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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#48
Heart 
भाग-44


पिछले भाग में आपने पढ़ा...

सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…


अब आगे...


सोनू अपनी दीदी लाली की रिसती हुई बुर को देख खुद को न रोक पाया उसने झुककर लाली की लाली की बुर को चूमने की कोशिश की परंतु लाली ने उसी समय कमर को थोड़ा हिलाया और लाली की गांड सोनू के होठों से छू गई….


एक पल के लिए सोनू को अफसोस हुआ परंतु लाली के कोमल नितंबों ने सोनू के गालों पर हल्की मसाज कर दी। लाली को अपनी गलती का एहसास हो गया था। सोनू अपने पहले प्रयास में लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहा परंतु सोनू को लाली दीदी का हर अंग प्यारा था।


उसने एक बार फिर प्रयास किया उधर लाली में अपनी गलती के प्प्रायश्चित में अपनी जांघें थोड़ा फैला दी सोनू के होंठ लाली के निचले होठों से सट गए। पहली बार की कसर सोनू ने दूसरी बार निकाल ली। उसने लाली की छोटी सी बुर के दोनों होंठों को अपने मुंह में भर लिया और उसका रस चूसने लगा। सोनू अबोध युवा की तरह लाली की बुर चूस रहा था उसे यह अंदाज नहीं था की वह लाली का सबसे कोमल अंग था। लाली सिहर उठी उसमें अपने हाथ पीछे कर सोनु के सर को पकड़ने की कोशिश की पर असफल रही। उसकी पीठ में थोड़ा दर्द महसूस हुआ।
अपने अनाड़ी और नौसिखिया भाई के होठों में अपनी बुर देकर वह फंस चुकी थी। लाली ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया और कराहते हुए बोली "बाबु तनि धीरे से….. "


अपनी फूली हुयी बुर को अपने भाई सोनू को सौंप कर वह अपने तकिए में मुंह छुपाए अपने अनाड़ी भाई सोनू के होठों और जीभ की करामात का आनंद लेते हुए अगले कदम का इंतजार करती रही। सोनू जब-जब नितंबों और जांघों के जोड़ पर अपना चेहरा ले जाता लाली के कोमल नितंब और गदराई जाँघे सोनू के चेहरे को पूरी तरह ढक लेते। सोनू अपने सर का दबाव बढ़ा कर अपने होठों को बुर तक ले जाता और लाली की बूर को चूमने का प्रयास करता।


सोनू को अपनी लंबी जीभ का ध्यान आया उसने उसे भी मैदान में उतार दिया। सोनू की जीभ बुर् के निचले भाग पर पहुंचने लगी और लाली की भग्नासा को छूने लगी। लाली उत्तेजना से कांपने लगी उसे लगा जैसे यदि उसने सोनू को नहीं रोका तो कुछ ही देर में सोनू अपना अगला कदम बढ़ा देगा। सोनू की जीभ और होठों से मिल रहे अद्भुत सुख को लाली छोड़ना भी नहीं चाहती थी।


लाली चुदना चाह रही थी पर उसने राजेश को जो वचन दिया था उसे तोड़ना नहीं चाहती थी। उसने अपनी यथास्थिति बनाए रखी। सोनू ने लाली की जाँघे पकड़कर उसे सीधा लिटाने का प्रयास किया। लाली ने दर्द भरी आह भरी। यह लाली ने जानबूझकर किया था। पीठ के बल लेटने पर उसकी नजरें सोनू से निश्चित ही मिलती और वह इस विषम स्थिति से बचना चाहती थी । अपने चेहरे पर वासना लिए अपने छोटे भाई से नजरें कैसे मिलाती। और यदि पीठ के बल लेटने के पश्चात सोनू कहीं संभोग के लिए प्रस्तुत हो जाता तो वह कैसे उसे रोक पाती ? जिस लंड की कल्पना और बातें कर उसने और राजेश ने अपनी कई रातें जवान की थी उसे मना कर पाना लाली के वश में न था।
सोनू ने भी उसे तकलीफ न देते हुए वापस उसी स्थिति में छोड़ दिया। सोनू के होठों से बहती लार और लाली की बुर से रिस रहे काम रस के अंश चादर पर आ चुके थे।


सोनू ने अपने लण्ड को बाहर निकाल दिया तने हुए लण्ड पर अपनी हथेलियां ले जाकर सहलाने लगा। लंड में सनसनी होने से उसे आयोडेक्स की याद आई उसने फटाफट अपने हाथ चादर के कोने से पोछे। लण्ड को पोछने के लिए उसने लाली की साड़ी का पल्लू खींच लिया।


लण्ड की जलन को सिर्फ और सिर्फ लाली की बुर ही अपने मखमली अहसाह से मिटा सकती थी। सोनू बिस्तर पर आ गया और अपनी अपने दोनों पैर लाली की जांघों के दोनों तरफ कर लाली पर झुकता चला गया।


जैसे ही उसके मजबूत लण्ड ने लाली के गदराये नितंबों को छुआ लाली उत्तेजना से कांप उठी। जिस प्रकार छोटे बच्चे लॉलीपॉप देखते ही अपना मुंह खोल देते हैं उसी प्रकार लाली की बुर ने अपने लॉलीपॉप के इंतजार में मुंह खोल दिया।


सोनू सच मे अनाड़ी था। लाली के फुले और कोमल में गोरे और कोमल नितम्ब देखकर वह मदहोश हो चुका था। सोनू व्यग्र हो गया था जैसे ही लंड ने नितंबों को छुआ सोनू ने अपनी कमर आगे बढ़ा दी लण्ड बुर की छेद पर न था लाली दर्द से तड़प उठी। ऐसा लग रहा था जैसे लण्ड नितंबों के बीच नया छेद करने को आतुर था "बाबू तनि नीचे…" लाली एक पल के लिए राजेश को दिया वचन भूल कर अपनी बुर को ऊपर उठाने लगी।


परंतु नियति निष्ठुर थी जैसे उसने बनारस के आसपास कामवासना को जागृत तो कर रखा था परंतु संभोग पर पाबंदी लगा रखी थी। 


दरवाजे पर फिर खटखट हुई। सोनू घबरा गया वो फटाफट नीचे उतरा और अपने हथियार को वापस पजामे में भरकर भागकर दरवाजा खोलने गया।

राजेश को देखकर उसकी सिद्धि पिट्टी गुम हो गई अंदर बिस्तर पर लाली अर्धनग्न अवस्था में थी। वह राजेश को क्या मुंह दिखाएगा?


सोनू में जोर से आवाज दी " दीदी जीजू हैं " लाली ने फटाफट अपने पेटिकोट को ऊपर किया और चादर ओढ़ ली. 


राजेश और सोनू अंदर आ चुके थे। आयोडेक्स की महक कमरे में फैली थी। राजेश को समझते देर न लगी की सोनू की उंगलियों ने लाली की पीठ का स्पर्श कर लिया है। राजेश का लण्ड खड़ा हो गया। उसे पता था सोनू के स्पर्श से लाली निश्चित ही गर्म हो चुकी होगी और चुदने के लिए तैयार होगी।

सोनू ने अब और देर रहना उचित न समझा उसने लाली से कहा "दीदी एक-दो दिन आराम कर लीजिए" परसों से बनारस महोत्सव शुरू होने वाला है तब तक पूरी तरह ठीक हो जाइए। दवा टाइम से खाते रहिएगा"

सोनू ने राजेश से अनुमति ली। लाली अब तक करवट ले चुकी थी उसने सोनू से कहा "बनारस महोत्सव के समय तो हॉस्टल बंद रहेगा ना। तू यहीं पर रहना यहां से हम लोग साथ मे घूमेंगे।"

राजेश ने लाली की बात में हां में हां मिलाई और बोला "हां सोनू तुम्हारी दीदी तुम्हें देखते ही चहक उठती है इन्हें बनारस महोत्सव दिखा देना"


लाली ने सोनू के मन की बात कह दी थी अपनी प्यारी दीदी लाली के साथ वो 7 दिन सोनू को हनीमून के जैसे लग रहे थे।वो अपने दिल की धड़कन को महसूस कर पा रहा था जो निश्चित ही बढ़ी हुई थी। परंतु उसका लण्ड अपने लक्ष्य के करीब पहुंचकर एक बार फिर दूर हो गया था। लाली और सोनू के काम इंद्रियों पर सिर्फ और सिर्फ उत्तेजना थी और मन में बनारस महोत्सव का इंतजार ।



##

उधर एसडीएम मनोरमा की जिप्सी में सरयू सिंह ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठे थे और सामने बैठी मनोरमा को तिरछी नजरों से निहार रहे थे। मनोरमा को सामने से देखने की हिम्मत सरयू सिंह में ना थी परंतु आज अपनी तिरछी निगाहों से वह उसके गालों कंधों और साड़ी के पल्लू के नीचे से झांकती हुई चुचियों को निहार रहे थे। मनोरमा की कमर और जाँघे भी सरयू सिंह का ध्यान आकर्षित कर रही थी।


मनोरमा भी मन ही मन सरयू सिंह के बारे में सोच रही थी। कैसे यह व्यक्ति गृहस्थ जीवन से दूर एकांकी जीवन व्यतीत कर रहा था मनोरमा को क्या पता था सरयू सिंह कामकला के धनी थे और नियति उन पर मेहरबान थी। मनोरमा स्वयं इस सुख का आनंद पूरी तरह नहीं ले पाती थी उसके पति लखनऊ में सेक्रेटरी थे।


कामवासना की पूर्ति के लिए 400 किलोमीटर की यात्रा करना आसान न था। जब सेक्रेटरी साहब का मन होता वह मनोरमा के पास आ जाते और दो-चार दिनों के प्रवास में जी भर कर मनोरमा को चोदते परंतु मनोरमा को चरम सुख की प्राप्ति कभी कभार ही हो पाती।


मनोरमा जो मिल रहा था उसमें खुश थी उसकी हालत गांव की उस बच्चे जैसी थी जो बालूशाही आकर भी वैसे ही मस्त हो जाता है जैसे शहर के अमीर रसमलाई खाकर। परंतु रसमलाई रसमलाई होती है उसका सुख नसीब वालों को ही मिलता है मनोरमा उस सुख से वंचित थी।


बनारस महोत्सव की तैयारियों में मनोरमा ने बहुत काम किया था उसके कार्यों से प्रसन्न होकर नियति ने मनोरमा के लिए भी रसमलाई बनाई हुई थी। समय और वक्त का इंतजार नियति को था मनोरमा इन बातों से अनजान अपने रुतबे और टीम के साथ बनारस महोत्सव में पहुंच चुकी थी।


मनोरमा के साथ आये सारे पटवारियों ने अलग-अलग हिस्सों में कार्य संभाल लिया। सरयू सिंह को भी सेक्टर 12 के पंडालों का कार्यभार दिया गया। इसी सेक्टर के बगल में मेला अधिकारियों के लिए कई छोटे छोटे कमरे बनाए गए थे जिनमें शौचालय भी संलग्न थे। यह सब कमरे मध्यम दर्जे के थे परंतु पांडाल से निश्चय ही उत्तम थे जिसमें एक बिस्तर लगा हुआ था। मनोरमा को भी एक कमरा मिला हुआ था परंतु वह उसकी हैसियत के मुताबिक न था। सेक्रेटरी साहब और मनोरमा की कमाई हद से ज्यादा थी उसने तय कर रखा था कि वह उस कमरे को छोड़ नजदीक के होटल में रहेगी।


हर पंडाल किसी न किसी संप्रदाय और धर्मगुरुओं से जुड़ा हुआ था। कई पंडाल मेला में आने वाले दुकानदारों और सर्कस वालों ने भी ले रखा था हर पंडाल में लगभग पचास व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था थी।


हर पंडाल से लगे हुए शौचालय भी बने थे जिनका उपयोग पंडाल में रह रहे लोग करते। स्त्री और पुरुषों के लिए सोने की व्यवस्था अलग-अलग थी। पंडाल में पवित्रता बनी रहे शायद इसी वजह से स्त्री और पुरुषों को अलग अलग रखा गया था।


स्वामी विद्यानंद का पंडाल भी सेक्टर 12 में ही था। पंडाल के बाहर लगी बड़ी सी प्रतिमा को देखकर सरयू सिंह की आंखें विद्यानंद पर टिक गई। वह चेहरा उन्हें जाना पहचाना लग रहा था परंतु वह पूरी तरह से पहचान नहीं पा रहे थे वह आंखें और नयन नक्श उन्हें अपने करीबी होने का एहसास दिलाते परंतु बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों में चेहरे का आधा भाग ढक लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह के दिमाग में आया कहीं यह बड़े भैया बिरजू तो नहीं?


सरयू सिंह को अपने बड़े भाई बिरजू की काबिलियत पर यकीन नहीं था उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि बिरजू जैसा व्यक्ति इतना बड़ा महात्मा बन सकता था।


सरयू सिंह विद्यानंद के कटआउट में खोए हुए थे तभी मनोरमा वहां आ गई और बोली

"सरयू सिंह जी कहां खोए हुए हैं यह विद्यानंद जी का पंडाल है। देखिएगा उनके अनुयायियों को कोई कष्ट ना हो मैं खुद इनकी भक्त हूं । एक बात और आपके परिवार के लिए भी मैंने इसी पंडाल में व्यवस्था की हुई है। ये लीजिये पास।"

" मैडम कुछ पास और मिल जाते असल में पास पड़ोस वाले भी मुझ पर ही आश्रित हैं"

"कितने …"


सरयू सिंह सोचने लगे उनके दिमाग में हरिया और उसकी पत्नी का चेहरा घूम गया तभी उन्हें अपनी पुरानी प्रेमिका पदमा की याद आई 


उन्हें खोया हुआ देखकर मनोरमा ने कहा "परेशान मत होइए यह लीजिए 5 और पास रख लीजिए जरूरत नहीं होगी तो मुझे वापस कर दीजिएगा अब खुश है ना"

सरयू सिंह के दिमाग में सुगना और कजरी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया इतनी दिव्य व्यवस्था में रहकर सुगना और कजरी कितने खुश होंगे यह सोचकर वह मन ही मन हर्षित होने लगे।


"हां एक बात और पीछे कुछ वीआईपी कमरे बने हैं जिसमें अटैच बाथरूम है। यह उस कमरे की चाबी है मैंने आपकी बहू और भाभी को साफ सफाई से रहते हुए देखा है उन्हें यहां का कॉमन बाथरूम पसंद नहीं आएगा आप यह चाभी उन्हें दे सकते हैं वो लोग आवश्यकतानुसार उसका उपयोग कर सकते हैं पर उनसे कहिए गा कि ज्यादा देर वहां ना रहे नहीं तो बाकी लोग शिकायत कर सकते हैं"


सरयू सिंह मनोरमा की उदारता के कायल हो गए। अपने घर में सिर्फ उसे बाथरूम प्रयोग करने और आवभगत कर सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल जीत लिया था।


##

दिनभर की कड़ी मेहनत के पश्चात बनारस महोत्सव की तैयारियां लगभग पूर्ण हो गई थी विद्यानंद जी का पांडाल सज चुका था। विद्यानंद जी का काफिला भी बनारस आ चुका था और बनारस महोत्सव में उनका पदार्पण कल सुबह ही होना था। बनारस महोत्सव के लगभग सभी पंडालों में हलचल दिखाई पड़ने लगी थी एक खूबसूरत शहर अस्थाई तौर पर बसा दिया गया था। सड़कों पर पीली रोशनी चमक रही थी।पंडालों के अंदर लालटेन और केरोसिन से जलने वाले लैंप रखे हुए थे जमीन पर पुआल बिछाकर और उन पर दरी और चादरों के प्रयोग से सोने के लिए माकूल व्यवस्था बनाई गई थी।

बाहर तरह-तरह के पंडाल जिनमें अलग-अलग प्रकार की वस्तुएं तथा खान-पान की सामग्री भी मिल रही थी। कुल मिलाकर यह व्यवस्था अस्थाई प्रवास के लिए उत्तम थी।


horseride
बनारस महोत्सव का पहला दिन


अगली सुबह नित्य कर्मों के पश्चात तैयार होकर सरयू सिंह सुगना और कजरी को याद कर रहे थे वह बार-बार पांडाल से निकलकर बाहर देखते। मनोरमा की गाड़ी जिसे सुगना और कजरी को लेने जाना था अब तक नही आई थी।
तभी एक लाल बत्ती लगी चमचमाती हुई एंबेसडर कार पांडाल के बाहर आकर रुकी।


सरयू सिंह सावधान की मुद्रा में आ गए इस अपरिचित अधिकारी के बारे में वह कुछ भी नहीं जानते थे परंतु गाड़ी पर लगी लाल बत्ती उस अधिकारी और उनके बीच प्रशासनिक कद के अंतर को बिना कहे स्पष्ट कर रही थी

ड्राइवर ने सर बाहर निकाला और सरयू सिंह से ही पूछा "सरयू सिंह कहां मिलेंगे?"

"जी मैं ही हूँ"

"मुझे मनोरमा मैडम ने भेजा है उन्होंने कहा है कि आप यहीं पंडाल की व्यवस्था में रहिए हां अपने परिवार के लिए कुछ मैसेज देना हो तो दे सकते हैं ड्राइवर ने पेन और पेपर सरयू सिंह की तरफ आगे बढ़ा दिया"


सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के लिए संदेश लिखा अपने लिए और कपड़े लाने का भी निर्देश दिया।
कुछ ही देर में गाड़ी धूल उड़ आती हुई सरयू सिंह के गांव सलेमपुर की तरफ बढ़ गई।


आवागमन के उचित साधन ना होने की वजह से गांव से शहर की जिस दूरी को तय करने में सरयू सिंह को 4 घंटे का वक्त लगता था निश्चय ही एंबेसडर कार से वह घंटे भर में पूरी हो जानी थी।


सरयू सिंह सुगना का इंतजार करने लगे। मनोरमा द्वारा दी गई चाबी से वह मनोरमा का कमरा देख आए थे अपनी बहू सुगना से रासलीला मनाने के लिए वह कमरा सर्वथा उपयुक्त था। अपनी बहू को मिला दिखा दिखा कर खुश करना और जी भर चोदना सरयू सिंह का लण्ड खड़ा हो गया। मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थी बनारस महोत्सव रंगीन होने वाला था।


दूर से आ रही ढोल नगाड़ों की गूंज बढ़ती जा रही थी। विद्यानंद जी का काफिला अपने पंडाल की तरफ आ रहा था सरयू सिंह सतर्क हो गए और विद्यानंद जी की एक झलक का इंतजार करने लगे। उन्होंने मन ही मन सोचा यदि वह बिरजू भैया तो निश्चय ही उन्हें पहचान लेंगे। उनका मन उद्वेलित था।


banana
उधर रेलवे कालोनी में सोनू की मालिश और बनारस महोत्सव की ललक ने लाली के दर्द को कम कर दिया था। सुबह अपनी रसोई की खिड़की से बाहर दीवार लगे हुए बनारस महोत्सव के पोस्टरों को देख रही थी। लाली ने चाय चढ़ायी हुई थी परंतु उसका मन नहीं लग रहा था। परसो दोपहर की बात लाली के दिमाग में अभी भी घूम रही थी..
सोनू के लण्ड ने उसकी बुर और गांड के बीच में अपना दबाव बढ़ा कर उसे दर्द का एहसास करा दिया था। परंतु लाली तो जैसे सोनू से नाराज ही नहीं सकती थी। काश सोनू का निशाना सही जगह होता तो वह सामाजिक मर्यादाओं को भूलकर अपने भाई सोनू से चुद गई होती। 


सोनू के जाने के बाद राजेश बिस्तर पर आ गया था।

लाली के कमर को सहलाते हुए उसने पूछा " दर्द में कुछ आराम है?"

जब तक लाली उत्तर दे पाती राजेश के हाथ लाली के नितंबों को सहलाते हुए नीचे पहुंच गए। पेटीकोट का नाड़ा खुला हुआ देखकर राजेश प्रसन्न हो गया उसने लाली से कुछ न पूछा। हाथ कंगन को आरसी क्या।


उसकी उंगलियां लाली की बुर पर पहुंच गयी जो चपा चप गीली थी। राजेश को सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे। बुर से बहने वाली लार लाली की उत्तेजक अवस्था को चीख चीख कर बता रही थी। राजेश को समझते देर न लगी कि सोनू के हाथों ने न सिर्फ उस दर्द भरी जगह को सहलाया है अपितु अपनी दीदी के कोमल नितंबों को और अंतर्मन को भी स्पर्श सुख दिया है।

राजेश ने लाली को जांघो से पकड़कर पीठ के बल लिटा दिया। लाली ने इस बार कोई प्रतिरोध न किया। उसका मन बेचैन हो रहा था अपने भाई के इसी प्रयास को उसने दर्द का बहाना कर नकार दिया था। उसे मन ही मन अपने भाई से दोहरा व्यवहार करने का दुख था।

वह क्या करती ? वो राजेश को दिए वचन को वह तोड़ना नहीं चाहती थी। पीठ के बल आते ही लाली का वासना से भरा लाल चेहरा राजेश की आंखों के सामने आ गया। उसने देर ना कि और लाली की जाँघे फैल गयीं। अपने साले सोनू द्वारा गर्म किए गए तवे पर राजेश अपनी रोटियां सेकने लगा.


राजेश ने लाली को चूमते हुए बोला 
" मेरी जान मैं लगता है गलत समय पर आ गया?"


"बात तो सही है" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक ठान्स दिया और बोला "मुझे अफसोस मत दिलाओ"

"आपके लिए ही मैंने अपने भाई को दुखी कर दिया"


"राजेश लाली को बेतहाशा चोदे जा रहा था और उसी उत्तेजना में उसने बेहद प्यार से बोला"


"बनारस महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही सोनू को खुश कर देना"


" और आपका वचन?"


"यह तो मुझ पर छोड़ दो…."



लाली खुश हो गई और उत्तेजना में अपनी कमर हिलाने की चेष्टा की पर दर्द की एक तीखी लहर उसकी पीठ में दौड़ गई. लाली ने पैरों को राजेश की कमर पर लपेट लिया वह राजेश को चूमे जा रही थी।

राजेश मुस्कुरा रहा था और लाली को चोदते हुए स्खलित होने लगा... मेरी प्यारी दीदी …..आ आईईईई। लाली ने भी अपना पानी साथ साथ छोड़ दिया….

बनारस महोत्सव के उद्घाटन की राह वह और उसकी बुर दोनों देख रहे थे। गैस पर उबल रही चाय की आवाज से बनारस महोत्सव के पोस्टर से लाली का ध्यान हटा पर बुर् ….. वह तो सोनू की ख्यालों में खोई हुई थी। वह अजनबी और प्रतिबंधित लण्ड से मिलने को आतुर थी…..

शेष अगले भाग में।


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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 18-04-2022, 01:11 PM



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