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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#58
भाग 54

सोनू और लाली की मीठी छेड़छाड़ जारी थी। लाली में आह भरी। तवा गर्म हो चुका था…. गैस पर रखा हुआ भी और लाली की जांघों के बीच भी...

इधर सोनू और लाली मिलन की तैयारी में थे उधर सुगना और सोनी बनारस महोत्सव से लाली के घर आने के लिए निकल चुके थे..

अब आगे..


लाली रोटियां बना रही थी और सोनू उसके गदराए बदन को सहला रहा। अब से कुछ देर पहले आटा गूँथते समय सोनू ने उसकी चुचियों को खूब मीसा था जिसका असर उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर पर भी हुआ था जो अपनी लार टपका रही थी.

सोनू उस चासनी जैसी लार की कल्पना कर मदहोश हो रहा था। उसकी जीभ फड़फड़ा रही थी। वह अपनी दीदी के अमृत कलश से अमृत पान करना चाह रहा था। जैसे ही लाली ने रोटियां बनाना खत्म किया सोनू ने उसे उठा लिया और किचन स्लैब पर बैठा दिया.

"अरे सोनू क्या कर रहा है? गिर जाऊंगी"

"कुछ नहीं दीदी आप बैठे हो तो".

"लाली इतनी भी नासमझ न थी चार पांच वर्षों के वैवाहिक जीवन के पश्चात उसे स्लैब पर बैठने का अनुभव था और उसके बाद होने वाले क्रियाकलापों का भी। परंतु आज राजेश की जगह सोनू था लाली की नजरों में नासमझ और अनुभवहीन.

"क्या कर रहा है?".

"मुझे चासनी चाटनी है"

"लाली सोनू की मंशा समझ चुकी थी उसने हटाते हुए कहा.."

"अच्छा रुक में बाथरूम से आती हूं" लाली नहीं चाहती थी कि वह अपनी बुर से टपकती हुई लार सोनू को दिखाएं और अपने छोटे भाई के सामने अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन करें".

परंतु सोनू नहीं माना वह अधीर हो गया और उसने लाली की नाइटी को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली के पैर नग्न होते गए जांघो तक पहुंचते-पहुंचते सोनू का सब्र जवाब दे गया। उसने अपने सर को लाली की दोनों जांघों के बीच रखा और नाइटी पर से अपना ध्यान हटा लाली की जांघों को अपने गालों से सहलाने लगा। नाइटी एक बार फिर नीचे आ चुकी थी परंतु सोनू नाइटी के कोमल आगोश में छुप गया था।

सोनू के होठ धीरे-धीरे लाली की जांघों के जोड़ की तरफ बढ़ रहे थे सोनू जैसा अधीर किशोर आज बेहद धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था लाली की बुर से आ रही खुशबू उसके नथुनों में भर रही थी वह उस मादक एहसास को खोना नहीं चाह रहा था।

कुछ ही देर में उसके होंठों ने अपनी प्रेमिका के निचले होठों को चूम लिया और उसकी लप-लपपाती जीभ अमृत कलश के मुहाने पर छलके प्रेम रस का आनंद लेने लगी।

लाली कांप रही थी ऐसा नहीं था की लाली को यह सुख पहली बार मिल रहा था परंतु आज यह सुख उसे अपने ही मुंहबोले छोटे भाई से मिल रहा था। नाइटी के अंदर सोनू के सर को सहलाते हुए कभी वह उसे अपनी तरफ खींचती कभी दूर करती। परंतु सोनू की जीव अमृत कलश पर से हटने को तैयार न थी।

सोनू की जीभ लाली की बुर की गहराइयों में उतर जाना चाहती थी। सोनू की नाक लाली के भग्नासा से टकरा रही थी। कुछ ही देर में लाली में अपने सोनू के लिए इतनी चासनी उड़ेल दी जिसे खत्म कर पाना सोनू के बस में नहीं था।

सोनू का चेहरा कामुक लाली के प्रेम रस से सन गया था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू बड़े से पतीले में चासनी में तैर रहे रसगुल्ले को बिना अपने हाथों की सहायता से खाने का प्रयास कर रहा था।

सोनू अभी भी उस सुखद अहसास को छोड़ना नहीं चाह रहा था परंतु लाली ने स्लैप पर पड़े गिलास को नीचे गिरा कर उसका ध्यान भंग किया और जैसे ही सोनू ने अपना सर दूर किया लाली स्लैब से उतर गई इस बार लाली ने स्वयं ही अपनी नाइटी को ऊपर उठाया और सोनू को अपने कोमल और मखमली घेरे से आजाद कर दिया। सोनू उठ खड़ा हुआ उसके होठों और नाक पर लगी हुई चाशनी को देखकर लाली मोहित हो गई उसनें आगे बढ़कर सोनू के होठों को चूम लिया और बोली..

"सब कुछ बड़ा जल्दी सीख लिए हो पर पूरा चश्नी अपना मुंह में लभेर लिए हो"

सोनू की आंखों में वासना का असर साफ दिखाई दे रहा था उसकी भूख अभी शांत नहीं हुई थी उसने लाली को उठा लिया और हाल में रखे चौकी पर ले आया।

कुछ ही देर की चुदाई में लाली स्खलित हो गई। आधा कार्य तो सोनू के होठों ने पहले ही कर दिया था बाकी सोनू के मजबूत लण्ड ने कर दिया ।

अंदर कमरे में बच्चे सो रहे थे। लाली शीघ्र ही सोनू को स्खलित करना चाहती थी उसने अपना दांव खेला और एक बार फिर वह डॉगी स्टाइल में उपस्थित थी। सोनू आज दिन के उजाले में लाली के नितंबों को अनावृत कर उसके भी छुपे छेद का भोग करने लगा। लाली की गांड पर आज पहली बार उसका ध्यान गया। वह उतनी ही आकर्षक थी। जितनी लाली की रसीली बुर सोनू लाली की खूबसूरती का आनंद लेते हुए उसे गचागच चोद रहा था। कमरे में थप... थप..थप.. की मधुर आवाज गूंज रही थी. .

इधर सोनू और लाली की चुदाई जारी थी उधर दरवाजे पर सुगना आ चुकी थी। सोनी लालय के घर के सामने की परचून की दुकान पर लाली के बच्चों के लिए लॉलीपॉप लेने चली गई। और सुगना अपने प्यारे सूरज को गोद में लिए हुए लाली के दरवाजे पर आकर खड़ी थी। कमरे के अंदर से आ रही थप..थपा ..थप…..थप की आवाजें आ रही थी। छोटा सूरज भी अनजान ध्वनि से रूबरू हो रहा था और उछल उछल कर दरवाजे की तरफ जाने का प्रयास कर रहा था लगता था उसे यह मधुर थाप पसंद आ रही थी।

सुगना को वह आवाज जानी पहचानी लग रही थी उस ने भाप लिया कि अंदर लाली चुद रही है। सुगना शर्म से लाल हो गई उसकी दरवाजा खटखटाने की हिम्मत ना हुई वह दरवाजे के पास खड़ी लाली के नितंबों पर पड़ रही मधुर थाप को सुनती रही.

सोनी को दरवाजे की तरफ आते देख सुगना की सांसें फूल गई. वह भागती हुई सोनी की तरफ आई और बोली

"लगता है लाली अब तक सो रही है"

"अपने दरवाजा खटखटाया था"

" हां एक बार खटखटाया था" सुगना ने मीठा झूठ बोल दिया।

"अरे अब कोई सोने का वक्त है। रुकिए में खटखटाती हू"

सोनी सुगना को किनारे कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई सुगना मन ही मन ऊपर वाले से प्रार्थना करने लगी की राजेश और लाली के बीच चल रहा प्रेम समाप्त हो चुका हो उसे क्या पता था कि अंदर लाली को चोद रहा व्यक्ति उसका पति राजेश नहीं सुगना का अपना भाई सोनू था. किशोर सोनी अंदर चल रही घटनाओं से अनजान थी उसने दरवाजा खटखटा दिया.

" दरवाजा खटखटाया जाने से लाली घबरा गई थी परंतु सोनू अभी भी उसे घपा घप चोदे जा रहा था अपनी उत्तेजना के आवेश में उसने लाली के नितंबों को अपने लण्ड पर तेजी से खींचा और लण्ड को एक बार फिर जड़ तक ठान्स दिया।

सोनू की पिचकारी फुलने पिचकने लगी लाली ने अपने आपको उससे अलग किया परंतु लण्ड से निकल रही वीर्य की धार लाली के शरीर पर गिरती रही लाली चौकी से उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी और सोनू अपने वीर्य से उसे भिगोने की कोशिश कर रहा था.

वीर्य की धार जितना लाली के शरीर पर गिरी थी उतनी ही चौकी पर बिछे चादर पर भी थी और उसके कुछ अंश जमीन पर भी गिरा रहा था।

लाली ने दरवाजे की सांकल खोलने से पहले सोनू की तरफ देखा जो अपना पैजामा ऊपर कर रहा था.

जब तक लाली दरवाजा खोलती सोनू बाथरूम में घुस गया सुगना और सोनू अंदर आ चुके थे.

सोनी ने चहकते हुए कहा

"अरे लाली दीदी तो नहा धोकर तैयार हैं पर आपके बाल क्यों बिखरे हुए हैं. और आप हांफ क्यों रही हैं?

सुगना ने तो लाली की स्थिति देखकर ही अंदाजा लगा लिया था। कमरे से आ रही मधुर थाप, लाली के तन की दशा और दिशा दोनों को ही चीख चीख कर लाली की चुदाई की दास्तान कह रहे थे।

रेलवे के मकानों के सीमेंट से बने फर्श पर वीर्य की लकीर साफ दिखाई पड़ रही थी .

सोनी ने लाली के चरण छुए और इसी दौरान उसके नथुनों में लाली की ताजा चुदी हुई बुर की मादक खुशबू समा गई। सोनी ने लिए यह गंध जानी पहचानी सी लगी सोनी ने कई बार अपनी बुर को सहला कर उस से निकल रहे रस को सूंघ कर उसे जानने पहचानने की कोशिश की थी।

वह उस गंध के बारे में सोचती हुई चौकी पर बैठने लगी सोनी के नितंबों से पहले उसकी हथेलियों ने चौकी पर बिछी हुई चादर को छू लिया और चादर पर गिरा हुआ सोनू का बीर्य सोनी की हथेलियों में लग गया..

"छी राम लाली दीदी यह क्या गिरा है"

"लाली सन्न रह गई उसे कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसने अपने अनमने मन कहा

"अरे सोनी पानी गिर गया होगा"

"नहीं दीदी यह चिपचिपा है" सोनी बेपरवाह होकर अपनी बात रख रही थी।

सुगना पूरी तरह समझ चुकी थी कि वह निश्चित ही वीर्य की धार ही थी.

चादर पर गिरा हुआ वीर्य एक लकीर की भांति अपना निशान छोड़ चुका था। यह निशान भी वैसा ही था जैसा सुगना ने फर्श पर पहले ही देख लिया था सुगना ने सोनी से कहा।

"जा बाथरूम में हाथ धो ले मैं चादर बदल देती हूँ"

लाली स्वयं असहज स्थिति में थी । सोनू की भरपूर चुदाई से वह थक चुकी थी उसकी तेज चल रही सांसे धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी। वह चादर लेने कमरे में जाने लगी।

सोनी ने लाली से पूछा

"लाली दीदी जीजा जी कहां है?"

"अरे वह शाम को आएंगे"

सुगना का दिल धक से हो गया इससे पहले कि वह कुछ सोच पाती बाथरूम से सोनू बाहर आ गया और उसके चरण छूते हुए बोला

"अरे दीदी आप ..अचानक"

"अरे सोनू भैया तो लाली दीदी के यहां है हम लोग वहां आपका इंतजार कर रहे थे."

मैं तो लाली दीदी को लेकर वहीं आ रहा था

"जीजू नहीं थे ना इसलिए मैं वाली दीदी को लेने आ गया था यह भी मेला में जाना चाहती थी।"

सोनू ने अपनी बातों से सोनी और सुगना को समझा तो लिया था. परंतु सुगना ने अपने कानो से जो सुना था और चादर तथा जमीन पर पड़ी वीर्य की लकीरों को अपनी आंखों से देखा था उसे झुठला पाना असंभव था। सुगना को पूर्ण विश्वास हो चला था की लाली और सोनू ने मर्यादाओं को तोड़ कर भरपूर चुदाई की है।

लाली भी चादर लेकर बाहर आ चुकी थी।

कुछ ही देर में स्थिति सामान्य हो गई और लाली द्वारा बनाई गई रोटियां सभी मिलजुल कर खाने लगे.

सोनु अपनी आंखें झुकाये हुए खाना खा रहा था। वह सोनी से तो बात कर रहा था परंतु सुगना से बात करने और नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब से कुछ देर पहले ही वह उसकी प्रिय सहेली को कस कर चोद चुका था।

कुछ देर की औपचारिक बातचीत के पश्चात सुगना ने सोनू से कहा जा सोनी को पंडाल में छोड़ आ और जाते समय यह सामान पांडाल में लिए जाना।। सुगना में कुछ सामानों की फेहरिस्त उसे बता दी और सोनू और सोनी लाली के घर से पांडाल के लिए निकल गए घर में अब सुगना और लाली ही थे।

लाली के बच्चे भी अब सूरज का ध्यान रखने लायक हो गए थे। सूरज इन दोनों के साथ बिस्तर पर आराम से खेल रहा था। सुगना बिस्तर पर अपने बालक को उन्मुक्त होकर खेलते हुए देखकर मन ही मन गदगद थी। परंतु जब जब उसे विद्यानंद की बातें याद आ रही थी। वह बेचैन होती जा रही थी। बनारस महोत्सव के 4 दिन बीत चुके थे।

सुगना का गर्भधारण एक जटिल समस्या बन चुकी थी। बनारस महोत्सव से लाली के घर आते समय सुगना अपनी शर्मो हया त्याग कर राह चलते मर्दो को देख रही थी क्या उसके गर्भ में बीज डालने के लिए कोई मर्द ना बचा था। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। कभी वह अपने अश्लील खयालों को सोच सोच खुद ही शर्मसार होती और कभी ऊपर वाले से यही गुहार करती कि एन केन प्रकारेण उसका गर्भधारण संपन्न हो और उसे सूरज की मुक्तिदायिनी बहन को जन्म देने का अवसर प्राप्त हो परंतु कोई उपाय न सूझ रहा था।

अपनी इस दुविधा को वह न तो किसी से बता सकती थी और न हीं अकेले गर्भधारण उसके बस में था। उसने हिम्मत जुटा घर लाली से अपना दुख साझा करने की सोची। विद्यानंद द्वारा दी गई नसीहत ओं का उसे पूरा ख्याल था परंतु बिना लाली के सहयोग के उसे और कोई रास्ता ना सूझ रहा था। उसने लाली के हाँथ को अपने कोमल हाथों में लेते हुए पुरी संजीदगी से कहा

"लाली मुझे दोबारा गर्भधारण करना है"

'अरे मेरी कोमल गुड़िया इतनी जल्दी क्या है बच्चा जनने की. अभी सूरज को और बड़ा हो जाने दे"

"नहीं तू नहीं समझेगी. मुझे यह कार्य इन 2 दिनों में ही करना है" लाली की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी उसे सुगना की बात बिना सर पैर के प्रतीत हो रही थी। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"तू पागल हो गई है क्या?. अभी 2 दिन में तू कहां से गर्भधारण करेगी? रतन भैया जब आएंगे तब जी भर कर चुद लेना मेरी जान और फिर अपना पेट फुला लेना। "

लाली को क्या पता, सुगना की बेचैनी का कारण क्या था.

जिस प्रकार मानसिक वहम का शिकार व्यक्ति चाहकर भी अपनी बात दूसरे को नहीं समझा पाता हूं वही हाल सुगना का था वह अपने गर्भ धारण की जल्दी बाजी को बयां कर पाने में सर्वथा असमर्थ थी।

सुगना उदास हो गई उसने अपना सिर झुका लिया उसकी आंखों में पानी छलक आया। उसके मन में अचानक उठ रहा उम्मीदों का बुलबुला फूट गया। लाली भी क्या करती सुगना का गर्भधारण उसके बस में तो था नहीं। फिर भी उसने सुगाना के चेहरे की उदासी न देखी गयी वह उसकी अंतरंग सहेली थी उसने सुगना के चेहरे को अपनी हथेलियों से उठाया और बोला

"सुगना मुझे खुलकर बता क्या बात है"

"चल चल छोड़ जाने दे" सुगना ने कोई उत्तर न दिया वह उठकर रसोई की तरफ चली गई. लाली भी उसके पीछे पीछे आ गयी और उसे बाहों में पकड़ते हुए बोली..

" देख रतन भैया तो है नहीं और बिना इस रानी को खुश किये तू गर्भवती हो नहीं सकती। मेरी रानी नियोग के लिए इसका भोग लगवाना होगा " लाली ने सुगना की जांघों के बीच अपनी उंगलियां फिराते हुए बोला।

सुगना चुप ही रही उसकी शांति को लाली ने उसकी रजामंदी समझ कर कहा

"एक मर्द है परंतु मुझे नहीं पता वह तेरे साथ ऐसा कार्य कर पाएगा या नहीं…"

सुगना परेशान थी परंतु वह व्यभिचार के लिए किसी भी तरीके से तैयार न थी। उसके अंतर्मन में कई बार राजेश का ख्याल अवश्य आ रहा था परंतु जब जब वह अपने ख्यालों में उसके साथ स्वयं को नग्न रूप में देखती वह स्वयं को बेहद असहज महसूस करती और अपने ख्याल को तुरंत त्याग देती। राजेश के साथ मीठी छेड़खानी तो वह कई बार कर चुकी थी और अपने पिछले प्रवास के दौरान अपनी नग्न जांघों के दर्शन भी उसने राजेश को करा दिए थे। परंतु इससे आगे बढ़कर अपनी जांघे खोल कर उससे चुदने की कल्पना करना उसके लिए कठिन हो रहा था।

सुगना कतई व्यभिचारिणी नहीं थी वह हंसते मुस्कुराते और कामुकता का आनंद लेती थी परंतु अपनी सहेली के बिस्तर पर बिछकर उसके ही पति से चुदना उसके लिए यह बेहद शर्मनाक सोच थी।

जैसे-जैसे बनारस महोत्सव का समय बीत रहा था सुगना की अधीरता बढ़ रही थी वह अपने दिमाग में गर्भधारण के तरह-तरह के उपाय सोचने लगी। आखिर संभोग में होता क्या है लिंग और योनि का मिलन तथा लिंग से निकले उस श्वेत धवल हीरे का गर्भ पर गिरना और गर्भाशय द्वारा उसे आत्मसात कर एक नए जीव का सृजन करना। सुगना को नियति के इस खेल का सिर्फ इतना ही ज्ञान था।

क्या किसी पुरुष के वीर्य को वह अपने गर्भ में नहीं पहुंचा सकती? क्या इसके लिए संभोग ही एकमात्र उपाय है ? सुगना का दिमाग तेजी से चलने लगा अपनी व्यग्रता में उसने अपनी समझ बूझ के आधार पर एक नया मार्ग निकाल लिया.

वह अपने मन में उम्मीद लिए हुए लाली के पास पहुंची जो अपने बेटे राजू को खाना खिला रही थी। बच्चों के सामने ऐसी बातें करने में सुगना शर्मा रही थी। उसने इंतजार किया और अपनी सोच को सधे हुए शब्दों में पिरोने की कोशिश करने लगी ।

लाली राजू को खाना खिला कर बर्तन रखने की रसोई में आ गई और सुगना उसके पीछे पीछे।

"ए लाली क्या बिना मिलन के भी गर्भधारण संभव है" लाली का ज्ञान भी सुगना से कम न था

दोनों ने प्राथमिक विद्यालय से बमुश्किल स्नातक की उपाधि ली थी।

"लाली ने मुस्कुराते हुए कहा हां हां क्यों नहीं महाभारत की कहानी सुनी है ना?"

"सुगना के मन में फूल रहे गुब्बारे की हवा निकल गई उसे पता था न तो इस कलयुग में वैसे दिव्य महर्षि थे और न हीं सुगना एक रानी थी"

"ए लाली यदि किसी आदमी का वीर्य अपने अंदर पहुंचा दें तो क्या गर्भ ठहर सकता है।"

"अरे मेरी जान इतनी क्यों बेचैन है कुछ दिन इंतजार कर ले वरना मेरे पास एक और रास्ता है"

"सुगना ने शर्म से अपनी आंखें झुका ली उसे पता था लाली क्या कहने वाली है" राजेश के उसके प्रति आकर्षण को लाली कई बार व्यक्त कर चुकी थी और वह स्वेच्छा से राजेश को उसे समर्पित करने को तैयार थी।

"जाने दे मुझे तेरा रास्ता नहीं सुनना मैं जीजाजी के साथ वो सब नहीं कर सकती"

"अरे क्या मेरे पति में कांटे लगे हैं?"

" तू कैसी बीवी है तुझे जलन नहीं होगी"

"अरे मेरी जान मुझे जलन नहीं बेहद खुशी होगी यदि मेरे पति तेरे किसी काम आ सके"

"तू भटक गई है मैं कुछ और बात कह रही थी"

" क्या बात पहेलियां क्यों बुझा रही है साफ-साफ बोलना"

"मैं सोच रही थी की क्या पुरुष वीर्य को अपने गर्भ में पहुंचा कर मैं गर्भवती हो सकती हूँ?"

"और यह पुरुष वीर्य तुझे मिलेगा कहां"

"मेरी सहेली है ना? अभी सुबह जो इस कमरे में हो रहा था उसका एहसास मुझे बखूबी है तूने सोनू को आखिर अपने मोहपास में बांध ही लिया"

"ओह तो तूने सोनू को मिठाई खाते हुए देख लिया"

"नहीं मैंने खाते हुए तो नहीं देखा पर मुझे मिठाई खाने की चप चप...की आवाज जरूर सुनाई पड़ रही थी" अब शर्माने की बारी लाली की थी। वह आकर सुगना से लिपट गई चारों बड़ी-बड़ी चुचियों ने एक दूसरे का चुंबन स्वीकार कर लिया। जैसे-जैसे दोनों सहेलियों का आलिंगन कसता गया सूचियों का आकार गोल से सपाट होता गया।

लाली ने सुगना के कान में कहा..

"मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है बता कौन सा लड्डू खाएगी"

सुगना ने अब तक सिर्फ और सिर्फ राजेश के बारे में ही सोचा था उसने अपने ख्यालों में राजेश के वीर्य से स्वयं को अपने मन में चल रही अनोखी विधि से गर्भवती करना स्वीकार कर लिया था।

"जिसने मेरी सहेली को दो प्यारे प्यारे फूल दिए हैं"

"पर कहीं होने वाले बच्चे का चेहरा राजेश पर गया तो तू दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगी"

मेरे ख्याल से तुझे दूसरा लड्डू ही लेना चाहिए

"क्या तू सोनू की बात कर रही है"

"मेरे पास और कोई उपाय नहीं दिख रहा है वैसे भी वो बाहर है पता नहीं कब आएंगे" लाली ने उत्तर देकर निर्णय सुगना पर ही छोड़ दिया।

"अरे जरूरी थोड़ी ही है कि उसका चेहरा पिता पर ही जाए मुझ पर भी तो जा सकता है" सुगना ने उत्तर दिया और मन ही मन खुद को राजेश के वीर्य से गर्भवती होने के लिए तैयार कर लिया था।

"ठीक है तो उनका इंतजार कर मैं कुछ उपाय करूंगी"

इंतजार शब्द ने सुगना के अंतर्मन पर गहरा प्रभाव दिखाया यही वह शब्द था जो उसे और अधीर कर रहा था। समय तेजी से बीत रहा था सुगना चैतन्य हो गयी। लाली ने एक बार फिर कहा..

"मैं अभी भी दूसरे लड्डू के पक्ष में हूं। उसे तो पता भी नहीं चलेगा अभी नया नया नशा है दिन भर पिचकारी छोड़ता रहता है. यदि तू कहे तो प्रयास किया जा सकता है" लाली हंस रही थी।

सुगना ने सर झुका लिया और बोला

"जैसी तेरी मर्जी"

उसके चेहरे के हाव भाव यह इशारा कर रहे थे कि वह लाली की बातों से इत्तेफाक नहीं रख रही थी पर मरता क्या न करता सुगना ने अनमने मन से ही सही लाली की बात को स्वीकार्यता दे दी थी। लाली ने सुगना के कोमल चेहरे को ठुड्डी से पकड़कर उठाते हुए कहा..

"अरे मेरी प्यारी चल मैं कुछ उपाय करती हूं, सुगना प्रसन्न हो गयी उसने अपनी आत्मग्लानि और मन में चल रहे द्वंद्व पर पर विजय पा लिया था"

सुगना ने अपने मन में चल रहे बवंडर को लाली के हवाले कर कुछ पलों के लिए चैन की सांस ले ली।

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन में अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।

सुखना और लाली ने गर्भधारण के लिए जो तरीका चुना था वह अनोखा था उसने नियति के कार्य को और दुरूह बना दिया था नियति अपने ही बनाए जाल में फंस चुकी थी….



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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 18-04-2022, 03:22 PM



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