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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#30
Heart 
भाग-29


राजेश ने सुगना को लेकर अपने मन में तरह-तरह की कल्पनाएं की थी जिसमें वह सुगना को कभी सजा धजा कर,कभी कामुक वस्त्रों में अर्धनग्न स्थिति में और कभी-कभी तो उसे अपने ख्वाबों में पूर्ण नग्न कर अपनी कामुकता को शांत किया करता था आज उस गुलाबी रंग के खूबसूरत गाउन में अपनी सुगना को देखकर राजेश की सांसे रुक गई थी।

कमर पर बंधा हुआ बेल्ट सुगना के खूबसूरत वक्ष स्थल और कटी प्रदेश को अलग कर रहा था। दूध से भरी हुई सुगना की चुचियाँ अपनी मादक उपस्थिति का अहसास करा रही थी।

नाइट गाउन सुगना की चुचियों को पूरी तरह ढकने में नाकाम था। सुगना की गोरी चूचियों के बीच की घाटी साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी।

राजेश दरवाजे पर खड़ा एक टक सुगना को देखे जा रहा था तभी लाली ने कहा..

"अभी अंदर आ जाइए सुगना भागी नहीं जा रही आराम से देख लीजिएगा" सुगना और लाली दोनों मुस्कुराने लगी सुगना ने अपना सर झुका लिया था. राजेश शर्मसार था वह हॉल में आ चुका था उसके लंड में ना चाहते हुए भी हरकत हो रही थी जो उसके पेंट में आए उभार से स्पष्ट था।

कुछ ही देर में राजेश ने अपनी लूंगी लपेटी ( एक चादर नुमा कपड़ा जो गांव में कमर के इर्द-गिर्द लपेटा जाता है।) और हाथ मुंह धो कर हॉल में खाने के लिए उपस्थित हो गया तीनों बच्चे पहले ही सो चुके थे सुगना और लाली खाना निकालने की तैयारी करने लगे। लाली ने भी आज एक दूसरा गाउन पहना हुआ था लाली की खूबसूरती किसी भी प्रकार से कम न थी पर सुगना अद्भूत थी और राजेश के लिए नई थी। राजेश की निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थी वह कभी उसके पैरों को देखता कभी उसकी जांघों के उभार को और जब कभी सुगना के नितंबों के दर्शन होते राजेश बाग बाग हो जाता। अपनी ख्वाबों की मलिका को अपने इतने करीब और अपने ही घर में मचलते हुए देखकर उसकी भावनाएं हिलोर मार रही थी।

लाली ने जमीन पर ही अंग्रेजी भाषा के एल आकार में चादर बिछाई जिस पर एक तरफ राजेश बैठा और दूसरी तरफ सुगना। लाली अपने छोटे मोढ़े पर ही बैठ गई उसे उस मोढ़े पर बैठना अच्छा लगता था।

सुगना का फ्रंट ओपन गाउन जमीन पर बैठते समय उसके पैरों के ढकने में नाकाम हो रहा था। सुगना चाह कर भी पालथी नहीं मार पा रही थी जब भी वह इस अवस्था में आती गाउन दो भागों में अलग होने लगता और उसकी जांघें दिखाई पड़ने लगती उसे इस बात का एहसास था अपने दोनों घुटने सटाए तथा पैरों को एक तरफ कर दिया। उसके दोनों पैर नितंबों के एक तरफ हो गए और नितंबों ने जमीन का सहारा ले लिया। सुगना का शरीर लचीला था वह अब आराम से बैठ गई थी परंतु उसकी स्थिति और मादक लग रही थी।

खाना खाते समय राजेश कनखियों से बार-बार सुगना को देख रहा था और अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे रहा था क्या नियति आज सुगना को उसकी बाहों में ला देगी? क्या सुगना के खजाने को देखकर उसकी प्यासी आंखें तृप्त होंगी? क्या सुगना की जांघों के बीच छुपे उस मखमली छेद को वह अपने होठों से चूम पायेगा? जितना ही वह इस बारे में सोचता उसकी जांघों के बीच उभार बढ़ता जाता।

लाली राजेश की स्थिति बखूबी समझ रही थी उसने छेड़ते हुए कहा.

"सुगना को देखकर पेट नहीं भरेगा रोटी खाईये"

राजेश और सुगना दोनों मुस्कुरा दिए। थोड़ी ही देर में लाली राजेश द्वारा लाई गई आइसक्रीम ले आई राजेश स्वयं उसे अपने हाथों से निकाल कर कटोरी में रखने लगा इसी दौरान आइसक्रीम का कुछ भाग छलक पर सुगना की दोनों जांघों के बीच गिर पड़ा सुगना जिस अवस्था में बैठी थी उसके दोनों पैर सटे हुए थे आइसक्रीम का टुकड़ा दो जांघों के बीच की जगह पर गिरा था गुलाबी रंग के गाउन के बीच में वह सफेद आइसक्रीम चमक रही थी।

क्योंकि यह गलती राजेश ने की थी उसने उस आइसक्रीम हुए टुकड़े को उठाने की कोशिश की और उसने अकस्मात ही सुगना की जाँघों को छू लिया। सुगना सिहर उठी…

राजेश की उंगलियां जैसे ही उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ती वह पिघल कर उसके हाथों से फिसल जाता दो तीन बार प्रयास करने के बाद भी राजेश उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ ना पाया अपितु वह धीरे-धीरे जांघों के जोड़ तक पहुंच गया।

राजेश के हाथ रुक गए वह उस स्थान पर हाथ लगा पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने स्वयं उस छोटे टुकड़े को उठाने की कोशिश परंतु वह भी नाकामयाब रही लाली ने हंसते हुए कहा..

"जायदे तोर जीजा जी के आइसक्रीम उ हो खा ली" लाली ने सुगना की जांघों के बीच इशारा कर दिया था।

लाली ने हंसते हुए एक गूढ़ बात कह दी थी राजेश की आइसक्रीम (क्रीम) और सुगना की बुर... सुगना सिहर उठी और राजेश ने भी शर्म से सर झुका लिया।

इधर लाली सुगना को छेड़ रही थी तभी सूरज के रोने की आवाज आई सुगना ने आधी खाई हुई आइसक्रीम कटोरी में छोड़ दी और भागकर सूरज के पास गयी।

सूरज उसे जान से ज्यादा प्यारा था और हो भी क्यों ना हर मां के लिए उसका बच्चा प्यारा होता है और सुगना को तो यह बच्चा काफी प्रयास के बाद मिला था। उसके प्यारे बाबूजी सरयू सिंह ने उसे तीन-चार वर्षों तक जी भर चोदने के बाद ही उसे पुत्र रत्न से नवाजा था।

उधर सुगना सूरज को एक बार फिर दूध पिला रही थी इधर लाली और राजेश बातें कर रहे थे।

राजेश अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था उसने लाली से संभोग की इच्छा जाहिर की परंतु राजेश का दुर्भाग्य था लाली आज ही रजस्वला हुई थी उसने राजेश को लाल झंडी दिखा दी राजेश के मन में एक बार फिर सुगना की जांघों और उनके बीच छुपा खजाना देखने की तीव्र इच्छा जागृत हुई परंतु यह इतना आसान न था।

सुगना सूरज को सुला कर अपने गोद में लिए हुए हॉल में आ चुकी थी और हाल में पड़े बिस्तर पर सूरज को सुलाने लगी उसने स्वयं ही हाल में सोने का फैसला कर लिया था उसे अपनी मर्यादा मालूम थी। वह लाली और राजेश को अलग नहीं करना चाहती थी वैसे भी राजेश कभी-कभी ही घर आता था। सुगना को मर्दों की जरूरत पता थी।

लाली ने सुगना से कहा

"हमनी के भीतर सुतल जाई"

लाली ने राजेश की तरफ देख कर कहा..

"आपका मन होगा तो आप भी वही आ जाइएगा"

कुछ ही देर में लाली और सुगना अंदर कमरे में आ चुके थे। राजेश भी अंदर आया पर कुछ ही देर में वह वापस अपनी चादर लेकर हॉल में जाने लगा सुगना ने राजेश से कहा

"जीजा जी आप यहीं सो जाइए मैं आराम से हाल में सो जाऊंगी"

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे आज आपकी दीदी हमारे साथ नहीं सोना चाहती उन्होंने लाल झंडी दिखा दी है अब आपका ही सहारा है"

अच्छा आप चलिए मैं लाली को मनाती हूं।

राजेश हाल में आ गया और लाली ने सुगना को अपने रजस्वला होने और राजेश की चाहत के बारे में खुलकर बता दिया अब जाकर सुगना को राजेश की बात समझ आई सुगना सिहर उठी थी एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह मन ही मन अपनी जांघें फैलाने के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

कुछ देर बातें करने के बाद लाली उठी अलमारी के ऊपर रखा जॉनसन बेबी आयल का डिब्बा उठाया और हाल में आ गई।

कुछ ही देर मैं हाल से फुसफुस आहट की आवाज आने लगी जिसमें कभी-कभी सुगना का जिक्र आ रहा था सुगना बेचैन हो रही थी उसे पता था लाली और राजेश रोमांटिक पति पत्नी थे। परंतु उसका नाम? हो सकता है लाली राजेश के हस्तमैथुन में मदद करने गई हो परंतु उसका नाम आने का कोई औचित्य न था। वह दबे पांव दरवाजे के पास आ गयी।

दरवाजा पूरी तरह बंद न था। उसने हॉल में झांका और चौकी पर चल रहे दृश्य को देखकर उसकी आंखें राजेश के लंड पर टिक गई। लंड सरयू सिंह के मुकाबले में उन्नीस ही था परंतु वह नया और अपरिचित था।

सुगना की नजर उस पर से नहीं हट रही थी। लाली अपने दोनों हाथों से उस लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी राजेश उसके होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था। लाली ने कहा..

आपके ख्वाबों की मलिका आपके बिस्तर पर सो रही हैं । हमेशा उसकी बातें करके यह बदमाश (लंड को दबाते हुए) मुझे तंग करता था। आज इसकी सिट्टी पिट्टी गुम है।

राजेश ने कहा

"लाली धीरे बोलो सुगना सुन लेगी"

लाली ने सुगना की चुचियों और कामुक अंगो की बातें और उनका उत्तेजक विवरण करके राजेश को शीघ्र स्खलित करा दिया राजेश तृप्त होकर लेट गया। सुगना यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित थी की कैसे लाली और राजेश ने उसे अपने अंतरंग पलों में स्थान दे दिया था। सुगना की बुर पनिया गई थी उसने अपनी हथेलियों से उसका गीलापन महसूस किया और न जाने कब उसकी मध्यमा उंगली उसकी बुर की रसीली गहराइयों में उतर गई थी।

जब तक लाली बाथरूम से लौट कर आती सुगना की बुर अपना पानी छोड़ चुकी थी। जीजा और साली अपनी अपनी जगह एक दूसरे को याद करते हुए तृप्त हो गए परंतु मिलन बाकी था।

सुगना अपनी आंखों और कानों से यह दृश्य देखने और सुनने के बाद यह जान चुकी थी की लाली और राजेश के बीच उसको लेकर कोई मतभेद नहीं था। लाली पहले भी राजेश की परिकल्पनाओं के बारे में उसे बताया करती थी परंतु उसे यकीन नहीं होता था आज सुगना यह जान चुकी थी की यदि वह आगे बढ़कर एक इशारा करेगी तो राजेश स्वतः उसकी जांघों के बीच उसका खेत जोत रहा होगा।

सुगना वक्त का इंतजार कर रही थी उसने धीरे-धीरे अपना मन बना लिया था।

स्टेशन मास्टर ने राजेश को आकस्मिक ड्यूटी के लिए बुलाया था उसे सुबह 4:00 बजे ही वापस जौनपुर के लिए निकलना था राजेश ने घड़ी में अलार्म सेट किया परंतु उसकी आवाज बेहद धीमी कर ली वह किसी भी हाल में अपनी प्रेमिका सुगना की नींद खराब नहीं करना चाहता था।

सुबह उठकर राजेश अपने कमरे में अपने कपड़े निकालने आया और कमरे की लाइट जला दी जो दृश्य उसकी आंखों के सामने था उसने राजेश की तन मन में आग लगा दी रात में सोते समय सुगना का नाइट गाउन घुटनों के ठीक ऊपर तक आ गया था उसकी जांघों का निचला भाग पूरी तरह नग्न था एक अकेली पायल ही सुगना के पैरों पर सुशोभित हो रही थी बाकी उसके पैरों और नंगी जांघों की कुदरती चमक स्वाभाविक रूप से ध्यान खींच रही थी

राजेश ललचायी नजरों से सुगना को देख रहा था अब तक लाली जाग चुकी थी उसने राजेश को सुगना की जांघों के बीच देखते पकड़ लिया था राजेश कुछ देर तक कामुक नयनसुख लेने के पश्चात अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा उसने इस बात का विशेष ख्याल रखा कि सुगना और बच्चों की नींद खराब ना हो जैसे ही राजेश अलमारी से कपड़े निकालने में व्यस्त हुआ लाली ने सुगना का गाउन और ऊपर खींच दिया सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी तथा उसका दाहिना पैर ऊपर पेट की तरफ उठा हुआ था। गाउन को ऊपर उठाने से सुखना की लाल पेंटी दिखाई पड़ने लगी और उसके नितंब जो लाल पैंटी की कैद में थे, नजर आने लगे।

लाली ने यह कार्य कर तो दिया था परंतु उसने सुगना की नींद खोल दी उसने ऊंघते हुई अपने हाथ अपने चेहरे के उपर कर लिए तथा अपनी आंखों तथा चेहरे को ढक लिया। परंतु अपने खजाने को ढकना भूल गयी। कपड़े लेकर वापस जाते समय राजेश ने एक बार फिर सुगना को देखा सुगना का पूरा खजाना राजेश की आंखों के सामने था। सुगना की फूली हुई बुर पेंटी के नीचे से अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। सुगना की कमर के नीचे का बेहद खूबसूरत हिस्सा था। पैन्टीअपनी मालकिन को कैद किए राजेश को ललचा रही थी। नंगी जाँघों का आकार अब पूरी तरह स्पष्ट था।

राजेश उन जाँघों पर अपना सिर रखकर उसके बीच उस जादुई सुरंग से रिस रहे अमृत का रसपान करना चाहता था। सुगना के खजाने भी उसे आमंत्रण दे रहे थे। लाली बिस्तर से उठ खड़ी हुई और राजेश को सुगना की जागो के बीच देखते हुए पकड़ लिया। राजेश ने शर्मा कर अपनी नजर हटायीं और बोला

"थोड़ा चाय पिला दो"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"लाती हूँ, तब तक आप बैठ कर अपनी मल्लिका को निहारिये। सुगना मुस्कुरा रही थी पर अपने पूरे शरीर पर राजेश की निगाहों को महसूस कर रही थी एक पल के लिए उसके मन में आया कि काश राजेश अपने हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी जांघों को अपने मजबूत हाथों का स्पर्श दे दे। परंतु राजेश और सुगना के बीच की यह दीवार मजबूत थी उसे टूटने में थोड़ा समय था।

उधर राजेश के पास समय बेहद कम था। लाली द्वारा बनाई गई चाय पीकर राजेश अपनी साली सुगना को छोड़कर स्टेशन की तरफ निकल गया। जाते-जाते उसने लाली से कहा हो मैं शाम को वापस आ जाऊंगा अपना ध्यान रखना और मुस्कुराते हुए धीरे से बोला और हमारी साली साहिबा का भी।

लाली एक बार फिर बिस्तर पर आ चुकी थी उसने सुगना के नितंबों को ढकने की कोशिश की। सुगना ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया दोनों सहेलियों की चूचियां आपस में टकरा गई और वह दोनों एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गयीं।

लाली ने सुगना से कहा

" देख लेले हम कहत रहनी नु ते एक बार इशारा कर बे उ तोरा बूर के पूजाई करे लगिहें"

सुगना मुस्कुरा रही थी. उसने लाली के गालों को चूम लिया और बोली

"साँच कह तारे लागत बा पुजाई करावही के परी" लाली ने भी उसे अपनी तरफ खींच लिया. लाली को राजेश की एक पुरानी बात याद आ गई वह मुस्कुराने लगी।

लाली सुगना को आलिंगन में लिए उसकी पैंटी को उतारने की कोशिश करने लगी पता नहीं सुगना किस नशे में थी उसने लाली को न रोका। लाली ने सुगना को पहनने के लिए दी हुई पेंटी को अपने हाथों से ही उतार दिया वह उपेक्षित सी बिस्तर के किनारे आ गई वह बेचारी हमेशा उत्तेजक पलों में सुगना की बुर को अकेला छोड़ देती थी।

लाली के हाथ सुगना की बुर की तलाश में लग गए और जब तक सुगना यह फैसला कर पाती कि वह लाली को आगे बढ़ने दे या रोके लाली की उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस चुरा लिया और उसे चूमते हुए बोली

"तोर जीजा जी इ रस खाती हमेशा बेचैन रहेले एक हाली उनको के चीखा दे"

लाली ने सुगना की उत्तेजना को पहचान लिया था इस मदन रस के रिसाव में निश्चय ही राजेश का भी योगदान था। आज पहली बार लाली ने सुगना की बुर पर हाथ लगाया था।

लाली आज स्वयं रजस्वला थी उसे पता था कि वह लाली से और अंतरंग नहीं हो सकती थी। उसने इस क्रिया को वहीं पर रोक दिया और सुगना को अपने सीने से सटे हुए सोने का प्रयास करने लगी। सुगना भी अपनी उत्तेजना पर काबू पाते हुए लाली की बाहों में सो गई।

लाली सुबह उठी और सुगना की कमर से उतारी गई पेंटी को ध्यान से देखा। पेंटी के बीच में सुगना की बुर से रिस आये प्रेम रस से उसका रंग बदल चुका था। वह उसे अपनी नाक के पास ले गई और उसकी भीनी खुशबू को महसूस किया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई और उसने उस पेंटी को लपेटकर वापस अलमारी में रख दिया। उसने बड़ी आसानी राजेश की कल्पना को अंजाम दे दिया था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर सुगना से सटकर ऊँघने लगी।

कुछ देर बाद दरवाजे पर आहट हुई। लाली ने ऊंघते हुए सुगना से कहा

" ए सुगना तनी दरवाजा खोल दे ना"

सुगना भी जाग चुकी थी उसने जाकर दरवाजा खोला और अपने भाई सोनू को पाकर आश्चर्यचकित हो गई।

"अरे सोनू आईल बा" उसने लाली को आवाज दी।


लाली सचेत हो गयी।
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RE: "बाबूजी तनी धीरे से… दुखाता" - by Snigdha - 14-04-2022, 03:00 PM



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