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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#70
Heart 
भाग 65

अब तक आपने पढ़ा लाली और सुगना अपने प्रसव के लिए अस्पताल पहुंच चुकी थीं

अब आगे..

कुछ ही देर में लाली और सुनना अपनी प्रसव वेदना झेलने के लिए अस्पताल के लेबर रूम के अंदर आ गयीं। जितनी आत्मीयता से कजरी और हरिया की पत्नी (लाली की मां) तथा सोनी अस्पताल पहुंची थी उतनी ही बेरुखी से उन्हें लेबर रूम के बाहर रोक दिया गया।

अंदर असहाय सुगना और लाली अपनी प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ीं। कजरी अस्पताल की लॉबी में पैर पटकते हुए इधर-उधर घूम रही थी लाली की माँ भी उसके पीछे-पीछे घूमती परंतु उसे यह घूमना व्यर्थ प्रतीत हो रहा था कुछ ही देर में वह चुपचाप लोहे की बेंच पर बैठ गई। सोनी ने अपने नर्सिंग की पढ़ाई के बलबूते वहां उपलब्ध नर्सों से कुछ ही घंटों में दोस्ती कर ली और कुछ देर के लिए अंदर जाकर सुगना और लाली का हालचाल ले आयी।


वाकपटु पढ़ी-लिखी युवती का यह गुण देखकर कजरी और लाली की मां ने सोनी को ढेरों आशीर्वाद दिए…

"जल्दी तोहरो बियाह ओके और भगवान तोहरा के सब सुख देस"

लाली की मां ने सोनी को उसके मन मुताबिक आशीर्वाद दे दिया था। विवाह की प्रतीक्षा वह स्वयं कर रही थी। सोनी अब यह जान चुकी थी की जांघों के बीच छुपी वह कोमल ओखली की प्यास बिना मुसल बुझने वाली नहीं थी। विकास के संग बिताए पल इस कामाग्नि को सिर्फ और सिर्फ भड़काने का कार्य करते थे सोनी चुदने के लिए तड़प उठती।। हाय रे समाज ….हाय रे बंदिशें ….सोनी समाज के नियमों को कोसती परंतु उन्हें तोड़ पाने की हिम्मत न जुटा पाती।


स्खलन एक आनंददायक प्रक्रिया है परंतु लिंग द्वारा योनि मर्दन करवाते हुए अपनी भग्नासा को लण्ड के ठीक ऊपर की हड्डी पर रगड़ते हुए स्खलित होना अद्भुत सुख है जो जिन महिलाओं को प्राप्त होता है वही उसकी उपयोगिता और अहमियत समझती हैं। सोनी का इंतजार लंबा था यह बात वह भी जानती थी पर सोनी की मुनिया इन सांसारिक बंधनों से दूर अपने होठों पर प्रेम रस लिए एक मजबूत लण्ड का इंतजार कर रही थी। सोनी विकास के लण्ड को स्वयं तो छू लेती परंतु अपनी मुनिया से हमेशा दूर रखती।

इधर सोनी अपने रास रंग में खो खोई थी...उधर अंदर दो युवा महिलाएं प्रसव वेदना से तड़प रही थी और प्रकृति को कोस रही थी। चुदाई का सुख जितना उत्तेजक और आनंददायक होता है प्रसव उतना ही हृदय विदारक। जो सुगना अपनी जांघें अपने बाबूजी सरयू सिंह के लिए खोलने से पहले उनसे मान मुनहार करवाती थी वह अपनी जांघें स्वयं फैलाए हुए प्रसव पीड़ा झेल रही थी।

सुगना अपने बाबूजी सरयू सिंह को को याद करने लगी उनके साथ बिताए पल उसकी जिंदगी के सबसे सुखद पल थे । कैसे वो उसे पैरों से लेकर घुटने तक चूमते, जांघों तक आते-आते सुगना की उत्तेजना जवाब दे जाती वह उनके होठों को अपनी बुर तक न पहुंचने देती…और उनके माथे को प्यार से धकेलती..


पता नहीं क्यों उसे बाबूजी बेहद सम्मानित लगते थे और उनसे यह कार्य करवाना उसे अच्छा नहीं लगता था। जबकि सरयू सिंह सुगना के निचले होठों को पूरी तन्मयता से चूसना चाहते उन्हें अपने होठों से सुगना की बूर् के मखमली होठों को फैला कर अपनी जीभ उस गुलाबी छेद में घुमाने से बेहद आनंद आता और उससे निकलने वाले रस से जब वह अपनी जीभ को भिगो कर अपने होठों पर फिराते …..आह….आनंद का वह पल उनके चेहरे पर गजब सुकून देता और सुगना उन्हें देख भाव विभोर हो उठती यह पल उसके लिए हमेशा यादगार रहता।

कभी-कभी वह अपनी जीभ पर प्रेम रस संजोए सुगना के चेहरे तक आते और उसके होठों को चूमने की कोशिश करते। सुगना जान जाती उसे अपनी ही बुर से उठाई चासनी को को चाटने में कोई रस नहीं आता परंतु वह अपने बाबूजी को निराश ना करती। उसे अपने बाबू जी से जीभ लड़ाना बेहद आनंददायक लगता और उनके मुख से आने वाली पान किमाम खुशबू उसे बेहद पसंद थी। और इसी चुम्मा चाटी के दौरान सरयू सिंह का लण्ड अपना रास्ता खोज देता... सुगना ने अपने दिमाग में चल रही यादों से कुछ पल का सुकून खरीदा तभी गर्भ में पल रहे बच्चे ने हलचल की और सुगना दर्द से कराह उठी

"आह ...तानी धीरे से" सुगना ने अपने गर्भस्थ शिशु से गुहार लगाई।

नियति सुगना की इस चिरपरिचित कराह सुनकर मुस्कुराने लगी। पर सुगना ने यह पुकार अपने शिशु से लगाई थी।

सुगना की जिस कोख ने उस शिशु को आकार दिया और बड़ा किया वही उस कोख से निकल कर बाहर आना चाहता था अंदर उसकी तड़प सुगना के दर्द का कारण बन रही थी सुगना अब स्वयं अपनी पुत्री को देखने के लिए व्यग्र थी।

सुगना ने पास खड़ी नर्स से पूछा...

"कवनो दर्द के दवाई नईखे का? अब नईखे सहात"

"अरे थोड़ा दर्द सह लो जब अपने लड़के का मुखड़ा देखोगी सारे दर्द भूल जाजोगी"

"अरे बहन जी ऐसा मत कहीं मुझे लड़की चाहिए मैंने इसके लिए कई मन्नते मान रखी है"

" आप निराली हैं' मैंने यहां तो किसी को भी लड़की मांगते नहीं देखा भगवान करे आपकी इच्छा पूरी हो... हमारा नेग जरुर दे दीजिएगा"

नर्स केरल से आई थी परंतु बनारस में रहते रहते वह नेग चार से परिचित हो चुकी थी।

सोनी अंदर आ चुकी थी और नर्स और सुगना की बातें सुन रही थी वह भी मन ही मन अपने इष्ट देव से सुगना की इच्छा पूरी करने के लिए प्रार्थना करने लगी।

इधर सुगना अपनी पुत्री के तरह-तरह की मन्नतें और अपने इष्ट देव से गुहार पुकार लगा रही थी उधर लाली एक और पुत्र की प्रतीक्षा में थी उसे लड़कियों का जीवन हमेशा से कष्टकारी लगता था जिनमें से एक कष्ट जो आज वह स्वयं झेल रही थी। उसका बस चलता तो वह सोनू को बगल में बिठाकर उतने ही दर्द का एहसास कराती


आज पहली बार उसे सोनू पर बेहद गुस्सा आ रहा था जिसने उसकी बुर में मलाई भरकर दही जमा दी थी।

नर्स मुआयना करने लाली के करीब भी गई और उससे ढेरों बातें की बातों ही बातों में लाली ने भी आने वाले शिशु से अपने अपेक्षाएं नर्स के सामने प्रस्तुत कर दीं।

परिस्थितियों ने आकांक्षाओं और गर्भस्थ शिशु के लिंग से अपेक्षाओं के रूप बदल दिए थे। उन दिनों पुत्री की लालसा रखने वाली सुगना शायद पहली मां थी। अन्यथा पुत्री जो भगवान का वरदान होती है वह स्वयं भगवान स्त्रियों को गर्भ में उपहार स्वरूप देते थे।

बाहर हॉस्पिटल की जमीन पर अपने नन्हे कदमों से कदम ताल करता हुआ सूरज अपनी मां का इंतजार कर रहा था वह बार-बार नीचे जमीन पर बैठना चाहता परंतु कजरी उसे तुरंत गोद में उठा लेती..

" मां केने बिया" सूरज ने तोतली आवाज में कजरी से पूछा

"तोहार भाई ले आवे गईल बिया"

सूरज को न तो भाई से सरोकार था नहीं बहन से उसे तो शायद ना इन रिश्तो की अहमियत पता थी और न हीं उसे अपने अपने अभिशप्त होने का एहसास था।

उधर बनारस स्टेशन पर रतन, राजेश का इंतजार कर रहा था उसे लाली की मां ने राजेश को लेने भेज दिया था। रतन का मन नहीं लग रहा था वह इस समय सुगना के समीप रहना चाहता था और उसे दिलासा देना चाहता था हालांकि यह संभव नहीं था परंतु फिर भी हॉस्पिटल के बाहर रहकर वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाना चाहता था। परंतु लाली के अस्पताल में भर्ती होने की खबर राजेश तक पहुंचाना भी उतना ही आवश्यक था।

बनारस एक्सप्रेस कुछ ही देर मैं प्लेटफार्म पर प्रवेश कर रही थी। साफ सुथरा दिख रहा स्टेशन में न जाने कहां से इतनी धूल आ गई जो ट्रेन आने के साथ ही उड़ उड़ कर प्लेटफार्म पर आने लगी..

रतन को स्टेशन पर खड़ा देखकर राजेश सारी वस्तुस्थिति समझ गया उसे इस बात का अंदाजा तो था कि लाली के प्रसव के दिन आज या कल में ही संभावित थे। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि वह आज के बाद दो-तीन दिन छुट्टी लेकर लाली के साथ ही रहेगा। रतन को देखते ही उसने पूछा

"का भईल रतन भैया?"

"चलीं दूनों जानी अस्पताल में बा लोग"

"कब गईल हा लोग"

" 2 घंटा भईल"

कहने सुनने को कुछ बाकी ना था. राजेश ने अपनी मोटरसाइकिल बनारस के बाहर रेलवे स्टेशन में खड़ी की हुई थी। रतन और राजेश अपनी अपनी मोटरसाइकिल से अस्पताल के लिए निकल पड़े।

रतन आगे आगे चल रहा था और राजेश पीछे पीछे। ट्रैफिक की वजह से रतन आगे निकल गया और पीछे चल रहे राजेश को रुकना पड़ा परंतु यह अवरोध राजेश के लिए एक अवसर बन गया। बगल में एक ऑटो रिक्शा आकर खड़ा हुआ जिस पर एक 20 - 22 वर्षीय युवती अपनी मां के साथ बैठी हुई थी उस कमसिन युवती का चेहरा और गदराया शरीर बेहद आकर्षक था। उसकी भरी-भरी चुचियां उसे मदमस्त युवती का दर्जा प्रदान कर रही थी साड़ी और ब्लाउज मिलकर भी चुचियों की खूबसूरती छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

राजेश की कामुक निगाहें उस स्त्री से चिपक गई वह रह रह कर उसे देखता और उसके गदराए शरीर का मुआयना करता…. पतली कमर से नितंबों तक का वह भाग का वह जिसे आजकल लव हैंडल कहा जाता है धूप की रोशनी में चमक रहा था इसके आगे राजेश की नजरों को इजाजत नहीं थी। गुलाबी साड़ी ने गुलाबी चूत और उसके पहरेदार दोनों नितंबों को अपने आगोश में लिया हुआ था। राजेश के पीछे मोटरसाइकिल वाले हॉर्न बजा बजाकर राजेश को आगे बढ़ने के लिए उकसा रहे थे परंतु राजेश उस दृष्टि सुख को नहीं छोड़ना चाहता था। वह ऑटो रिक्शा चलने का इंतजार कर रहा था।

रिक्शा चल पड़ा और राजेश उसके पीछे हो लिया। राजेश की अंधी वासना ने उसे मार्ग भटकने पर मजबूर कर दिया। हॉस्पिटल जाने की बजाय राजेश उस अपरिचित पर मदमस्त महिला के ऑटो रिक्शा पीछे पीछे चल पड़ा।

मौका देख कर राजेश उसे ओवरटेक करने की कोशिश करता और दृष्ट सुख लेकर वापस पीछे हट जाता।

राजेश की युवा और कामुक महिलाओं के पीछे भागने की आदत पुरानी थी। पता नहीं क्यों, लाली जैसी मदमस्त और कामुक महिला से भी उसका जी नहीं भरा था। उसकी सुगना को चोदने की चाहत अधूरी रह गई थी परंतु जब से उसने सुगना को नग्न देखकर अपना वीर्य स्खलन किया था वह भी उसकी जांघों के बीच उसकी रसीली बुर पर तब से वासना में अंधा हो गया और हर सुंदर तथा कामुक महिला को देखने की लालसा लिए उनके पीछे पीछे भागता रहता।

राजेश अपने ख्वाबों में उस अनजान महिला को नग्न कर रहा था। वह कभी उसकी तुलना सुगना से करता कभी उसकी अनजान और छुपी हुई बुर की कल्पना करती। राजेश का लण्ड तन चुका था।

अचानक राजेश को लाली का ध्यान आया और उसने ऑटो रिक्शा को ओवरटेक करने की कोशिश की। रिक्शा बाएं मुड़ रहा था राजेश को यह अंदाजा न हो पाया कि रिक्शा सामने आ रहे वाहन की वजह से बाएं मुड़ रहा है । राजेश ने यह समझा कि रिक्शावाला उसे आगे जाने के लिए पास दे रहा है उसने अपने मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ा दी।


अचानक राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। सामने से आ रहे मेटाडोर ने राजेश को जोरदार टक्कर मार दी...

देखते ही देखते सड़क पर चीख-पुकार मचने लगी... नियति ने अपना क्रूर खेल खेल दिया था।

कुछ ही देर में राजेश उसी अस्पताल के एक बेड पर पड़ा जीवन मृत्यु के बीच झूल रहा था।

लाली के परिवार की खुशियों पर अचानक ग्रहण लग गया था । लाली के परिवार रूपी रथ के दोनों पहिए अलग-अलग बिस्तर पर पड़े असीम पीड़ा का अनुभव कर रहे थे। एक जीवन देने के लिए पीड़ा झेल रहा था और एक जीवन बचाने के लिए।

सोनी को लाली और सुगना के पास छोड़कर सभी लोग राजेश के समीप आ गए। राजेश की स्थिति वास्तव में गंभीर थी। सर पर गहरी चोट आई थी राजेश को आनन-फानन में ऑपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया गया परंतु मस्तिष्क में आई गहरी चोट वहां उपलब्ध डॉक्टरों के बस की ना थी। उन्होंने जिला अस्पताल से एंबुलेंस मंगाई और राजेश को प्राथमिक उपचार देकर उसकी जान बचाने का प्रयास करते रहे.


बाहर लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी एकमात्र पुत्री के पति को इस स्थिति में देखकर उसका कलेजा फट रहा था। भगवान भी लाली की मां का करुण क्रंदन देखकर द्रवित हो रहे थे। दो छोटे-छोटे बच्चे राजू और रीमा भी अपने पिता के लिए चिंतित और मायूस थे परंतु उनके कोमल दिमाग में अभी जीवन और मृत्यु का अंतर स्पष्ट न था।

नियति आज सचमुच निष्ठुर थी जाने उसने ऐसी कौन सी व्यूह रचना की थी उसे राजू और रीमा पर भी तरस ना आया।

राजेश जीवन और मृत्यु के लकीर के इधर उधर झूल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो दो ऊँची मीनारों के बीच बनी रस्सी पर अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था।


आज इस अवस्था में भी उसके अवचेतन मन में सुगना अपने कामुक अवतार में दिखाई पड़ रही थी। अपने सारे भी कष्टों को भूल वह अपने अवचेतन मन में सुगना की जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को आज स्पष्ट रूप से देख पा रहा था। गुलाबी बुर की वह अनजान सुरंग मुंह बाये जैसे राजेश का ही इंतजार कर रही थी।

जाने उस छेद में ऐसा क्या आकर्षण था राजेश उसकी तरफ खींचता चला जा रहा था। और कुछ ही देर में राजेश की आत्मा ने नया जन्म लेने के लिए सुगना के गर्भ में पल रहे शिशु के शरीर में प्रवेश कर लिया।


राजेश अपनी जिस स्वप्न सुंदरी की बुर को चूमना चाटना तथा जी भरकर चोदना चाहता था नियति ने उसका वह सपना तो पूरा न किया परंतु उस बुर में प्रवेश कर गर्भस्थ शिशु का रूप धारण करने का अवसर दे दिया।

सुगना राजेश की आत्मा के इस अप्रत्याशित आगमन से घबरा गई उसके शरीर में एक अजब सी हलचल हुई एक पल के लिए उसे लगा जैसे गर्भस्थ ने अजीब सी हलचल की।


सुगना तड़प रही थी उसने अपने पेट को सिकोड़ कर शिशु को अपनी जांघों के बीच से बाहर निकालने की कोशिश की। सुगना की छोटी और कसी हुई बुर स्वतः ही फूल कर शिशु को बाहर आने का मार्ग देने लगी।

प्रकृति द्वारा रची हुई वह छोटी से बुर जो हमेशा सरयू सिंह के लण्ड को एक अद्भुत कसाव देती और जब तक उसके बाबूजी सुगना को चूम चाट कर उत्तेजित ना करते बुर अपना मुंह न खोलती उसी बुर ने आज अपना कसाव त्याग दिया था और अपनी पुत्री को जन्म देने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सोनी और वह नर्स टकटकी लगाकर शिशु को बाहर आते हुए देख रहे थे। सोनी के लिए के लिए यह दृश्य डरावना था। जिस छोटी सी बुर में उसकी उंगली तक न जाती थी उससे एक स्वस्थ शिशु बाहर आ रहा था। सोनी डर भी रही थी परंतु अपनी बहन सुगना का साथ भी दे रही थी नर्सिंग की पढ़ाई ने उसे विज्ञान की जानकारी भी दी थी और आत्मबल भी।

इधर सुगना के बच्चे का सर बाहर आ चुका था नर्स बच्चे को बाहर खींच कर सुगना की मदद कर रही थी उतनी ही देर में लाली की तड़प भी चरम पर आ गई। गर्भ के अंदर का शिशु लाली की बुर् के कसाव को धता बताते हुए अपना सर बाहर निकालने में कामयाब हो गया।

"अरे लाली दीदी का भी बच्चा बाहर आ रहा है "

सोनी ने लगभग चीखते हुए कहा.. और सुगना के बेड के पास खड़ी नर्स के पास आ गई।

" आप इस बच्चे को पकड़िए मैं उस बच्चे को बाहर निकालने में मदद करती हूं"

नर्स भागकर लाली की तरफ चली गई

सोनी ने अपना ध्यान पहले ध्यान बच्चे के जननांग पर लगाया और सन्न रह गई सुगना ने पुत्री की बजाय पुत्र को जन्म दिया।

"हे विधाता तूने दीदी की इच्छा का मान न रखा"

सोनी को यह तो न पता था कि पुत्री का सुगना के जीवन में क्या महत्व था परंतु इतना वह अवश्य जानती थी कि सुगना दीदी जितना पुत्री के लिए अधीर थी उतना अधीर उसने आज तक उन्हें न देखा था। सुगना अपने बच्चे का मुख देख पाती इससे पहले वह पीड़ा सहते सहते बेहोश हो चुकी थी।

कुछ ही देर में नर्स लाली के बच्चे को लेकर सोनी के समीप आ गई

"आपकी दीदी को क्या हुआ है.."

सोनी ने उसके प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु वही प्रश्न उसने नर्स से दोहरा दिया

"मेरे हाथ में तो सुंदर पुत्री है.."

"क्या आप मेरी एक बात मानिएगा?"

"बोलिए"

"मेरी सुगना दीदी को पुत्री की बड़ी लालसा है और लाली दीदी को पुत्र की जो काम भगवान ने नहीं किया क्या हम उन दोनों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते ? दो गुलाब के फूल यदि बदल जाए तो भी तो वह गुलाब के फूल ही रहेंगे।"

नर्स को सोनी की बात समझ आ गई उसे वैसे भी न लाली से सरोकार था न सुगना से । दोनों ही महिलाएं यदि खुश होती तो उसे मिलने वाले उपहार की राशि निश्चित ही बढ़ जाती। नर्स के मन में परोपकार और लालच दोनों उछाल मारने लगे और अंततः सुगना के बगल में एक अति सुंदर पुत्री लेटी हुई थी और सुगना के जागने का इंतजार कर रही थी।

यही हाल लाली का भी था। उसे थोड़ा जल्दी होश आ गया अपने बगल में पुत्र को देखकर लाली फूली न समाई।

उधर सोनी बाहर निकल कर अपने परिजनों को ढूंढ रही थी ताकि वह स्वस्थ बच्चों के जन्म की खुशखबरी उन्हें सुना सके गली में घूम रहे कंपाउंडर ने उसे राजेश की दुर्घटना के बारे में सब कुछ बता दिया। सोनी भागती हुई हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर की तरफ गई जहां राजेश का मृत शरीर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रहा था। लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी नानी को इस तरह बिलखते देखकर राजू और रीमा भी रोने लगे। कजरी लाली की मां को सहारा दे रही थी परंतु लाली की मां अपनी पुत्री के सुहाग का मृत शरीर देख उसका कलेजा मुंह को आ रहा था।

सोनी आवाक खड़ी इस बदली हुई परिस्थिति को देख रही थी राजेश की मृत्यु सारी खुशियों पर भारी पड़ गई थी।

अस्पताल परिसर में एक ही इंसान था जो बेहद प्रसन्न था वह थी सुगना यद्यपि यह अलग बात थी कि उसे राजेश की मृत्यु की जानकारी न थी अपनी बहुप्रतीक्षित पुत्री को देखकर सुगना फूली नहीं समा रही थी। उसने अपने सारे इष्ट देवों का हृदय से आभार व्यक्त किया और अपने मन में मानी हुई सारी मान्यताओं को अक्षर सही याद करती रही और उन्हें पूरा करने के लिए अपने संकल्प को दोहराती रही। विद्यानंद के लिए उसका सर आदर्श इच्छुक गया था उसने मन ही मन फैसला किया कि वह अगले बनारस महोत्सव में उनसे जरूर मिलेगी

वह रह रह कर अपनी छोटी बच्ची को चूमती….

"अब तो आप खुश है ना"

सुगना को ध्यान आया कि अब से कुछ देर पहले उसने नर्स को नेग देने की बात कही थी

सुगना ने अपने हाथ में पहनी हुई एक अंगूठी उस नर्स को देते हुए कहा

"हमार शरदा भगवान पूरा कर देले ई ल तहार नेग "

नर्स ने हाथ बढ़ाकर वह अंगूठी ले तो ली पर उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी। उसे पता था कि उसने बच्चे बदल कर गलत कार्य किया था चाहे उसकी भावना पवित्र ही क्यों ना रही हो।

कुछ घटनाक्रम अपरिवर्तनीय होते हैं आप अपने बढ़ाएं हुए कदम वापस नहीं ले सकते वही स्थिति सोनी और उस नर्स की थी शायद नियति की भी...।


शेष अगले भाग में...
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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 18-04-2022, 05:37 PM



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