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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#35
भाग 34




उधर लाली के घर में

राजेश के आने के कुछ ही देर बाद सोनू घर से चला गया राजेश को यह बात समझ में ना आए कि जाने की इतनी जल्दी क्यों परंतु उसने ज़िद न की. लाली ने सरयू सिंह की स्थिति और सुगना के वापस जाने की खबर राजेश को सुना दी। राजेश दुखी हो गया वह आज फिर सुगना के कोमल और कामुक शरीर को देखने और अपने मन में उसके करीब आने के लिए कई प्रकार से योजना बना रहा था परंतु उसके सारे अरमान धूमिल हो रहे थे वह उदास हो गया और चौकी पर लेट कर अपनी आंखें बंद किए सोचने लगा।

तभी लाली अपने कमरे में गई और रात में सुगना के शरीर से उतारी हुई पेंटी को लेकर आयी और राजेश के चेहरे पर रख दिया.

राजेश ने अपनी आंखें खोली और उस खूबसूरत पेंटी को देख कर लाली से कहा..

"इसे हटाओ अभी मन नहीं है"

राजेश ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई उसके जवाब में बेरुखी थी।

लाली ने कहा अरे आपकी साली साहिबा के शरीर से उतरी है अभी उसकी जांघों के बीच की खुशबू वैसे ही होगी"

राजेश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसने उस पेंटी को लिया और अपने बड़े-बड़े नथुनों से सुगना की बुर की खुशबू लेने की कोशिश करने लगा। सच वह खुशबू अलग ही थी वह उसमें खो गया और पेंटिं के उस भाग को चूमने लगा जो अब से कुछ घंटे पहले सुगना की बुर को चूम रही थी।

राजेश में उत्तेजना भर गई वह खुश हो गया और उठकर लाली को आलिंगन में ले लिया तभी लाली ने दूसरा बम फोड़ दिया उसने वह दूसरी पेंटी भी राजेश के हाथों में थमा दी जिसमें अब से कुछ देर पहले सोनू ने अपना हस्तमैथुन कर अपना वीर्य उस पेंटिं में भर दिया था। पेंटी अब भी गीली थी।

राजेश ने पूछा

"अब यह क्या है?"

लाली ने उसके सीने पर सर रख दिया और बोली

"यह आपके साले साहब की करतूत है"

राजेश को बात समझते देर न लगी उसने लाली को तुरंत ही अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले आया. राजेश को आज एक साथ दो दो सरप्राइज मिले थे। सोनू में उसके ही घर में आज उसकी ही पत्नी की पेंटिं में अपना वीर्य स्खलन किया था निश्चय ही सोनू की कल्पना में लाली का ही स्थान रहा होगा यह सोचकर राजेश बेहद खुश हो गया।

उसने फटाफट लाली को नग्न करने की कोशिश की तभी लाली ने लाल झंडी दिखा दी वह अब भी रजस्वला थी। राजेश एक बार फिर दुखी हो गया लाली ने तुरंत ही उसके लंड को अपने हाथ में लिया और सुगना की बातें करते हुए सहलाने लगी। कुछ ही देर में राजेश का लंड लाली के हाथों में अठखेलियां करने लगा राजेश ने पूछा…

"क्या सुगना ने अपनी पैंटी जानबूझकर छोड़ी थी?" राजेश ने बेहद उम्मीद और उत्सुकता से लाली से पूछा

"पता नहीं पर आपके जाने के बाद मैं और सुगना एक दूसरे के आलिंगन में आ रहे थे तभी मैंने उसकी पैंटी उतार दी थी"

राजेश बेहद उत्तेजित हो गया काश उस बिस्तर पर लाली और सुगना के साथ वह भी उपस्थित होता उसके मन में तरह तरह की कल्पनाएं जवान होने लगी वह मन ही मन अपने ख्वाबों में लाली और सुगना को एक साथ देखने लगा.

अचानक राजेश को सोनू का ध्यान आया उसने लाली से पूरा विवरण सुनना चाहा जिसे लाली ने चटखारे ले लेकर बताया।

राजेश का वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही लाली ने वही पेंटी राजेश के लंड पर रख दी जिस पर कुछ देर पहले उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था।

राजेश यह देखकर और भी उत्तेजित हो गया और पूरी गति से अपना वीर्य लाली की पेंटी में भरने लगा। लाली मन ही मन मोनू और राजेश का वीर्य अपनी पेंटी पर गिरते हुए देख रही थी और उसे अपनी बुर की गहराइयों में महसूस कर रही थी उसके मन में भी सपने जवान हो रहे थे।

नियति राजेश और लाली को एक अलग किस्म की उत्तेजना और कल्पनाएं दे रही थी जो सुगना और सोनू के बिना संभव नहीं था परंतु यह कार्य नियत ने स्वयं संभाल रखा था सोनू अपने आज के दिन को याद करते हुए हॉस्टल में बिस्तर पर लेटा अपने लंड को सहला रहा था। लाली की गोरी और गदराई जांघों के बीच उसने जिस पवित्र गुफा के दर्शन किए थे वह उसे चूमना और चोदना चाहता था यह भूल कर भी कि उस गुफा पर राजेश का वीर्य न जाने कितनी बार गिरा होगा। उसे लाली आज भी उतनी ही पवित्र लगती थी जितनी उसने अपने बचपन से देखी थी।

लाली के सीने से सटते हुए उसे कई वर्ष हो गए परंतु आज के बाद वह लाली के गले किस प्रकार लगेगा यह सोचकर ही उसका लंड फिर स्खलन के लिए तैयार हो रहा था।

इधर सरयू सिंह के घर पर सोनी की उत्सुकता कायम थी आज सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी पूरी तरह तन गई थी यह सोनी के लिए आश्चर्य की बात थी।

दोपहर में सुगना ने सोनी से कहा "सूरज बाबू को तेल लगा कर नहला दो"

सोनी को सूरज वैसे भी बहुत प्यारा लगता था वह उसे लेकर दालान में आ गई।

दालान पूरी तरह खाली था. सोनी ने अपने दोनों पैर चौकी पर रखें और अपने घागरे को अपनी जांघों तक खींच लिया वह तेल से अपने घागरे को गंदा नहीं करना चाहती उसने पैर के पंजों पर सूरज का तकिया रखा और अपने पैरों पर सूरज को लिटा लिया तथा उसके पैरों और हाथों की मालिश करने लगी अचानक सूरज का वही अंगूठा उसे फिर दिखाई दिया उस अंगूठे में नाखून की जगह एक अजब किस्म का गुलगुला भाग था जिसे छूने का मन हो जाता था। सोनी ने एक बार फिर उस अंगूठे को अपने हाथ में लिया और सहला दिया और एक बार फिर सूरज की मुन्नी तन गई सोनी की उत्सुकता बढ़ती गई और उसने सूरज के अंगूठे को और सहलाया सूरज की नुंनी में आया उधार अप्रत्याशित था वह अपने आकार का 3 गुना हो गया। सोनी को यह बेहद अजीब लग रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस अंगूठे का उस नूंन्नी से क्या संबंध है उसने उस अंगूठे को थोड़ा और सह लाया और सूरज की नुंनी लगभग सोनी की उंगली से ज्यादा बड़ी हो गयी।

सोनी डर गई वह सूरज नुन्नी के अप्रत्याशित बढ़ोतरी से घबरा गई उसके लाख प्रयास करने के बावजूद सूरज की नुंनी नहीं सिकुड़ रही थी। सोनी डर से थर थर कांपने लगी सूरज को यह क्या हो गया था वह सुगना दीदी को क्या जवाब देगी।

सोनी ने पहले भी कई बार बच्चों की तेल मालिश देखी थी तेल मालिश के पश्चात कई औरतें बच्चों की नुंन्नी में तेल लगाकर मुंह से फूंकती है ताकि नुंनी के सुपारे के अंदर की सफाई हो सके।

सोनी ने भी थोड़ा सा तेल अपनी उंगलियों पर लिया और सूरज की नुंनी के मुंह पर लगाया परंतु नुन्नी के आकार में कोई परिवर्तन न हुआ। सूरज अभी भी मुस्कुराते हुए अपनी सोनी मौसी को देख रहा था उसे जैसे अपनी कमर के नीचे हो रही घटनाओं का कोई आभास ही नहीं था।

लाली अपने कोमल होठों को गोलकर तेजी से सूरज की नुंनी के ऊपर फूकने लगी परंतु नुंनी के आकार में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था। अपने प्रयास को बढ़ाते बढ़ाते एक बार सोनी के होठ सूरज की नुंनी से छू गए यही वह मौका था जब सूरज की मुन्नी के आकार में परिवर्तन हुआ उसका आकार थोड़ा घट गया था। सोनी ने यह महसूस कर लिया और तुरंत ही एक बार फिर अपने होठों को उसकी नुन्नी से छुआ दिया।

सूरज की नुंनी का आकार घट रहा था सोनी के चेहरे पर सुकून आ गया वह अपने होठों से बार-बार नुंनी को छूती और वह सिकुड़ती जाती। कुछ ही देर में नुंनी वापस अपने आकार में आ गयी थी।

तभी दालान में सुगना आ गयी। सोनी के होंठो पर तेल देखकर उसने पूछा…

"होंठ में तेल काहे लगवले बाड़े?"

सोनी ने सुगना को सारी बात बताने की कोसिश की पर सुगना के कहा..

" अच्छा एक बार फेर करके देखा त"

सोनी ने दुबारा कोशिश की पर सूरज की नुंनी में कोई हरकत नहीं हुई।

सोनी के आश्चर्य को कोई सीमा न रही वह उसके अंगूठे को मसलती रही पर आश्चर्यजनक रूप से सूरत की नुंनी में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था।

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…

"लागाता हमार सोनी अब जवान हो गईल बिया जल्दी ब्याह करावे के परी। दिने में सपनात बिया"

सोनी भगवान को शुक्रिया अदा कर रही थी कि उसने सुगना को आधी ही बताई थी कि सूरज केअंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती है। जब तक वह यह बात बता पाती कि होठों से छूने पर नुंनी का आकार वापस हो जाता है इसके पहले ही सुगना ने उसे करके दिखाने के लिए कह दिया था।

अन्यथा सूरज की नुंनी को अपने होठों से छूने की बात बताकर और शर्मसार हो जाती ।

सुगना दालान से बाहर वापस जा चुकी थी परंतु सोनी का आश्चर्य कायम था उसने एक बार फिर सूरज के अंगूठे को वैसे ही सह लाया और नुन्नी में अपना आकार फिर बढ़ा दिया।

सोनी उधेड़बुन में थी परंतु उसे नुंनी के बढ़ने और घटने दोनों का राज पता था। सोनी ने मन ही मन इस बात को अपनी बहन मोनी से साझा करने की सोची।उसमें अपनी बहन मोनी को आवाज दी परंतु वह बाहर नहीं थी। सोनी सुगना की बात को याद कर थोड़ा उत्तेजित हो चुकी थी विवाह की बात सुनकर उसकी जांघों के बीच एक अजब किस्म की हलचल हो रही थी जिसे सिर्फ और सिर्फ सोनी ही समझ सकतीथी या फिर हमारे प्रबुद्ध पाठक गण।

उधर सरयू सिह ट्यूबवेल में पड़ी चारपाई पर लेते हुए सुगना को याद कर रहे थे वह अपनी पूरी की यादों में खोए हुए थे जब उनके लंड को सुगना के होंठों का स्पर्श प्राप्त हुआ था। एक बार सुगना को जी भर चोदने के बाद पुरी के होटल में वह अपनी भौजी कजरी और सुगना के साथ बिस्तर पर लेटे हुए थे।

सुगना अब भी पूरी तरह नंगी बीच में लेटी हुई थी। उसने अपनी पीठ पलंग के सिरहाने टिका रखी थी वह किसी छोटी महारानी की तरह प्रतीत हो रही थी और हो भी क्यों ना वह अपने बाबूजी और सासू मां की चहेती थी और उन दोनों की अधूरी मनोकामनाएं पूर्ण कर रही थी सुगना के प्रति कजरी के मन में आई वासना बिल्कुल नयी थी कजरी तो सुगना की मासूमियत और उसके अंग प्रत्यंग ओं की कोमलता पर मोहित हो गई थी सच कितनी कोमल थी सुगना की बुर।


कजरी ने जब उसकी बुर पर अपने होंठ फिराए थे उसे अपनी जीभ ज्यादा कठोर महसूस हो रही थी सुगना का मालपुआ अद्भुत था। सरयू सिंह और कजरी दोनों उसके कोमल जिस्म को अपने हाथों और जांघों से सहला रहे थे। सुगना की तेज चल रही सांसे अब सामान्य हो चली थीं।

तभी कजरी की नजर दीवाल पर टंगी घड़ी पर गई रात के 12:00 बज चुके थे। उसने कहा..

"आज त सुगना बाबू के चुमत चाटत 12:00 बज गइल"

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…

"हां चली सुत जाईल जाउ राउर कुँवर जी अब थाक गईल बाड़े"

सरयू सिंह को सुगना का यह वाक्य उत्तेजित करने वाला लगा। उनके सोए हुए लंड में हरकत हुई परंतु वह तुरंत खड़ा हो पाने की स्थिति में नहीं था। अब से कुछ देर पहले ही उसने अपनी प्यारी ओखलीओं में जी भर कर अदृश्य चटनी कुटी थी जिसका रस छलक छलक कर दोनों ओखलियों से बह रहा था।

सुगना की बात सुनकर उन्होंने जल्दी बाजी में सुगना की चुचियां अपने मुंह में भर लीं और अपनी उत्तेजना को जागृत करने का प्रयास करने लगे पर अनायास ही उनके ही वीर्य का स्वाद उनके मुंह में आने लगा।

कजरी ने अपने कुंवर जी की मदद करने की सोची और उठ कर उनके जादुई लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उधर सरयू सिंह सुगना की चूचियों से उर्जा लेकर अपने लंड में उत्तेजना भर रहे थे।

कजरी के सधे हुए हाथ प्रेम रस से लथपथ मुसल को खड़ा करने में लगे हुए थे। कजरी ने अब अपने होठों को भी मैदान में उतार दिया।

कमरे की मद्धम रोशनी में सुगना ने अपनी सास कजरी को कुछ नया करते हुए देख लिया। कजरी लंड के सुपाडे को मुंह में भरकर चूस रही थी।

सुगना यह देखकर आश्चर्यचकित थी। उसकी आंखें कजरी के होठों पर टिक गई। उसे दीपावली की वह रात याद आई जब उसके बाबूजी ने उसकी कोमल और प्यारी कुँवारी बुर को जी भर कर चूमा और चाटा था।

कजरी ने अकस्मात सुगना की तरफ देखा और उनकी आंखें चार हो गई कजरी ने सुगना के मनोभाव पढ़ लिए थे उसने मुस्कुराते हुए कहा

"ए सुगना तनि इकरा में ताकत भर द हम आव तानि"

कजरी बिस्तर से उठी और अपने नंगे चूतड़ मटकाती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी। सरयू सिंह सुगना की चूँचियों को छोड़ चुके थे और बड़ी बेसब्री से अपनी प्यारी बहू सुगना के होठों का इंतजार अपने लंड पर कर रहे थे। सुगना मन में कई भाव लिए सरयू सिंह के लंड की तरफ बढ़ गई उसने अपने कोमल हाथों से उसे छूआ और लंड एक ही झटके में तन कर खड़ा हो गया।

जैसे जैसे वह अपने कोमल हाथ उस लंड पर फिराती गई वह तनता चला गया। सुगना ने अपने बाबूजी की तरफ देखा जो अपनी पलकों को लगभग मूंदे हुए उसे निहार रहे थे।

सुगना के हाथ चिपचिपे हो चले थे ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने अपना लंड मक्खन में घुसा कर बाहर निकाला हो। सुगना ने अपने छोटे होठों को गोल किया और लंड के सुपाड़े को चूम लिया। वह कुछ समय पहले अपनी सास कजरी से यह ज्ञान प्राप्त कर चुकी थी और कुछ ही देर में उसने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह में लेकर लेमनचूस की तरह चुभालाने लगी। अपना और अपने बाबूजी का प्रेम रस पहले भी चख चुकी थी परंतु आज उसमें कजरी का भी अंश शामिल था।

उसके मुलायम हाथ लंड की जड़ तक जा रहे थे तथा अंडकोशों को सहला रहे थे। नियति ने उसे यह शिक्षा जाने कब प्रदान कर दी थी की लंड की जान अंडकोष में बसती है। उसे गर्भाधान कराने वाला लंड एक निमित्त मात्र है जबकि असली बीज उत्पादन में वह दोनों उपेक्षित अंडकोष ही लगे हुए हैं।

सुगना के होंठ गति पकड़ते गए। सुगना जब-जब लंड को अपने मुंह में गले तक लेती सरयू सिंह के मुंह से आह… निकल जाती सुगना अपनी आंखें तिरछी कर उन्हें देखती और उनके चेहरे का सुकून देख उसे और प्रेरणा मिलती।

सुगना अपने हाथों से लंड की चमड़ी को ऊपर कर सुपाड़े को उसके अंदर करने का प्रयास करती परंतु जब तक वह सफल होती तब तक बाहरी चमड़ी छलक कर वापस अपनी जगह पर पहुंच जाती और लंड का चमकदार सुपाड़ा एक बार फिर उसे आकर्षित करने लगता वह उसे कभी चूमती कभी अपने मुंह में भर लेती सुगना को भगवान ने एक अद्भुत खिलौना दे दिया था जिससे वह आज मन लगाकर खेल रही थी।

सुगना का छोटा सा मुंह सरयू सिंह के लड्डू नुमा सुपाडे से पूरी तरह भर जाता। जब वह उसके गर्दन से टकराता सुगना गूँ...गूँ ... की आवाज निकालने लगती और तुरंत ही अपना मुंह पीछे कर लेती। सरयू सिंह कभी उसके बालों को सहलाते और उसके चेहरे को दबाकर उसे लंड का और भी ज्यादा भाग मुंह में लेने को प्रेरित करते। बीच बीच मे वह उसके चूतड़ों पर हाथ फेर रहे थे जो इस समय उनके सीने के ठीक बगल में थे। सुगना के गोल नितंबों के बीच उसकी चूत का फूला हुआ छेद बेहद आकर्षक लग रहा था परंतु वह सरयू सिंह की जिह्वा से बहुत दूर था।

अपने बाबू जी का हाथ अपने चूतड़ों पर महसूस कर सुगना और गर्म हो गई। सरजू सिंह कभी-कभी अपनी मध्यमा उंगली को सुगना की बुर के बीच घुमा देते। सुगना की कमर थिरक उठती।

कजरी अब बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने कमरे की लाइट अचानक ही जला दी। सुगना के मुंह में अपने कुंवर जी का लंड भरा हुआ देखकर कजरी खुश हो गई।

कजरी अपनी चुचियाँ हिलाती हुई बिस्तर पर आ गई और अपनी बहू सुगना का साथ देने लगी सरयू सिंह अपने लंड की किस्मत पर नाज कर रहे थे जिसे उनकी दोनों प्रेमिकाये मुखमैथुन देने को आतुर थीं।

अचानक कजरी को अपनी बहु सुगना की कोमल बुर याद आ गई वह कुंवर जी के लंड को अकेला छोड़ कर सुगना की जांघों के बीच आ गई और अपने प्यारे मालपुए से रस खींचने का प्रयास करने लगी। जितना आनंद सुगना अपने बाबूजी के लंड में भर रही थी उसकी सास कजरी उसकी बुर में उतनी ही उत्तेजना।

कजरी की जीभ के कमाल से सुगना को ऐसा लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी….

उसने कहा…

"सासु माँ……" कजरी ने अपना सिर उसकी जांघों के बीच से बाहर निकाला..

"अब छोड़ दीं ... हमारा हउ चाहीं…" सुगना ने शरमाते हुए अपने बाबूजी के लंड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया।

सरयू सिंह भी उत्तेजना के अतिरेक पर थे उन्होंने और देर नहीं की उन्होंने सुगना को अपने दोनों हाथों से उठा लिया। जब तक सरयू सिंह सुगना को बिस्तर पर लिटा पाते कजरी सुगना के ठीक नीचे आ गयी।

सरयू सिंह ने अपनी गोद में ही सुगना को पलटा दिया और उसे पेट के बल कजरी के ऊपर ही सुला दिया।

कितना मोहक दृश्य था पीठ के बल लेटी हुई कजरी अपनी प्यारी बहू को अपने ऊपर लिटाये हुए थी। कजरी और सुगना की जांघें एक दूसरे से सटी हुई स्वता ही अपना आकार ले रही थीं। सुगना की उभरती हुई चूचियां अपनी सास कजरी की चूचियों के बीच जगह बनाने का प्रयास कर रही थीं। कजरी और सुगना के ऊपरी होंठ एक दूसरे में समा गए थे। वासना का यह रूप उन दोनों के लिए नया था। उनकी कमर निचले होठों को भी सटाने का भरपूर प्रयास कर रही थी पर यह संभव नहीं हो पा रहा था। सरयू सिंह अपनी भौजी और सुगना बाबू की चूत एक साथ देख कर मदमस्त हो गए थे।

सरयू सिंह का लंड सुगना के गोल नितंबों के बीच विचरण कर रहा था वह कभी कजरी की बुर को चुमता कभी सुगना की। सरयू सिंह को अपनी प्यारी सुगना की गुदांज गांड के दर्शन हो गए। सरयू सिह का लंड फटने को हुआ उन्होंने देर न की और कजरी की बुर में अपना लंड जड़ तक ठान्स दिया। कजरी चिहुंक उठी उसने सुगना के होंठ काट लिये…

सुगना ने कराहते हुए कहा…

"सासु माँ, तनि धीरे से ….दुखाता…"

सुगना के मुंह से निकली यह कराह सरयू सिंह की उत्तेजना को आसमान पर पहुंचा देती थी उन्होंने अपना लंड कजरी की बुर के मुहाने तक लाया और उसे वापस कजरी की बुर में पूरी ताकत से डालने लगे परंतु उनका लंड कुछ ज्यादा ही बाहर आ गया था। वह कजरी की बुर से छटक कर सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर गया। उन्होंने अपनी कमर का दबाव कजरी के हिसाब से लगाया था जिसका सामना कोमल सुगना को करना पड़ गया। लंड एक ही बार मे उसकी नाभि को चूमने लगा। सुगना सिहर उठी….और एक बार फिर कराह उठी…

"बाबूजी….तनि धीरे से….दुखाता"

सुगना की पुकार सुनकर सरयू सिंह उसे और जोर जोर से चोदने लगे बीच-बीच में वह अपने लंड को कजरी की बुर में घुसा देते तथा सुगना की कोमल बुर पर अपनी उंगलियां फिराते रहते।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार देखकर कजरी समझ गई की सरयू सिंह इस दोहरे मजे में जल्दी ही स्खलित हो जाएंगे वह किसी भी हाल में अपनी बहू सुगना को गर्भवती करना चाहती थी। उसने कहा…

"रुक जायीं सुगना के नीचे आवे दी हम थक गईनी"

सरयू सिंह रुकते रुकते भी सुगना को चोदे जा रहे थे वह अपना लंड निकालने के मूड में बिल्कुल नहीं थी परंतु सुगना अब कजरी के ऊपर से उठकर नीचे बिस्तर पर पीठ के बल लेट रही थी। सरयू सिंह का लंड उस कोमल बुर से बाहर आकर थिरक रहा था। कजरी आज उसकी चमक देखकर बेहद खुश हो रही थी उधर सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी।

सरयू सिंह सुगना की जांघों के बीच आ गए और उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखकर गचागच चोदने लगे आज वह एक नवयुवक की तरह बर्ताव कर रहे थे। कजरी सुगना की चुचियों को चूमने लगी वह धीरे-धीरे उसके सपाट पेट को चूमती हुई बुर की तरफ जा रही थी सुगना सिहर उठी।

क्या सासू मां उसकी चुद रही बुर को चूमेंगी?

कितना कामुक अनुभव होगा? वह अपनी भग्नासा पर कजरी की जीभ का इंतजार करने लगी. कजरी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी पर सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से कजरी के सिर को अपनी बुर की तरफ धकेला कजरी प्रसन्न हो गई और उसने सुगना का कोमल भग्नासा चूम लिया।

सुगना तड़प उठी…

"आईई। मा…...असही…. आह आआआ ईईईई "

वह सिसकारियां लेने लगी. उसे आज जैसी उत्तेजना कभी अनुभव नहीं हुई थी उसने अपने पैर अपने बाबूजी के कंधे से उतार लिए और अपने हाथों से पैरों को पकड़ कर पूरी तरह फैला लिया।

कजरी लगातार उसकी भग्नासा को चुमें जा रही थी बीच-बीच में उसकी जीभ सरयू सिंह के लंड से भी टकराती। सरयू सिंह सुगना को बेतहाशा चोदे जा रहे थे आज पहली बार वह सुगना को चूम नहीं पा रहे थे परंतु उसे जमकर चोद रहे थे उनके मन में आज सुगना वह जींस वाली लड़की थी जिसकी जींस उन्होंने अब से कुछ घंटे पहले अपने हाथों से खोली थी और उसके गोल चूतड़ों को सहलाया था।

सरयू सिंह की कामुक चुदाई से सुगना अभिभूत हो गई उसकी जांघें तन गई और उसकी बुर से प्रेम रस का रिसाव चालू हो गया ऐसा लग रहा था जैसी उसकी कोमल गुफा की हर दीवार से रस छलक छलक कर बह रहा हो.. जब सरयू सिंह का लंड बाहर आता छलका हुआ प्रेम रस उस गुफा में इकट्ठा हो जाता और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड अंदर घुसाते वह बुर् के किनारों से छलक कर बाहर आ जाता जिसे कजरी तुरंत ही आत्मसात कर लेती।

सरयू सिंह ने एक बार फिर अपने लंड को सुगना की नाभि से छुवाने की कोशिश की और स्खलन के लिए तैयार हो गए।

उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और पहली धार कजरी के होठों पर ही मार दी जो अब तक सुगना का ही रस पी रही थी। कजरी ने तुरंत ही अपनी हथेली से लंड पकड़ा और उसे वापस सुगना की बुर में डाल दिया जहां से वह बाहर आया था।

सरयू सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह एक बार फिर सुगना को झड़ते झड़ते चोदने लगे और उन्होंने सुगना की बुर मलाई से भर दी।

कजरी भी रसपान कर तृप्त हो चुकी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह मक्खन की हांडी में मुंह मार कर आई हो। सरयू सिंह का लंड निकलने के बाद कजरी ने सुगना के पैर ऊंचे कर दिए वह उसकी बुर में भरे हुए वीर्य को बाहर नहीं निकलने देना चाह रही थी। उसकी चूत रूपी दिये में उसके बाबूजी का तेल रूपी वीर्य लबालब भरा हुआ था जिसे कजरी और सुगना मिलकर छलकने से रोक रहे थे।

सरयू सिंह और सुगना दोनों ही इस उत्तेजक संभोग से हाफ रहे थे परंतु सुगना अपने पैर ऊंचे किए गर्भवती होने का प्रयास कर रही थी। उधर सरयू सिंह उसके इस प्रयास पर सुगना को इंजेक्शन दिलाने का अफसोस कर रहे थे।

सरयू सिंह ने कहा

"अरे सुगना बाबू के खुश रहे द गाभिन त उ कभियो हो जायीं।"

सुगना और कजरी अब मुस्कुराने लगे और सरयू सिंह भी।

कजरी ने भी मुस्कुराते हुए कहा

"हां अब ई सब में एकरो मन लागता"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो गया उसने कुछ बोला नहीं पर शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसका यह रूप बेहद मोहक था।

सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के करीब आ गए। किसने किसको किस तरह चुम्मा यह बताना कठिन था पर कजरी के होठों पर लगा मक्खन तीनों प्रेमियों के होंठो से लिपट गया….


शेष अगले भाग में।
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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 03:28 PM



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