18-04-2022, 02:36 PM
भाग -49
राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।
"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."
सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।
परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।
अब आगे..
सुगना की खनकती आवाज सुनाई दी
"जीजा जी आज सब लोग खाना यहीं पंडाल में खाएंगे और यही रहेंगे।" सुगना ने अपनी मादक अदा से यह बात कह दी।
राजेश के लिए यह आग्रह से ज्यादा और आदेश से कम था।
सुगना और सोनू की मां पदमा भी वहां आ चुकी थी उसने भी सुगना की बातों में हां में हां मिलाई और सोनू के हाथ में आया मौका फिसल गया…।
परंतु सोनू को इस बात का सुकून था की आज रात वह अपने पूरे परिवार के साथ रह सकता था और अपनी दोनों छोटी बहनों तथा मां के साथ कई दिनों बाद जी भर कर बातें कर सकता था।
पूरा परिवार गांव की पुरानी यादों और परस्पर प्रेम में डूब गया। सरयू सिंह भी अपने परिवार को हंसी खुशी देखकर उनकी खुशियों में शामिल हो गए।
बनारस महोत्सव पारिवारिक मिलन के एक बेहद खूबसूरत उत्सव में बदल गया था जहां किसी को कोई चिंता न थी खान-पान की। रहन-सहन की व्यवस्था रहने वालों की मनोदशा के अनुकूल थी।
परंतु नियति ने इस खुशहाल परिवार में कामुकता का जाल बिछा दिया था... लाली और सोनू अभी नियति के चहेते चेहरे थे परंतु सुगना और सरयू सिंह के बीच की आग भी धधक रही थी। पिछले दो-तीन महीनों से सरयू सिंह सुगना को चोद तो नहीं पाए थे परंतु हस्तमैथुन और मुखमैथुन द्वारा एक दूसरे की उत्तेजना शांत कर अपना सब्र बनाए हुए थे।
यदि मनोरमा मैडम उन्हें उनके जन्मदिन पर सलेमपुर से खींचकर बनारस महोत्सव में न ले आई होती तो निश्चित ही उस दिन वह सुगना के आगे और पीछे दोनों छेदों का जी भर कर आनंद ले चुके होते।
सुगना ने डॉक्टर की सलाह के विपरीत जाकर जन्मदिन के उपहार स्वरूप अपने दोनों छेदों से खुलकर खेलने का मजा देने का वचन दे दिया था।
सरयू सिंह सुगना के अकेले आशिक न थे। राजेश की चाहत भी अब अपनी पराकाष्ठा पर थी लाली को वासना के दलदल में उतार देने के पश्चात अब उसे कोई डर भय नहीं था। राजेश सुगना को भी उसी फिसलन में खींच लेना चाहता था तथा रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रख वह अपनी और सुगना की अतृप्त काम इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता था।
उसे क्या पता था की सुगना की कामेच्छा पूरा करने वाले उसके बाबूजी सरयू सिंह कामकला के न सिर्फ धनी थे अपितु नियति द्वारा एक खूबसूरत और मजबूत लण्ड से नवाजे गए थे।
सुगना अपने बाबूजी सरयुसिंह की तरफ देख रही थी जो अपनी जानेमन सुगना को हंसता और खुश देख कर उसे अपने आगोश में लेने को तड़प रहे थे…
नयन चार होते ही सुगना ने सरयू सिंह के मनोभाव पढ़ लिए.. उसने मुस्कुराते हुए अपनी नजरें नीची कर ली। उसके गदराए शरीर में ऐठन सी हो रही वह अपने बाबूजी के आगोश में जाने को मचल उठी।
खुशहाल युवती स्वभाव से ही उत्तेजक प्रतीत होती है हंसती मुस्कुराती नग्न युवती को बाहों में लिए उससे कामुक अठखेलियां करना और संभोग करते हुए उसकी हंसी को उत्तेजना में तब्दील कर देना हर मर्द की चाहत होती है।
सरयू सिंह भी इससे अछूते न थे उनका मजबूत हथियार अपने कोमल और मुलायम आवरण (सुगना की बुर) में छुपने को तैयार था….
ग्रामीण समाज की परंपराओं के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों का झुंड अलग-अलग घेरा बना कर बैठ चुका था। पांडाल में महिलाओं और पुरुषों के रहने की व्यवस्था अलग-अलग थी। सरयू सिंह और राजेश यह बात भली-भांति जानते थे कि पांडाल परिसर में वासना का खेल खेलना अनुचित और बेहद खतरनाक हो सकता था। सामाजिक प्रतिष्ठा एक पल में धूमिल हो सकती थी।
परंतु सरयू सिंह बेचैन थे सुगना द्वारा किया हुआ वादा याद करके उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच जाती और हंसती खिलखिलाती सुनना की आवाजें उनकी उत्तेजना के लिए आग में घी का काम कर रही थी।
वह रह-रहकर सुगना की तरफ देख रहे थे और सुगना भी इस बात को महसूस कर रही थी। इन दोनों का नैन मटक्का शक के दायरे में कतई न था। परंतु सोनू को यह अप्रत्याशित लगा उसने सरयू सिंह से पूछ लिया...
"बाबूजी कुछ चाही का?"
सरयू सिंह ने इशारे से उसे मना किया और एक बार फिर इधर-उधर की बातों में लग गये।
अचानक उन्होंने सुगना को उठकर पांडाल से बाहर बने बाथरूम की दिशा में जाते देखा उनकी बांछें खिल उठी। वह तड़प उठे उनसे बर्दाश्त ना हुआ और जैसे ही सुगना पांडाल से बाहर निकल गई सरयू सिंह भी पांडाल के सामने वाले गेट से निकलकर बाहर आ गए और तेज कदमों से भागते हुए एक बार फिर पांडाल के पीछे पहुंचे और बाथरूम से आ रही सुगना का इंतजार करने लगे।
शाम वयस्क हो चुकी थी। बनारस महोत्सव में रोशनी की कोई कमी न थी परंतु रात को दिन कर पाना बनारस महोत्सव के आयोजकों के बस में नहीं था। अभी भी कुछ जगहों पर घुप अंधेरा था। सरयू सिंह अंधेरे में घात लगाए अपनी बहु सुगना का इंतजार करने लगे। बाथरूम से बाहर आकर सुगना ने अपनी चोली और लहंगे को व्यवस्थित किया। बालों की लटो को अपने कान के पीछे करते हुए अपना सुंदर मुखड़ा अंधेरे में दूर खड़े अपने बाबूजी को दिखा दिया और अपनी मदमस्त चाल से पांडाल की तरफ आने लगी। अचानक सरयू सिंह बाहर आ गए। सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न था
"बाबूजी आप"
सरयू सिंह ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उसकी कलाइयां पकड़कर खींचते हुए उस अंधेरी जगह पर ले आए।
सुगना स्वयं भी पुरुष संसर्ग पाने को आतुर थी। वह अपने बाबूजी के आगोश में आने के लिए तड़प उठी। सरयू सिंह सुगना को अपनी बाहों में भर उसकी चुचियों को अपनी छाती से सटा लिया उनके हाथ सुगना की गोरी पीठ पर अपना शिकंजा बनाए हुए थे और धीरे-धीरे सुगना ऊपर उठती जा रही थी। उसका वजन अब सरयू सिंह की मजबूत बांहों ने उठा लिया था और सुगना के कोमल होंठ अपने बाबुजी के होठों से टकराने लगे।
सरयू सिंह ने एक झटके में अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना के दोनों होठों को मुंह में भरने की कोशिश की। परंतु सुगना भी उनका निचला होंठ चूसना चाहती थी उसने भी अपना मुंह खोल दिया।
सरयू सिंह और सुगना दोनों मुस्कुराने लगे। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी।
सुगना अपने कोमल होठों से अपने बाबूजी के मजबूत होठों को चूसने लगी और सरयू सिंह भी उसी तन्मयता से अपनी बहू की इस अदा का रसास्वादन करने लगे। ऊपर हो रही हलचल को शरीर के बाकी अंगों ने भी महसूस किया। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल नितंबों की तलाश में लग गयीं। सुगना एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके दोनों नितंबों को अपनी आगोश में ले लिया।
सुगना के नितंबों के आकार को महसूस कर सरयू सिंह सुगना की किशोरावस्था को याद कर रहे थे। नितंबों के आकार में आशातीत वृद्धि हुई थी। दीपावली कि वह पहली रात उन्हें याद आ रही थी। तब से अब तक नितंबों का आकार बढ़ चुका था और निश्चय ही इसका श्रेय कहीं न कहीं सरयू सिंह की भरपूर चुदाई को था उन्होंने सुगना के कान में कहा..
"सुगना बाबू ई दोनों फूलते जा तारे से"
"सब राहुर एकरे कइल ह" सुगना ने सरयू सिंह के लण्ड को पकड़ कर दबा दिया।
"अब उ सुख कहां मिला ता"
सुगना ने अपने होंठ गोल किए और अपनी जीभ को बाहर निकाल कर सरयू सिंह के मुंह में आगे पीछे करते हुए बोली
"कौन सुख ई वाला"
सरयू सिंह सुगना के इस मजाक से और भी उत्तेजित हो गए हो गए उन्होंने अपनी उंगलियां सुगना की गांड से सटा दीं और उसे सहलाते हुए बोले...
"ना ई वाला"
सुगना ने उनका हाथ खींच कर अपनी जांघों के बीच अपनी पनिया चुकी बुर पर ला दिया और बोला..
"तब इकर का होइ.."
"तू और तोहार सास ही पागल डॉक्टर के चक्कर में हमारा के रोकले बाड़ू हम त हमेशा तडपत रहे नी।"
"सरयू सिंह सुगना की उत्तेजित अवस्था को बखूबी पहचानते थे. सुगना का गोरा और चमकदार चेहरा वासना से वशीभूत हो चुका था। उसकी आंखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसने अपनी पलके झुका लीं और अपने बाबु जी के मजबूत हथेलियों के स्पर्श को महसूस करने लगी।
सरयू सिंह सुगना के हर उस अंग को सहलाए जा रहे थे जो उन्हें अपने शरीर से अलग दिखाई पड़ रहा सुगना के हाथ भी अपने बहुप्रतीक्षित और जादुई मुसल को हाथों में लेकर अपना स्पर्श सुख देने लगे। कपड़ों का आवरण हटा पाना इतना आसान न था। परंतु ससुर और बहू दोनों ने यथासंभव नग्न त्वचा को छूने की भरपूर कोशिश की। दोनों दो-तीन दिनों से मन में जाग रही उत्तेजना को शांत कर लेना चाहते थे।
सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना का लहंगा ऊपर कर दिया और अपनी उंगलियों को सुगना की बुर् के होठों पर फिराने लगे सुगना चिहुँक उठी। सरयू सिंह की उंगलियां अपनी बहू की बुर् के होठों पर उग आए बालों को अलग करती हुयी उस चिपचिपी छेद के भीतर प्रवेश कर प्रेम रस चुराने लगीं।
मध्यमा और तर्जनी जहां सुगना के बुर् के अंदरूनी भाग को मसाज दे रही थी वही बाकी दोनों उंगलियां सुगना की गांड पर घूम रही थी। सुगना सिहर रही थी। न जाने उसके बाबूजी को उस गंदे छेद में क्या दिखाई पड़ गया था। वह तो जैसे पागल ही हो गए थे।
जिस बुर में उनकी उत्तेजना को पिछले तीन-चार वर्षो तक शांत किया था उसे छोड़कर वह उस सौतन के पीछे लग गए थे।
सरयू सिंह के तन मन में उत्तेजना भरने के लिए अपने अंगों के बीच लगी होड़ को महसूस कर सुगना परेशान भी थी और उत्तेजित भी।
सरयू सिंह का लंड भी लंगोट से बाहर आ चुका था। परंतु मर्यादा और परिस्थितिवश वह धोती की पतले और झीने आवरण के अंदर कैद था। सुगना अपनी हथेलियों से उसके नग्न स्पर्श को महसूस करने को बेताब थी पर धोती जाने कैसे उलझ गई थी।
उसके होंठ अभी भी अपने बाबूजी के होठों से खेल रहे थे और वह चाह कर भी नीचे नहीं देख पा रहे थी। सरयू सिह सुगना की कोमाल हथेलियों का स्पर्श अपने लण्ड पर महसूस कर रहे थे और सुपाड़े ओर रिस रहा वीर्य सुगना की उगलियों को चिपचिपा कर रहा था।
दोनों स्स्खलन की कगार पर पहुंच रहे थे परंतु नियति को यह मंजूर न था । इस बनारस महोत्सव में सरयू सिंह का वीर्य व्यर्थ नहीं जाना था। सरयू सिंह के वीर्य से कथा का एक और पात्र सृजित होने वाला था।
नियति ने अपनी चाल चल दी। पास से गुजरती एक महिला ठोकर खाकर गिर पड़ी। उसे उठाने के लिए आसपास के कई सारे लोग इकट्ठा हो गए। सरयू सिंह को ना चाहते हुए भी सुगना को छोड़ना पड़ा। सुगना स्वयं बाबूजी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से चौक गई। उसे पीछे हो रही घटना का अनुमान गलत वह तो अपने बाबूजी के आलिंगन में अद्भुत कामसुख के आनंद में डूबी हुई थी।
उसने पीछे मुड़कर देखा और सारा माजरा उसकी समझ में आ गया उसने सरयू सिंह से धीरे से कहा.. "बाबूजी कल शाम के मनोरमा जी वाला कमरा में …." इतना कह कर वह तेज कदमों से पंडाल की तरफ भाग गई।
सरयू सिंह ने अपने खूंटे जैसे तने हुए लण्ड को वापस अपनी लंगोट में डाला और अपनी उंगलियों को चुमते और सुघते हुए पांडाल की तरफ चल पड़े। इस थोड़ी देर के मिलन ने सरयू सिंह में जान भर दी थी। उनकी उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस और उसकी खुशबू चुरा ली थी। वह अपनी उंगलियों को चूम रहे थे और सुगना के मदमस्त बुर की खुशबू को अपने नथुनों में भर रहे थे। उधर सुगना की उंगलियां भी अपने हिस्से का सुख ले आयी थी। सरयू सिंह के लण्ड से रिस रहा वीर्य धोती के पतले आवरण को छेद कर सुगना की उंगलियों तक पहुंच चुका था। उसकी बाबूजी के लण्ड ने दिन में न जाने कितनी बार वीर्य रस की बूंदे अपने होठों पर लायी थी और वहीं पर सूख गया था। लण्ड की वह खुशबू बेहद मादक थी और सुगना को बेहद पसंद थी। वह अपनी उंगलियों को बार-बार सूंघ रही थी और उसकी खुसबू को महसूस कर उसकी बूर चुदने के लिए थिरक रही थी।
सुगना ने कल शाम अपने बाबू जी को खुश करने का मन बना लिया था। सुगना के मनोभावों को जानकर उसकी छोटी सी गांड ठीक वैसे ही सिहर उठी थी जैसे घर पर आने वाले मेहमानों की सूचना सुनकर कामवाली सिहर उठती है।
खानपान का समारोह संपन्न होने के पश्चात स्त्री और पुरुषों के अलग होने की बारी थी । लाली सोनू को प्यार भरी निगाहों से देख रही थी और उधर सुगना कभी राजेश को देखती कभी सरयू सिंह को….। राजेश की निगाहों में सुगना के लिए जितना प्यार और आत्मीयता थी शायद सुगना उसका चौथाई भी सुगना की आंखों में न था वह पूरी तरह तरफ पिछले दो-तीन महीनों को छोड़ दें तो उसे एक पुरुष से जो कुछ मिल सकता था वह सारा उसके बाबूजी सरयू सिंह ने जी भर कर दिया था। उसने सरयू सिंह से अपने सारे अरमान पूरे किए थे।
घर की सभी महिलाएं पांडाल में सोने चली गई लाली और सुगना अगल-बगल लेटे हुए थे सोनी और मोनी की भी जोड़ी जमी हुई थी। और अपनी जवानी जी चुकीं कजरी और पदमा अपने जीवन में आए अध्यात्म को महसूस कर रही थी।
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परंतु सुगना की आंखों में नींद न थी वह पांडाल की छत की तरफ देख रही थी। उसके जहन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि सूरज को मुक्ति दिलाने वाली उसकी बहन का पिता कौन होगा.
डॉक्टर ने सरयू सिंह के चोदने पर प्रतिबंध लगाया था उस बात को याद कर सुगना तनाव में आ गई थी। वह स्वयं कभी भी दूसरी संतान नहीं चाहती थी परंतु विद्यानंद की बातों को सुनकर गर्भधारण करना अब उसकी मजबूरी हो चली थी.
क्या वह अपने बाबूजी के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर उनसे एक बार फिर गर्भधारण की उम्मीद करेगी?
क्या यह 1 - 2 मुलाकातों में संभव हो पाएगा.?
सुगना इस बात से भी परेशान थी कि सरयू सिंह की प्राथमिकता अब उसकी बुर ना होकर वह निगोड़ी गांड हो चली थी।
सुगना को अभी अपनी कामकला पर पूरा विश्वास था उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि कल मनोरमा के कमरे में जाने के पश्चात वह अपनी कामकला से सरयू सिंह को अपनी जांघों के बीच स्खलित होने पर मजबूर कर देगी और रही बात उस दूसरे छेद की तो वह फिर कभी देखा जाएगा।
सुगना की अंतरात्मा ने उसे झकझोरा..
"तो क्या तू अपने पुत्र को मुक्ति दिलाने के लिए अपने बाबूजी के जीवन से खिलवाड़ करेगी…?
यदि तुझे चोदते हुए वह फिर एक बार मूर्छित हो गए तब??
सुगना पूरी तरह आतुर थी वह अपनी अंतरात्मा की आवाज को नकार रही थी उसने मन ही मन उसे उत्तर दिया…
"मैं उन्हें मेहनत नहीं करवाऊंगी मैं स्वयं उनका वीर्य दोहन करूंगी और यदि कुछ ऊंच-नीच होता भी है तो हम सब बनारस में ही हैं डॉक्टर की सुविधाएं तुरंत मिल सकती हैं"
"देख उनके माथे का दाग भी अब कितना कम हो गया है तेरे वासना के खेल से उनका दाग फिर बढ़ जाएगा"
"मुझे गर्भवती होना है इसके लिए इतनी कुर्बानी तो मेरे बाबूजी दे ही सकते हैं"
सुगना की अंतरात्मा ने हार मान ली और सुगना अपने प्यारे बाबू जी सरयू सिंह से चुदकर गर्भवती होने की तैयारी करने लगी।
मन ही मन फैसला लेने के पश्चात सुगना संतुष्ट थी।
"सुगना मैं तेरे बगल में लेटी हूं और तू न जाने क्या सोच रही हो?" लाली ने सुनना का ध्यान भंग करते हुए कहा.
सुगना अपना निर्णय करने के पश्चात सहज महसूस कर रही थी। उसमें करवट ली। सुगना को अपनी तरफ करवट लेते देख लाली ने भी करवट ली और एक बार फिर उन दोनों की चुचियों ने एक दूसरे को छू लिया। दोनों मुस्कुराने लगी । उनकी चुचियों एक दूसरे से सट कर गोल से सपाट होने लगी।
"तुझे रतन भैया की याद नहीं आती है?"
लाली में सुगना की सुगना को सह लाते हुए कहा "तू फिर फालतू बात लेकर शुरू हो गई"
"अरे वाह ये निप्पल ऐसे ही कड़ा है? यह सब फालतू बात है?" लाली सुगना को छेड़ने लगी
सुगना सरयू सिह के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित थी लाली द्वारा अपनी चूँचीयां सहलाये जाने से उसके निप्पल और भी खड़े हो गए थे।
"मैंने तो बदलाव का सुख ले लिया है पर तेरे जीजा जी अभी भी तड़प रहे हैं"
लाली अपने और सोनू के बीच हुए संभोग के बारे में सुगना से खुल कर बताना चाह रही थी। परंतु यह उसकी जुबान पर खुलकर नहीं आ पा रहा था अनैतिक कृत्य तो आखिर अनैतिक ही था।
सुगना भली-भांति उसका मंतव्य जानती थी परंतु उसे इस बात का कतई विश्वास न था की सोनू उसे चोद चुका था।
"तो तू इस समय घूम घूम कर अनजानो से मजे ले रही है क्या?"
"ऐसे ऐसे मत बोल मैं कोई छिनाल थोड़ी हूं"
"बातें तो तू वैसी ही कर रही है"
"मैंने अपने सबसे प्यारे सोनू से ही व सुख बांटा है."
"क्या सच में पर यह हुआ कैसे.." सुगना ने लाली के उत्साह भरे चेहरे को देखकर उसकी बातें सुनने का निर्णय कर लिया।
सुगना के इस प्रश्न ने लाली के मन में भरी हुई बातों का मुंह खोल दिया। वह बेहद बेसब्री से अपने और सोनू के बीच हुए प्रेमालाप को अपनी भाषा में सुना दिया वह राजेश के सहयोग को जानबूझकर छुपा गयी। परंतु अपने और सोनू के बीच हुए हर तरीके के कामुक स्थितियों और परिस्थितियों को विस्तार पूर्वक सुना कर सुगना को उत्तेजित करती रही। परंतु वह किसी भी प्रकार से राजेश के व्यवहार को संदेह के घेरे में नहीं लाना चाहती थी। लाली मैं सोनू के साथ जितना संभोग सुख का आनंद लिया था वह अपनी सहेली को मना कर वही सुख अपने पति राजेश को दिलाना चाह रही थी।
सुगना को कभी उसकी बात पर विश्वास होता कभी लाली के फेंकने की आदत मानकर उसे नजरअंदाज कर देती। परंतु जितना भाव विभोर होकर लाली अपनी चुदाई की दास्तान बताए जा रही थी वह सुगना को उद्वेलित कर रहा था। " क्या सचमुच उसका छोटा भाई सोनू उसकी हम उम्र लाली को चोद रहा था…?
व्यभिचार और विवाहेतर संबंधों के बारे में ज्यादा बातें करने और सोचने से वह सहज और सामान्य लगने लगता है. सुगना के कोमल मन मस्तिष्क पर लाली की बातों ने असर कर दिया था उसे यह सामान्य प्रतीत होने लगा था। परंतु मासूम सोनू ने लाली को घोड़ी बनाकर चोदा होगा यह नसरत विस्मयकारी था अपितु सोनू के व्यवहार से मेल नही खाता था।
अपनी ही चुदाई की दास्तान बताकर लाली भी गरमा गई थी। दोनों युवतियां अपने मन में तरह-तरह के अरमान और जांघों के बीच तकिया लिए अपनी चुचियां एक दूसरे से सटाए हुए सोने लगी…।
सोनी और मोनी बगल में लेटी हुई थी. सोनी विकास के साथ बिताए गए पलों को याद कर अपने तन बदन में उठ रही लहरों को महसूस कर रही वह अपनी बहन मोनी से सटकर लेटी हुई थी। उसकी जांघों पर अपनी जाँघे रखे सोनी अपनी बहन को विकास मानकर अपनी सूचियों को मोनी की बाहों से रगड़ रही थी तथा उसकी मोनी मोनी के जाँघों से सट रही थी।
मोनी के लिए यह खेल अभी नया था वह थकी हुई थी और नींद में आ चुकी परंतु सोनी के हिलाने डुलाने से ने अपनी आंखें खोली और बोली चल अब सो जा... घर जाकर अपनी आग बुझा लेना…
सोनी शर्मा गई और मोनी को चूम कर सोने का प्रयास करने लगी। पंडाल में स्खलन जैसे वर्जित था।
परंतु नियति इस बनारस महोत्सव में इस परिवार में संबंधों की रूपरेखा को बदलकर आने वाले समय की व्यूह रचना कर रही थी।
शेष अगले भाग में….
राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।
"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."
सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।
परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।
अब आगे..
सुगना की खनकती आवाज सुनाई दी
"जीजा जी आज सब लोग खाना यहीं पंडाल में खाएंगे और यही रहेंगे।" सुगना ने अपनी मादक अदा से यह बात कह दी।
राजेश के लिए यह आग्रह से ज्यादा और आदेश से कम था।
सुगना और सोनू की मां पदमा भी वहां आ चुकी थी उसने भी सुगना की बातों में हां में हां मिलाई और सोनू के हाथ में आया मौका फिसल गया…।
परंतु सोनू को इस बात का सुकून था की आज रात वह अपने पूरे परिवार के साथ रह सकता था और अपनी दोनों छोटी बहनों तथा मां के साथ कई दिनों बाद जी भर कर बातें कर सकता था।
पूरा परिवार गांव की पुरानी यादों और परस्पर प्रेम में डूब गया। सरयू सिंह भी अपने परिवार को हंसी खुशी देखकर उनकी खुशियों में शामिल हो गए।
बनारस महोत्सव पारिवारिक मिलन के एक बेहद खूबसूरत उत्सव में बदल गया था जहां किसी को कोई चिंता न थी खान-पान की। रहन-सहन की व्यवस्था रहने वालों की मनोदशा के अनुकूल थी।
परंतु नियति ने इस खुशहाल परिवार में कामुकता का जाल बिछा दिया था... लाली और सोनू अभी नियति के चहेते चेहरे थे परंतु सुगना और सरयू सिंह के बीच की आग भी धधक रही थी। पिछले दो-तीन महीनों से सरयू सिंह सुगना को चोद तो नहीं पाए थे परंतु हस्तमैथुन और मुखमैथुन द्वारा एक दूसरे की उत्तेजना शांत कर अपना सब्र बनाए हुए थे।
यदि मनोरमा मैडम उन्हें उनके जन्मदिन पर सलेमपुर से खींचकर बनारस महोत्सव में न ले आई होती तो निश्चित ही उस दिन वह सुगना के आगे और पीछे दोनों छेदों का जी भर कर आनंद ले चुके होते।
सुगना ने डॉक्टर की सलाह के विपरीत जाकर जन्मदिन के उपहार स्वरूप अपने दोनों छेदों से खुलकर खेलने का मजा देने का वचन दे दिया था।
सरयू सिंह सुगना के अकेले आशिक न थे। राजेश की चाहत भी अब अपनी पराकाष्ठा पर थी लाली को वासना के दलदल में उतार देने के पश्चात अब उसे कोई डर भय नहीं था। राजेश सुगना को भी उसी फिसलन में खींच लेना चाहता था तथा रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रख वह अपनी और सुगना की अतृप्त काम इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता था।
उसे क्या पता था की सुगना की कामेच्छा पूरा करने वाले उसके बाबूजी सरयू सिंह कामकला के न सिर्फ धनी थे अपितु नियति द्वारा एक खूबसूरत और मजबूत लण्ड से नवाजे गए थे।
सुगना अपने बाबूजी सरयुसिंह की तरफ देख रही थी जो अपनी जानेमन सुगना को हंसता और खुश देख कर उसे अपने आगोश में लेने को तड़प रहे थे…
नयन चार होते ही सुगना ने सरयू सिंह के मनोभाव पढ़ लिए.. उसने मुस्कुराते हुए अपनी नजरें नीची कर ली। उसके गदराए शरीर में ऐठन सी हो रही वह अपने बाबूजी के आगोश में जाने को मचल उठी।
खुशहाल युवती स्वभाव से ही उत्तेजक प्रतीत होती है हंसती मुस्कुराती नग्न युवती को बाहों में लिए उससे कामुक अठखेलियां करना और संभोग करते हुए उसकी हंसी को उत्तेजना में तब्दील कर देना हर मर्द की चाहत होती है।
सरयू सिंह भी इससे अछूते न थे उनका मजबूत हथियार अपने कोमल और मुलायम आवरण (सुगना की बुर) में छुपने को तैयार था….
ग्रामीण समाज की परंपराओं के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों का झुंड अलग-अलग घेरा बना कर बैठ चुका था। पांडाल में महिलाओं और पुरुषों के रहने की व्यवस्था अलग-अलग थी। सरयू सिंह और राजेश यह बात भली-भांति जानते थे कि पांडाल परिसर में वासना का खेल खेलना अनुचित और बेहद खतरनाक हो सकता था। सामाजिक प्रतिष्ठा एक पल में धूमिल हो सकती थी।
परंतु सरयू सिंह बेचैन थे सुगना द्वारा किया हुआ वादा याद करके उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच जाती और हंसती खिलखिलाती सुनना की आवाजें उनकी उत्तेजना के लिए आग में घी का काम कर रही थी।
वह रह-रहकर सुगना की तरफ देख रहे थे और सुगना भी इस बात को महसूस कर रही थी। इन दोनों का नैन मटक्का शक के दायरे में कतई न था। परंतु सोनू को यह अप्रत्याशित लगा उसने सरयू सिंह से पूछ लिया...
"बाबूजी कुछ चाही का?"
सरयू सिंह ने इशारे से उसे मना किया और एक बार फिर इधर-उधर की बातों में लग गये।
अचानक उन्होंने सुगना को उठकर पांडाल से बाहर बने बाथरूम की दिशा में जाते देखा उनकी बांछें खिल उठी। वह तड़प उठे उनसे बर्दाश्त ना हुआ और जैसे ही सुगना पांडाल से बाहर निकल गई सरयू सिंह भी पांडाल के सामने वाले गेट से निकलकर बाहर आ गए और तेज कदमों से भागते हुए एक बार फिर पांडाल के पीछे पहुंचे और बाथरूम से आ रही सुगना का इंतजार करने लगे।
शाम वयस्क हो चुकी थी। बनारस महोत्सव में रोशनी की कोई कमी न थी परंतु रात को दिन कर पाना बनारस महोत्सव के आयोजकों के बस में नहीं था। अभी भी कुछ जगहों पर घुप अंधेरा था। सरयू सिंह अंधेरे में घात लगाए अपनी बहु सुगना का इंतजार करने लगे। बाथरूम से बाहर आकर सुगना ने अपनी चोली और लहंगे को व्यवस्थित किया। बालों की लटो को अपने कान के पीछे करते हुए अपना सुंदर मुखड़ा अंधेरे में दूर खड़े अपने बाबूजी को दिखा दिया और अपनी मदमस्त चाल से पांडाल की तरफ आने लगी। अचानक सरयू सिंह बाहर आ गए। सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न था
"बाबूजी आप"
सरयू सिंह ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उसकी कलाइयां पकड़कर खींचते हुए उस अंधेरी जगह पर ले आए।
सुगना स्वयं भी पुरुष संसर्ग पाने को आतुर थी। वह अपने बाबूजी के आगोश में आने के लिए तड़प उठी। सरयू सिंह सुगना को अपनी बाहों में भर उसकी चुचियों को अपनी छाती से सटा लिया उनके हाथ सुगना की गोरी पीठ पर अपना शिकंजा बनाए हुए थे और धीरे-धीरे सुगना ऊपर उठती जा रही थी। उसका वजन अब सरयू सिंह की मजबूत बांहों ने उठा लिया था और सुगना के कोमल होंठ अपने बाबुजी के होठों से टकराने लगे।
सरयू सिंह ने एक झटके में अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना के दोनों होठों को मुंह में भरने की कोशिश की। परंतु सुगना भी उनका निचला होंठ चूसना चाहती थी उसने भी अपना मुंह खोल दिया।
सरयू सिंह और सुगना दोनों मुस्कुराने लगे। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी।
सुगना अपने कोमल होठों से अपने बाबूजी के मजबूत होठों को चूसने लगी और सरयू सिंह भी उसी तन्मयता से अपनी बहू की इस अदा का रसास्वादन करने लगे। ऊपर हो रही हलचल को शरीर के बाकी अंगों ने भी महसूस किया। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल नितंबों की तलाश में लग गयीं। सुगना एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके दोनों नितंबों को अपनी आगोश में ले लिया।
सुगना के नितंबों के आकार को महसूस कर सरयू सिंह सुगना की किशोरावस्था को याद कर रहे थे। नितंबों के आकार में आशातीत वृद्धि हुई थी। दीपावली कि वह पहली रात उन्हें याद आ रही थी। तब से अब तक नितंबों का आकार बढ़ चुका था और निश्चय ही इसका श्रेय कहीं न कहीं सरयू सिंह की भरपूर चुदाई को था उन्होंने सुगना के कान में कहा..
"सुगना बाबू ई दोनों फूलते जा तारे से"
"सब राहुर एकरे कइल ह" सुगना ने सरयू सिंह के लण्ड को पकड़ कर दबा दिया।
"अब उ सुख कहां मिला ता"
सुगना ने अपने होंठ गोल किए और अपनी जीभ को बाहर निकाल कर सरयू सिंह के मुंह में आगे पीछे करते हुए बोली
"कौन सुख ई वाला"
सरयू सिंह सुगना के इस मजाक से और भी उत्तेजित हो गए हो गए उन्होंने अपनी उंगलियां सुगना की गांड से सटा दीं और उसे सहलाते हुए बोले...
"ना ई वाला"
सुगना ने उनका हाथ खींच कर अपनी जांघों के बीच अपनी पनिया चुकी बुर पर ला दिया और बोला..
"तब इकर का होइ.."
"तू और तोहार सास ही पागल डॉक्टर के चक्कर में हमारा के रोकले बाड़ू हम त हमेशा तडपत रहे नी।"
"सरयू सिंह सुगना की उत्तेजित अवस्था को बखूबी पहचानते थे. सुगना का गोरा और चमकदार चेहरा वासना से वशीभूत हो चुका था। उसकी आंखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसने अपनी पलके झुका लीं और अपने बाबु जी के मजबूत हथेलियों के स्पर्श को महसूस करने लगी।
सरयू सिंह सुगना के हर उस अंग को सहलाए जा रहे थे जो उन्हें अपने शरीर से अलग दिखाई पड़ रहा सुगना के हाथ भी अपने बहुप्रतीक्षित और जादुई मुसल को हाथों में लेकर अपना स्पर्श सुख देने लगे। कपड़ों का आवरण हटा पाना इतना आसान न था। परंतु ससुर और बहू दोनों ने यथासंभव नग्न त्वचा को छूने की भरपूर कोशिश की। दोनों दो-तीन दिनों से मन में जाग रही उत्तेजना को शांत कर लेना चाहते थे।
सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना का लहंगा ऊपर कर दिया और अपनी उंगलियों को सुगना की बुर् के होठों पर फिराने लगे सुगना चिहुँक उठी। सरयू सिंह की उंगलियां अपनी बहू की बुर् के होठों पर उग आए बालों को अलग करती हुयी उस चिपचिपी छेद के भीतर प्रवेश कर प्रेम रस चुराने लगीं।
मध्यमा और तर्जनी जहां सुगना के बुर् के अंदरूनी भाग को मसाज दे रही थी वही बाकी दोनों उंगलियां सुगना की गांड पर घूम रही थी। सुगना सिहर रही थी। न जाने उसके बाबूजी को उस गंदे छेद में क्या दिखाई पड़ गया था। वह तो जैसे पागल ही हो गए थे।
जिस बुर में उनकी उत्तेजना को पिछले तीन-चार वर्षो तक शांत किया था उसे छोड़कर वह उस सौतन के पीछे लग गए थे।
सरयू सिंह के तन मन में उत्तेजना भरने के लिए अपने अंगों के बीच लगी होड़ को महसूस कर सुगना परेशान भी थी और उत्तेजित भी।
सरयू सिंह का लंड भी लंगोट से बाहर आ चुका था। परंतु मर्यादा और परिस्थितिवश वह धोती की पतले और झीने आवरण के अंदर कैद था। सुगना अपनी हथेलियों से उसके नग्न स्पर्श को महसूस करने को बेताब थी पर धोती जाने कैसे उलझ गई थी।
उसके होंठ अभी भी अपने बाबूजी के होठों से खेल रहे थे और वह चाह कर भी नीचे नहीं देख पा रहे थी। सरयू सिह सुगना की कोमाल हथेलियों का स्पर्श अपने लण्ड पर महसूस कर रहे थे और सुपाड़े ओर रिस रहा वीर्य सुगना की उगलियों को चिपचिपा कर रहा था।
दोनों स्स्खलन की कगार पर पहुंच रहे थे परंतु नियति को यह मंजूर न था । इस बनारस महोत्सव में सरयू सिंह का वीर्य व्यर्थ नहीं जाना था। सरयू सिंह के वीर्य से कथा का एक और पात्र सृजित होने वाला था।
नियति ने अपनी चाल चल दी। पास से गुजरती एक महिला ठोकर खाकर गिर पड़ी। उसे उठाने के लिए आसपास के कई सारे लोग इकट्ठा हो गए। सरयू सिंह को ना चाहते हुए भी सुगना को छोड़ना पड़ा। सुगना स्वयं बाबूजी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से चौक गई। उसे पीछे हो रही घटना का अनुमान गलत वह तो अपने बाबूजी के आलिंगन में अद्भुत कामसुख के आनंद में डूबी हुई थी।
उसने पीछे मुड़कर देखा और सारा माजरा उसकी समझ में आ गया उसने सरयू सिंह से धीरे से कहा.. "बाबूजी कल शाम के मनोरमा जी वाला कमरा में …." इतना कह कर वह तेज कदमों से पंडाल की तरफ भाग गई।
सरयू सिंह ने अपने खूंटे जैसे तने हुए लण्ड को वापस अपनी लंगोट में डाला और अपनी उंगलियों को चुमते और सुघते हुए पांडाल की तरफ चल पड़े। इस थोड़ी देर के मिलन ने सरयू सिंह में जान भर दी थी। उनकी उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस और उसकी खुशबू चुरा ली थी। वह अपनी उंगलियों को चूम रहे थे और सुगना के मदमस्त बुर की खुशबू को अपने नथुनों में भर रहे थे। उधर सुगना की उंगलियां भी अपने हिस्से का सुख ले आयी थी। सरयू सिंह के लण्ड से रिस रहा वीर्य धोती के पतले आवरण को छेद कर सुगना की उंगलियों तक पहुंच चुका था। उसकी बाबूजी के लण्ड ने दिन में न जाने कितनी बार वीर्य रस की बूंदे अपने होठों पर लायी थी और वहीं पर सूख गया था। लण्ड की वह खुशबू बेहद मादक थी और सुगना को बेहद पसंद थी। वह अपनी उंगलियों को बार-बार सूंघ रही थी और उसकी खुसबू को महसूस कर उसकी बूर चुदने के लिए थिरक रही थी।
सुगना ने कल शाम अपने बाबू जी को खुश करने का मन बना लिया था। सुगना के मनोभावों को जानकर उसकी छोटी सी गांड ठीक वैसे ही सिहर उठी थी जैसे घर पर आने वाले मेहमानों की सूचना सुनकर कामवाली सिहर उठती है।
खानपान का समारोह संपन्न होने के पश्चात स्त्री और पुरुषों के अलग होने की बारी थी । लाली सोनू को प्यार भरी निगाहों से देख रही थी और उधर सुगना कभी राजेश को देखती कभी सरयू सिंह को….। राजेश की निगाहों में सुगना के लिए जितना प्यार और आत्मीयता थी शायद सुगना उसका चौथाई भी सुगना की आंखों में न था वह पूरी तरह तरफ पिछले दो-तीन महीनों को छोड़ दें तो उसे एक पुरुष से जो कुछ मिल सकता था वह सारा उसके बाबूजी सरयू सिंह ने जी भर कर दिया था। उसने सरयू सिंह से अपने सारे अरमान पूरे किए थे।
घर की सभी महिलाएं पांडाल में सोने चली गई लाली और सुगना अगल-बगल लेटे हुए थे सोनी और मोनी की भी जोड़ी जमी हुई थी। और अपनी जवानी जी चुकीं कजरी और पदमा अपने जीवन में आए अध्यात्म को महसूस कर रही थी।
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परंतु सुगना की आंखों में नींद न थी वह पांडाल की छत की तरफ देख रही थी। उसके जहन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि सूरज को मुक्ति दिलाने वाली उसकी बहन का पिता कौन होगा.
डॉक्टर ने सरयू सिंह के चोदने पर प्रतिबंध लगाया था उस बात को याद कर सुगना तनाव में आ गई थी। वह स्वयं कभी भी दूसरी संतान नहीं चाहती थी परंतु विद्यानंद की बातों को सुनकर गर्भधारण करना अब उसकी मजबूरी हो चली थी.
क्या वह अपने बाबूजी के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर उनसे एक बार फिर गर्भधारण की उम्मीद करेगी?
क्या यह 1 - 2 मुलाकातों में संभव हो पाएगा.?
सुगना इस बात से भी परेशान थी कि सरयू सिंह की प्राथमिकता अब उसकी बुर ना होकर वह निगोड़ी गांड हो चली थी।
सुगना को अभी अपनी कामकला पर पूरा विश्वास था उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि कल मनोरमा के कमरे में जाने के पश्चात वह अपनी कामकला से सरयू सिंह को अपनी जांघों के बीच स्खलित होने पर मजबूर कर देगी और रही बात उस दूसरे छेद की तो वह फिर कभी देखा जाएगा।
सुगना की अंतरात्मा ने उसे झकझोरा..
"तो क्या तू अपने पुत्र को मुक्ति दिलाने के लिए अपने बाबूजी के जीवन से खिलवाड़ करेगी…?
यदि तुझे चोदते हुए वह फिर एक बार मूर्छित हो गए तब??
सुगना पूरी तरह आतुर थी वह अपनी अंतरात्मा की आवाज को नकार रही थी उसने मन ही मन उसे उत्तर दिया…
"मैं उन्हें मेहनत नहीं करवाऊंगी मैं स्वयं उनका वीर्य दोहन करूंगी और यदि कुछ ऊंच-नीच होता भी है तो हम सब बनारस में ही हैं डॉक्टर की सुविधाएं तुरंत मिल सकती हैं"
"देख उनके माथे का दाग भी अब कितना कम हो गया है तेरे वासना के खेल से उनका दाग फिर बढ़ जाएगा"
"मुझे गर्भवती होना है इसके लिए इतनी कुर्बानी तो मेरे बाबूजी दे ही सकते हैं"
सुगना की अंतरात्मा ने हार मान ली और सुगना अपने प्यारे बाबू जी सरयू सिंह से चुदकर गर्भवती होने की तैयारी करने लगी।
मन ही मन फैसला लेने के पश्चात सुगना संतुष्ट थी।
"सुगना मैं तेरे बगल में लेटी हूं और तू न जाने क्या सोच रही हो?" लाली ने सुनना का ध्यान भंग करते हुए कहा.
सुगना अपना निर्णय करने के पश्चात सहज महसूस कर रही थी। उसमें करवट ली। सुगना को अपनी तरफ करवट लेते देख लाली ने भी करवट ली और एक बार फिर उन दोनों की चुचियों ने एक दूसरे को छू लिया। दोनों मुस्कुराने लगी । उनकी चुचियों एक दूसरे से सट कर गोल से सपाट होने लगी।
"तुझे रतन भैया की याद नहीं आती है?"
लाली में सुगना की सुगना को सह लाते हुए कहा "तू फिर फालतू बात लेकर शुरू हो गई"
"अरे वाह ये निप्पल ऐसे ही कड़ा है? यह सब फालतू बात है?" लाली सुगना को छेड़ने लगी
सुगना सरयू सिह के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित थी लाली द्वारा अपनी चूँचीयां सहलाये जाने से उसके निप्पल और भी खड़े हो गए थे।
"मैंने तो बदलाव का सुख ले लिया है पर तेरे जीजा जी अभी भी तड़प रहे हैं"
लाली अपने और सोनू के बीच हुए संभोग के बारे में सुगना से खुल कर बताना चाह रही थी। परंतु यह उसकी जुबान पर खुलकर नहीं आ पा रहा था अनैतिक कृत्य तो आखिर अनैतिक ही था।
सुगना भली-भांति उसका मंतव्य जानती थी परंतु उसे इस बात का कतई विश्वास न था की सोनू उसे चोद चुका था।
"तो तू इस समय घूम घूम कर अनजानो से मजे ले रही है क्या?"
"ऐसे ऐसे मत बोल मैं कोई छिनाल थोड़ी हूं"
"बातें तो तू वैसी ही कर रही है"
"मैंने अपने सबसे प्यारे सोनू से ही व सुख बांटा है."
"क्या सच में पर यह हुआ कैसे.." सुगना ने लाली के उत्साह भरे चेहरे को देखकर उसकी बातें सुनने का निर्णय कर लिया।
सुगना के इस प्रश्न ने लाली के मन में भरी हुई बातों का मुंह खोल दिया। वह बेहद बेसब्री से अपने और सोनू के बीच हुए प्रेमालाप को अपनी भाषा में सुना दिया वह राजेश के सहयोग को जानबूझकर छुपा गयी। परंतु अपने और सोनू के बीच हुए हर तरीके के कामुक स्थितियों और परिस्थितियों को विस्तार पूर्वक सुना कर सुगना को उत्तेजित करती रही। परंतु वह किसी भी प्रकार से राजेश के व्यवहार को संदेह के घेरे में नहीं लाना चाहती थी। लाली मैं सोनू के साथ जितना संभोग सुख का आनंद लिया था वह अपनी सहेली को मना कर वही सुख अपने पति राजेश को दिलाना चाह रही थी।
सुगना को कभी उसकी बात पर विश्वास होता कभी लाली के फेंकने की आदत मानकर उसे नजरअंदाज कर देती। परंतु जितना भाव विभोर होकर लाली अपनी चुदाई की दास्तान बताए जा रही थी वह सुगना को उद्वेलित कर रहा था। " क्या सचमुच उसका छोटा भाई सोनू उसकी हम उम्र लाली को चोद रहा था…?
व्यभिचार और विवाहेतर संबंधों के बारे में ज्यादा बातें करने और सोचने से वह सहज और सामान्य लगने लगता है. सुगना के कोमल मन मस्तिष्क पर लाली की बातों ने असर कर दिया था उसे यह सामान्य प्रतीत होने लगा था। परंतु मासूम सोनू ने लाली को घोड़ी बनाकर चोदा होगा यह नसरत विस्मयकारी था अपितु सोनू के व्यवहार से मेल नही खाता था।
अपनी ही चुदाई की दास्तान बताकर लाली भी गरमा गई थी। दोनों युवतियां अपने मन में तरह-तरह के अरमान और जांघों के बीच तकिया लिए अपनी चुचियां एक दूसरे से सटाए हुए सोने लगी…।
सोनी और मोनी बगल में लेटी हुई थी. सोनी विकास के साथ बिताए गए पलों को याद कर अपने तन बदन में उठ रही लहरों को महसूस कर रही वह अपनी बहन मोनी से सटकर लेटी हुई थी। उसकी जांघों पर अपनी जाँघे रखे सोनी अपनी बहन को विकास मानकर अपनी सूचियों को मोनी की बाहों से रगड़ रही थी तथा उसकी मोनी मोनी के जाँघों से सट रही थी।
मोनी के लिए यह खेल अभी नया था वह थकी हुई थी और नींद में आ चुकी परंतु सोनी के हिलाने डुलाने से ने अपनी आंखें खोली और बोली चल अब सो जा... घर जाकर अपनी आग बुझा लेना…
सोनी शर्मा गई और मोनी को चूम कर सोने का प्रयास करने लगी। पंडाल में स्खलन जैसे वर्जित था।
परंतु नियति इस बनारस महोत्सव में इस परिवार में संबंधों की रूपरेखा को बदलकर आने वाले समय की व्यूह रचना कर रही थी।
शेष अगले भाग में….