14-04-2022, 03:53 PM
भाग-39
मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।
अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।
इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।
दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..
"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"
सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा
"छाता ले ला भीग जइबू"
जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।
सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।
सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।
सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले
"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"
सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।
सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..
सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..
"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"
"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"
"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।
सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।
जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।
सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी
सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।
कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।
सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले
"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"
सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा
"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।
सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?
अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।
सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।
तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।
सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।
सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली
"बाबूजी ई दाग कइसन ह"
(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))
सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली
"बाबू जी तनी धीरे…से….".
इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।
खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।
आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।
अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी
"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..
संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।
कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..
"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"
उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।
सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला
"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"
सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..
"साच में सुगना"
सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...
"हां...बाबू जी"
सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।
वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा
"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"
"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"
"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"
सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले
"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"
"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।
सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले
" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"
सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली
"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"
"अरे कपड़ा त पहन ला"
सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।
सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।
सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.
उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।
तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.
बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.
मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?
विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।
सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला
" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"
विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।
उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.
सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।
सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।
परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।
उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…
अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..
"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।
लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली
"सब आपका ही किया धरा है"
"अरे मैंने क्या किया?"
"जाकर अपने साले से पूछीये"
राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला
"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"
लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली
"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"
"पर कब?"
" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"
राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।
लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा
"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।
लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..
गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।
नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….
शेष अगले भाग में।
मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।
अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।
इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।
दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..
"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"
सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा
"छाता ले ला भीग जइबू"
जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।
सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।
सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।
सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले
"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"
सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।
सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..
सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..
"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"
"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"
"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।
सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।
जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।
सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी
सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।
कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।
सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले
"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"
सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा
"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।
सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?
अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।
सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।
तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।
सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।
सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली
"बाबूजी ई दाग कइसन ह"
(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))
सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली
"बाबू जी तनी धीरे…से….".
इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।
खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।
आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।
अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी
"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..
संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।
कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..
"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"
उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।
सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला
"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"
सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..
"साच में सुगना"
सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...
"हां...बाबू जी"
सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।
वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा
"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"
"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"
"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"
सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले
"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"
"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।
सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले
" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"
सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली
"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"
"अरे कपड़ा त पहन ला"
सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।
सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।
सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.
उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।
तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.
बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.
मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?
विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।
सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला
" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"
विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।
उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.
सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।
सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।
परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।
उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…
अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..
"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।
लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली
"सब आपका ही किया धरा है"
"अरे मैंने क्या किया?"
"जाकर अपने साले से पूछीये"
राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला
"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"
लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली
"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"
"पर कब?"
" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"
राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।
लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा
"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।
लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..
गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।
नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….
शेष अगले भाग में।