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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#33
Heart 
भाग- 32


[Image: Smart-Select-20210517-195046-Gallery.gif]

सरयू सिह की कल्पनाएं







लाइट जाने के बाद कमरे में अंधेरा हो गया था। बाहर गलियारे में कई लोगों के आने-जाने की आवाज आ रही थी। किसी ने चिल्लाया

"लाइट कब आएगी क्या फालतू होटल है जनरेटर नहीं है क्या?"

होटल वाले वेटर की आवाज आई

" पूरे शहर की लाइट गई है देखिए कब तक आती है हमारे पास जनरेटर नहीं है कहिए तो मोमबत्ती दे दूं।"

सरयू सिंह के मन में एक बार आया कि वह जाकर मोमबत्ती ले लें। परंतु वह तौलिया पहने हुए थे और इस स्थिति में बाहर जाना उचित न था। उन्होंने लाइट का इंतजार करना ही उचित समझा। कजरी और सुगना दोनों बिस्तर पर आकर बैठ चुकी थीं।

कजरी ने कुंवर जी को छेड़ा

"अच्छा केकर कपड़ा ज्यादा सुंदर लागतल हा?"

" तू कभी खराब काम करेलू का? तू जवन भी करेलू उ सब अच्छा होला"

सरयू सिंह ने कजरी की तारीफ कर दी उनके दोनों हाथ में लड्डू थे जिनकी तुलना वह नहीं करना चाह रहे थे। बिस्तर पर बैठे उत्तेजना में डूबे सरयू सिंह और कजरी लाइट आने का इंतजार कर रहे थे। परंतु लाइट आने में विलंब हो रहा था। धीरे धीरे वह तीनों बिस्तर पर लेटते गए एक किनारे सरयू सिंह थे बीच में कजरी और दूसरी तरफ अपनी सास और अपने ससुर की चहेती सुगना।

कजरी जानबूझकर बीच में नहीं आई थी वह अकस्मात थी उन दोनों के बीच आ गई थी।

सरयू सिंह का लंड अब इंतजार करने के मूड में नहीं था। उसे वैसे भी उसे अंधेरी गुफा की यात्रा करनी थी। बाहरी दुनिया और उसके आडंबर उसके किसी काम के नहीं थे। उसे तो उस गहरी और चिपचिपी गुफा में प्रवेश कर उस गर्भाशय को चूमना था जिसका चेहरा आज तक कोई नहीं देख पाया था। कजरी की पीठ सरयू सिंह की तरफ थी और चेहरा सुगना की तरफ।

सरयू सिंह से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था उन्होंने कजरी के पेट पर हाथ लगाया और उसके नितंबों को अपनी तरफ खींच लिया।

उनका लंड कजरी के नितंबों के बीच से उसकी गॉड से टकराने लगा। कजरी स्वयं भी उत्तेजित थी। उसकी बुर से रिस रही लार उसकी अनछुई गांड तक पहुंच चुकी थी। एक पल के लिए कजरी को लगा यदि उसने सरयू सिंह के लंड को सही रास्ता न दिखाया तो वह आज उसकी गांड में ही छेद कर देंगे। सरयू सिंह आज दोहरी उत्तेजना के शिकार थे। एक तो उनकी सुगना बहू आज एक नए रूप में उपस्थित थी और वह भी अपनी सास कजरी के सामने।

कजरी ने अपनी कमर थोड़ी और पीछे की तथा सरयू सिंह के लंड को उस चिपचिपी चूत का द्वार मिल गया। सरयू सिंह ने आव देखा न ताव और एक ही झटके में अपना लंड अपनी भौजी की बुर में उतार दिया।

उनका मजबूत लंड कजरी की बुर को चीरता हुआ गर्भाशय तक जा पहुंचा कजरी चिहुँक पड़ी.

सुगना ने पूछा

"सासु मां का भइल?"

जब तक कजरी उत्तर देती तब तक सरयू सिंह तेजी से अपना लंड उसकी बुर में आगे पीछे करने लगे। कजरी की आवाज लहरा गई वह बड़ी मुश्किल से बोली

"कुछो….ना"

सरयू सिंह का लंड आज भी कजरी की बुर में पूरे कसाव के साथ जाता था।उसमें इतनी ताकत थी वह जब बाहर आता कजरी को खींचे लाता और जब वह अंदर की तरफ जाता कजरी दो -चार इंच ऊपर की तरफ उठ जाती। बिस्तर पर हो रही यह हलचल सुगना ने महसूस कर ली।

अंधेरा होने के बावजूद बिस्तर पर होने वाली इस गतिविधि ने सुगना का ध्यान खींच लिया था। उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था परंतु वह कुछ उत्तेजक महसूस कर पा रही थी। वह कजरी की तरफ मुंह करके करवट लेट गयी। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की चुचियों को अपने आगोश में लेने के लिए आगे आयीं परंतु इससे पहले कि वह कजरी की चुचियों को पकड़ पाती, हथेली के पिछले भाग को सुगना की सूचियों का स्पर्श मिल गया।

सुगना की कोमल चुचियां सरयू सिंह कैसे भूल सकते थे। सरयू सिंह पसोपेश में आ गए। वह सुगना की चुचियाँ सहलाना चाहते थे परंतु उनका हाथ कजरी के सीने के ऊपर था। यदि वह कजरी की चुचियाँ ना पकड़ते कजरी तुरंत ही समझ जाती।

उन्होंने बड़ी ही चतुराई से कजरी की चुचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया और बीच-बीच में वह अपनी पकड़ ढीली करते और उनकी हथेलियों के पिछले भाग को सुगना की चुचियों का स्पर्श मिलता।

सुगना अब समझ चुकी थी कि उसके बाबूजी कजरी की चुचियों को मीस रहे हैं। सुगना की की बुर सिहर उठी। अपने ठीक बगल में अपनी सास कजरी की चुदाई होने के ख्याल मात्र से उसकी कोमल और संवेदनशील बुर के मुंह में पानी आ गया।

वो आगे आ कर अपनी चुचियों को सरयू सिंह की हथेलियों से सटाने लगी।

सरयू सिह कजरी की चुचियों को मीस रहे थे और उधर सुगना अपनी चुचियों को उनकी हथेली के पिछले भाग पर रगड़ रही थी। अचानक सुगना के निप्पल उनकी दो उंगलियों के बीच आ गए सरयू सिंह से बर्दाश्त ना हुआ और उन्होंने सुगना के निप्पल को दबा दिया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी…. "

उसने अपने आगे के वाक्यांश को अपने मुंह में ही रोक लिया और उस मीठे दर्द को सह लिया। कजरी ने पूछा

"सुगना बाबू का भइल"

सरयू सिंह का लंड सकते में आ गया वह कजरी की बुर में पूरा जड़ तक घुस कर शांत हो गया। एक पल के लिए सरयू सिह घबरा गए उन्हें लगा इस प्रेम क्रीडा में विघ्न आ गया।

तभी सुगना ने बात संभाल ली उसने कहा "बाबूजी लाइट कब आई?"

सरयू सिंह अपनी भौजी की बुर चोदते चोदते हाफ रहे थे उन्होंने उत्तर न दिया परंतु कजरी ने कहा

"नींद नईखे आवत का? सुते के कोशिश कर"

कजरी उत्तेजना में पूरी तरह डूब चुकी थी वह किसी हाल में भी बिना स्खलित हुए सरयू सिंह के लंड को नहीं छोड़ना चाहती थी। सुगना भी इस दर्द को समझती थी वह शांत हो गयी। परंतु अपनी चुचियों को अपने बाबुजी की हथेलियों के पीछे रगड़ती रही।

सरयू सिंह का पिस्टन एक बार फिर आगे पीछे होने लगा। कजरी अपनी कमर हिला कर उनका साथ दे रही थी। उसे अब बिस्तर पर हो रही हलचल से कोई लेना-देना नहीं था। उत्तेजना में उसका दिमाग वैसे भी कम काम कर रहा था। वह अपनी बहू के सामने एक ही बिस्तर पर पूरी तन्मयता से अपने नितंबों को आगे पीछे कर चुदवा रही थी।

अचानक सरयू सिंह ने अपना हाथ ऊपर उठाया उसी दौरान सुगना ने उनकी हथेलियों की तलाश में अपनी चूचियां और आगे बढ़ा दी जो सीधे-सीधे कजरी की चुचियों से सट गयीं। कजरी जिन चुचियों को वह हमेशा से छूना और महसूस करना चाहती थी आज उसकी बहू ने वह चूचियां स्वयं ही उसकी चुचियों से टकरा दी थी। इससे पहले की सुगना इस अप्रत्याशित स्थित से बचने के लिए अपनी चुचियाँ पीछे कर पाती कजरी ने तुरंत अपना हाथ ऊपर किया और सुगना को अपनी तरफ खींच लिया सुगना कुछ बोल ना पायी और उसकी मझोली चुचियाँ अपनी सास की भारी चूँचियों में समा गयीं।

सरयू सिंह ने अपने हाथ वापस उसी अवस्था में लाने की कोशिश परंतु सास और बहू की चूचियों के बीच उनके हाथ के लिए जगह नहीं थी परंतु उन्होंने हार न मानी और उन दोनों की चुचियों को अपनी हथेली से सहलाने लगे।

एक ही पल में सास बहू और सरयू सिंह के बीच की शर्म की दीवार लगभग गिर चुकी थी वह उन दोनों की छातियों के बीच ढेर सारी चुचियों को सहलाते हुए मदमस्त हो रहे थे और इसका एक तरफा आनंद कजरी की चूत उठा रही थी।

अचानक कजरी ने अपने शरीर को थोड़ा नीचे किया उसके होंठ सुगना के गर्दन के ठीक नीचे आ गए थे इससे ज्यादा नीचे आना संभव न था सरयू सिंह का लंड कजरी को लगातार ऊपर धकेल रहा था सुगना ने कजरी की मनोदशा का अंदाजा लगा लिया आज वह भी पूरे उन्माद में थी। उसने अपने शरीर को ऊपर की तरफ धकेला और अपनी कोमल चुचियों के निप्पलों को अपनी सास कजरी के मुंह में दे दिया।

सुगना ने उत्तेजना में एक बड़ा कदम उठा लिया था जो कजरी की मनोदशा के अनुरूप था सरयू सिंह अपनी हथेलियों से सुगना की चुचियों को ढूंढते हुए ऊपर की तरफ गए और कजरी के चेहरे पर हाथ लगते ही उन्हें वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। सरयू सिंह स्वयं आनंद के अतिरेक से अभिभूत अपने लंड को अपनी भौजी की बुर में बेहद तेज गति से आगे पीछे करने लगे कजरी से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसकी कई इच्छाएं एक साथ पूरी हो रही थी कजरी के पैर सीधे होने लगे परंतु सरयू सिंह ने उसे चोदना जारी रखा। कजरी की बुर पानी छोड़ रही थी जितना रस वह अपनी बुर से बाहर छोड़ रही थी वह सुगना की कोमल चुचियों से उतना रस दूह लेना चाहती थी परंतु सुगना की चुचियां भी कच्चे आम जैसी थीं जिसे आप चूस तो सकते थे पर उसमें से रस निकलना असंभव था। उधर कजरी की मेहनत से सुगना की बुर भी पूरी तरह भजन कीर्तन के लिए आतुर थी।

स्खलन के दौरान कजरी ने अनजाने में ही सुगना के निप्पलों को जोर से दबा दिया सुगना से बर्दाश्त ना हुआ वह बोल उठी..

"आआआ…..तनी धीरे से दुखाता"

सुगना की इस कराह ने सरयू सिंह को पूरी तरह उत्तेजित कर दिया उन्होंने कजरी की बुर में लंड जड़ तक घुसा कर गर्भाशय को अंतिम विदाई दी और फक्कक कि आवाज के साथ अपना फनफनाता आता हुआ लंड बाहर निकाल लिए जो अब पूरी तरह कजरी के रस से भीगा हुआ था। आज कजरी की बुर ने इतना पानी स्खलित किया था कि उनके अंडकोष भी भीग गए थे।।

कजरी को अगले कदम का आभास हो गया था। सरयू सिंह का लंड अब भी स्खलित नहीं हुआ था और उन्हें अब अपनी बहू सुगना की कसी हुयी बुर की तलाश थी। कजरी बिना बात किए उनके बीच से उठी और सुगना की तरफ आ गई सुगना भी आतुर थी उसने तुरंत ही कजरी की जगह ले ली।

सरयू सिंह अब यह जान चुके थे की सुगना और कजरी दोनों ही इस खेल में शामिल हो चुके हैं। उन्होंने सुगना की जाँघे पकड़कर उसे खींच लिया और उसकी जांघों के बीच आ गए। उन्होंने अपनी हथेली से सुगना की कोमल बुर का मुआयना किया और बुर के होठों पर भरपूर प्रेम रस देखकर खुश हो गए। उन्होंने झुककर सुगना के निचले होठों को चूम लिया। सुगना के प्रेम रस से अपने होठों को भी भिगोने के पश्चात व सुगना को चूमने के लिए उसके चेहरे की तरह बढ़े।

तभी उन्हें कजरी के हाथ अपने और सुगना के सीने के बीच रेंगते महसूस हुए । कजरी सुगना की चुचियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।

सरयू सिंह सुगना के कोमल होठों को घूमते हुए सुगना को उसका ही प्रेमरस चटा रहे थे उधर उनके तने हुए लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। वह रसीली बुर के अंदर प्रवेश करता गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब वह किसी इशारे की प्रतीक्षा में न था। सुगना भी अपनी जांघें फैला कर उसे खुला आमंत्रण दे रही थी। थोड़ी ही देर में सरयू सिह की कमर तेजी से हिलने लगी। सरयू सिंह ने खुद को सुगना अलग किया और उसकी जांघों को पकड़ कर उसके पेट के दोनों तरफ कर दिया और अपने लंड से उसकी बुर को पूरी गहराई तक हुमच हुमच कर चोदने लगे।

कजरी सरयू सिह का उत्तेजक रूप महसूस कर घबरा गयी। वह अपनी बहू सुगना के चिंतित थी जो अपने बाबूजी की इस अद्भुत उत्तेजना का आनंद ले रही थी।

कजरी ने कहा

"तनी धीरे धीरे… लइका बिया"

सरयू सिंह कजरी की इस बात पर और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए उन्होंने सुगना के होंठ काट लिए तथा अपने लंड से उसके गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो उठे। उधर कजरी सुगना की चूचियों को सहलाये जा रही थी। कभी-कभी वह अपनी उंगलियां सुगना की भग्नासा पर ले आती परंतु सरयू सिंह के लंड के तेज आवागमन को महसूस कर वह अपनी उंगलियां हटा लेती। उसे कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता जैसे उसकी उंगली भी सरयू सिंह के लंड के साथ सुगना की बुर में चली जाएगी इतना आवेग था सरयू सिंह के लंड में।

सुगना हाफ रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहली बार महसूस की थी। कजरी कभी उसके होठों को चूमती कभी उसके गालों को सहलाती कभी अपने हाथों से उसकी चुचियों को सहलाती। अपनी चुचियों पर अपनी सास और अपने प्रिय बाबुजी की हथेलियां एक साथ पाकर सुगना सिहर उठी।उसकी बुर में कसाव आ गया वह स्खलित होते हुए बोली

बाबूजी... "आआआआआ…..ई….असहिं….आ..आ…सासु....माआआआआआ….आ ईईईई"

वह अपने पैर सीधा करना चाह रही थी परंतु सरयू सिंह का लंड अब भी और गहराइयां खोज रहा था। वह उसकी अंतरात्मा में उतर जाना चाहते थे।सुगना की उत्तेजक कराह ने सरयू सिंह को स्खलन पर मजबूर कर दिया और उनके लंड ने अपनी पहली धार सुगना के गर्भाशय पर छोड़ दी।

सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और अपने चिर परिचित अंदाज में अपने वीर्य से अपनी प्यारी बहू को भिगोने लगे। तभी उन्हें कजरी का ध्यान आया उन्होंने अपने लंड की दिशा घुमा ली और अपने पुराने खेत को भी उसी तरह खींचने की कोशिश की जिस तरह वह अपने आंगन की क्यारी सींच रहे थे।

परंतु दुर्भाग्य यह था की सुगना के शरीर में लगा हुआ इंजेक्शन खेत की जुताई और सिंचाई होने के बावजूद बीजारोपण में अक्षम था।

वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उनकी हथेलियां कजरी और सुगना की चुचियों पर लगे वीर्य को बराबरी से फैलाने की कोशिश करने लगीं इसी दौरान लाइट आ गई।

अचानक आई रोशनी की वजह से सभी की आंखें मूंद गई परंतु सरयू सिंह इस अद्भुत दृश्य को देखना चाहते थे। उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और अपनी दोनों नंगी प्रेमिकाओं को एक दूसरे से सटे और अपने वीर्य से भीगा हुआ देखकर अभिभूत हो गए। कजरी भी अब अपनी आंखें खोल कर सुगना को निहार रही थी।

परन्तु सुगना ने अपनी आंखें ना खोली। वह पूरी तरह शर्मसार थी। उसने पास पड़ा तकिया अपने चेहरे पर डाल लिया परंतु उसके खुले खजाने पर सरयू सिंह और कजरी का पूरा अधिकार और नियंत्रण था। वह दोनों उसकी खूबसूरत और कोमल शरीर को सहला रहे थे। सुगना की चुदी हुई फूली बुर को देखकर कजरी से न रहा गया उसने उसे चूम लिया। सुगना को यह अंदाजा न था उसने अपनी जांघें सिकोड़ी परंतु कजरी की जीभ को प्रेम रस चुराने से ना रोक पाइ उसने कहा..

"बाबूजी बत्ती बंद कर दीं"

सरयू सिह अपना झूलता हुआ लंड लेकर बिस्तर से उठे और उन्होंने ट्यूब लाइट बंद कर दी। कमरे में जल रहा नीला नाइट लैंप थोड़ी-थोड़ी रोशनी कमरे में फैला रहा था। सुगना अब उठ कर सिरहाने टेक लगाकर बैठ चुकी थी। कजरी उसकी नंगी जांघों को सहला रही थी। सरयू सिंह भी सुगना के दूसरी तरफ आकर बैठ गए थे। वह बेहद थके हुए थे। उसने सुगना को अपने सीने से लगा लिया और उसके गालों पर चुंबन लेते हुए बोले…

"तोहन लोग के बीच अतना प्यार बा हमरा आज मालूम चलल।

कजरी ने कहा..

"रहुआ आज भी ओकरा चूची पर गिरा देनी हां सुगना बाबू के इच्छा कैसे पूरा हुई?."

सुगना भी अब हाजिर जवाब हो चली थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"सासु मां अभी त रात बाकीये बा" और अपनी आंखें शरारत से मीच लीं।

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह और कजरी सुगना की तरफ मुड़ गए। उनकी नंगी जांघे सुगना कोमल जांघों पर आ गयीं। उन्होंने सुगना के गाल को चूम लिया। वह उन दोनों को जान से प्यारी हो गई थी। आज रात सुगना ने कजरी के मन में कई दिनों से उठ रही काम इच्छाओं को पूर्ण किया था और एक अलग किस्म की उत्तेजना को जन्म दिया था.

सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के दोनों गालों को चूमे जा रहे थे तथा अपनी हथेलियों से वीर्य से सने सुगना की चुचियों को सहला रहे थे।

सुगना को आज की रात बहुत कुछ देखना और सीखना था।


तभी सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी..

"बाबूजी आपन स्टेशन आवे वाला बा"

ट्रेन में बैठे सरयू सिंह भी आज रात का ही इंतजार कर रहे थे। अपनी पूरी यात्रा को याद करते करते उनके लंड में तनाव भर चुका था। कजरी ने उनके जांघों के बीच उभार को महसूस कर लिया। सरयू सिंह अपनी कामुक दुनिया से लौटकर हकीकत में आ चुके थे। हरिया ने सारा सामान उठाया और सरयू सिंह कजरी के साथ ट्रेन की गेट पर आ गए। सुगना अपने ससुर द्वारा दी गई भेंट सूरज को लेकर खुशी खुशी उनके पीछे आ गई।

घर पहुंचने के बाद गांव वालों के आने-जाने का ताता लग गया। सरयू सिंह जैसा प्रभावशाली और मजबूत आदमी आज हॉस्पिटल में 2 दिन रह कर वापस आया था। सभी लोग उनका कुशलक्षेम पूछने उनके दरवाजे पर आ रहे थे। हरिया के परिवार वाले आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे इधर कजरी और सुगना अपने घर को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही थीं।

सुधीर वकील भी उनका हालचाल घर में आया हुआ था यह वही वकील था जिसने सरयू सिंह पर केस किया परंतु अब वह उनका दोस्त बन चुका था।

सुधीर ने पूछा

"सरयू भैया तोहरा जैसा मजबूत आदमी कईसे हॉस्पिटल के चक्कर में पड़ गईल हा"

सरयू सिंह को कोई उत्तर न समझ रहा था उन्हें पता था उन्हें जो तकलीफ हुई थी वह सुगना को जरूरत से ज्यादा चोदने के कारण हुयी थी। सरयू सिंह हकीकत बयां कर पाने में असमर्थ थी उन्होंने मन मसोसकर कहा

"लागता अब हमनी के बुढ़ापा आ जायी…" सरयू सिंह मुस्कुराने लगे। अंदर आगन में सुगना और कजरी ने उनकी यह बात सुन ली और कजरी ने हंसते हुए कहा

"कुंवर जी के मुसल हमेशा ओसही रही. पूरा रास्ता खड़ा रहल हा….दुइये तीन दिन में तोरा खातिर बेचैन हो गइल बाड़े"

सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज उनका के खुश कर दीयायी"

"सुगना बेटा उनका ले मेहनत मत करवइह"

सरयू सिंह खाना पीना खाने के पश्चात दालान में आराम करने चले गए आज उनकी इच्छा एक बार फिर सुगना से संभोग करने की थी परंतु लज्जावश उन्होंने यह बात न बोली।

कुछ देर बाद कजरी दालान में आई उसने कुँवर जी के पैर दबाए और जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा...

"सुगना बाबू से दवाइयां और दूध भेज दीह. तनि शहद भी भेज दीह मीठा खाये के मन करता"

कजरी ने सुगना से कहा..

"कुंवर जी के दूध के साथ दवाई खिला दीह मीठा में तनी आपन शहद चटा दीह" इतना कहकर कजरी ने अपना चेहरा घुमा लिया और मुस्कुराने लगी।

सुगना ने सूरज को दूध पिलाया और उसे कजरी के हवाले कर अपने बाबू जी की सेवा में निकल पड़ी। शहद चटाने की बात ने उसके मन मे कामुकता को जन्म दे दिया था। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपने बाबूजी के कमरे की तरफ बढ़ रही थी...

शेष अगले भाग में।

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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 03:23 PM



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