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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#36
भाग 35


सरयू सिंह अपनी पुरी यात्रा की यादों में खोए हुए अपनी बहु सुगना की गर्म चूत को याद कर अपने लंड को सहलाए जा रहे थे और वह उनके शरीर से सारा लहू खींचकर अपना आकार बढ़ा रहा था परंतु उस पर लगाम लगाने वाली सुगना अपने घर पर अपनी मां पदमा और प्यारी बहनों सोनी और मोनी के साथ खोई हुई थी।

मायके के लोगों का साथ पाकर सुगना बेहद खुश थी। सुगना और सरयू सिंह के बीच पिछले तीन-चार वर्षों में आई नज़दीकियों के बारे में पदमा को पता चल चुका था परंतु उसे यह बात नहीं मालूम थी कि कजरी और सुगना दोनों एक साथ सरयू सिंह के सानिध्य का आनंद उठा चुकी हैं।

अब पदमा को सरयू सिंह और सुगना के बीच चल रहे संबंधों से कोई आपत्ति नहीं थी। उसे सुगना की खुशी चाहिए थी जो उसे मिल रही थी।

शाम होते-होते सरयू सिंह वापस दालान में आ गए और खानपान के पश्चात अपनी तीनों प्रेमिकाओं के साथ बैठकर वार्तालाप करने लगे सोनी और मोनी की उपस्थिति ने कामुकता पर विराम लगा दिया था तभी कजरी ने सोनी से कहा..

"सोनी बेटा सूरज बाबू के ले जाकर सुता द"

सोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया और सुगना के कमरे की तरफ जाने लगी मोनी उसके पीछे हो ली।

अचानक सोनी को दोपहर की घटना याद आ गई उसने मोनी से कहा

"सूरज का यह अंगूठा कितना प्यारा है सहला के देख ना"

मोनी ने सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को देखा तो था परंतु उसे सहलाने की बात उसके दिमाग में नहीं आई थी। सोनी के कहने पर मोनी ने सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर सूरज की नुन्नी तन गई मोनी का ध्यान स्वतः ही उस पर चला गया।

मोनी ने खेल ही खेल में सूरज का अंगूठा कुछ ज्यादा सहला दिया और सूरज की नुंनी का आकार 4 इंच से ज्यादा बड़ा हो गया मोनी घबरा गई।

उसने अपनी आंखें उठाकर सोनी की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी।

"अरे बाप रे यह क्या है?"

लगता है इसके अंगूठे का कनेक्शन उससे है सोनी ने अपनी आंखों से सूरज की नुंनी की तरफ इशारा कर दिया।

मोनी ने अपनी उंगलियों से नुंन्नी का आकार घटाने की कोशिश की पर उससे नून्नी पर कोई अंतर न पड़ा सूरज मुस्कुराते हुए अपनी दोनों मौसियों को देख रहा था।

मोनी ने हार कर सोनी से पूछा

"अब यह छोटा कैसे होगा..?

सोनी ने अपने होठों को गोल किया और मोनी को अपने अनुभव के आधार पर इशारा किया मोनी शर्म से लाल हो गई। दोनों बहनों में एक दूसरे से छेड़खानी करने की आदत थी परंतु आज सोनी ने जो करने के लिए कहा था वह बिल्कुल अलग था। मोनी की दुविधा जानकर सोनी ने फिर कहा..

"परेशान मत हो इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं है मैंने दोपहर में ही यह राज जाना है"

अंततः मोनी ने अपने कोमल होठों का स्पर्श सूरज की नुंनी को दिया और नुन्नी का आकार घटने लगा जैसे जैसे वह अपने होठों को उस नुन्नी पर रगड़ती गई उसका आकार छोटा होता गया।

मोनी को इस आश्चर्य पर यकीन नहीं हो रहा था उसने वही कार्य दोबारा किया और एक बार फिर उसे सूरज की नुंनी को अपने होंठों के बीच लेना पड़ा।

मोनी ने बिस्तर से उठते हुए सोनी से कहा

"जब सोनू बड़ा हो जाएगा क्या तब भी उसका अंगूठा ऐसे ही कार्य करेगा?"

दोनों बहने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दी उनकी जांघों के बीच एक अलग से सिहरन उत्पन्न हो रही थी जिसका एहसास सुखद था।

आँगन में बैठी सुगना के चेहरे पर खुशी देखकर पदमा को सारी खुशियां मिल चुकी थी। सरयू सिंह ने पद्मा को उसकी जवानी में उसे कामुक और अद्भुत संभोग का आनंद कई बार दिया था और पदमा ने भी बढ़-चढ़कर उस कामुक प्रेमालाप में सरयू सिंह का साथ दिया था।

आज सरयू सिंह उसकी पुत्री उनके जीवन में खुशियां भर रहे थे। कजरी ने पदमा के सामने ही सुगना को छेड़ दिया….

"ई त कुँवर जी पर कब्जा जमा लेले बिया दिनभर एकरे खातिर बेचैन रहे ले"

पद्मा ने सुगना को छेड़ना उचित नहीं समझा आखिर वह उसकी पुत्री थी और मां बेटी के बीच जो मर्यादा कायम थी वह उसे तार-तार नहीं करना चाहती थी फिर भी कजरी की हां में हां मिलाते हुए उसने कहा..

"हमार सुगना बाबू केहू के दिल जीत ली"

तभी सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना सूरज को अपना दूध पिलाने चली गई।

सुगना के मन में कल रात की बात याद आ रही थी जब वह अपने मन में कामुकता का अंश लिए अपने बाबूजी को शहद चटाने के लिए निकली परंतु सरयू सिंह दवाइयों की प्रभाव की वजह से शीघ्र सो गए थे

सुगना ने आज मन ही मन सरयू सिंह को खुश करने की ठान ली थी आखिर वह उसका इंतजार पिछले तीन-चार दिनों से कर रहे थे। शायद यह इंतजार पिछले तीन-चार वर्षो में पहली बार उन्हें करना पड़ा था अन्यथा उनके लंड से वीर्य दोहन का कार्य या तो सुगना करती या कजरी।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई थी और अपनी भरी हुई चुचियों को ब्लाउज के अंदर बंद कर रही थी तभी पदमा और कजरी दोनों कमरे में आ गयीं।

पदमा को अपनी जवानी के दिन याद आ गए। सुगना की भरी भरी और मदमस्त चूचियाँ देखकर पदमा मन ही मन बेहद प्रसन्न हो गई उसकी पुत्री वास्तव में इतनी खूबसूरत हो गई थी इसका उसे इल्म न था। कजरी की बात सही थी सुगना की भरपूर जवानी किसी भी मर्द को उसके इर्द-गिर्द घूमने पर मजबूर कर सकती थी।

कजरी ने सुगना से कहा

"तोर बाबू जी इंतजार करत बाड़े जो उनका के दूध पिया दे"

पदमा आश्चर्यचकित थी की कजरी ने कितने खुले तरीके से सुगना को सरयू सिंह को अपनी चूचियां पिलाने के लिए कह दिया था।

तभी कजरी में अपना वार्ड के पूरा किया और कहा

"हम गिलास में दूध निकाल देले बानी"

पदमा को अपनी सोच पर शर्म आ गयी वह सुगना की चूँचियों में खोई हुई थी और कजरी की बात सुनकर उसने अपने अनुसार ही मतलब निकाल लिया था।

सुगना ने अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ बढ़ चली पदमा सुगना को जाते हुए देख रही थी भगवान ने जितनी सुंदर चूचियां सुगना को दी थी उतने ही सुंदर नितंब भी जो एक ताल में थिरक रहे थे।

सरयू सिंह अविवाहित होकर भी जिस सुख का आनंद ले रहे थे वह विवाहित मर्दो को भी प्राप्त न था।


अपनी कोठरी में लेटे सरयू सिंह अपनी आंखें बंद किये सुगना को ही याद कर रहे थे। उनका लंड खड़ा हो चुका था तभी सुगना आयी और झुक कर बोली …

"बाबूजी दूध पी ली"

अपनी ब्लाउज में कसी भारी चूँचियों को दिखाती हुयी बोली…

सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सुगना उन्हें अपनी चुचियों से दूध पिलाने जा रही थी परंतु तभी सुगना ने अपने हाथ में लिया गिलास आगे कर दिया सरयू सिंह ने वह गिलास पकड़ा और सुगना द्वारा दिया दूध पीने लगे। सुगना की निगाह सरयू सिंह के लंड पर पड़ गई जो तन कर खड़ा था।

सुगना ने मुस्कुराते हुए पूछा…

"सुते के बेरा में ई काहे खड़ा बाड़े"

सुगना ने उत्सुकता वश सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया वैसे भी पिछले दो तीन दिनों में उसने काफी उत्तेजना का सामना किया था। राजेश ने उसके तन बदन में आग लगा दी थी परंतु उसे पता था इसकी शांति उसके बाबू जी के द्वारा ही होनी थी। उसे कजरी की बात याद आई सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह आज बाबू जी को तंग नहीं करेगी परंतु….. वह मुस्कुराते हुए उनके दूध खत्म होने का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह का चेहरा शांत था परंतु उनका दाग अप्रत्याशित रूप से कम था सुगना उनके दाग के घटते आकार को देखकर बेहद प्रसन्न थी।

"बाबूजी राउर दाग कितना कम हो गईल बा" सुगना ने पूरी आत्मीयता से कहा

सरयू सिंह को दाग से कोई लेना-देना नहीं था आज वह पूरी तरह वासना के आधीन थे और सुगना को अपनी बाहों में भर लेना चाहते थे वैसे भी सुगना के मायके वालों की उपस्थिति में उसे चोदने का अवसर उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था जाने उन्हें इसमें कौन सा आनंद मिलता यह तो वही समझ सकते थे परंतु आज उनमें उत्तेजना भरपूर थी।

दूध की मलाई उनकी मूछों में लग गई थी ठीक वैसे ही जैसे छोटे बच्चे दूध पीते समय अपने ऊपरी होठों पर दूध का कुछ भाग लगा लेते हैं सुगना उनकी मासूमियत देखकर द्रवित हो गई और उनके गालों को चुमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाएं तभी शरीर सिंह ने अपना चेहरा घुमा दिया और अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूस लिया।

सरयू सिंह की मजबूत बाहों ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया और कुछ ही देर में सुगना सरयू सिंह के ऊपर लेट चुकी थी।

सरयू सिंह का लंड सुगना की जांघों के बीच घुसने का प्रयास कर रहा था परंतु उसमें सुगना की साड़ी और पेटीकोट को चीर पाने की हिम्मत न थी।

सरयू सिंह की ठुड्डी सुगना की चुचियों से छू रही थी सरयू सिंह ने सुगना को ऊपर की तरफ खींचा और अपना चेहरा सुगना की गोरी चूचियां पर मलने लगे।

सुगना उनके माथे के दाग को देखती हुई उनके बाल सहला रही थी और उनके माथे पर चुंबन ले रही थी। आज सरयू सिंह पर उसे बेहद प्यार आ रहा था। कैसे आज से कुछ दिनों पहले वह उसे चोदते हुए गिर पड़े थे। कुछ ही पलों के लिए सही परंतु सुगना को अपने अनाथ होने का एहसास हो गया था। उसकी आत्मा कांप उठी थी सरयू सिंह उसके लिए बेहद अहम थे नियति ने उन दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता बना दिया था जिसे सुगना हमेशा उनकी बाहों में रह कर निभाना चाहती थी परंतु वह सरयू सिंह को किसी भी प्रकार से कष्ट में नहीं देखना चाहती थी।

इधर सुगना सरयू सिंह से भावनात्मक रूप से आसक्त हो रही थी उधर सरयू सिह के हाथ सुगना की साड़ी और पेटीकोट को खींचते हुए कमर तक ले आए उसकी गोरी जाघें नग्न हो चुकी थी। जब उनके तने हुए लंड ने सुगना की पनियायी बुर ने को स्पर्श किया तब जाके सुगना सतर्क हुई एक पल के लिए उसने अपनी कमर पीछे कर उस लंड को आत्मसात करने की सोची तभी उसे कजरी द्वारा दी गई नसीहत याद आ गई कि अपना बाबूजी से ज्यादा मेहनत मत करवइह।

सुगना की पनियायी बुर ने लंड के सुपारे को गीला कर दिया था। लंड स्वभाविक रूप से सुगना की मखमली बुर के अंदर प्रवेश कर रहा था परंतु सुगना ने मन मसोसकर अपनी जाघें ऊपर उठा ली सरयू सिंह उसके कोमल नितंबों को हाथ लगा कर अपने लंड की तरफ खींचते रहे परंतु सुगना ने उनके इशारे को नजरअंदाज कर दिया वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई।

उसके पेटीकोट और साड़ी ने उसके सुंदर और सुडौल पैरों को फिर से ढक लिया।

सरयू सिंह कातर निगाहों से सुगना की तरफ देख रहे थे उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा सुगना बाबू

"धीरे धीरे करब"

सुगना को उन पर बेहद प्यार आया वह उसे चोदने के लिए पूरी तरह आतुर थे उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"बाबू जी पहले ठीक हो जाई फिर हम कहां जा तनि हमरो ओकरे इंतजार बा"

सरयू सिंह को सुगना की बात सुनकर तसल्ली तो हुई परंतु उनका लंड विद्रोह पर उतारू था वह पहले भी सुगना की बुर की खुशबू पाकर बेचैन हो जाता था उसे संवेदनाएं और भावनाओं से कोई सरोकार नहीं था और आज तो उसने सुगना की बुर चूम ली थी और उसके रस से भीगा हुआ उसी के इंतजार में खड़ा था।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और फिर अपने लंड की ओर देखते हुए फिर कहा…

" सुगाना बाबू, इहो दु-तीन दिन से तोहरे इंतजार करा ता एकरा के कइसे समझाईं"

सुगना मुस्कुराई और बड़े ही प्यार से बोली

"इकरा के हम समझा दे तानी रहुआ खाली आंख बंद करके सुतल रही"

सरयू सिंह ने छोटे बच्चे की तरह अपनी आंखें बंद कर लीं पर शरारत वस अपनी पलकों के बीच से वह अपने तने हुए लंड को देख रहे तभी सुगना का प्यारा चेहरा उनकी आंखों के सामने आया और उनके लंड का चमकता हुआ सुपाड़ा सुगना के कोमल होंठों के बीच खो गया। जीभ का स्पर्श सुपाड़े के पिछले भाग पर लगते हैं ही लंड ने उछाल मारी और एक पल के लिए वह सुगना के मुख से बाहर आने लगा। सुगना ने अपनी कोमल हथेलियां उस लंड को वश में करने के लिए उतार दी और उसे वापस अपने मुह में अंदर कर दिया वह लॉलीपॉप की तरह अपने बाबूजी का लंड चूसने लगी।

उसकी स्वयं की बुर पूरी तरह पनीयाई हुई थी और लंड का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहलाने लगे और सुगना के नितंब धीरे-धीरे उनके सीने के करीब आने लगे। सरजू संघ ने सुगना के गोल नितंबों को अनावृत कर दिया और उनके मखमली स्पर्श का आनंद लेने लगे।

उधर सुगना अपनी पूरी कार्यकुशलता से सरयू सिह के लंड को चूस कर उन्हें आनंद देने की भरपूर प्रयास कर रही थी। उसने अब इस कला में पर्याप्त दक्षता हासिल करली थी।

सरयू सिंह उत्तेजना में पागल हो रहे थे उन्होंने सुगना के बाएं पैर को उठाया और उसे अपने सीने के दूसरी तरफ ले आए सुगना कि दोनों नितंबों उनके चेहरे के ठीक सामने थे और उसके बीच में उनकी प्यारी बहू सुगना का वह अपवित्र द्वार ( गुदाजं गांड) सरयू सिंह को आज भी पुकार रही थी.

सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों को अपनी ओर खींचा और उनकी लंबी जीभ ने सुगना की बुर को छू लिया।

सुगना की बुर प्रेम रस से लबालब भरी हुई थी जीभ का स्पर्श पाते ही प्रेम रस को बहने का रास्ता मिल गया और वह सर्विसिंग के मुख में प्रवेश करने लगा। सरयु सिह अपनी प्यारी बहु सुगना की गुफा से निकलने वाले शहद का रसपान करने लगे उनकी नाक बार-बार सुगना की गोरी और प्यारी गांड से टकरा रही थी।

वासना के आधीन सरयू सिंह उस अपवित्र द्वार को ही स्वर्ग का द्वार समझ रहे थे उन्होंने जाने कितनी बार सुगना से उस द्वारा को भेदने की अनुमति मांगी थी परंतु सुगना ने हर बार बहाना कर दिया था।

आज एक बार फिर उन्हें सुगना से कहा बेहद आत्मीयता से कहा

"सुगना बाबु हम कितना दिन जीयब हमरा मालूम नइखे लेकिन लागता हमार ई इच्छा अधूरा रह जायी।"

सुखना ने शरयू सिंह के लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला परंतु अपने हाथों से उसे सहलाते हुए बोली

"आइसन अशुभ बात मत बोलीं रउआ ठीक हो जायीं अबकी हाली हम खुद ही परोस देब"

सरयू सिंह की खुशी दुगनी हो गई। अपनी बहू की चूत को चाट कर वह पहले ही आनंद में आ चुके थे और सुगना का यह आश्वासन उनके तन बदन में आग लगा चुका था उन्होंने सुगना की बुर को अपने होंठों के बीच भर लिया और एक झटके में उसकी रस से भरी गगरी खाली करने का प्रयास करने लगे। तथा अपनी नाक से उसकी सुनहरी गांड पर प्रहार करने लगे सुगमा उत्तेजना में हिलोरें ले रही थी ।

सुगना अपनी बुर को उनके चेहरे पर रगड़ रही थी उसकी उत्तेजना अब चरम पर थी और वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह धीरे-धीरे अपने होठों को भग्नासा की तरफ ले गए और उसके उभरे हुए दाने को चूसते समय उन्होंने अपने दांतो का भी प्रयोग कर दिया सुगना की चीख निकल गई।

उसने कराहते हुए कहा

"बाबू जी तनी धीरे………""

सरयू सिंह को यह मधुर ध्वनि बेहद पसंद थी उन्होंने अपनी जीभ से उसके भग्नासे से को सहलाना जारी रखा और उनकी नाक से सुगना की बुर में छेद करने को आतुर हो गए।

सुगना सरयू सिह कि इस अधीरता का आनंद लेते हुए स्खलित होने लगी सरयू सिंह सुगना की बुर के कंपन कई दिनों बाद अपने होठों पर महसूस कर रहे थे। जितनी उत्तेजना उन्हें सुगना की बुर को चूसने से मिल रही थी उसका असर उनके लंड पर भी पड़ रहा था।

उनके लंड ने लावा उगलना शुरू कर दिया। पिछले तीन चार दिनों से उनके अंडकोष ने जितना वीर्य उत्पादन किया था वह सब सुगना की मुंह में भर देना चाहते थे परंतु सुगना का छोटा मुंह वीर्य की पूरी मात्रा को आत्मसात करने में अक्षम था। अपना मुंह भरने के बाद सुगना ने अपने होंठ हटा लिए और सरयू सिंह के लंड ने बचे हुये वीर्य की धार सुगना के चेहरे पर छोड़ दी।

सरयू सिंह और सुगना दोनों हाफ रहे थे सुगना ने अपना शरीर सरयू सिंह के ऊपर छोड़ दिया था वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी वह अभी भी अपनी बुर को अपने बाबूजी के होठों पर रखी हुई थी और सरयू सिंह अपनी नाक उसके नितंबों से निकालकर सांस ले रहे थे।

वासना का ज्वार थमते ही सुगना सरयू सिंह के ऊपर से उठी और खड़ी हो गई उसने सरयू सिंह के लंड को वापस धोती के अंदर किया और अपने होठों से अपने बाबूजी को चुंबन दिया और उनके माथे को सहला कर बोली

"अब आराम से सूत जायीं। सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और जाते-जाते उसकी चुचियों को सह लाते हुए बोले

"सुगना बाबू एक हाली हमार इच्छा जरूर पूरा कर दीह"

सुगना ने नजरें नीची कर ली और बोली

"राउर इच्छा जरूर पूरा होयी"

सुगना अपने कमरे में जाते हुए सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा के बारे में सोच रही थी. जिस आत्मीयता और अनुरोध से उन्होंने अपनी इस इच्छा को जाहिर किया था उसमें सुगना को द्रवित कर दिया था। उसने मन ही मन अपने बाबू जी की इस अनूठी और अप्राकृतिक इच्छा को पूरा करने की ठान ली थी।

रास्ते में जाते समय उसने अपने आंचल से अपने चेहरे पर लगे वीर्य को भरसक पोछने की कोशिश की और कमरे में आ गई जहां कजरी और पदमा उसका इंतजार कर रही थीं। कजरी को तो पता था परंतु पदमा को यह उम्मीद नहीं थी आज पूरे परिवार की उपस्थिति में सरयू सिंह और सुगना कोई कामुक संबंध बनाएंगे पद्मा ने सुगना से पूछा...

"दवाई खिला देलू हा?"

"हां खिला दे देनी हां।"

कजरी सुगना के चेहरे को ध्यान से देख रही थी उसकी पलकों के पास अभी भी सरयू सिंह का वीर्य लगा हुआ था। उसने अपने हाथ बढ़ाएं और उंगलियों से उसे पोछते हुए बोली लिया..

"अपना बाबूजी के परेशान ना नु कईलू हा?"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने एक बार फिर अपने आंचल से अपना चेहरा पोंछा और अपनी मां से लिपट कर सो गई।

अगली सुबह पदमा अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ वापस जाने की तैयारी करने लगी। मोनी का सूरज को लेकर कौतूहल अब भी कायम था उसने मौका देखकर एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर अपने होठों का प्रयोग कर उसे शांत कर दिया। वह मुस्कुरा रही थी। नीम के पेड़ पर बैठी नियति सोनी और मोनी का भविष्य सूरज के उस अंगूठे में देख रही थी।

दिन तेजी से बीत रहे थे और सरयू सिंह धीरे धीरे स्वस्थ हो रहे थे उन्होंने खेती किसानी का काम फिर से संभाल लिया था बस अपनी बहू सुगना की क्यारी जोतने का काम बचा हुआ था। सुगना को चोदने का वह अवसर अवश्य खोजते परंतु सुगना ने अपनी कामुकता पर काबू पाना सीख लिया था । कभी-कभी वह और कजरी सरयू सिंह का हस्तमैथुन और कभी मुखमैथुन कर उनकी उत्तेजना को शांत कर देती थीं । परंतु कजरी ने संभोग करना पहले ही बंद कर दिया था और अब सुगना ने भी सरयू सिंह से उचित दूरी बना ली थी वह अपने बाबू जी को फिर उसी हाल में नहीं पहुंचाना चाहती थी। वह उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थी।

इसी दौरान बनारस शहर में दंगे हो गए और कर्फ्यू लगने की तैयारियां हो गई। सोनू का हॉस्टल पूरी तरह बंद हो गया जो लड़के आसपास के रहने वाले थे वह सब अपने अपने घरों को चले गए परंतु दूर से आए लड़कों के लिए यह संभव न था। कुछ लड़के हॉस्टल में बचे जरूर थे परंतु यह तय था कि उन्हें अगले दो-तीन दिनों में खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना था ।

सोनू वापस गांव आ पाने की स्थिति में नहीं था अंततः उसे अपनी लाली दीदी की याद आई उसने अपने जरूरी कपड़े लिए और अपनी लाली दीदी के घर की ओर निकल पड़ा उस शहर में उसकी लाली दीदी का घर ही एकमात्र आसरा था। उसे पता था लाली देवी उसे बेहद मानती हैं और एक-दो दिन वहां गुजारने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कुछ ही घंटों बाद अपने मन में ढेर सारे अरमान लिए सोनू लाली के दरवाजे पर खड़ा था…

शेष अगले भाग में।



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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 03:43 PM



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