18-04-2022, 02:59 PM
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50 वां भाग
बनारस महोत्सव का तीसरा दिन
सरयू सिंह आज सुबह से ही उत्साहित थे. सुगना ने अपना वादा पूरा करने के लिए आज शाम का वक्त तय किया था परंतु सरयू सिंह सुबह-सुबह ही नहा धोकर तैयार थे. जब तक सुगना और परिवार की बाकी महिलाएं तैयार होकर आती सरयू सिंह पंडाल के सात्विक नाश्ते को छोड़कर बाहर से कचोरी और जलेबी ले आए वह सुगना के लिए विशेष तौर पर मोतीचूर का लड्डू भी ले आए जो सुगना को बेहद पसंद था। अपनी बहू का ख्याल रखना वह कभी नहीं भूलते थे और आज तो वैसे भी विशेष दिन था.
कजरी सरयू सिंह की भावनाओं को पूरी तरह पहचानती थी और उनकी नस नस से वाकिफ थी। सरयू सिंह के उतावले पन और बार-बार सुगना के करीब आने से वह अंदाज लगा रही थी की सरयू सिंह और सुगना निश्चित ही आज मिलने वाले थे। कजरी को भी मनोरमा के कमरे और उसकी चाबी सुगना के पास होने की जानकारी थी। उस कमरे की उपलब्धता ने कजरी की सोच को बल दे दिया था। बनारस महोत्सव के इस पावन अवसर पर दोनों पूर्ण संभोग करेंगे ऐसा तो कजरी ने नहीं सोचा था पर मुखमैथुन और हस्तमैथुन उन दोनों के बीच बेहद सामान्य को चला था।
सुबह के नाश्ते के पश्चात लाली और राजेश अपने बच्चों के साथ अपने घर चले गए। सोनू को भी अपने दोस्तों की याद आई और वह उनसे मिलने चला गया.
सरयू सिंह सुगना को लगातार ताड़ रहे थे जो अपनी दोनों बहनों के साथ अपनी उम्र को भूलकर हंस खेल रही थी। अपनी छोटी बहनों के साथ खेलते हुए सुगना सचमुच एक भरे पूरे बदन की किशोरी लग रही थी। कोमल और मासूम चेहरा उसके गदराए जिस्म से मेल नहीं खा रहा था.. सरयू सिंह की भरपूर चुदाई से उसके फूले हुए नितंब चीख चीख कर उसके युवती होने की दुहाई दे रहे थे परंतु सुगना के चेहरे की मासूमियत विरोधाभास पैदा कर रही थी।
तभी विद्यानंद के एक चेले ने हॉल में आकर आवाज लगाई सरयू सिंह और कजरी महात्मा जी आप लोगों को बुला रहे हैं.
पिछली दोपहर सरयू सिंह ने विद्यानंद से मिलने की बहुत कोशिश की परंतु सफल न हुए। हार कर उन्होंने खत लिख कर विद्यानंद के चेले को पकड़ा दिया। शाम तक विद्यानंद की तरफ से कोई बुलावा ना आने पर उनका स्वाभिमान आड़े आने लगा।
सरयू सिंह सोच रहे थे ...यदि वह उनका भाई बिरजू था तो उसे उन्हें इतना इंतजार नहीं कराना था। खत में उन्होंने साफ-साफ अपना नाम पता लिखा हुआ था और यदि वह बिरजू नहीं था तो विद्यानंद से मिलने का कोई औचित्य भी न था। सरयू सिंह वैसे भी ऐसे भौतिक महात्माओं पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.
परंतु अब आमंत्रण आ चुका था। सरयू सिंह और कजरी दोनों विद्यानंद से मिलने चल पड़े..
विद्यानंद के कमरे में प्रवेश करते ही सरयू सिंह और कजरी विद्यानंद के आलीशान कक्ष की शोभा से मोहित हो गए। सरयू सिंह तो इन भौतिक चीजों में ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे पर
ऐश्वर्य की अपनी चमक होती है। आप ना चाहते हुए भी उससे अभिभूत हो जाते हैं।
वही हाल सरयू सिंह का था उनकी निगाहें बरबस ही कमरे की साज-सज्जा पर जा रही थी। एक पल के लिए उनका ध्यान विद्यानंद से हटकर उस कमरे की भव्यता में खो गया था परंतु कजरी विद्यानंद को देखे जा रही थी उसे भी अब एहसास हो रहा था कहीं यह रतन के पिता तो नहीं।
विद्यानंद अपने आसन से उठ कर खड़े हो गए
"आओ सरयू"
इनके इस अभिवादन ने सरयू सिंह और कजरी के मन में उठ रहे संदेशों को खत्म कर दिया। उनका यह अंदाज ठीक वैसा ही था जैसे वह अपनी युवावस्था में अपने छोटे भाई सरयू सिंह को बुलाया करते थे। सरयू सिंह एक पल के लिए भाव विभोर हो गए और तेज कदमों से चलते हुए विद्यानंद के गले जा लगे।
कृष्ण और सुदामा का यह मिलन नियति देख रही थी। विद्यानंद ने सांसारिक जीवन से अपना मोह भंग कर लिया था यह उसके आलिंगन से साफ साफ दिखाई पड़ रहा था परंतु सरयू सिह के आलिंगन में आज भी आत्मीयता झलक रही थी। उनकी मजबूत बाहों की जकड़ विद्यानंद महसूस कर पा रहे थे। सरयू सिंह के अलग होते ही कजरी की बारी आई।
कजरी वैसे तो अपने पति से नफरत करती थी परंतु आज विद्यानंद जिस रूप में उसके सामने खड़े थे वह उनका अभिवादन करने से स्वयं को ना रोक पायी और झुक कर उनके चरण स्पर्श करने की कोशिश की।
परंतु विद्यानंद पीछे हट गए और और स्वयं आगे झुक कर कजरी को प्रणाम किया तथा अपने चेहरे पर संजीदा भाव लाकर बोले
" देवी मुझे क्षमा कर देना मैंने आपके साथ जो किया वह मेरी नासमझी थी परंतु नियति का लिखा कोई मिटा नहीं सकता मुझसे वह अपराध होना था सो हो गया। हो सके तो मुझे माफ कर देना।"
कजरी निरुत्तर थी इतना बड़ा महात्मा उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़े से क्षमा मांग रहा था कजरी ने अपनी मधुर आवाज में कहा
"शायद हम सभी के भाग्य में यही लिखा था"
विद्यानंद ने सहमति में अपना सर हिलाया और सरयू सिंह तथा कजरी को बैठने का इशारा किया।
कजरी के माथे पर चमकता हुआ सिंदूर और चेहरे का सुकून देखकर विद्यानंद को एक पल के लिए यह एहसास हुआ जैसे कजरी और सरयू सिंह ने एक दूसरे से विवाह कर लिया हो ।
विद्यानंद का आकलन सही था वैसे भी सरयू सिंह और कजरी विवाह न करते हुए भी एक दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और एक सुखद दांपत्य जीवन का आनंद ले रहे थे।
विद्यानंद ने सरयू सिंह से खुलकर बातें की और अपने बचपन को याद किया कजरी का जिक्र भी स्वाभाविक तौर पर आ रहा था गांव के छोटे बड़े सभी व्यक्तियों का समाचार सुनकर विद्यानंद अपने युवा काल और बचपन को याद कर रहे थे।
तभी विद्यानंद ने कजरी से पूछा..
बच्चे कहां हैं अब तो सब बड़े हो गए होंगे ..
"हां, आपका एक बेटा है जो मुंबई में है.".
सरयू सिंह ने उत्तर दिया पर विद्यानंद को यह बात समझ ना आयी। उन्होंने कजरी के साथ संभोग अवश्य किया था परंतु उन्हें कतई उम्मीद न थी की कजरी गर्भवती हो गई होगी। विद्यानंद ने इस पचड़े में ज्यादा पड़ना उचित नहीं समझा।
अचानक विद्यानंद का ध्यान सरयू सिंह के माथे के दाग पर चला गया जो निश्चित ही अपना आकार कुछ कम कर चुका था परंतु अब भी वह स्पष्ट तौर पर अपने अस्तित्व का एहसास करा रहा था। बालों के हटने से वह दिखाई पड़ने लगा।
विद्यानंद ने उस दाग को देखकर असहज हो गए और कजरी से कहा..
"देवी अब आप जा सकती हैं मुझे सरयू से एकांत में कुछ बातें करनी है।"
कजरी को यह बात बुरी लगी परंतु विद्यानंद से न उसे कोई उम्मीद थी और नहीं कभी भविष्य में मिलने की इच्छा वह कमरे से बाहर आ गई।
विद्यानंद उठकर सरयू के पास आए और अपने उंगलियों से उनके बाल को हटाकर उस दाग को ध्यान से देखाऔर बोला..
"सरयू तूने पाप किया है"
"नहीं बिरजू भैया ऐसी कोई बात नहीं है"
"तेरे माथे पर यह दाग तेरे पाप का ही प्रतीक है। यह क्यों है यह मैं तुझे नहीं बता सकता परंतु इतना ध्यान रखना नियति सारे पापों का लेखा जोखा रखती है तू जितना इस पाप से दूर रहेगा तेरे लिए उतना ही अच्छा होगा।"
विद्यानंद की बात सुनकर सरयू सिंह का दिमाग खराब हो गया। यह दाग उन्हें बेहद खटकने लगा। विद्यानंद ने अपनी नसीहत देकर उन्हें मायूस कर दिया। सरयू सिह को यह बात पता थी कि इस दाग का सीधा संबंध सुगना से था और सुगना उनकी जान थी।
वह चाह कर भी उसके यौवन और प्रेम के आकर्षण से विमुक्त नहीं हो पा रहे थे। कितनी अल्हड़ नवयौवना थी सुगना और उनसे कितना प्यार करती थी? उम्र के अंतर को भूलकर वह उनकी गोद में फुदकती थी और उनका लण्ड खुद-ब-खुद सुगना की बूर् खोज लेता। इतना सहज और मधुर संभोग कैसे प्रतिबंधित हो सकता है? सरयू सिंह ने अब और देर करना उचित न समझा और उठकर खड़े हो गए। उन्होंने विद्यानंद को प्रणाम किया और कहा भैया अब मैं चलता हूं।
विद्यानंद ने एक बार फिर से सरयू सिह को अपने आलिंगन में लिया और अपना सर उसके कान के पास ले जाकर कहा
"मनुष्य का नियंत्रण यदि दिमाग करें तो प्रगति दिल करे तो आत्मीयता और संबंध और यदि नियंत्रण कमर के नीचे के अंग करने लगे तो मनुष्य वहशी हो जाता है।उसे ऊंच-नीच और पाप पुण्य का अंतर दिखाई नहीं पड़ता । मैं सिर्फ इतना कहूंगा मेरी बात को ध्यान रखना और अपने आने वाले जीवन को सुख पूर्वक व्यतीत करना जिस दिन तुम्हें इस दाग के रहस्य पता चलेगा तुम्हें असीम कष्ट होगा। मैं प्रार्थना करूंगा कि यह दाग इसी अवस्था में सीमित रह जाए और तुम्हें इस जीवन में इसका रहस्य पता ना चले।"
"ठीक है भैया"
सरयू सिह अब बाहर निकलने के लिए अधीर हो चुके थे। इस दाग ने उनके बड़े भाई बिरजू को उन्हें नसीहत देने की खुली छूट दे दी थी और वह चाह कर भी उसका जवाब नहीं दे पा रहे थे।
यह तो उन्हें भी पता था की दाग का सीधा संबंध सुगना से था और शुरुआती दिनों में जिस तरह से उन्होंने सुगना के पुत्र मोह की लालसा को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग कर सुगना की अद्भुत कामकला को विकसित किया था तथा जी भर कर उसके यौवन का आनंद लिया था बल्कि अब भी ले रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने उसके साथ कजरी को भी अपने इस वासना चक्र में शामिल कर लिया था।
सरयू सिंह विद्यानंद के कक्ष से बाहर आ गए उनका मूड खराब हो चुका था। बाहर सुगना और कजरी उनका इंतजार कर रहे थे सुनना चहकती हुई उनके पास आई और बोली..
"बाबू जी महात्मा जी का कह तले हा?@
"सुगना बेटा छोड़ ई सब कुल फालतू आदमी हवे लोग"
"अपना दाग के बारे में ना पूछनी हां?"
सरयू सिंह ने कोई उत्तर न दिया वह इस विषय पर और बातें नहीं करना चाह रहे थे। वह धीरे धीरे पांडाल के उसे हिस्से में आ गए जहां पर उनकी बैठकर लगा करती थी….
सुबह के कुछ घंटे सरयू सिंह ने अपनी सुगना के साथ बड़े अच्छे से व्यतीत किए थे परंतु विद्यानंद से हुई मुलाकात ने उनका दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था अब उन्हें उस अवसाद से निकलना था। तभी एक संदेश वाहक चौकीदार सरयू सिह को खोजता हुआ आया और बोला
"सरयू भैया बधाई हो आपकी पदोन्नति हो गई है"
सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा। इस पदोन्नति के लिए वह बेहद आशान्वित थे। मनोरमा मैडम ने उनके पदोन्नति के कागज पर दस्तखत कर बनारस महोत्सव के आयोजन में उनके योगदान का प्रतिफल दे दिया था। उन्होंने पूछा
" मनोरमा मैडम कहां है?"
"सेक्टर ऑफिस में बैठी हैं चाहे तो चल कर मिठाई खिला आइए"
एक पल में ही सरयू सिंह के सारे अवसाद दूर हो गए।
जैसे तेज हवा आकाश पर छा रहे छुटपुट बादलों को बहा ले जाती हैं उसी तरह पदोन्नति की खुशी ने सरयू सिंह को विद्यानंद की बातों से हुए अवसाद से बाहर निकाल लिया । वह भागकर मिठाई की दुकान पर गए और मिठाई का डिब्बा लिए एक बार फिर पंडाल में आए। कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए थे। सरयू सिंह की पदोन्नति मे वो दोनों निश्चित ही विद्यानंद के चमत्कारी प्रभाव का अंश मान रहे थे वरना जिस पदोन्नति की आशा सरयू सिंह पिछले एक-दो वर्षों से कर रहे थे वह अचानक यू हूं कैसे घटित हो गया?
बहुत ही घटनाएं अपनी रफ्तार और समय से घटती है पर जब यह खबर आपको प्राप्त होती है उस समय आपकी मनो अवस्था और परिस्थितियां उसके लिए कर्ता की तलाश कर लेतीं है और निश्चित ही वह कर्ता दिव्य शक्तियों वाला कोई विशेष होता है चाहे वह भगवान हो या कोई महात्मा…
अपनी जानेमन सुगना को मिठाई खिलाते हुए सरयू आज आज अपनी खुशकिस्मती पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहे आज के दिन में दोहरी खुशी मिलने वाली थी।
सरयू सिंह लंबे लंबे कदम भरते हुए मनोरमा के अस्थाई ऑफिस जा पहुंचे मनोरमा उन्हें मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए अपनी तरफ आता दे उनका मंतव्य समझ चुकी थी अपने होठों पर खूबसूरत मुस्कुराहट लिए उनके आने का इंतजार करने लगी
"मैडम जी आपने हमको इस लायक समझा आपका आभार"
एक आभावान और बलिष्ठ शरीर का अधेड़ मार्ग पूर्ण कृतज्ञ भाव से मनोरमा के सामने अपना आभार प्रकट कर रहा था मनोरमा के चेहरे पर प्रसन्नता थी उसने सरयू सिंह से कहा..
आपका यह प्रमोशन आपकी काबिलियत की वजह से है मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है।
"मैडम यह आपका बड़प्पन है लीजिए मुंह मीठा कीजिये।"
सरयू सिंह के मन में मनोरमा के प्रति बेहद आदर और सम्मान का भाव आया। नारी के इस रूप से सरयू सिंह कतई रूबरू न थे। आज तक जितनी भी स्त्रियों से उनकी मुलाकात हुई थी वह हमेशा उन पर भारी पड़े थे भगवान द्वारा दिए हुए सुंदर और सुडौल शरीर में न जाने उन्होंने कितनी महिलाओं का दिल जीता था और कितनों के दिलों में हूक पैदा की थी। परंतु मनोरमा को सम्मान देने से वह खुद को ना रोक पाए।
सरयू सिंह के पूरे परिवार में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया पदमा कजरी सोनी मोनी सभी शरीर से उनकी पदोन्नति की खुशियां मनाने लगे शरीर सिंह ने भी ढेर सारी मिठाइयां और सभी के लिए कुछ न कुछ मनपसंद सामग्री खरीद कर सबका मन मोह लिया। सरयू सिंह आज परिवार में एक हीरो की तरह दिखाई पड़ रहे थे और सुगना उन पर न्योछावर होने को तैयार थी उसे अपने निर्णय पर कोई अफसोस ना था उसने आज अपने दूसरे छेद को अपने प्यारी बाबूजी को भेट देने की ठान ली थी।
शाम का इंतजार जितना सरयू सिंह को था उतना ही सुगना को भी...
अपराहन 3:00 बजे
बनारस महोत्सव के पास का पांच सितारा होटल
आज सेक्रेटरी साहब एक बार फिर अपनी रौ में थे। वह अपनी कल की गई गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाह रहे थे । उन्होंने आज मनोरमा को खुश करने की ठान ली थी।
आखिर पत्नी धर्म निभाना भी पति का कर्तव्य होता है और पत्नी की जांघों के बीच उस जादुई अंग को उत्तेजित कर पत्नी को चरम सुख देना भी उतना ही आवश्यक है जितना एक सेक्रेटरी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन।
मनोरमा खाना खाने के पश्चात बिस्तर पर आराम कर रही थी और सेक्रेटरी साहब उसके खूबसूरत शरीर को निहारते हुए उसे अपने करीब खींचने का प्रयास कर रहे थे। मनोरमा की नींद खुल चुकी थी परंतु वह सेकेट्री साहब के उत्तेजक भाव को पढ़ने का प्रयास कर रही थी।
मनोरमा की नाइटी ऊपर उठती जा रही थी और पतले चादर के नीचे उसके कोमल अंग नग्न होते जा रहे थे। सेक्रेटरी साहब उसकी भरी-भरी चुचियों को चूमते चूमते सरकते हुए नीचे आते गए और मनोरमा की फूली हुई बुर पर उन्होंने अपने होंठ टिका दिए।
मनोरमा लगभग ऐंठ गई। उसने अपनी जांघें सिकोड लीं। विरोधाभास का आलम यह था कि दिमाग जांघों को खोलने का इशारा कर रहा था परंतु बुर की संवेदना जांघों को करीब ला रही थी। सेक्रेटरी साहब पूरी अधीरता से मनोरमा की बूर को चूसने लगे।
जांघों के बीच का वह त्रिकोण पुरुषों का सबसे पसंदीदा भाग होता है। अपने गालों को मनोरमा की जाँघों से सटाते हुए सेक्रेटरी साहब स्वयं अपनी उत्तेजना को चरम पर ले आये। और उनका छोटा सा लण्ड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।
वह बार-बार उसे शांत कर अपनी उत्तेजना को कम करने का प्रयास करते परंतु मनोरमा की गुदांज और चिकनी कसी हुयी बूर उनके लण्ड में जबरदस्त जोश भर दे रही थी। मनोरमा तड़प रही थी और अपने पति के बालों को सहला रही थी उसका भग्नासा फुल कर लाल हो चुका था।
स्त्री उत्तेजना को पूरी तरह समझना बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को समझने जैसा है। सेक्रेटरी साहब ने इतनी पढ़ाई और अनुभव हासिल करने के बाद भी मनोरमा की उत्तेजना का आकलन करने की क्षमता को प्राप्त नहीं किया था उन्हें यह आभास हो गया की अब कुछ ही देर की चुदाई में मनोरमा स्खलित हो जाएगी। उन्होंने अपने होठों को बुर से हटाया और एक बार फिर अपने तने हुए छोटे से लण्ड को मनोरमा की बुर से सटाकर उसके ऊपर चढ़ गए।
मनोरमा ने भी अपनी जाँघे फैला कर अपने पति का स्वागत किया और उत्तेजना से कांपते हुए उनके धक्कों का आनंद लेने लगी। वह अपनी उंगलियों से अपनी भग्नासा को छूने का प्रयास करती परंतु यह इतना आसान न था। सकेट्री साहब का मोटा पेट मनोरमा की उंगलियों को उसकी भग्नासा तक पहुंचने से रोक रहा था।
सेक्रेटरी साहब अधीर हो रहे थे मनोरमा की फूली हुई और की चिपचिपी हुई बुर में अपना लण्ड डालकर वह उसे गचागच चोद रहे थे और उसकी फूली हुई चुचियों को होठों से चूसकर उसे चरम सुख देने का प्रयास कर रहे थे।
मनोरमा जैसी मदमस्त युवती की चुचियों को चूस कर जितना वह उसे उत्तेजित करने का प्रयास कर रहे थे उससे ज्यादा उत्तेजना अपने मन में लेकर वह मनोरमा को चोद रहे थे लण्ड और बुर कि इस मधुर मिलन में अंततः सेक्रेटरी साहब अपनी उत्तेजना पर एक बार फिर काबू नहीं रख पाए और उनके लण्ड ने मनोरमा की बुर पर एक बार फिर उल्टियां कर दी।
मनोरमा तड़प कर रह गई वह बेहद खुश थी। आज वह अपने चरम सुख के ठीक करीब पहुंच चुकी थी परंतु सेक्रेटरी साहब स्खलन के ठीक पहले निढाल पड़ गए थे। मनोरमा को यदि उस चर्म दंड का स्पर्श कुछ पलों के लिए और प्राप्त होता तो वह आज जी भर कर झड़ती और अपने पति से संसर्ग का आनंद समेटे हुए अगले कई महीनों के लिए इस सुखद क्षण को अपने मन में संजोए अपने पति धर्म को निभाने के लिए तैयार रहती।
परंतु मनोरमा की उत्तेजना एक बार फिर अपने अंजाम तक न पहुंच पाई घड़ी की सुईओ ने एक बार फिर टन टन... टन कर 5:00 बजने का इशारा किया। मनोरमा को याद आया कि आज उसका ड्राइवर नहीं आएगा उसने अपने पति से कहा..
"मुझे बनारस महोत्सव तक छुड़वा दीजिए मेरा ड्राइवर आज नहीं आएगा"
सेक्रेटरी साहब मनोरमा से नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थे। वह इस प्रेम के खेल में लगातार दूसरी बार पराजित हुए थे। उन्होंने मनोरमा के छोटे से अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। समय की कमी के कारण मनोरमा ने आज स्नान नहीं किया अपनी जांघो और बुर पर गिरे वीर्य को उसने सेकेट्री साहब की बनियाइन से पोछा। समयाभाव के कारण स्नान संभव न था। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह मीटिंग के बाद बनारस महोत्सव में अपने कमरे में जाकर स्नान कर लेगी।
मनोरमा फटाफट तैयार हुई और अपने पर्स में एक पतली सी टॉवल डालकर कमरे से बाहर आ गई और सीढ़ियां उतरती हुई होटल के रिसेप्शन की तरफ बढ़ने लगी सेक्रेटरी साहब का ड्राइवर अपनी मेम साहब का इंतजार कर रहा था।
उधर सरयू सिंह और सुगना सूर्यास्त की प्रतीक्षा में थे सरयू सिंह मनोरमा के कमरे की चाबी लेकर उसकी साफ सफाई कर आए थे और सुगना की पसंद के कई फूल रख आए थे।
मनोरमा के इस कमरे में आज सुगना और सरयू सिंह के अरमान पूरे होने वाले थे।
सुगना अपने पुत्र के लिए उसे मुक्ति दिलाने वाली पुत्री की लालसा में गर्भवती होना चाहती थी और सरयू सिंह इच्छा का मान भी रखना चाहती थी।
इसका उपाय न तो सुगना को सूझ रहा और न नियति को….
शेष अगले भाग में।
बनारस महोत्सव का तीसरा दिन
सरयू सिंह आज सुबह से ही उत्साहित थे. सुगना ने अपना वादा पूरा करने के लिए आज शाम का वक्त तय किया था परंतु सरयू सिंह सुबह-सुबह ही नहा धोकर तैयार थे. जब तक सुगना और परिवार की बाकी महिलाएं तैयार होकर आती सरयू सिंह पंडाल के सात्विक नाश्ते को छोड़कर बाहर से कचोरी और जलेबी ले आए वह सुगना के लिए विशेष तौर पर मोतीचूर का लड्डू भी ले आए जो सुगना को बेहद पसंद था। अपनी बहू का ख्याल रखना वह कभी नहीं भूलते थे और आज तो वैसे भी विशेष दिन था.
कजरी सरयू सिंह की भावनाओं को पूरी तरह पहचानती थी और उनकी नस नस से वाकिफ थी। सरयू सिंह के उतावले पन और बार-बार सुगना के करीब आने से वह अंदाज लगा रही थी की सरयू सिंह और सुगना निश्चित ही आज मिलने वाले थे। कजरी को भी मनोरमा के कमरे और उसकी चाबी सुगना के पास होने की जानकारी थी। उस कमरे की उपलब्धता ने कजरी की सोच को बल दे दिया था। बनारस महोत्सव के इस पावन अवसर पर दोनों पूर्ण संभोग करेंगे ऐसा तो कजरी ने नहीं सोचा था पर मुखमैथुन और हस्तमैथुन उन दोनों के बीच बेहद सामान्य को चला था।
सुबह के नाश्ते के पश्चात लाली और राजेश अपने बच्चों के साथ अपने घर चले गए। सोनू को भी अपने दोस्तों की याद आई और वह उनसे मिलने चला गया.
सरयू सिंह सुगना को लगातार ताड़ रहे थे जो अपनी दोनों बहनों के साथ अपनी उम्र को भूलकर हंस खेल रही थी। अपनी छोटी बहनों के साथ खेलते हुए सुगना सचमुच एक भरे पूरे बदन की किशोरी लग रही थी। कोमल और मासूम चेहरा उसके गदराए जिस्म से मेल नहीं खा रहा था.. सरयू सिंह की भरपूर चुदाई से उसके फूले हुए नितंब चीख चीख कर उसके युवती होने की दुहाई दे रहे थे परंतु सुगना के चेहरे की मासूमियत विरोधाभास पैदा कर रही थी।
तभी विद्यानंद के एक चेले ने हॉल में आकर आवाज लगाई सरयू सिंह और कजरी महात्मा जी आप लोगों को बुला रहे हैं.
पिछली दोपहर सरयू सिंह ने विद्यानंद से मिलने की बहुत कोशिश की परंतु सफल न हुए। हार कर उन्होंने खत लिख कर विद्यानंद के चेले को पकड़ा दिया। शाम तक विद्यानंद की तरफ से कोई बुलावा ना आने पर उनका स्वाभिमान आड़े आने लगा।
सरयू सिंह सोच रहे थे ...यदि वह उनका भाई बिरजू था तो उसे उन्हें इतना इंतजार नहीं कराना था। खत में उन्होंने साफ-साफ अपना नाम पता लिखा हुआ था और यदि वह बिरजू नहीं था तो विद्यानंद से मिलने का कोई औचित्य भी न था। सरयू सिंह वैसे भी ऐसे भौतिक महात्माओं पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.
परंतु अब आमंत्रण आ चुका था। सरयू सिंह और कजरी दोनों विद्यानंद से मिलने चल पड़े..
विद्यानंद के कमरे में प्रवेश करते ही सरयू सिंह और कजरी विद्यानंद के आलीशान कक्ष की शोभा से मोहित हो गए। सरयू सिंह तो इन भौतिक चीजों में ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे पर
ऐश्वर्य की अपनी चमक होती है। आप ना चाहते हुए भी उससे अभिभूत हो जाते हैं।
वही हाल सरयू सिंह का था उनकी निगाहें बरबस ही कमरे की साज-सज्जा पर जा रही थी। एक पल के लिए उनका ध्यान विद्यानंद से हटकर उस कमरे की भव्यता में खो गया था परंतु कजरी विद्यानंद को देखे जा रही थी उसे भी अब एहसास हो रहा था कहीं यह रतन के पिता तो नहीं।
विद्यानंद अपने आसन से उठ कर खड़े हो गए
"आओ सरयू"
इनके इस अभिवादन ने सरयू सिंह और कजरी के मन में उठ रहे संदेशों को खत्म कर दिया। उनका यह अंदाज ठीक वैसा ही था जैसे वह अपनी युवावस्था में अपने छोटे भाई सरयू सिंह को बुलाया करते थे। सरयू सिंह एक पल के लिए भाव विभोर हो गए और तेज कदमों से चलते हुए विद्यानंद के गले जा लगे।
कृष्ण और सुदामा का यह मिलन नियति देख रही थी। विद्यानंद ने सांसारिक जीवन से अपना मोह भंग कर लिया था यह उसके आलिंगन से साफ साफ दिखाई पड़ रहा था परंतु सरयू सिह के आलिंगन में आज भी आत्मीयता झलक रही थी। उनकी मजबूत बाहों की जकड़ विद्यानंद महसूस कर पा रहे थे। सरयू सिंह के अलग होते ही कजरी की बारी आई।
कजरी वैसे तो अपने पति से नफरत करती थी परंतु आज विद्यानंद जिस रूप में उसके सामने खड़े थे वह उनका अभिवादन करने से स्वयं को ना रोक पायी और झुक कर उनके चरण स्पर्श करने की कोशिश की।
परंतु विद्यानंद पीछे हट गए और और स्वयं आगे झुक कर कजरी को प्रणाम किया तथा अपने चेहरे पर संजीदा भाव लाकर बोले
" देवी मुझे क्षमा कर देना मैंने आपके साथ जो किया वह मेरी नासमझी थी परंतु नियति का लिखा कोई मिटा नहीं सकता मुझसे वह अपराध होना था सो हो गया। हो सके तो मुझे माफ कर देना।"
कजरी निरुत्तर थी इतना बड़ा महात्मा उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़े से क्षमा मांग रहा था कजरी ने अपनी मधुर आवाज में कहा
"शायद हम सभी के भाग्य में यही लिखा था"
विद्यानंद ने सहमति में अपना सर हिलाया और सरयू सिंह तथा कजरी को बैठने का इशारा किया।
कजरी के माथे पर चमकता हुआ सिंदूर और चेहरे का सुकून देखकर विद्यानंद को एक पल के लिए यह एहसास हुआ जैसे कजरी और सरयू सिंह ने एक दूसरे से विवाह कर लिया हो ।
विद्यानंद का आकलन सही था वैसे भी सरयू सिंह और कजरी विवाह न करते हुए भी एक दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और एक सुखद दांपत्य जीवन का आनंद ले रहे थे।
विद्यानंद ने सरयू सिंह से खुलकर बातें की और अपने बचपन को याद किया कजरी का जिक्र भी स्वाभाविक तौर पर आ रहा था गांव के छोटे बड़े सभी व्यक्तियों का समाचार सुनकर विद्यानंद अपने युवा काल और बचपन को याद कर रहे थे।
तभी विद्यानंद ने कजरी से पूछा..
बच्चे कहां हैं अब तो सब बड़े हो गए होंगे ..
"हां, आपका एक बेटा है जो मुंबई में है.".
सरयू सिंह ने उत्तर दिया पर विद्यानंद को यह बात समझ ना आयी। उन्होंने कजरी के साथ संभोग अवश्य किया था परंतु उन्हें कतई उम्मीद न थी की कजरी गर्भवती हो गई होगी। विद्यानंद ने इस पचड़े में ज्यादा पड़ना उचित नहीं समझा।
अचानक विद्यानंद का ध्यान सरयू सिंह के माथे के दाग पर चला गया जो निश्चित ही अपना आकार कुछ कम कर चुका था परंतु अब भी वह स्पष्ट तौर पर अपने अस्तित्व का एहसास करा रहा था। बालों के हटने से वह दिखाई पड़ने लगा।
विद्यानंद ने उस दाग को देखकर असहज हो गए और कजरी से कहा..
"देवी अब आप जा सकती हैं मुझे सरयू से एकांत में कुछ बातें करनी है।"
कजरी को यह बात बुरी लगी परंतु विद्यानंद से न उसे कोई उम्मीद थी और नहीं कभी भविष्य में मिलने की इच्छा वह कमरे से बाहर आ गई।
विद्यानंद उठकर सरयू के पास आए और अपने उंगलियों से उनके बाल को हटाकर उस दाग को ध्यान से देखाऔर बोला..
"सरयू तूने पाप किया है"
"नहीं बिरजू भैया ऐसी कोई बात नहीं है"
"तेरे माथे पर यह दाग तेरे पाप का ही प्रतीक है। यह क्यों है यह मैं तुझे नहीं बता सकता परंतु इतना ध्यान रखना नियति सारे पापों का लेखा जोखा रखती है तू जितना इस पाप से दूर रहेगा तेरे लिए उतना ही अच्छा होगा।"
विद्यानंद की बात सुनकर सरयू सिंह का दिमाग खराब हो गया। यह दाग उन्हें बेहद खटकने लगा। विद्यानंद ने अपनी नसीहत देकर उन्हें मायूस कर दिया। सरयू सिह को यह बात पता थी कि इस दाग का सीधा संबंध सुगना से था और सुगना उनकी जान थी।
वह चाह कर भी उसके यौवन और प्रेम के आकर्षण से विमुक्त नहीं हो पा रहे थे। कितनी अल्हड़ नवयौवना थी सुगना और उनसे कितना प्यार करती थी? उम्र के अंतर को भूलकर वह उनकी गोद में फुदकती थी और उनका लण्ड खुद-ब-खुद सुगना की बूर् खोज लेता। इतना सहज और मधुर संभोग कैसे प्रतिबंधित हो सकता है? सरयू सिंह ने अब और देर करना उचित न समझा और उठकर खड़े हो गए। उन्होंने विद्यानंद को प्रणाम किया और कहा भैया अब मैं चलता हूं।
विद्यानंद ने एक बार फिर से सरयू सिह को अपने आलिंगन में लिया और अपना सर उसके कान के पास ले जाकर कहा
"मनुष्य का नियंत्रण यदि दिमाग करें तो प्रगति दिल करे तो आत्मीयता और संबंध और यदि नियंत्रण कमर के नीचे के अंग करने लगे तो मनुष्य वहशी हो जाता है।उसे ऊंच-नीच और पाप पुण्य का अंतर दिखाई नहीं पड़ता । मैं सिर्फ इतना कहूंगा मेरी बात को ध्यान रखना और अपने आने वाले जीवन को सुख पूर्वक व्यतीत करना जिस दिन तुम्हें इस दाग के रहस्य पता चलेगा तुम्हें असीम कष्ट होगा। मैं प्रार्थना करूंगा कि यह दाग इसी अवस्था में सीमित रह जाए और तुम्हें इस जीवन में इसका रहस्य पता ना चले।"
"ठीक है भैया"
सरयू सिह अब बाहर निकलने के लिए अधीर हो चुके थे। इस दाग ने उनके बड़े भाई बिरजू को उन्हें नसीहत देने की खुली छूट दे दी थी और वह चाह कर भी उसका जवाब नहीं दे पा रहे थे।
यह तो उन्हें भी पता था की दाग का सीधा संबंध सुगना से था और शुरुआती दिनों में जिस तरह से उन्होंने सुगना के पुत्र मोह की लालसा को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग कर सुगना की अद्भुत कामकला को विकसित किया था तथा जी भर कर उसके यौवन का आनंद लिया था बल्कि अब भी ले रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने उसके साथ कजरी को भी अपने इस वासना चक्र में शामिल कर लिया था।
सरयू सिंह विद्यानंद के कक्ष से बाहर आ गए उनका मूड खराब हो चुका था। बाहर सुगना और कजरी उनका इंतजार कर रहे थे सुनना चहकती हुई उनके पास आई और बोली..
"बाबू जी महात्मा जी का कह तले हा?@
"सुगना बेटा छोड़ ई सब कुल फालतू आदमी हवे लोग"
"अपना दाग के बारे में ना पूछनी हां?"
सरयू सिंह ने कोई उत्तर न दिया वह इस विषय पर और बातें नहीं करना चाह रहे थे। वह धीरे धीरे पांडाल के उसे हिस्से में आ गए जहां पर उनकी बैठकर लगा करती थी….
सुबह के कुछ घंटे सरयू सिंह ने अपनी सुगना के साथ बड़े अच्छे से व्यतीत किए थे परंतु विद्यानंद से हुई मुलाकात ने उनका दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था अब उन्हें उस अवसाद से निकलना था। तभी एक संदेश वाहक चौकीदार सरयू सिह को खोजता हुआ आया और बोला
"सरयू भैया बधाई हो आपकी पदोन्नति हो गई है"
सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा। इस पदोन्नति के लिए वह बेहद आशान्वित थे। मनोरमा मैडम ने उनके पदोन्नति के कागज पर दस्तखत कर बनारस महोत्सव के आयोजन में उनके योगदान का प्रतिफल दे दिया था। उन्होंने पूछा
" मनोरमा मैडम कहां है?"
"सेक्टर ऑफिस में बैठी हैं चाहे तो चल कर मिठाई खिला आइए"
एक पल में ही सरयू सिंह के सारे अवसाद दूर हो गए।
जैसे तेज हवा आकाश पर छा रहे छुटपुट बादलों को बहा ले जाती हैं उसी तरह पदोन्नति की खुशी ने सरयू सिंह को विद्यानंद की बातों से हुए अवसाद से बाहर निकाल लिया । वह भागकर मिठाई की दुकान पर गए और मिठाई का डिब्बा लिए एक बार फिर पंडाल में आए। कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए थे। सरयू सिंह की पदोन्नति मे वो दोनों निश्चित ही विद्यानंद के चमत्कारी प्रभाव का अंश मान रहे थे वरना जिस पदोन्नति की आशा सरयू सिंह पिछले एक-दो वर्षों से कर रहे थे वह अचानक यू हूं कैसे घटित हो गया?
बहुत ही घटनाएं अपनी रफ्तार और समय से घटती है पर जब यह खबर आपको प्राप्त होती है उस समय आपकी मनो अवस्था और परिस्थितियां उसके लिए कर्ता की तलाश कर लेतीं है और निश्चित ही वह कर्ता दिव्य शक्तियों वाला कोई विशेष होता है चाहे वह भगवान हो या कोई महात्मा…
अपनी जानेमन सुगना को मिठाई खिलाते हुए सरयू आज आज अपनी खुशकिस्मती पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहे आज के दिन में दोहरी खुशी मिलने वाली थी।
सरयू सिंह लंबे लंबे कदम भरते हुए मनोरमा के अस्थाई ऑफिस जा पहुंचे मनोरमा उन्हें मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए अपनी तरफ आता दे उनका मंतव्य समझ चुकी थी अपने होठों पर खूबसूरत मुस्कुराहट लिए उनके आने का इंतजार करने लगी
"मैडम जी आपने हमको इस लायक समझा आपका आभार"
एक आभावान और बलिष्ठ शरीर का अधेड़ मार्ग पूर्ण कृतज्ञ भाव से मनोरमा के सामने अपना आभार प्रकट कर रहा था मनोरमा के चेहरे पर प्रसन्नता थी उसने सरयू सिंह से कहा..
आपका यह प्रमोशन आपकी काबिलियत की वजह से है मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है।
"मैडम यह आपका बड़प्पन है लीजिए मुंह मीठा कीजिये।"
सरयू सिंह के मन में मनोरमा के प्रति बेहद आदर और सम्मान का भाव आया। नारी के इस रूप से सरयू सिंह कतई रूबरू न थे। आज तक जितनी भी स्त्रियों से उनकी मुलाकात हुई थी वह हमेशा उन पर भारी पड़े थे भगवान द्वारा दिए हुए सुंदर और सुडौल शरीर में न जाने उन्होंने कितनी महिलाओं का दिल जीता था और कितनों के दिलों में हूक पैदा की थी। परंतु मनोरमा को सम्मान देने से वह खुद को ना रोक पाए।
सरयू सिंह के पूरे परिवार में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया पदमा कजरी सोनी मोनी सभी शरीर से उनकी पदोन्नति की खुशियां मनाने लगे शरीर सिंह ने भी ढेर सारी मिठाइयां और सभी के लिए कुछ न कुछ मनपसंद सामग्री खरीद कर सबका मन मोह लिया। सरयू सिंह आज परिवार में एक हीरो की तरह दिखाई पड़ रहे थे और सुगना उन पर न्योछावर होने को तैयार थी उसे अपने निर्णय पर कोई अफसोस ना था उसने आज अपने दूसरे छेद को अपने प्यारी बाबूजी को भेट देने की ठान ली थी।
शाम का इंतजार जितना सरयू सिंह को था उतना ही सुगना को भी...
अपराहन 3:00 बजे
बनारस महोत्सव के पास का पांच सितारा होटल
आज सेक्रेटरी साहब एक बार फिर अपनी रौ में थे। वह अपनी कल की गई गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाह रहे थे । उन्होंने आज मनोरमा को खुश करने की ठान ली थी।
आखिर पत्नी धर्म निभाना भी पति का कर्तव्य होता है और पत्नी की जांघों के बीच उस जादुई अंग को उत्तेजित कर पत्नी को चरम सुख देना भी उतना ही आवश्यक है जितना एक सेक्रेटरी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन।
मनोरमा खाना खाने के पश्चात बिस्तर पर आराम कर रही थी और सेक्रेटरी साहब उसके खूबसूरत शरीर को निहारते हुए उसे अपने करीब खींचने का प्रयास कर रहे थे। मनोरमा की नींद खुल चुकी थी परंतु वह सेकेट्री साहब के उत्तेजक भाव को पढ़ने का प्रयास कर रही थी।
मनोरमा की नाइटी ऊपर उठती जा रही थी और पतले चादर के नीचे उसके कोमल अंग नग्न होते जा रहे थे। सेक्रेटरी साहब उसकी भरी-भरी चुचियों को चूमते चूमते सरकते हुए नीचे आते गए और मनोरमा की फूली हुई बुर पर उन्होंने अपने होंठ टिका दिए।
मनोरमा लगभग ऐंठ गई। उसने अपनी जांघें सिकोड लीं। विरोधाभास का आलम यह था कि दिमाग जांघों को खोलने का इशारा कर रहा था परंतु बुर की संवेदना जांघों को करीब ला रही थी। सेक्रेटरी साहब पूरी अधीरता से मनोरमा की बूर को चूसने लगे।
जांघों के बीच का वह त्रिकोण पुरुषों का सबसे पसंदीदा भाग होता है। अपने गालों को मनोरमा की जाँघों से सटाते हुए सेक्रेटरी साहब स्वयं अपनी उत्तेजना को चरम पर ले आये। और उनका छोटा सा लण्ड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।
वह बार-बार उसे शांत कर अपनी उत्तेजना को कम करने का प्रयास करते परंतु मनोरमा की गुदांज और चिकनी कसी हुयी बूर उनके लण्ड में जबरदस्त जोश भर दे रही थी। मनोरमा तड़प रही थी और अपने पति के बालों को सहला रही थी उसका भग्नासा फुल कर लाल हो चुका था।
स्त्री उत्तेजना को पूरी तरह समझना बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को समझने जैसा है। सेक्रेटरी साहब ने इतनी पढ़ाई और अनुभव हासिल करने के बाद भी मनोरमा की उत्तेजना का आकलन करने की क्षमता को प्राप्त नहीं किया था उन्हें यह आभास हो गया की अब कुछ ही देर की चुदाई में मनोरमा स्खलित हो जाएगी। उन्होंने अपने होठों को बुर से हटाया और एक बार फिर अपने तने हुए छोटे से लण्ड को मनोरमा की बुर से सटाकर उसके ऊपर चढ़ गए।
मनोरमा ने भी अपनी जाँघे फैला कर अपने पति का स्वागत किया और उत्तेजना से कांपते हुए उनके धक्कों का आनंद लेने लगी। वह अपनी उंगलियों से अपनी भग्नासा को छूने का प्रयास करती परंतु यह इतना आसान न था। सकेट्री साहब का मोटा पेट मनोरमा की उंगलियों को उसकी भग्नासा तक पहुंचने से रोक रहा था।
सेक्रेटरी साहब अधीर हो रहे थे मनोरमा की फूली हुई और की चिपचिपी हुई बुर में अपना लण्ड डालकर वह उसे गचागच चोद रहे थे और उसकी फूली हुई चुचियों को होठों से चूसकर उसे चरम सुख देने का प्रयास कर रहे थे।
मनोरमा जैसी मदमस्त युवती की चुचियों को चूस कर जितना वह उसे उत्तेजित करने का प्रयास कर रहे थे उससे ज्यादा उत्तेजना अपने मन में लेकर वह मनोरमा को चोद रहे थे लण्ड और बुर कि इस मधुर मिलन में अंततः सेक्रेटरी साहब अपनी उत्तेजना पर एक बार फिर काबू नहीं रख पाए और उनके लण्ड ने मनोरमा की बुर पर एक बार फिर उल्टियां कर दी।
मनोरमा तड़प कर रह गई वह बेहद खुश थी। आज वह अपने चरम सुख के ठीक करीब पहुंच चुकी थी परंतु सेक्रेटरी साहब स्खलन के ठीक पहले निढाल पड़ गए थे। मनोरमा को यदि उस चर्म दंड का स्पर्श कुछ पलों के लिए और प्राप्त होता तो वह आज जी भर कर झड़ती और अपने पति से संसर्ग का आनंद समेटे हुए अगले कई महीनों के लिए इस सुखद क्षण को अपने मन में संजोए अपने पति धर्म को निभाने के लिए तैयार रहती।
परंतु मनोरमा की उत्तेजना एक बार फिर अपने अंजाम तक न पहुंच पाई घड़ी की सुईओ ने एक बार फिर टन टन... टन कर 5:00 बजने का इशारा किया। मनोरमा को याद आया कि आज उसका ड्राइवर नहीं आएगा उसने अपने पति से कहा..
"मुझे बनारस महोत्सव तक छुड़वा दीजिए मेरा ड्राइवर आज नहीं आएगा"
सेक्रेटरी साहब मनोरमा से नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थे। वह इस प्रेम के खेल में लगातार दूसरी बार पराजित हुए थे। उन्होंने मनोरमा के छोटे से अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। समय की कमी के कारण मनोरमा ने आज स्नान नहीं किया अपनी जांघो और बुर पर गिरे वीर्य को उसने सेकेट्री साहब की बनियाइन से पोछा। समयाभाव के कारण स्नान संभव न था। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह मीटिंग के बाद बनारस महोत्सव में अपने कमरे में जाकर स्नान कर लेगी।
मनोरमा फटाफट तैयार हुई और अपने पर्स में एक पतली सी टॉवल डालकर कमरे से बाहर आ गई और सीढ़ियां उतरती हुई होटल के रिसेप्शन की तरफ बढ़ने लगी सेक्रेटरी साहब का ड्राइवर अपनी मेम साहब का इंतजार कर रहा था।
उधर सरयू सिंह और सुगना सूर्यास्त की प्रतीक्षा में थे सरयू सिंह मनोरमा के कमरे की चाबी लेकर उसकी साफ सफाई कर आए थे और सुगना की पसंद के कई फूल रख आए थे।
मनोरमा के इस कमरे में आज सुगना और सरयू सिंह के अरमान पूरे होने वाले थे।
सुगना अपने पुत्र के लिए उसे मुक्ति दिलाने वाली पुत्री की लालसा में गर्भवती होना चाहती थी और सरयू सिंह इच्छा का मान भी रखना चाहती थी।
इसका उपाय न तो सुगना को सूझ रहा और न नियति को….
शेष अगले भाग में।