18-04-2022, 03:49 PM
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भाग -57 - a
बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..
धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।
परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे
वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..
"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"
अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..
"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"
10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।
सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।
पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।
सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।
कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।
पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।
कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के कॉलेज में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।
इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।
खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….
बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...
"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"
सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा
"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"
सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।
राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।
सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...
" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।
सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..
नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।
सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।
सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।
खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा
"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"
"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"
"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".
सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"
"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"
सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।
आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।
सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।
इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।
इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।
"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"
डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….
शेष अगले भाग में...
बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..
धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।
परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे
वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..
"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"
अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..
"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"
10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।
सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।
पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।
सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।
कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।
पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।
कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के कॉलेज में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।
इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।
खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….
बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...
"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"
सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा
"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"
सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।
राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।
सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...
" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।
सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..
नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।
सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।
सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।
खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा
"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"
"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"
"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".
सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"
"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"
सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।
आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।
सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।
इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।
इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।
"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"
डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….
शेष अगले भाग में...