतु विवाह का नाम सुनते ही सोनी सतर्क हो जाती। यद्यपि उसे यह बात पता थी कि बिना नर्सिंग की पढ़ाई पूरी किए उसका विवाह नहीं होना था परंतु कल्पना का क्या? उसका अल्लढ़ मन विवाह और उसकी उपयोगिता को भलीभांति समझता था। वह मन ही मन विकास से विवाह करने और जी भर कर चुदने को पूरी तरह तैयार थी।
सरयू सिंह दरवाजे पर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और आने वाले मेहमानों से उपहार और न्योता ग्रहण कर रहे थे। जब जब वह अंदर आंगन में आते सारी महिलाएं सतर्क हो जाती।
कजरी जान चुकी थी कि अब सरयू सिंह और सुगना के बीच कोई कामुक संबंध नहीं है उसे इस बात की बेहद खुशी थी। परंतु सुगना ...आह ...उसके मन में सरयू सिंह को देखकर अब भी एक कसक सी उठती थी।
देखते ही देखते पूजा का दिन आ गया। सुगना और रतन दोनों ने ही इस पूजा के लिए उपवास रखा था। सरयू सिंह ने कजरी से कहा "सुगना बेटा के शरबत पिला दिया तब से भूखल होइ"
सुगना सरयू सिंह के प्रेम की हमेशा से कायल थी परंतु प्रेम का यह परिवर्तित रूप पता नहीं क्यों उसे रास नहीं आ रहा था। उसने जिस रूप में सरयू सिंह को देखा था वह उन्हें उसी रूप में चाहती थी यह नया रूप उसके लिए अटपटा था।
उसका दिलो-दिमाग और तन बदन सरयू सिंह को पिता रूप में देखने के लिए कतई तैयार न था। जिस पुरुष से सुगना तरह-तरह के आसनों में चुदी थी और वासना के अतिरेक को देखा था उसे पिता रूप में स्वीकार उसके बस में न था।
पद्मा (सुगना की मां) ने सुगना से पूछा
"सोनू ना आई का?"
" कहले तो रहे हो सकता लाली के लेकर आई "
पदमा अपने पुत्र को देखने के लिए लालायित थी।
कजरी ने आकाश की तरफ देखा । सूर्य अपना तेज खो रहा था। पूजा का समय हो रहा था।
उसने सोनी से कहा…
"ए सोनी जा अपना दीदी के तैयार करा द"
सुगना के दिमाग में अभी भी सरयू सिंह ही चल रहे थे उसने कहां
" ते रहे दे सोनी हम तैयार हो जाएब"
" सोनी के लेले जो अलता नेलपॉलिश लगा दी"
आखिरकार सोनी और सुगना अपनी कोठरी में आ गई।
रतन सुगना के लिए गुलाबी लहंगा और चोली लाया था और साथ में जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी भी थी।
वह अपनी पत्नी के साथ अपना प्रथम मिलन यादगार बनाना चाहता था।
कमरे में अपने पलंग को देखकर सुगना के दिमाग में पुरानी यादें घूमने लगी इस पलंग पर वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से न जाने कितनी बार चुदी थी उसे खुद भी ध्यान न था। दिन में कभी दो बार कभी-कभी तीन- चार बार ... और आज इसी पलंग पर उसे रतन के सामने प्रस्तुत होना था। सुगना खोई खोई सी थी। उसके मन का द्वंद उसे कभी परेशान करता कभी उसकी बुर भावनाओं के झंझावात को भुलाकर चुदने के लिए अपने होठों पर मदन रस ले आती।
सोनी सुगना के कपड़े झोले में से निकालने लगी। गुलाबी रंग का लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था..
"कितना सुंदर बा" सोनी विस्मित होते हुए बोली
सचमुच वह लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था और जिसे उसे धारण करना था उसकी खूबसूरती इस लहंगा चोली से भी दोगुनी थी।
सुगना को वह लहंगा चोली देखकर उस दिन की याद आ गई जब उसके लहंगे में कीड़ा घुसा था और जिसे निकालते निकालते उसके बाबुजी सरयू सिंह ने पहली बार उसके अनछुए और कोमल मालपुए (सुगना की बुर) के प्रथम दर्शन किए थे।
"ए दीदी कितना सुंदर बा" सोनी की बात सुनकर सुगना घबरा गई। सुगना अपना हाथ अपनी जांघों के बीच ले आए और अपनी उस बुर को छुपाने लगी जो उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने सोनी की तरफ देखा जो रतन द्वारा लाए गए जालीदार ब्रा और पेंटी को हाथ में लेकर लहलाते हुए बोली..
"सुगना शर्म से पानी पानी हो गई" रतन पहली बार में ही उसे ऐसी ब्रा और पेंटी लाकर देगा इसका अंदाजा उसे ना था ऊपर से वह सोनी के हाथों में लग गई थी। "चल रख दे हम उ ना पहनब"
"अरे वाह काहे ना पहिनबु जीजा जी अतना शौक से ले आईल बाडे" सोनी सुगना से खुलने का प्रयास कर रही थी।
सुगना मन ही मन तैयार तो थी परंतु वह सोनी के सामने उसे पहनने में असहज महसूस कर रही थी। उसने सोनी को आलता लेने भेजा और जब तक वह वापस आती रतन द्वारा लायी जालीदार पैंटी सुगना की बुर चूम रही थी….
ब्रा भी चुचियों पर फिट आ रही थी। सोनी सुगना को देखती रह गयी। कितनी खूबसूरत थी सुगना… दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके कमर के कटाव वैसे ही थे बल्कि और मादक हो गए थे। पतली कमर सपाट पेट मे थोड़ा उभार अवश्य आया था जो उसे किशोरी से वयस्क की श्रेणी में ले आया था।
यदि कोई ऋषि महर्षि सुगना को उसी अवस्था में जड़ होने का श्राप देते तो वह पाषाण मूर्ति बनी खजुराहो के मंदिरों में जड़ी हुयी काल कालांतर तक युवाओं में उत्तेजना भर रही होती।
लहंगे में छुपी उसकी खूबसूरत जाँघे ऐसे तो नजर न आती पर सुगना जैसे ही अपने पैर आगे बढ़ाते जांघो का आकार स्पष्ट नजर आने लगता। सोनी ने सुगना के पैरों में आलता लगाया पाजेब पहनायी। उसकी शादी के गहने पहनाए। रतन द्वारा विवाह के समय दिया गया मंगलसूत्र भी पहनाया पर सुगना ने सरयू सिह द्वारा दीपावली के दिन दी हुयी सोने की चैन को ना उतारा। वह उसकी पहली चुदाई की निशानी थी।
रतन द्वारा दिए गए झोले को सुगना ने हटाने की कोशिश की और उसमें एक शीशी को देख कर चौक उठी। उसने वह छोटी सी शीशी निकाली और उसमें रखे द्रव्य का अनुमान लगाने लगी। जब वह उसे अपनी आंखों से समझ न पहचान पाई उसने अपनी घ्राण शक्ति का प्रयोग किया और जैसे ही वह शीशी उसने अपने नाक के पास लायी उसकी मदमस्त खुशबू से सुगना भाव विभोर हो गयी।
सुगना ने इत्र के बारे में सुना जरूर था पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया था।। पर रतन मुंबई में जाकर इन सब आधुनिक साज सज्जा और रास रंग के सामग्रियों से बखूबी परिचित हो चुका था। रतन की पहली पत्नी बबीता सजने सवरने में माहिर थी।
सुगना ने इत्र की शीशी खोली और उसे अपने घाघरा और चोली पर लगाती गयी। जैसे-जैसे इत्र उसके वस्त्रों से टकराता गया कमरे में भीनी भीनी खुशबू फैलती गई। सुगना के मन में अचानक उसकी स्वभाविक कामुकता जागृत हो गई उसमें अपने हाथों में इत्र लिया और अपने घागरे में हाथ डालकर अपनी जालीदार पेंटी परमल दिया। वह रतन द्वारा लाए गए इत्र को योनि पूजा का भाग बनाना चाह रही थी हो सकता है उसने सोचा रतन ने यह इत्र उसी लिए लाया हो। सुगना आज मिलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।
कुछ ही देर में सजी धजी सुगना आंगन में आ चुकी थी।
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई अप्सरा सज धज कर उस मिट्टी के घर के आंगन में उतर आई हो….
सुगना की मां पदमा ने सुगना के कान के नीचे काजल से काला टीका लगाया और बोली
"हमरा फूल जैसी बेटी के नजर मत लागो"
कजरी ने सुगना को गले से लगा लिया और उसके कान में बोली
"बेटा अब रतन के अपना ला"
"हां मां" सुगना ने कजरी को आश्वस्त किया और बाहर ढोल नगाड़ों की आवाज आनी शुरू हो गई थी। कुल देवता की पूजा करने जाने का वक्त हो चुका था।
ग्रामीण परिवेश में ढोल नगाड़ों का विशेष योगदान है इनका बजना यह साबित करता है कि अब समय हो गया है और देर करना उचित नहीं। जैसे ही ढोल नगाड़े बजने लगते हैं घर के पुरुष वर्ग महिलाओं पर लगातार बाहर निकलने के लिए दबाव बनाते हैं परंतु वह अपने रास रंग में डूबी हुई बार-बार न चाहते हुए भी देर करती रहती हैं।
सुगना आंगन से बाहर निकलकर दालान में आ चुकी थी। वह सरयू सिंह की तरफ बढ़ रही थी सरयू सिंह सुगना को देखकर हक्के बक्के रह गए। सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे गुलाबी रंग के लहंगे और चोली में देखकर उन्हें एक बार फिर वही सुगना याद आ गई जिसके लहंगे से कीड़े को निकलते समय उसकी बुर् के दर्शन किए थे.
यदि निष्ठुर नियत ने सरयू सिंह के संज्ञान में यह बात ना लाई होती कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तो सुगना की मदमस्त जवानी को आज भोगने की तैयारी कर रहे होते और रतन को सुनना के आसपास भी न फटकने देते।
सुगना ने उनके चरण छुए और सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया आज आलिंगन के लिए कोई स्थान न था। आलिंगन की पहल इस बार सुगना ने भी नहीं की।
जैसे ही सुगना उठकर पीछे पलटी सोनू सामने खड़ा था "अतना देर कहां रह गईले हा"
"लाली दीदी देर कर देली हा"
सुगना लाली का नाम सुनकर चुप रह गई उस बेचारी के जीवन में दुख की घड़ी चल रही थी।
सोनू सुगना के पैर छूने के लिए झुका उसका चेहरा सुगना की कमर और जांघों के जैसे ही करीब पहुंचा रतन द्वारा लाए गए इत्र की खुशबू जो सुगना ने अपनी जांघों के बीच भी लगाया हुआ था सोनू के नथुने से जा टकराई क्या मदमस्त खुशबू थी सोनू ने सुगना के पैर छुए पर उस सुगंध के मोहपाश में घिर गया उसने उठने में कुछ देर कर दी।
सुगना ने उसके सर पर मीठी चपत लगाई और बोली..
"चल अब उठ जा देर हो गईल तो कोई बात नहीं." लाली ने अपने बेटे सूरज का हांथ सोनू को देते हुए कहा सूरज के अपना साथे रखिहे"
सुगना ने बड़ी की संजीदगी से सोनू की गलती पर पर्दा डाल दिया था। सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने उठने में इतनी देर क्यों की?। सोनू कामुक था यह बात सुगना भली-भांति जानती थी लाली से उसके रिश्ते सुगना से छिपे न थे। और लाली जब सोनू के कारनामे सुगना को बताती तो सुगना बिना उत्साह दिखाए लाली की बातें सुनती जरूरत थी उसका छोटा भाई एक युवक बन रहा था इस बात की उसे खुशी थी। पर आज वह कुछ गलत सोच पाने की स्थिति में न थी। वह उसका इंतजार कर रही महिलाओं के झुंड में आ गई।
सोनू अपनी बहन सुगना को इस तरह सोलह श्रंगार धारण किए हुए खूबसूरत लहंगा और चोली में कई दिनों बाद देख रहा था। उसे सुगना एक आदर्श बहू के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सुगना की नाइटी में घिरी कामुक काया के दर्शन कई बार कर चुका था और एक बार लाली समझ कर उसे पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठा भी चुका था। परंतु सुगना के आज के दिव्य रूप और वह मादक सुगंध उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।
गांव की महिलाएं इकट्ठा हो चुकी थी। कुछ ही देर में उनका काफिला कुलदेवता के स्थान पर जाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।
रतन पुरे उत्साह से लवरेज महिलाओं के समूह के पीछे पीछे चल रहा था। सुगना उसकी नजरों से ओझल हो रही थी बीच-बीच में वह उसकी झलक देखता। सरयू सिंह अपनी पुत्री सुगना के भावी जीवन को लेकर आश्वस्त हो रहे थे।
ऊपर वाले ने आखिर सुगना को उसके पति से मिला दिया था और आज की पूजा के पश्चात पति पत्नी पुराने कर्मों को बुलाकर एक होने को सहर्ष तैयार थे।
इस आयोजन से सर्वाधिक खुश रतन था या उसकी मां कजरी यह कहना कठिन था। रतन की खुशी में कामुकता का भी हम योगदान था। रतन सुगना से प्रेम तो अवश्य करने लगा था परंतु उस प्रेम के मूल में रतन की पूर्व पत्नी बबीता की बेवफाई और भोली भाली सुगना का मदमस्त यौवन था।
इसके उलट कजरी दिल से खुश थी उसकी खुशी अपने पुत्र प्रेम से प्रेरित थी सुगना को उसने अपनी बहू के रूप में पहले ही स्वीकार कर लिया था और अब रतन और सुगना को जोड़े में देखकर वह फूली नहीं समा रही थी। रतन और सुगना ने विधि विधान से कुल देवता की पूजा संपन्न की..।
पूजा के पश्चात रतन और सुगना सभी बुजुर्ग जनों का पैर छू छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सरयू सिंह ने दिल से अपनी पुत्री और रतन को खुश रहने का आशीर्वाद दिया। यद्यपि उनके मन मे छुपी हुई वासना कोमा में थी परंतु रह रह कर अपने जीवित होने का एहसास करा रही थी उनकी आंखों में सुगना के उभारों का अंदाजा लगाने की कोशिश की। सरयू सिंह ने स्वयं पर काबू किया और अपनी पलकें बंद लीं।
सुगना की मां पदमा भी बेहद प्रसन्न थी और रतन के आने के पश्चात वह सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कुछ भी हुआ था वह उसे भूल जाना चाहती थी।
पूजा समाप्त होने के पश्चात रतन और सुगना को आगे के कार्यक्रम की विधि की जानकारी देने के लिए कुल देवता के स्थल के पीछे बने चबूतरे पर ले जाया गया घर परिवार के सभी सदस्य दूर से ही रतन और सुगना को देख रहे थे दोनों अपनी नजरें झुकाये पीछे खड़े गुरु जिसने कुल देवता की पूजा कराई थी के निर्देश सुन रहे थे.
"आपके कुल में संतानोत्पत्ति के पश्चात की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है पुरखों ने जो विधि बताई है मैं उसे अक्षरसः आपको बताता हूं इसे ध्यान से सुनिएगा और उसके अनुसार अमल कीजिएगा यह आपके परिवार की वंशवेल और परिवार की मान प्रतिष्ठा बनाए रखेगा...
पति को अपनी पत्नी को अपनी गोद में लेकर शयन कक्ष में ले जाना है उसे अपने हाथों से भोजन कराना है और कुछ समय उसे विश्राम करने देना है ताकि पत्नी अपनी संतान को दूध आदि पिला सके।
इसके पश्चात शयन कक्ष में आकर स्वयं और पत्नी को पूरी तरह निर्वस्त्र करना है। यदि शर्म और हया अब भी कायम हो तो एकवस्त्र जैसे स्त्री लाल साड़ी और पुरुष पीली धोती का प्रयोग कर सकता है।
पूजा में चढ़ाया गया मधु (शहद) कटोरी में आपके बिस्तर के किनारे रखा हुआ मिलेगा आप दोनों को एक दूसरे के सिर्फ जननांगों पर उस मधु को अपनी मध्यमा उंगली से लगाना है। लिंग और योनि पूरी तरह से मधु से आच्छादित होनी चाहिए इसके अलावा अन्य किसी भाग पर मधु का स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए मधु का लेप करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है।
इसके पश्चात स्त्री और पुरुष एक दूसरे के जननांगों पर लगाए गए मधु को अपनी जिह्वा और होंठों के प्रयोग से चाट कर उसे मूल स्थिति में ले आएंगे याद रहे जननांगों पर मधु की मिठास शेष नहीं रहनी चाहिए।
इस दौरान दोनों पति पत्नी अपने होंठ एक दूसरे से सटाकर या चूम कर मिठास का आकलन कर सकते हैं।
जननांगों और होठों से मिठास पूरी तरह हटने के पश्चात आप दोनों संभोग कर सकते हैं याद रहे जब तक स्त्री की योनि स्खलित नहीं होती है आपको संभोग करते रहना है।
आपकी पूजा तभी सफल मानी जाएगी जब पत्नी स्खलन को प्राप्त करेगी।
पुरुष यदि चाहे तो पूजा में चढ़ाए गए विशेष प्रसाद का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। इस विशेष प्रसाद को खाने से पुरुष लिंग में उत्तेजना भर जाती है स्त्री को स्खलित करने में सहायक होगी। गुरु ने प्रसाद की एक पोटली रतन की गोद में डाल दी।
आप दोनों के बीच आज हुआ यह संबंध आपके आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा।
अब आप दोनों जा सकते हैं।
जब तक सुगना और रतन गुरु ज्ञान ले रहे थे कजरी ने सोनी और मोनी को घर पर तैयारियां करने के लिए भेज दिया था।
सोनी और मोनी ने घर आकर गेंदे के फूलों कि कुछ लड़यों से सुगना के पलंग को सजाने का प्रयास किया था परंतु फूलों का अभाव सोनी के मन में सुहाग की सेज की छवि को किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर पाया था।
सोनी अति उत्साह से सुगना के रतियुद्ध का स्थल सजाने में लगी हुई थी वही मोनी को यह सब व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। आखिर कोई विवाह के 4 साल बाद यह सब करता है क्या? मन में जब कामुकता न हो कई क्रियाकलाप व्यर्थ प्रतीत होते हैं यही हाल मोनी का था। जाने नियति ने उसे सुंदर काया और मृदुल व्यवहार तो दिया था पर स्त्री सुलभ कामुकता और पुरुष आकर्षण क्यों हर लिया था?
सोनी और मोनी वापस पूजा स्थल की तरफ निकलने लगी तभी मोनी ने कहा
"उ शहद के कटोरी ना रखलू हा"
सोनी शहद की कटोरी उठा कर लाई और उसे बिस्तर के सिरहाने रख दिया। शहद को लेकर उसकी उत्सुकता अब भी कायम थी उसने मोनी से पूछा..
"आज के दिन ई लोग अतना शहद का करी?"
सोनी का यह प्रश्न ठीक वैसा ही था जैसे क्लास का कोई मेरिटोरियस बच्चा किसी कमजोर बच्चे से अपनी उत्सुकता मिटाने के लिए प्रश्न पूछ रहा हो..
मोनी ने कोई उत्तर न दिया। यदि सोनी सचमुच उस शहद के प्रयोग के बारे में जान जाती तो न जाने क्या करते उसका मन और तन दोनों ही कामुकता से भरा हुआ रहता और मुखमैथुन की इस अद्भुत विधि को जानकर वह निश्चित ही अधीर हो उठती। सोनी के भाग्य में सुख क्रमशः ही आने थे और शायद यह उचित भी था।
उधर सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के पश्चात रतन और सुगना अब वापस घर जाने की तैयारी में थे रतन ने जितनी सेवा सुगना की की थी उसका फल मिलने का वक्त आ रहा था। सुगना स्वयं भी उस पल का इंतजार कर रही थी।
पड़ोस की भाभी ने रतन से कहा..
"अब का देखा तारा उठाव सुगना के गोदी में और ले जा घर…... " रतन को लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो रही हो। उसके शैतान मन् ने भाभी की बात में यह वाक्यांश जोड़ लिए "…..कस के चोदा..".
सुगना ने हाथ में ली हुई पूजा की थाली कजरी की तरफ बढ़ाई और रतन के हाथों ने सुगना की पीठ और नितंबों के नीचे अपनी जगह तलाश की। अगले ही पल सुगना रतन की मजबूत भुजाओं में आ चुकी थी रतन उसे उठाए हुए घर की तरफ चलने लगा।
कुछ ही पलों में रतन की हथेलियों ने सुगना की जांघो की कोमलता और कठोरता का अनुमान लगाना शुरू कर दिया। कभी लहंगे के पीछे सुगना की जाँघे उसे मांसल और कठोर प्रतीत होती कभी वह उसे रेशम जैसी मुलायम प्रतीत होती।
वह अपनी हथेलियां थोड़ा आगे पीछे करता और सुगना उसे आँखे दिखाते हुए उसे रोकने का प्रयास करती। रतन की हथेलियां रुक जाती और सुगना मुस्कुराते हुए अपनी पलके झुका लेती। रतन का बाया हाथ सुगना की पीठ से होते हुए पेट तक पहुंचा था। यदि उसकी उंगलियां ऊपर की तरफ बढ़ती तो वह निश्चित ही चुचियों से टकरा जाती।। सुगना के कोमल पेट का स्पर्श रतन के लिए अद्भुत था। सुगना की कोमल त्वचा का यह स्पर्श उसके दिलो-दिमाग मे उत्तेजना भर रहा था जिसका सीधा असर उसके लण्ड पर पढ़ रहा था जो धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा कर रतन को असहज कर रहा था। दोनों हाथ व्यस्त होने की वजह से वह उसे दिशा देने में कामयाब नहीं हो रहा था। उसने सुगना को अपनी तरफ खींचा और सुगना के द्वारा लण्ड को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की।
सुगना की कमर पर वह दबाव स्पष्ट रूप से महसूस हुआ। सुगना उस भाग से भलीभांति परिचित थी। उसके तने हुए लण्ड को महसूस कर सुगना रतन की असहजता समझ गयी। उसके मन में आया वह स्वयं अपने हाथों से रतन के लण्ड को ऊपर की दिशा दे दे परंतु वह ऐसा न कर पायी।
अपने लण्ड को तसल्ली देते हुए रतन सुगना को लिए लिए शयन कक्ष में आ गया किसी युवा स्त्री को कुछ पल के लिए गोद में उठाना आनंद का विषय हो सकता है पर उसे 100 - 200 मीटर लेकर चलना इतना आसान न था रतन जैसा मजबूत व्यक्ति हांफने लगा था। यह तो सुनना की मदमस्त चूत थी जिसने रतन में उत्साह भरा हुआ था….
सुगना ने रतन की हथेलियों को अपने हाथों में लिया और चुम लिया। रतन बेहद खुश था। सुगना का यह स्पर्श और चुंबन आत्मीयता से भरा हुआ था।
कुछ ही देर में सोनी थाली में कई पकवान लिए अंदर आ गई। पूजा प्रसाद का पहला भोग रतन और सुगना को की ही करना था। थाली में मालपुए को देखकर सुगना सरयू सिंह के बारे में सोचने लगी।
मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते
" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"
सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..
"का सोचे लगलु?"
रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…
शेष अगले भाग में…
नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।
एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।
कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।
नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे…
अब आगे...
रतन का इंतजार खत्म होने वाला था । विशेष पूजा के लिए रतन, सुगना और सोनी के संग चार दिन पहले ही सलेमपुर आ गया उसे इस उत्सव की तैयारियों में अपने चाचा सरयू सिंह का हाथ भी बटाना था।
सुगना की मां पदमा भी अपनी पुत्री मोनी के साथ सलेमपुर आ चुकी थी सरयू सिंह का भरा पूरा परिवार आंगन में बैठकर बातचीत कर रहा था तरह-तरह की बातें... तरह तरह के गीत गाए.. जा रहे थे। कजरी सोनी और मोनी को छेड़ रही थी और बार-बार उनके विवाह का जिक्र कर रही थी। मोनी को तो विवाह शब्द से कोई सरोकार न था परंतु विवाह का नाम सुनते ही सोनी सतर्क हो जाती। यद्यपि उसे यह बात पता थी कि बिना नर्सिंग की पढ़ाई पूरी किए उसका विवाह नहीं होना था परंतु कल्पना का क्या? उसका अल्लढ़ मन विवाह और उसकी उपयोगिता को भलीभांति समझता था। वह मन ही मन विकास से विवाह करने और जी भर कर चुदने को पूरी तरह तैयार थी।
सरयू सिंह दरवाजे पर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और आने वाले मेहमानों से उपहार और न्योता ग्रहण कर रहे थे। जब जब वह अंदर आंगन में आते सारी महिलाएं सतर्क हो जाती।
कजरी जान चुकी थी कि अब सरयू सिंह और सुगना के बीच कोई कामुक संबंध नहीं है उसे इस बात की बेहद खुशी थी। परंतु सुगना ...आह ...उसके मन में सरयू सिंह को देखकर अब भी एक कसक सी उठती थी।
देखते ही देखते पूजा का दिन आ गया। सुगना और रतन दोनों ने ही इस पूजा के लिए उपवास रखा था। सरयू सिंह ने कजरी से कहा "सुगना बेटा के शरबत पिला दिया तब से भूखल होइ"
सुगना सरयू सिंह के प्रेम की हमेशा से कायल थी परंतु प्रेम का यह परिवर्तित रूप पता नहीं क्यों उसे रास नहीं आ रहा था। उसने जिस रूप में सरयू सिंह को देखा था वह उन्हें उसी रूप में चाहती थी यह नया रूप उसके लिए अटपटा था।
उसका दिलो-दिमाग और तन बदन सरयू सिंह को पिता रूप में देखने के लिए कतई तैयार न था। जिस पुरुष से सुगना तरह-तरह के आसनों में चुदी थी और वासना के अतिरेक को देखा था उसे पिता रूप में स्वीकार उसके बस में न था।
पद्मा (सुगना की मां) ने सुगना से पूछा
"सोनू ना आई का?"
" कहले तो रहे हो सकता लाली के लेकर आई "
पदमा अपने पुत्र को देखने के लिए लालायित थी।
कजरी ने आकाश की तरफ देखा । सूर्य अपना तेज खो रहा था। पूजा का समय हो रहा था।
उसने सोनी से कहा…
"ए सोनी जा अपना दीदी के तैयार करा द"
सुगना के दिमाग में अभी भी सरयू सिंह ही चल रहे थे उसने कहां
" ते रहे दे सोनी हम तैयार हो जाएब"
" सोनी के लेले जो अलता नेलपॉलिश लगा दी"
आखिरकार सोनी और सुगना अपनी कोठरी में आ गई।
रतन सुगना के लिए गुलाबी लहंगा और चोली लाया था और साथ में जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी भी थी।
वह अपनी पत्नी के साथ अपना प्रथम मिलन यादगार बनाना चाहता था।
कमरे में अपने पलंग को देखकर सुगना के दिमाग में पुरानी यादें घूमने लगी इस पलंग पर वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से न जाने कितनी बार चुदी थी उसे खुद भी ध्यान न था। दिन में कभी दो बार कभी-कभी तीन- चार बार ... और आज इसी पलंग पर उसे रतन के सामने प्रस्तुत होना था। सुगना खोई खोई सी थी। उसके मन का द्वंद उसे कभी परेशान करता कभी उसकी बुर भावनाओं के झंझावात को भुलाकर चुदने के लिए अपने होठों पर मदन रस ले आती।
सोनी सुगना के कपड़े झोले में से निकालने लगी। गुलाबी रंग का लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था..
"कितना सुंदर बा" सोनी विस्मित होते हुए बोली
सचमुच वह लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था और जिसे उसे धारण करना था उसकी खूबसूरती इस लहंगा चोली से भी दोगुनी थी।
सुगना को वह लहंगा चोली देखकर उस दिन की याद आ गई जब उसके लहंगे में कीड़ा घुसा था और जिसे निकालते निकालते उसके बाबुजी सरयू सिंह ने पहली बार उसके अनछुए और कोमल मालपुए (सुगना की बुर) के प्रथम दर्शन किए थे।
"ए दीदी कितना सुंदर बा" सोनी की बात सुनकर सुगना घबरा गई। सुगना अपना हाथ अपनी जांघों के बीच ले आए और अपनी उस बुर को छुपाने लगी जो उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने सोनी की तरफ देखा जो रतन द्वारा लाए गए जालीदार ब्रा और पेंटी को हाथ में लेकर लहलाते हुए बोली..
"सुगना शर्म से पानी पानी हो गई" रतन पहली बार में ही उसे ऐसी ब्रा और पेंटी लाकर देगा इसका अंदाजा उसे ना था ऊपर से वह सोनी के हाथों में लग गई थी। "चल रख दे हम उ ना पहनब"
"अरे वाह काहे ना पहिनबु जीजा जी अतना शौक से ले आईल बाडे" सोनी सुगना से खुलने का प्रयास कर रही थी।
सुगना मन ही मन तैयार तो थी परंतु वह सोनी के सामने उसे पहनने में असहज महसूस कर रही थी। उसने सोनी को आलता लेने भेजा और जब तक वह वापस आती रतन द्वारा लायी जालीदार पैंटी सुगना की बुर चूम रही थी….
ब्रा भी चुचियों पर फिट आ रही थी। सोनी सुगना को देखती रह गयी। कितनी खूबसूरत थी सुगना… दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके कमर के कटाव वैसे ही थे बल्कि और मादक हो गए थे। पतली कमर सपाट पेट मे थोड़ा उभार अवश्य आया था जो उसे किशोरी से वयस्क की श्रेणी में ले आया था।
यदि कोई ऋषि महर्षि सुगना को उसी अवस्था में जड़ होने का श्राप देते तो वह पाषाण मूर्ति बनी खजुराहो के मंदिरों में जड़ी हुयी काल कालांतर तक युवाओं में उत्तेजना भर रही होती।
लहंगे में छुपी उसकी खूबसूरत जाँघे ऐसे तो नजर न आती पर सुगना जैसे ही अपने पैर आगे बढ़ाते जांघो का आकार स्पष्ट नजर आने लगता। सोनी ने सुगना के पैरों में आलता लगाया पाजेब पहनायी। उसकी शादी के गहने पहनाए। रतन द्वारा विवाह के समय दिया गया मंगलसूत्र भी पहनाया पर सुगना ने सरयू सिह द्वारा दीपावली के दिन दी हुयी सोने की चैन को ना उतारा। वह उसकी पहली चुदाई की निशानी थी।
रतन द्वारा दिए गए झोले को सुगना ने हटाने की कोशिश की और उसमें एक शीशी को देख कर चौक उठी। उसने वह छोटी सी शीशी निकाली और उसमें रखे द्रव्य का अनुमान लगाने लगी। जब वह उसे अपनी आंखों से समझ न पहचान पाई उसने अपनी घ्राण शक्ति का प्रयोग किया और जैसे ही वह शीशी उसने अपने नाक के पास लायी उसकी मदमस्त खुशबू से सुगना भाव विभोर हो गयी।
सुगना ने इत्र के बारे में सुना जरूर था पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया था।। पर रतन मुंबई में जाकर इन सब आधुनिक साज सज्जा और रास रंग के सामग्रियों से बखूबी परिचित हो चुका था। रतन की पहली पत्नी बबीता सजने सवरने में माहिर थी।
सुगना ने इत्र की शीशी खोली और उसे अपने घाघरा और चोली पर लगाती गयी। जैसे-जैसे इत्र उसके वस्त्रों से टकराता गया कमरे में भीनी भीनी खुशबू फैलती गई। सुगना के मन में अचानक उसकी स्वभाविक कामुकता जागृत हो गई उसमें अपने हाथों में इत्र लिया और अपने घागरे में हाथ डालकर अपनी जालीदार पेंटी परमल दिया। वह रतन द्वारा लाए गए इत्र को योनि पूजा का भाग बनाना चाह रही थी हो सकता है उसने सोचा रतन ने यह इत्र उसी लिए लाया हो। सुगना आज मिलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।
कुछ ही देर में सजी धजी सुगना आंगन में आ चुकी थी।
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई अप्सरा सज धज कर उस मिट्टी के घर के आंगन में उतर आई हो….
सुगना की मां पदमा ने सुगना के कान के नीचे काजल से काला टीका लगाया और बोली
"हमरा फूल जैसी बेटी के नजर मत लागो"
कजरी ने सुगना को गले से लगा लिया और उसके कान में बोली
"बेटा अब रतन के अपना ला"
"हां मां" सुगना ने कजरी को आश्वस्त किया और बाहर ढोल नगाड़ों की आवाज आनी शुरू हो गई थी। कुल देवता की पूजा करने जाने का वक्त हो चुका था।
ग्रामीण परिवेश में ढोल नगाड़ों का विशेष योगदान है इनका बजना यह साबित करता है कि अब समय हो गया है और देर करना उचित नहीं। जैसे ही ढोल नगाड़े बजने लगते हैं घर के पुरुष वर्ग महिलाओं पर लगातार बाहर निकलने के लिए दबाव बनाते हैं परंतु वह अपने रास रंग में डूबी हुई बार-बार न चाहते हुए भी देर करती रहती हैं।
सुगना आंगन से बाहर निकलकर दालान में आ चुकी थी। वह सरयू सिंह की तरफ बढ़ रही थी सरयू सिंह सुगना को देखकर हक्के बक्के रह गए। सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे गुलाबी रंग के लहंगे और चोली में देखकर उन्हें एक बार फिर वही सुगना याद आ गई जिसके लहंगे से कीड़े को निकलते समय उसकी बुर् के दर्शन किए थे.
यदि निष्ठुर नियत ने सरयू सिंह के संज्ञान में यह बात ना लाई होती कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तो सुगना की मदमस्त जवानी को आज भोगने की तैयारी कर रहे होते और रतन को सुनना के आसपास भी न फटकने देते।
सुगना ने उनके चरण छुए और सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया आज आलिंगन के लिए कोई स्थान न था। आलिंगन की पहल इस बार सुगना ने भी नहीं की।
जैसे ही सुगना उठकर पीछे पलटी सोनू सामने खड़ा था "अतना देर कहां रह गईले हा"
"लाली दीदी देर कर देली हा"
सुगना लाली का नाम सुनकर चुप रह गई उस बेचारी के जीवन में दुख की घड़ी चल रही थी।
सोनू सुगना के पैर छूने के लिए झुका उसका चेहरा सुगना की कमर और जांघों के जैसे ही करीब पहुंचा रतन द्वारा लाए गए इत्र की खुशबू जो सुगना ने अपनी जांघों के बीच भी लगाया हुआ था सोनू के नथुने से जा टकराई क्या मदमस्त खुशबू थी सोनू ने सुगना के पैर छुए पर उस सुगंध के मोहपाश में घिर गया उसने उठने में कुछ देर कर दी।
सुगना ने उसके सर पर मीठी चपत लगाई और बोली..
"चल अब उठ जा देर हो गईल तो कोई बात नहीं." लाली ने अपने बेटे सूरज का हांथ सोनू को देते हुए कहा सूरज के अपना साथे रखिहे"
सुगना ने बड़ी की संजीदगी से सोनू की गलती पर पर्दा डाल दिया था। सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने उठने में इतनी देर क्यों की?। सोनू कामुक था यह बात सुगना भली-भांति जानती थी लाली से उसके रिश्ते सुगना से छिपे न थे। और लाली जब सोनू के कारनामे सुगना को बताती तो सुगना बिना उत्साह दिखाए लाली की बातें सुनती जरूरत थी उसका छोटा भाई एक युवक बन रहा था इस बात की उसे खुशी थी। पर आज वह कुछ गलत सोच पाने की स्थिति में न थी। वह उसका इंतजार कर रही महिलाओं के झुंड में आ गई।
सोनू अपनी बहन सुगना को इस तरह सोलह श्रंगार धारण किए हुए खूबसूरत लहंगा और चोली में कई दिनों बाद देख रहा था। उसे सुगना एक आदर्श बहू के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सुगना की नाइटी में घिरी कामुक काया के दर्शन कई बार कर चुका था और एक बार लाली समझ कर उसे पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठा भी चुका था। परंतु सुगना के आज के दिव्य रूप और वह मादक सुगंध उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।
गांव की महिलाएं इकट्ठा हो चुकी थी। कुछ ही देर में उनका काफिला कुलदेवता के स्थान पर जाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।
रतन पुरे उत्साह से लवरेज महिलाओं के समूह के पीछे पीछे चल रहा था। सुगना उसकी नजरों से ओझल हो रही थी बीच-बीच में वह उसकी झलक देखता। सरयू सिंह अपनी पुत्री सुगना के भावी जीवन को लेकर आश्वस्त हो रहे थे।
ऊपर वाले ने आखिर सुगना को उसके पति से मिला दिया था और आज की पूजा के पश्चात पति पत्नी पुराने कर्मों को बुलाकर एक होने को सहर्ष तैयार थे।
इस आयोजन से सर्वाधिक खुश रतन था या उसकी मां कजरी यह कहना कठिन था। रतन की खुशी में कामुकता का भी हम योगदान था। रतन सुगना से प्रेम तो अवश्य करने लगा था परंतु उस प्रेम के मूल में रतन की पूर्व पत्नी बबीता की बेवफाई और भोली भाली सुगना का मदमस्त यौवन था।
इसके उलट कजरी दिल से खुश थी उसकी खुशी अपने पुत्र प्रेम से प्रेरित थी सुगना को उसने अपनी बहू के रूप में पहले ही स्वीकार कर लिया था और अब रतन और सुगना को जोड़े में देखकर वह फूली नहीं समा रही थी। रतन और सुगना ने विधि विधान से कुल देवता की पूजा संपन्न की..।
पूजा के पश्चात रतन और सुगना सभी बुजुर्ग जनों का पैर छू छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सरयू सिंह ने दिल से अपनी पुत्री और रतन को खुश रहने का आशीर्वाद दिया। यद्यपि उनके मन मे छुपी हुई वासना कोमा में थी परंतु रह रह कर अपने जीवित होने का एहसास करा रही थी उनकी आंखों में सुगना के उभारों का अंदाजा लगाने की कोशिश की। सरयू सिंह ने स्वयं पर काबू किया और अपनी पलकें बंद लीं।
सुगना की मां पदमा भी बेहद प्रसन्न थी और रतन के आने के पश्चात वह सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कुछ भी हुआ था वह उसे भूल जाना चाहती थी।
पूजा समाप्त होने के पश्चात रतन और सुगना को आगे के कार्यक्रम की विधि की जानकारी देने के लिए कुल देवता के स्थल के पीछे बने चबूतरे पर ले जाया गया घर परिवार के सभी सदस्य दूर से ही रतन और सुगना को देख रहे थे दोनों अपनी नजरें झुकाये पीछे खड़े गुरु जिसने कुल देवता की पूजा कराई थी के निर्देश सुन रहे थे.
"आपके कुल में संतानोत्पत्ति के पश्चात की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है पुरखों ने जो विधि बताई है मैं उसे अक्षरसः आपको बताता हूं इसे ध्यान से सुनिएगा और उसके अनुसार अमल कीजिएगा यह आपके परिवार की वंशवेल और परिवार की मान प्रतिष्ठा बनाए रखेगा...
पति को अपनी पत्नी को अपनी गोद में लेकर शयन कक्ष में ले जाना है उसे अपने हाथों से भोजन कराना है और कुछ समय उसे विश्राम करने देना है ताकि पत्नी अपनी संतान को दूध आदि पिला सके।
इसके पश्चात शयन कक्ष में आकर स्वयं और पत्नी को पूरी तरह निर्वस्त्र करना है। यदि शर्म और हया अब भी कायम हो तो एकवस्त्र जैसे स्त्री लाल साड़ी और पुरुष पीली धोती का प्रयोग कर सकता है।
पूजा में चढ़ाया गया मधु (शहद) कटोरी में आपके बिस्तर के किनारे रखा हुआ मिलेगा आप दोनों को एक दूसरे के सिर्फ जननांगों पर उस मधु को अपनी मध्यमा उंगली से लगाना है। लिंग और योनि पूरी तरह से मधु से आच्छादित होनी चाहिए इसके अलावा अन्य किसी भाग पर मधु का स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए मधु का लेप करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है।
इसके पश्चात स्त्री और पुरुष एक दूसरे के जननांगों पर लगाए गए मधु को अपनी जिह्वा और होंठों के प्रयोग से चाट कर उसे मूल स्थिति में ले आएंगे याद रहे जननांगों पर मधु की मिठास शेष नहीं रहनी चाहिए।
इस दौरान दोनों पति पत्नी अपने होंठ एक दूसरे से सटाकर या चूम कर मिठास का आकलन कर सकते हैं।
जननांगों और होठों से मिठास पूरी तरह हटने के पश्चात आप दोनों संभोग कर सकते हैं याद रहे जब तक स्त्री की योनि स्खलित नहीं होती है आपको संभोग करते रहना है।
आपकी पूजा तभी सफल मानी जाएगी जब पत्नी स्खलन को प्राप्त करेगी।
पुरुष यदि चाहे तो पूजा में चढ़ाए गए विशेष प्रसाद का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। इस विशेष प्रसाद को खाने से पुरुष लिंग में उत्तेजना भर जाती है स्त्री को स्खलित करने में सहायक होगी। गुरु ने प्रसाद की एक पोटली रतन की गोद में डाल दी।
आप दोनों के बीच आज हुआ यह संबंध आपके आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा।
अब आप दोनों जा सकते हैं।
जब तक सुगना और रतन गुरु ज्ञान ले रहे थे कजरी ने सोनी और मोनी को घर पर तैयारियां करने के लिए भेज दिया था।
सोनी और मोनी ने घर आकर गेंदे के फूलों कि कुछ लड़यों से सुगना के पलंग को सजाने का प्रयास किया था परंतु फूलों का अभाव सोनी के मन में सुहाग की सेज की छवि को किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर पाया था।
सोनी अति उत्साह से सुगना के रतियुद्ध का स्थल सजाने में लगी हुई थी वही मोनी को यह सब व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। आखिर कोई विवाह के 4 साल बाद यह सब करता है क्या? मन में जब कामुकता न हो कई क्रियाकलाप व्यर्थ प्रतीत होते हैं यही हाल मोनी का था। जाने नियति ने उसे सुंदर काया और मृदुल व्यवहार तो दिया था पर स्त्री सुलभ कामुकता और पुरुष आकर्षण क्यों हर लिया था?
सोनी और मोनी वापस पूजा स्थल की तरफ निकलने लगी तभी मोनी ने कहा
"उ शहद के कटोरी ना रखलू हा"
सोनी शहद की कटोरी उठा कर लाई और उसे बिस्तर के सिरहाने रख दिया। शहद को लेकर उसकी उत्सुकता अब भी कायम थी उसने मोनी से पूछा..
"आज के दिन ई लोग अतना शहद का करी?"
सोनी का यह प्रश्न ठीक वैसा ही था जैसे क्लास का कोई मेरिटोरियस बच्चा किसी कमजोर बच्चे से अपनी उत्सुकता मिटाने के लिए प्रश्न पूछ रहा हो..
मोनी ने कोई उत्तर न दिया। यदि सोनी सचमुच उस शहद के प्रयोग के बारे में जान जाती तो न जाने क्या करते उसका मन और तन दोनों ही कामुकता से भरा हुआ रहता और मुखमैथुन की इस अद्भुत विधि को जानकर वह निश्चित ही अधीर हो उठती। सोनी के भाग्य में सुख क्रमशः ही आने थे और शायद यह उचित भी था।
उधर सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के पश्चात रतन और सुगना अब वापस घर जाने की तैयारी में थे रतन ने जितनी सेवा सुगना की की थी उसका फल मिलने का वक्त आ रहा था। सुगना स्वयं भी उस पल का इंतजार कर रही थी।
पड़ोस की भाभी ने रतन से कहा..
"अब का देखा तारा उठाव सुगना के गोदी में और ले जा घर…... " रतन को लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो रही हो। उसके शैतान मन् ने भाभी की बात में यह वाक्यांश जोड़ लिए "…..कस के चोदा..".
सुगना ने हाथ में ली हुई पूजा की थाली कजरी की तरफ बढ़ाई और रतन के हाथों ने सुगना की पीठ और नितंबों के नीचे अपनी जगह तलाश की। अगले ही पल सुगना रतन की मजबूत भुजाओं में आ चुकी थी रतन उसे उठाए हुए घर की तरफ चलने लगा।
कुछ ही पलों में रतन की हथेलियों ने सुगना की जांघो की कोमलता और कठोरता का अनुमान लगाना शुरू कर दिया। कभी लहंगे के पीछे सुगना की जाँघे उसे मांसल और कठोर प्रतीत होती कभी वह उसे रेशम जैसी मुलायम प्रतीत होती।
वह अपनी हथेलियां थोड़ा आगे पीछे करता और सुगना उसे आँखे दिखाते हुए उसे रोकने का प्रयास करती। रतन की हथेलियां रुक जाती और सुगना मुस्कुराते हुए अपनी पलके झुका लेती। रतन का बाया हाथ सुगना की पीठ से होते हुए पेट तक पहुंचा था। यदि उसकी उंगलियां ऊपर की तरफ बढ़ती तो वह निश्चित ही चुचियों से टकरा जाती।। सुगना के कोमल पेट का स्पर्श रतन के लिए अद्भुत था। सुगना की कोमल त्वचा का यह स्पर्श उसके दिलो-दिमाग मे उत्तेजना भर रहा था जिसका सीधा असर उसके लण्ड पर पढ़ रहा था जो धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा कर रतन को असहज कर रहा था। दोनों हाथ व्यस्त होने की वजह से वह उसे दिशा देने में कामयाब नहीं हो रहा था। उसने सुगना को अपनी तरफ खींचा और सुगना के द्वारा लण्ड को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की।
सुगना की कमर पर वह दबाव स्पष्ट रूप से महसूस हुआ। सुगना उस भाग से भलीभांति परिचित थी। उसके तने हुए लण्ड को महसूस कर सुगना रतन की असहजता समझ गयी। उसके मन में आया वह स्वयं अपने हाथों से रतन के लण्ड को ऊपर की दिशा दे दे परंतु वह ऐसा न कर पायी।
अपने लण्ड को तसल्ली देते हुए रतन सुगना को लिए लिए शयन कक्ष में आ गया किसी युवा स्त्री को कुछ पल के लिए गोद में उठाना आनंद का विषय हो सकता है पर उसे 100 - 200 मीटर लेकर चलना इतना आसान न था रतन जैसा मजबूत व्यक्ति हांफने लगा था। यह तो सुनना की मदमस्त चूत थी जिसने रतन में उत्साह भरा हुआ था….
सुगना ने रतन की हथेलियों को अपने हाथों में लिया और चुम लिया। रतन बेहद खुश था। सुगना का यह स्पर्श और चुंबन आत्मीयता से भरा हुआ था।
कुछ ही देर में सोनी थाली में कई पकवान लिए अंदर आ गई। पूजा प्रसाद का पहला भोग रतन और सुगना को की ही करना था। थाली में मालपुए को देखकर सुगना सरयू सिंह के बारे में सोचने लगी।
मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते
" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"
सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..
"का सोचे लगलु?"
रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…
शेष अगले भाग में…