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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#41
भाग- 40



लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।


लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….


सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।


लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।


सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।

सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...

"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"

"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा

सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक 
कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"

सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।


"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"


तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…


सोनू ने कहा "भाई मैं चलाऊंगा….."

सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।

विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।

सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….

रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…

लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….

उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।

अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।

दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।

दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।

इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.


##

सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।

सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।

जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।

परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.

अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।

वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।


##


ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।

वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।

सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।

सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"

और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"

सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह 
कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।

नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।

बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..

कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा "सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"

सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…

"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)

"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"

"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"

सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।

"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)

" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"

कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा " लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"

सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला "हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"

कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।

सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।


पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।


सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।


साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।



##


उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा.. " क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी


" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"


राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।


"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."


"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा

"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."

लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। 

राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा… " सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।

लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।

राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….

"काश मैं सोनू होता"

"तो क्या करते…"

राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला "अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"

लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।


मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।


चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।


तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा… 
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"

"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"

"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"

"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"

" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।

राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।

लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा 
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"

"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"

राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...


बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में सिक्युरिटी और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।

##


उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..

"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।

"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"

"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"

"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"

" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"


"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।


सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...


लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"



शेष अगले भाग में…


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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 04:04 PM



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