18-04-2022, 12:33 PM
भाग-42
उधर लाली को महसूस हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।
लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…
अब आगे…
यह एक संयोग ही था कि उस दिन ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। लाली जान चुकी थी कि सोनू की निगाहें उसके खजाने का अवलोकन कर चुकी है। लाली मंदिर के पार्श्व भाग में लगे अलग-अलग कलाकृतियों को देखने लगी। कभी वह अपनी सुंदर काया की उन कलाकृतियों से तुलना करती और मन ही मन खुश हो जाती। लाली को उस रात की बात याद आ रही जब वह राजेश की बाहों में नग्न लेटी हुई थी और वह उसकी चूचियां सहलाते हुए उसे चोदने के लिए तैयार कर रहा था
राजेश में उससे कहा..
"लाली मजा आ जाएगा जब तुम्हारी चूचियां मेरे मुंह में होंगे और सोनू का सर तुम्हारी जाँघों के बीच"
"छी, कितनी गंदी बात करते हैं आप, अपने भाई से अपनी वो चुसवाना अच्छा अच्छा लगेगा क्या"
"चुसवाने की बात तो मेरी जान तुमने ही कहीं"
"तो क्या सोनू मेरी जांघों के बीच सर लाकर सजदा करेगा?"
लाली की बातों से राजेश के लंड का तनाव बढ़ता चला जा रहा था।
"सच लाली मजा आ जाएगा जब…" राजेश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया पर उसने लाली की चुचियाँ जोर से दबा दी लाली सिहर उठी और बोली…
"क्या जब?" लाली ने उत्सुकता से पूछा
"यही कि उत्तर भारत पर मैं राज करूं और दक्षिण भारत पर तुम्हारा प्यारा सोनू"
लाली राजेश की बात समझ तो गई थी परंतु वह राजेश को खुलकर बोलने के लिए उकसा रही थी..
"आप और आपके सपने ऐसी गंदी बातें कैसे सोच लेते हैं आप"
"मैंने अपने से थोड़े ही सोचा यह तो प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है अपनी प्रेमिका को जी भर कर सुख देना. मेरे पास तो एक ही मुंह है और तुम्हारे पास चूमने लायक कितनी सारी जगह है?"
लाली राजेश की हाजिर जवाबी से प्रभावित हो गई थी उसने कहा तो आपको यह ज्ञान किसी महात्मा ने दिया है
"नहीं मैंने शंकर मंदिर के पीछे लगी एक प्राचीन मूर्ति में देखा था जिसमें एक नायिका को दो पुरुष मिलकर प्रसन्न कर रहे थे"
"सच में आपका दिमाग खाली जांघों के बीच ही घूमता रहता है मंदिर में भला ऐसी मूर्ति कहां मिलेगी"
राजेश ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया और चुमते हुए बोला…
"मैं सच बोल रहा हूं"
"मैं नहीं मानती"
"और अगर यदि यह सच हुआ तो?"
"तो क्या आप जीते मैं हारी"
"फिर मुझे क्या मिलेगा?"
"जो आप चाहेंगे"
"बस उस मूर्ति की नायिका तुम बनोगी और सेवक मैं और….. "
राजेश के वाक्य पूरा करने से पहले लाली ने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच भर लिया और स्वयं ही राजेश के लण्ड को पकड़ कर अपनी बुर में घुसेड लिया…
राजेश की उपस्थिति में सोनू से संभोग करने की बात सोच कर ही वक्त उत्तेजना से प्रोत हो गई थी….
"दीदी आगे चलिए और भी तरह-तरह की कलाकृतियां हैं"
सोनू की आवाज लाली अपनी मीठी यादों से बाहर परंतु उन यादों ने उसकी बुर् के होठों की चमक बढ़ा दी थी। अंदरूनी गहराइयों से उत्सर्जित मदन रस बुर के होठों पर आ चुका था।
सोनू को अभी भी तृप्ति का एहसास नहीं हुआ था लाली की बुर देखने कि उसके मन में एक बार फिर इच्छा जागृत हुयी।
सोनू ने आगे बढ़ते हुए एक बार फिर दंड प्रणाम किया और लाली अपनी टाइमिंग सेट करते हुए एक बार फिर डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। इस बार नियति को लाली की कुर्ती को हवा से उड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं थी लाली ने स्वयं ही अपनी कुर्ती खींच ली थी लाली के बुर् के चमकते हुए होंठ सोनू को उन्हें चुमने का खुला निमंत्रण दे रहे थे।। आह….. कितने सुंदर थे प्यारे होंठ थे। सोनू के मुंह में पानी आ रहा था उसकी जीभ में मरोड़ पैदा हो रही थी वह तुरंत ही झुक कर उन चमकती बूंदों को आत्मसात कर लेना चाहता था।
लाली इस बार कुछ ज्यादा देर तक नतमस्तक रही और अपने भाई सोनू के अरमान कुछ हद तक पूरे करती रही और कुछ के पूरे होने की कामना करती रही।
उठने के पश्चात लाली की निगाहें अभी भी उस कलाकृति को ढूंढ रही थी जिसके बारे में राजेश ने अंतरंग पलों में लाली से बताया था।
सोनु लाली की धीमी चाल से अधीर हो रहा था। उसे तो पता ही नहीं था की लाली दीदी क्या खोज रही हैं। लाली हर मूर्ति का बारीकी से निरीक्षण करती और अंततः लाली ने वह मूर्ति खोजली जिसका राजेश ने जिक्र किया था।
लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। मूर्ति पर जाकर उसकी आंखें ठहर गई उसमें एक युवती के साथ दो पुरुषों को संभोग स्थिति में दिखाया गया था यद्यपि उनके लण्ड और बुर को कलाकृति से हटा दिया गया था परंतु फिर भी वह मूर्ति चीख चीख कर अपनी दास्तान कह रही थी।
लाली अपने ख्वाबों में स्वयं को उस नायिका की तरह देखने लगी उसकी जांघों के बीच छुपी बुर कांप उठी।
लाली राजेश से अपनी शर्त हार कर भी जीत हुई अपनी उत्तेजना को चरम पर महसूस कर लाली का रोम-रोम संभोग के लिए तैयार हो चला था यदि सोनू संभोग के लिए तैयार होता तू लाली की जाँघे निश्चित ही फैल जाती। लाली उस अद्भुत संभोग करने के लिए मन ही मन खुद को तैयार करने लगी।
उधर सोनू की कामवासना चरम पर पहुंच रही थी मंदिर जैसी पवित्र जगह से जल्दी से निकल जाना चाहता था उसने लाली से कहां दीदी अब चला जाए देर हो रही है दर्शन भी हो गए..
"हां हां चल भगवान करे तेरी सभी मनोकामनाएं पूरी हो आज तूने अच्छा कार्य किया है…."
"फिर मेरा इनाम"
"चल रास्ते में देती हूं…"
इधर सोनू लाली दीदी के साथ रंगरेलियां मना रहा था उधर हॉस्टल में विकास सोनू का इंतजार कर रहा था सोनू और विकास का दोस्त गोलू विकास की बेचैनी देखते हुए बोला
" क्यों परेशान हैं?"
"वह सोनू बहन चोद राजदूत लेकर गया है अब तक नहीं लौटा
"कहां गया है कुछ बताया था?"
"पता नहीं यार मैं उस समय सोने जा रहा था बोला था जल्दी आ जाऊंगा"
"वह पक्का अपनी लाली दीदी के पास गया होगा. साली गच्च माल है। सोनू की बहन नहीं होती तो साली को पटक पटक के चोदता।"
"माल सुनकर विकास के लंड में ही हरकत हुई उसने उत्सुकता से पूछा सच में चोदने लायक है क्या?"
" बेहतरीन माल है एक बार सोनू के साथ जाकर देख आ मिजाज खुश हो जाएगा तेरा और तुझे और तेरे मुन्ने का। फिर हाथों को मेहनत कम करना पड़ेगा और दिमाग को ज्यादा"
" और हां सोनू से अनजान बनकर पूछना उसे यह नहीं लगना चाहिए कि लाली के बारे में मैंने तुझे बताया है"
अभी विकास और गोलू बातें ही कर रहे थे तभी उनका एक और दोस्त अपने माता पिता की कार से उतरकर हॉस्टल में प्रवेश किया उसने विकास को देखते ही बोला…
" तेरी राजदूत कहां है"
" सुबह-सुबह सोनू ले गया है हम लोग उसी की बातें कर रहे थे"
"तब साला पक्का वही था। साले ने तो बनारस में माल पटा ली है आज सुबह-सुबह ही अपनी माल को लेकर शहर के बाहर जा रहा था मैंने आवाज दी पर साला रुका नहीं। तूने अपनी मोटरसाइकिल उसे क्यों दे दी ? उसे तो अभी ठीक से चलाना भी नहीं आता"
उस दोस्त ने अपनी सारी जलन विकास से साझा कर दी।
भोलू ने कहा "अबे उसकी कोई सेटिंग हो ही नहीं सकती इतना शर्मीला है साला"
"नहीं भाई सच कह रहा हूं। एकदम माल थी पर उसकी उम्र कुछ ज्यादा लग रही थी अपने कालेज की तो नहीं थी।"
भोलू ने एक बार सोचा कि शायद सोनू की लाली दीदी ही पीछे बैठकर कहीं जा रही हो परंतु उस लड़के ने बताया कि लड़की सलवार सूट पहने हुए थे और तो और वह राजदूत पर दोनों पैर दोनों तरफ करके बैठी थी यह बात भोलू के अनुसार लाली दीदी नहीं कर सकती थी भोलू ने उन्हें जब भी देखा था साड़ी पहने हुए ही देखा था। खैर बात आयी गई हो गयी परंतु विकास बेसब्री से सोनू का इंतजार कर रहा था। भोलू द्वारा लाली की गदराई जवानी के विवरण ने सोनू के दोस्तों में भी हलचल मचा दी थी।
उधर मंदिर से सोनू अपनी फटफटिया में लाली को बैठा कर वापस चल पड़ा। लाली की बुर एक बार फिर राजदूत की सीट से सटने लगी। परंतु लाली ने अपनी सलवार को बीच में लाने का प्रयास न किया। सीट की गर्मी उसे पसंद आ रही थी। बाहर खिली हुई धूप मौसम को खुशनुमा बनाए हुई थी। लाली इस बार जानबूझकर सोनू से सट कर बैठी थी और उसकी चूचियां सोनू की पीठ से सटी हुई थीं। पीठ पर मिल रहे चुचियों के स्पर्श और अपनी दीदी की पनियायी बुर की कल्पना ने उसके लण्ड को पूरी तरह खड़ा कर दिया था..
कुछ ही देर में सोनू ने लाली से पूछा
"दीदी मेरा इनाम कहां है"
"वह तो तूने मंदिर के पीछे ही ले लिया था"
सोनू सतर्क हो गया और अनजान बनते हुए पूछा
"मंदिर के पीछे?
"ज्यादा बन मत"
"तूने अपने पसंदीदा चीज के दर्शन तो कर ही लिए"
सोनू को सारी बात समझ आ चुकी थी फिर भी उसने उसे छुपाते हुए कहा
"मैंने तो कुछ भी नहीं देखा हां वह मूर्तियां बहुत अच्छी थीं"
लाली ने अपने हाथ बढ़ाएं और सोनू के तने हुए लण्ड को पकड़ लिया अच्छा तो यह महाराज उन मूर्तियों की सलामी दे रहे हैं।
सोनू निरुत्तर था उस ने मुस्कुराते हुए कहा लाली दीदी आप सच में बहुत सुंदर हो...
"मैं या मेरी वो"
"दोनों दीदी"
"पहले तो तूने कभी इतनी तारीफ न की"
"पहले उसके दर्शन भी तो नहीं हुए थे.."
"और उस दिन नहाते समय दरवाजे पर खड़ा क्या कर रहा था…?"
सोनु एक बार फिर निरुत्तर था। लाली की हथेलियां उसके लण्ड पर आगे पीछे हो रही थीं। उसका सुपाड़ा फुल कर लाल हो गया कपड़ों के ऊपर से सहलाए जाने की वजह से सोनू थोड़ा असहज हो रहा था परंतु वह इस सुख से वंचित नहीं होना चाहता था। दर्द और सुख की अनुभूति के बीच एक अद्भुत तालमेल हो चुका था. लाली कोई ऐसा बिल्कुल आभास नहीं था कि कपड़े के ऊपर से लण्ड को मसलने से सोनुको दिक्कत हो सकती थी।
अचानक वही स्पीड ब्रेकर एक बार फिर आ गया जिस पर पिछली बार एक्सीडेंट होते-होते बचा था अपनी उत्तेजित अवस्था के बावजूद सोनू सतर्क था। परंतु लाली अब भी बेपरवाह थी। अचानक आई इस उछाल से सोनू का लण्ड लाली के हाथ से छूट गया सोनू ने चैन की सांस ली और लाली अपने आपको व्यवस्थित करने लगी। राजदूत की सीट लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। जितने वीर्य का उत्सर्जन सोनू अंडकोष कर रहे थे उसकी आधी मात्रा तो निश्चय ही लाली की बुर भी उड़ेल रही थी।
खुद को सीट पर व्यवस्थित करते समय लाली ने अपनी कमर हिलाई और उसकी बुर राजदूत की सीट पर रगड़ उठी। एक सुखद एहसास के साथ लाली को सफर काटने का उपाय मिल गया। उधर सोनू ने अपने पजामे का नाड़ा ढीला किया और लण्ड को पजामे से बाहर कर दिया और उसे अपने कुर्ते का आवरण दे दिया।
अपनी बुर की चाल को नियंत्रित करने के पश्चात लाली को एक बार फिर सोनू के मजबूत पर मुलायम लण्ड की याद आई और उसने अपने हाथ सामने की तरफ बढ़ा दिए। सोनू को लाली की कोमल हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हो चुका था। उसके लण्ड ने तीन चार झटके लिए और अपनी परिपक्व महबूबा के हाथों में खेलने लगा।
सोनू के कोमल लण्ड को अपने हाथों में लेकर लाली मचल उठी उसके कुशल हाथ तरह तरह से उस लण्ड से खेलने लगे। जब तक शहर की भीड़भाड़ शुरू होती सोनू के लण्ड ने जवाब दे दिया। वीर्य की धार फूट पड़ी और लाली के हाथ श्वेत धवल गाढ़े वीर्य से सन गए परंतु राजदूत की सीट लाली का स्खलन न करा पायी।
लाली ने सोनू को अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया और दाहिने हाथ को अपनी जांघों के बीच लाकर बुर को छूने लगी परंतु वह चाह कर भी स्खलित न हो पाई लाली की तड़प बढ़ चुकी थी।
उन्होंने मिठाई की दुकान पर मोटरसाइकिल रोक दी बच्चों के लिए मिठाई और आइसक्रीम लेकर लाली और सोनू रेलवे कॉलोनी की तरफ बढ़ चले। लाली अब अपने दोनों पैर एक तरफ करके मोटरसाइकिल पर बैठी हुई थी रेलवे कॉलोनी पहुंचते-पहुंचते सड़क पर भीड़ भाड़ बढ़ चुकी थी अचानक साइकिल वाले के सामने आ जाने से सोनू की मोटरसाइकिल का बैलेंस गड़बड़ा गया और सोनू की ड्राइविंग स्किल की पोल एक झटके में ही खुल गई लाली सड़क पर गिर चुकी थी उसकी कमर में चोट लगी थी सोनू की मदद से वह बड़ी मुश्किल से उठ पाई। भगवान का लाख-लाख शुक्र था की मोटरसाइकिल को कोई चोट नहीं लगी की वरना विकास उसका जीना हराम कर देता।
लाली ने कहा सोनू घर पास में ही है तुम चलो मैं पैदल आती हूं। सोनू को लाली की यह बात तीर की तरह चुभ गई उसने अपनी नाराजगी को छुपाते हुए कहा
दीदी उस साइकिल वाले की गलती थी वरना हम लोग नहीं गिरते आप विश्वास रखिए
लाली एक बार फिर मोटरसाइकिल पर बैठ चुकी थी सोनू पूरी सावधानी से लाली को लेकर घर पहुंच गया राजेश अपना टिफिन लेकर बेसब्री से लाली और सोनू का इंतजार कर रहा था। समय कम होने की वजह से वह लाली से ज्यादा बात नहीं कर पाया और निकलते हुए बोला रात तक आता हूं।
लाली ने अपने कमर के दर्द को अपने सीने में दफन करते हुए राजेश से कहा…
आप जीत गए…
राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा अपनी तैयारी शुरू कीजिए
लाली मुस्कुरा उठी। लाली का पुत्र सोनू मिठाई और आइसक्रीम के पैकेट देख खुश हो गया था। खुश तो लाली भी बहुत थी परंतु कमर में लगी चोट ने उस खुशी में विघ्न डाल दिया था नियति एक बार फिर मुस्कुरा रही थी। लाली के दर्द में ख़ुशी छुपी हुई थी शायद यह बात लाली नहीं समझ पा रही थी।
उधर सलेमपुर में सरयू सिंह का जन्मदिन करीब आ चुका था। सरयू सिंह बाजार में अपने जन्मदिन के उत्सव की तैयारी कर रहे थे। उन्हें सर्वाधिक इंतजार सुगना द्वारा दिए जाने वाले गिफ्ट का था। सुगना की गुदांज गांड को भेदने की उनकी सर्वकालिक इच्छा कल पूरी होने वाली थी वह सुगना को हर हाल में खुश रखना चाहते थे परंतु उनकी इस इच्छा मैं विरोधाभास था। उन्हें लगता था जैसे इस अप्राकृतिक मैथुन से निश्चय ही सुगना को कष्ट होगा। परंतु उनके विरोधाभास पर विजय उनके लण्ड की ही हुई जो पिछले तीन-चार महीनों सुगना की कोमल बुर् का स्वाद नहीं चख पाया था।
सरयू सिंह ने सुगना के लिए कई सारे कपड़े खरीदे और कजरी के लिए सुंदर साड़ियां। वह कजरी को कभी नहीं भूलते थे। सुगना के लिए लड्डू खरीदते समय उन्हें अपने पुराने दिनों की याद आने लगी जब वह लड्डू में गर्भ निरोधक दवाई मिलाकर अपनी प्यारी सुगना को दो-तीन वर्षों तक बिना गर्भवती किए हुए लगातार चोदते रहे थे हालाकी अब वह उस आत्मग्लानि से निकल चुके थे। सुगना भी यह बात जान चुकी थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसे को जवानी का भरपूर सुख दिया था और नियति द्वारा रचे गए संभोग सुख का आनंद भी।
सूरज ढलते ढलते सरयू सिंह गांव वापस आ चुके थे सुगना हाथ में बाल्टी लिए उनका इंतजार कर रही थी उसकी सहेली बछिया जो अब गाय बन चुकी थी। इस मामले में वह सुगना से आगे निकल चुकी थी उसने एक बछड़े और दो बछिया को जन्म दिया था।
कभी-कभी सुगना के मन में दूसरे बच्चे की चाह जन्म लेती। सरयू सिंह से संभोग न कर पाने के कारण सुगना अपने मन की इस इच्छा को दबा ले जाती। हालांकि उसके बाबूजी उसकी कामेच्छा को काफी हद तक पूरा कर देते थे परंतु लण्ड से चुदने का सुख निश्चय ही अलग होता है वह मुखमैथुन और उंगलियों के कमाल से बिल्कुल अलग होता है। सुगना के मन में सरयू सिंह के मजबूत लण्ड की अंदरूनी मालिश की तड़प बढ़ती जा रही थी।
सरयू सिंह को देखकर सुगना चहकने लगी उसने फटाफट सरयू सिंह के कंधे में टंगे झोले को लिया और उसे झट से आंगन में रख आई। बाल्टी में रखी हुई पानी से उसने शरीर सिंह के हाथ और पैर धोए और बोली
"चली दूध दूह दीं आज देर हो गईल बा"
"सुगना के चेहरे पर खुशी और उसकी धधकती जवानी देख कर शरीर सिंह का रोम-रोम खुश हो जाता. उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींचा और उसकी बड़ी बड़ी चूचीयां सरयू सिंह के पुस्ट सीने से सटकर सपाट हो गयीं। उसके भरे भरे नितंब सरयू सिंह की मजबूत और बड़ी-बड़ी हथेलियों में आ चुके थे। सरयू सिंह थोड़ा झुक कर अपने खुर्रदुरे गाल सुगना के कोमल गालों से रगड़ रहे थे। सुगना ने मचलते हुए कहा पहले गाय के दूध दुह लीं। सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ दिया और बाल्टी लेकर सुगना की सहेली गाय का दूध दुहने लगे।
सुगना ने कजरी की जगह ले ली थी वह अपनी सहेली के पुट्ठों पर हाथ फेरने लगी और सरयू सिंह गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे….
सुगना को अचानक लाली की याद आई एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लाली के नितंब सहला रही थी और कोई उसकी चुचियों से दूध निकाल रहा था। सुगना के दिमाग में राजेश की तस्वीर भी घूम रही थी को हमेशा उसके समीप आने को लालायित रहता था। उसकी सहेली गाय का दूसरा बच्चा भी दूसरे सांड से हुआ था। सुगना के मन मे अपने दूसरे सांड की तस्वीरें घूमने लगीं...
"कहां भुलाइल बाडू"
"काल राउर जन्मदिन ह नु" सुगना ने सरयू सिह को खुश कर दिया।
सरयू सिह उठकर खड़े हुए और अपनी आंखों में उम्मीद लिए सुगना से बोले
"तैयारी बा नु"
"का तैयारी करें के बा?"
उसने अनजान बनते हुए कहा...
सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले
"आपन वादा याद बा नु?"
"याद बा…."
सुगना ने सरयू सिंह जी के हाथ से बाल्टी ली और आंगन में भाग गई कल की बातें सोच कर उसकी जांघों के बीच बुर सतर्क हो गई थी पर उसकी छोटी सी गांड सहम गई थी….
शेष अगले भाग में
उधर लाली को महसूस हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।
लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…
अब आगे…
यह एक संयोग ही था कि उस दिन ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। लाली जान चुकी थी कि सोनू की निगाहें उसके खजाने का अवलोकन कर चुकी है। लाली मंदिर के पार्श्व भाग में लगे अलग-अलग कलाकृतियों को देखने लगी। कभी वह अपनी सुंदर काया की उन कलाकृतियों से तुलना करती और मन ही मन खुश हो जाती। लाली को उस रात की बात याद आ रही जब वह राजेश की बाहों में नग्न लेटी हुई थी और वह उसकी चूचियां सहलाते हुए उसे चोदने के लिए तैयार कर रहा था
राजेश में उससे कहा..
"लाली मजा आ जाएगा जब तुम्हारी चूचियां मेरे मुंह में होंगे और सोनू का सर तुम्हारी जाँघों के बीच"
"छी, कितनी गंदी बात करते हैं आप, अपने भाई से अपनी वो चुसवाना अच्छा अच्छा लगेगा क्या"
"चुसवाने की बात तो मेरी जान तुमने ही कहीं"
"तो क्या सोनू मेरी जांघों के बीच सर लाकर सजदा करेगा?"
लाली की बातों से राजेश के लंड का तनाव बढ़ता चला जा रहा था।
"सच लाली मजा आ जाएगा जब…" राजेश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया पर उसने लाली की चुचियाँ जोर से दबा दी लाली सिहर उठी और बोली…
"क्या जब?" लाली ने उत्सुकता से पूछा
"यही कि उत्तर भारत पर मैं राज करूं और दक्षिण भारत पर तुम्हारा प्यारा सोनू"
लाली राजेश की बात समझ तो गई थी परंतु वह राजेश को खुलकर बोलने के लिए उकसा रही थी..
"आप और आपके सपने ऐसी गंदी बातें कैसे सोच लेते हैं आप"
"मैंने अपने से थोड़े ही सोचा यह तो प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है अपनी प्रेमिका को जी भर कर सुख देना. मेरे पास तो एक ही मुंह है और तुम्हारे पास चूमने लायक कितनी सारी जगह है?"
लाली राजेश की हाजिर जवाबी से प्रभावित हो गई थी उसने कहा तो आपको यह ज्ञान किसी महात्मा ने दिया है
"नहीं मैंने शंकर मंदिर के पीछे लगी एक प्राचीन मूर्ति में देखा था जिसमें एक नायिका को दो पुरुष मिलकर प्रसन्न कर रहे थे"
"सच में आपका दिमाग खाली जांघों के बीच ही घूमता रहता है मंदिर में भला ऐसी मूर्ति कहां मिलेगी"
राजेश ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया और चुमते हुए बोला…
"मैं सच बोल रहा हूं"
"मैं नहीं मानती"
"और अगर यदि यह सच हुआ तो?"
"तो क्या आप जीते मैं हारी"
"फिर मुझे क्या मिलेगा?"
"जो आप चाहेंगे"
"बस उस मूर्ति की नायिका तुम बनोगी और सेवक मैं और….. "
राजेश के वाक्य पूरा करने से पहले लाली ने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच भर लिया और स्वयं ही राजेश के लण्ड को पकड़ कर अपनी बुर में घुसेड लिया…
राजेश की उपस्थिति में सोनू से संभोग करने की बात सोच कर ही वक्त उत्तेजना से प्रोत हो गई थी….
"दीदी आगे चलिए और भी तरह-तरह की कलाकृतियां हैं"
सोनू की आवाज लाली अपनी मीठी यादों से बाहर परंतु उन यादों ने उसकी बुर् के होठों की चमक बढ़ा दी थी। अंदरूनी गहराइयों से उत्सर्जित मदन रस बुर के होठों पर आ चुका था।
सोनू को अभी भी तृप्ति का एहसास नहीं हुआ था लाली की बुर देखने कि उसके मन में एक बार फिर इच्छा जागृत हुयी।
सोनू ने आगे बढ़ते हुए एक बार फिर दंड प्रणाम किया और लाली अपनी टाइमिंग सेट करते हुए एक बार फिर डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। इस बार नियति को लाली की कुर्ती को हवा से उड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं थी लाली ने स्वयं ही अपनी कुर्ती खींच ली थी लाली के बुर् के चमकते हुए होंठ सोनू को उन्हें चुमने का खुला निमंत्रण दे रहे थे।। आह….. कितने सुंदर थे प्यारे होंठ थे। सोनू के मुंह में पानी आ रहा था उसकी जीभ में मरोड़ पैदा हो रही थी वह तुरंत ही झुक कर उन चमकती बूंदों को आत्मसात कर लेना चाहता था।
लाली इस बार कुछ ज्यादा देर तक नतमस्तक रही और अपने भाई सोनू के अरमान कुछ हद तक पूरे करती रही और कुछ के पूरे होने की कामना करती रही।
उठने के पश्चात लाली की निगाहें अभी भी उस कलाकृति को ढूंढ रही थी जिसके बारे में राजेश ने अंतरंग पलों में लाली से बताया था।
सोनु लाली की धीमी चाल से अधीर हो रहा था। उसे तो पता ही नहीं था की लाली दीदी क्या खोज रही हैं। लाली हर मूर्ति का बारीकी से निरीक्षण करती और अंततः लाली ने वह मूर्ति खोजली जिसका राजेश ने जिक्र किया था।
लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। मूर्ति पर जाकर उसकी आंखें ठहर गई उसमें एक युवती के साथ दो पुरुषों को संभोग स्थिति में दिखाया गया था यद्यपि उनके लण्ड और बुर को कलाकृति से हटा दिया गया था परंतु फिर भी वह मूर्ति चीख चीख कर अपनी दास्तान कह रही थी।
लाली अपने ख्वाबों में स्वयं को उस नायिका की तरह देखने लगी उसकी जांघों के बीच छुपी बुर कांप उठी।
लाली राजेश से अपनी शर्त हार कर भी जीत हुई अपनी उत्तेजना को चरम पर महसूस कर लाली का रोम-रोम संभोग के लिए तैयार हो चला था यदि सोनू संभोग के लिए तैयार होता तू लाली की जाँघे निश्चित ही फैल जाती। लाली उस अद्भुत संभोग करने के लिए मन ही मन खुद को तैयार करने लगी।
उधर सोनू की कामवासना चरम पर पहुंच रही थी मंदिर जैसी पवित्र जगह से जल्दी से निकल जाना चाहता था उसने लाली से कहां दीदी अब चला जाए देर हो रही है दर्शन भी हो गए..
"हां हां चल भगवान करे तेरी सभी मनोकामनाएं पूरी हो आज तूने अच्छा कार्य किया है…."
"फिर मेरा इनाम"
"चल रास्ते में देती हूं…"
इधर सोनू लाली दीदी के साथ रंगरेलियां मना रहा था उधर हॉस्टल में विकास सोनू का इंतजार कर रहा था सोनू और विकास का दोस्त गोलू विकास की बेचैनी देखते हुए बोला
" क्यों परेशान हैं?"
"वह सोनू बहन चोद राजदूत लेकर गया है अब तक नहीं लौटा
"कहां गया है कुछ बताया था?"
"पता नहीं यार मैं उस समय सोने जा रहा था बोला था जल्दी आ जाऊंगा"
"वह पक्का अपनी लाली दीदी के पास गया होगा. साली गच्च माल है। सोनू की बहन नहीं होती तो साली को पटक पटक के चोदता।"
"माल सुनकर विकास के लंड में ही हरकत हुई उसने उत्सुकता से पूछा सच में चोदने लायक है क्या?"
" बेहतरीन माल है एक बार सोनू के साथ जाकर देख आ मिजाज खुश हो जाएगा तेरा और तुझे और तेरे मुन्ने का। फिर हाथों को मेहनत कम करना पड़ेगा और दिमाग को ज्यादा"
" और हां सोनू से अनजान बनकर पूछना उसे यह नहीं लगना चाहिए कि लाली के बारे में मैंने तुझे बताया है"
अभी विकास और गोलू बातें ही कर रहे थे तभी उनका एक और दोस्त अपने माता पिता की कार से उतरकर हॉस्टल में प्रवेश किया उसने विकास को देखते ही बोला…
" तेरी राजदूत कहां है"
" सुबह-सुबह सोनू ले गया है हम लोग उसी की बातें कर रहे थे"
"तब साला पक्का वही था। साले ने तो बनारस में माल पटा ली है आज सुबह-सुबह ही अपनी माल को लेकर शहर के बाहर जा रहा था मैंने आवाज दी पर साला रुका नहीं। तूने अपनी मोटरसाइकिल उसे क्यों दे दी ? उसे तो अभी ठीक से चलाना भी नहीं आता"
उस दोस्त ने अपनी सारी जलन विकास से साझा कर दी।
भोलू ने कहा "अबे उसकी कोई सेटिंग हो ही नहीं सकती इतना शर्मीला है साला"
"नहीं भाई सच कह रहा हूं। एकदम माल थी पर उसकी उम्र कुछ ज्यादा लग रही थी अपने कालेज की तो नहीं थी।"
भोलू ने एक बार सोचा कि शायद सोनू की लाली दीदी ही पीछे बैठकर कहीं जा रही हो परंतु उस लड़के ने बताया कि लड़की सलवार सूट पहने हुए थे और तो और वह राजदूत पर दोनों पैर दोनों तरफ करके बैठी थी यह बात भोलू के अनुसार लाली दीदी नहीं कर सकती थी भोलू ने उन्हें जब भी देखा था साड़ी पहने हुए ही देखा था। खैर बात आयी गई हो गयी परंतु विकास बेसब्री से सोनू का इंतजार कर रहा था। भोलू द्वारा लाली की गदराई जवानी के विवरण ने सोनू के दोस्तों में भी हलचल मचा दी थी।
उधर मंदिर से सोनू अपनी फटफटिया में लाली को बैठा कर वापस चल पड़ा। लाली की बुर एक बार फिर राजदूत की सीट से सटने लगी। परंतु लाली ने अपनी सलवार को बीच में लाने का प्रयास न किया। सीट की गर्मी उसे पसंद आ रही थी। बाहर खिली हुई धूप मौसम को खुशनुमा बनाए हुई थी। लाली इस बार जानबूझकर सोनू से सट कर बैठी थी और उसकी चूचियां सोनू की पीठ से सटी हुई थीं। पीठ पर मिल रहे चुचियों के स्पर्श और अपनी दीदी की पनियायी बुर की कल्पना ने उसके लण्ड को पूरी तरह खड़ा कर दिया था..
कुछ ही देर में सोनू ने लाली से पूछा
"दीदी मेरा इनाम कहां है"
"वह तो तूने मंदिर के पीछे ही ले लिया था"
सोनू सतर्क हो गया और अनजान बनते हुए पूछा
"मंदिर के पीछे?
"ज्यादा बन मत"
"तूने अपने पसंदीदा चीज के दर्शन तो कर ही लिए"
सोनू को सारी बात समझ आ चुकी थी फिर भी उसने उसे छुपाते हुए कहा
"मैंने तो कुछ भी नहीं देखा हां वह मूर्तियां बहुत अच्छी थीं"
लाली ने अपने हाथ बढ़ाएं और सोनू के तने हुए लण्ड को पकड़ लिया अच्छा तो यह महाराज उन मूर्तियों की सलामी दे रहे हैं।
सोनू निरुत्तर था उस ने मुस्कुराते हुए कहा लाली दीदी आप सच में बहुत सुंदर हो...
"मैं या मेरी वो"
"दोनों दीदी"
"पहले तो तूने कभी इतनी तारीफ न की"
"पहले उसके दर्शन भी तो नहीं हुए थे.."
"और उस दिन नहाते समय दरवाजे पर खड़ा क्या कर रहा था…?"
सोनु एक बार फिर निरुत्तर था। लाली की हथेलियां उसके लण्ड पर आगे पीछे हो रही थीं। उसका सुपाड़ा फुल कर लाल हो गया कपड़ों के ऊपर से सहलाए जाने की वजह से सोनू थोड़ा असहज हो रहा था परंतु वह इस सुख से वंचित नहीं होना चाहता था। दर्द और सुख की अनुभूति के बीच एक अद्भुत तालमेल हो चुका था. लाली कोई ऐसा बिल्कुल आभास नहीं था कि कपड़े के ऊपर से लण्ड को मसलने से सोनुको दिक्कत हो सकती थी।
अचानक वही स्पीड ब्रेकर एक बार फिर आ गया जिस पर पिछली बार एक्सीडेंट होते-होते बचा था अपनी उत्तेजित अवस्था के बावजूद सोनू सतर्क था। परंतु लाली अब भी बेपरवाह थी। अचानक आई इस उछाल से सोनू का लण्ड लाली के हाथ से छूट गया सोनू ने चैन की सांस ली और लाली अपने आपको व्यवस्थित करने लगी। राजदूत की सीट लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। जितने वीर्य का उत्सर्जन सोनू अंडकोष कर रहे थे उसकी आधी मात्रा तो निश्चय ही लाली की बुर भी उड़ेल रही थी।
खुद को सीट पर व्यवस्थित करते समय लाली ने अपनी कमर हिलाई और उसकी बुर राजदूत की सीट पर रगड़ उठी। एक सुखद एहसास के साथ लाली को सफर काटने का उपाय मिल गया। उधर सोनू ने अपने पजामे का नाड़ा ढीला किया और लण्ड को पजामे से बाहर कर दिया और उसे अपने कुर्ते का आवरण दे दिया।
अपनी बुर की चाल को नियंत्रित करने के पश्चात लाली को एक बार फिर सोनू के मजबूत पर मुलायम लण्ड की याद आई और उसने अपने हाथ सामने की तरफ बढ़ा दिए। सोनू को लाली की कोमल हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हो चुका था। उसके लण्ड ने तीन चार झटके लिए और अपनी परिपक्व महबूबा के हाथों में खेलने लगा।
सोनू के कोमल लण्ड को अपने हाथों में लेकर लाली मचल उठी उसके कुशल हाथ तरह तरह से उस लण्ड से खेलने लगे। जब तक शहर की भीड़भाड़ शुरू होती सोनू के लण्ड ने जवाब दे दिया। वीर्य की धार फूट पड़ी और लाली के हाथ श्वेत धवल गाढ़े वीर्य से सन गए परंतु राजदूत की सीट लाली का स्खलन न करा पायी।
लाली ने सोनू को अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया और दाहिने हाथ को अपनी जांघों के बीच लाकर बुर को छूने लगी परंतु वह चाह कर भी स्खलित न हो पाई लाली की तड़प बढ़ चुकी थी।
उन्होंने मिठाई की दुकान पर मोटरसाइकिल रोक दी बच्चों के लिए मिठाई और आइसक्रीम लेकर लाली और सोनू रेलवे कॉलोनी की तरफ बढ़ चले। लाली अब अपने दोनों पैर एक तरफ करके मोटरसाइकिल पर बैठी हुई थी रेलवे कॉलोनी पहुंचते-पहुंचते सड़क पर भीड़ भाड़ बढ़ चुकी थी अचानक साइकिल वाले के सामने आ जाने से सोनू की मोटरसाइकिल का बैलेंस गड़बड़ा गया और सोनू की ड्राइविंग स्किल की पोल एक झटके में ही खुल गई लाली सड़क पर गिर चुकी थी उसकी कमर में चोट लगी थी सोनू की मदद से वह बड़ी मुश्किल से उठ पाई। भगवान का लाख-लाख शुक्र था की मोटरसाइकिल को कोई चोट नहीं लगी की वरना विकास उसका जीना हराम कर देता।
लाली ने कहा सोनू घर पास में ही है तुम चलो मैं पैदल आती हूं। सोनू को लाली की यह बात तीर की तरह चुभ गई उसने अपनी नाराजगी को छुपाते हुए कहा
दीदी उस साइकिल वाले की गलती थी वरना हम लोग नहीं गिरते आप विश्वास रखिए
लाली एक बार फिर मोटरसाइकिल पर बैठ चुकी थी सोनू पूरी सावधानी से लाली को लेकर घर पहुंच गया राजेश अपना टिफिन लेकर बेसब्री से लाली और सोनू का इंतजार कर रहा था। समय कम होने की वजह से वह लाली से ज्यादा बात नहीं कर पाया और निकलते हुए बोला रात तक आता हूं।
लाली ने अपने कमर के दर्द को अपने सीने में दफन करते हुए राजेश से कहा…
आप जीत गए…
राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा अपनी तैयारी शुरू कीजिए
लाली मुस्कुरा उठी। लाली का पुत्र सोनू मिठाई और आइसक्रीम के पैकेट देख खुश हो गया था। खुश तो लाली भी बहुत थी परंतु कमर में लगी चोट ने उस खुशी में विघ्न डाल दिया था नियति एक बार फिर मुस्कुरा रही थी। लाली के दर्द में ख़ुशी छुपी हुई थी शायद यह बात लाली नहीं समझ पा रही थी।
उधर सलेमपुर में सरयू सिंह का जन्मदिन करीब आ चुका था। सरयू सिंह बाजार में अपने जन्मदिन के उत्सव की तैयारी कर रहे थे। उन्हें सर्वाधिक इंतजार सुगना द्वारा दिए जाने वाले गिफ्ट का था। सुगना की गुदांज गांड को भेदने की उनकी सर्वकालिक इच्छा कल पूरी होने वाली थी वह सुगना को हर हाल में खुश रखना चाहते थे परंतु उनकी इस इच्छा मैं विरोधाभास था। उन्हें लगता था जैसे इस अप्राकृतिक मैथुन से निश्चय ही सुगना को कष्ट होगा। परंतु उनके विरोधाभास पर विजय उनके लण्ड की ही हुई जो पिछले तीन-चार महीनों सुगना की कोमल बुर् का स्वाद नहीं चख पाया था।
सरयू सिंह ने सुगना के लिए कई सारे कपड़े खरीदे और कजरी के लिए सुंदर साड़ियां। वह कजरी को कभी नहीं भूलते थे। सुगना के लिए लड्डू खरीदते समय उन्हें अपने पुराने दिनों की याद आने लगी जब वह लड्डू में गर्भ निरोधक दवाई मिलाकर अपनी प्यारी सुगना को दो-तीन वर्षों तक बिना गर्भवती किए हुए लगातार चोदते रहे थे हालाकी अब वह उस आत्मग्लानि से निकल चुके थे। सुगना भी यह बात जान चुकी थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसे को जवानी का भरपूर सुख दिया था और नियति द्वारा रचे गए संभोग सुख का आनंद भी।
सूरज ढलते ढलते सरयू सिंह गांव वापस आ चुके थे सुगना हाथ में बाल्टी लिए उनका इंतजार कर रही थी उसकी सहेली बछिया जो अब गाय बन चुकी थी। इस मामले में वह सुगना से आगे निकल चुकी थी उसने एक बछड़े और दो बछिया को जन्म दिया था।
कभी-कभी सुगना के मन में दूसरे बच्चे की चाह जन्म लेती। सरयू सिंह से संभोग न कर पाने के कारण सुगना अपने मन की इस इच्छा को दबा ले जाती। हालांकि उसके बाबूजी उसकी कामेच्छा को काफी हद तक पूरा कर देते थे परंतु लण्ड से चुदने का सुख निश्चय ही अलग होता है वह मुखमैथुन और उंगलियों के कमाल से बिल्कुल अलग होता है। सुगना के मन में सरयू सिंह के मजबूत लण्ड की अंदरूनी मालिश की तड़प बढ़ती जा रही थी।
सरयू सिंह को देखकर सुगना चहकने लगी उसने फटाफट सरयू सिंह के कंधे में टंगे झोले को लिया और उसे झट से आंगन में रख आई। बाल्टी में रखी हुई पानी से उसने शरीर सिंह के हाथ और पैर धोए और बोली
"चली दूध दूह दीं आज देर हो गईल बा"
"सुगना के चेहरे पर खुशी और उसकी धधकती जवानी देख कर शरीर सिंह का रोम-रोम खुश हो जाता. उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींचा और उसकी बड़ी बड़ी चूचीयां सरयू सिंह के पुस्ट सीने से सटकर सपाट हो गयीं। उसके भरे भरे नितंब सरयू सिंह की मजबूत और बड़ी-बड़ी हथेलियों में आ चुके थे। सरयू सिंह थोड़ा झुक कर अपने खुर्रदुरे गाल सुगना के कोमल गालों से रगड़ रहे थे। सुगना ने मचलते हुए कहा पहले गाय के दूध दुह लीं। सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ दिया और बाल्टी लेकर सुगना की सहेली गाय का दूध दुहने लगे।
सुगना ने कजरी की जगह ले ली थी वह अपनी सहेली के पुट्ठों पर हाथ फेरने लगी और सरयू सिंह गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे….
सुगना को अचानक लाली की याद आई एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लाली के नितंब सहला रही थी और कोई उसकी चुचियों से दूध निकाल रहा था। सुगना के दिमाग में राजेश की तस्वीर भी घूम रही थी को हमेशा उसके समीप आने को लालायित रहता था। उसकी सहेली गाय का दूसरा बच्चा भी दूसरे सांड से हुआ था। सुगना के मन मे अपने दूसरे सांड की तस्वीरें घूमने लगीं...
"कहां भुलाइल बाडू"
"काल राउर जन्मदिन ह नु" सुगना ने सरयू सिह को खुश कर दिया।
सरयू सिह उठकर खड़े हुए और अपनी आंखों में उम्मीद लिए सुगना से बोले
"तैयारी बा नु"
"का तैयारी करें के बा?"
उसने अनजान बनते हुए कहा...
सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले
"आपन वादा याद बा नु?"
"याद बा…."
सुगना ने सरयू सिंह जी के हाथ से बाल्टी ली और आंगन में भाग गई कल की बातें सोच कर उसकी जांघों के बीच बुर सतर्क हो गई थी पर उसकी छोटी सी गांड सहम गई थी….
शेष अगले भाग में